जीवन के रख-रखाव व कोशिकाओं के अंदर उपापचय क्रियाओं की उपयुक्त दर बनाए रखने के लिए आणविक गति आवश्यक है।
विषाणु वास्तव में ना तो संजीव है और ना ही निर्जीव है।
वे जैव रासायनिक क्रिया जो जीवन को बनाए रखती है जैव प्रक्रिया कहलाती है।
श्वसन/सांस लेना
शरीर को ऊर्जा की आवश्यकता जो प्रक्रियाओं के रखरखाव के लिए होती है।
स्वपोषी पोषण व पोषण है जिसमें कोई जीव (हरे पौधे) कार्बनिक पदार्थों की सहायता से कार्बनिक यौगिकों का संश्लेषण करता है।
पौधे ऊर्जा को स्टार्च के रूप में संचित करते हैं।
जंतु उर्जा को ग्लाइकोजन के रूप में सचित करते हैं।
हरे पौधों द्वारा सौर ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तन प्रकाश संश्लेषण कहलाता है।
पौधों में पतों (व तने ) की सतह में पाए जाने वाले विशेष प्रकार के छिद्र, जिनसे गैसों का आदान प्रदान तथा वाष्प उत्सर्जन होता है रंध्र कहलाते हैं।
वायु की स्वतंत्र नाइट्रोजन का सूक्ष्मजीवों (कुछ जीवाणु तथा नीली हरी शैवाल) के द्वारा नाइट्रोजन के यौगिक में परिवर्तित करने की क्रिया, जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहलाती है।
पोषण जिसमें कोई जीव भोजन का सेवन संश्लेषण नहीं कर सकता, बल्कि पोषण के लिए अन्य जीवों, पौधों और जंतुओं पर निर्भर करता है, विषमपोषी पोषण कहलाता है।
अधिकतर मृतजीव होते हैं
पोषण का प्रकार जिसमें कोई जीव किसी मृत जीव के शरीर (कार्बनिक पदार्थ) से उन्हें अपने शरीर के बाहर अपघटीत करके, घुलनशील पोषक तत्वों को अवशोषित करता है, मृत जीव पोषण कहलाता है।
पोषण का प्रकार जिसमें कोई जीव अन्य जीव के शरीर में रहकर उसके पोषक तत्व अवशोषित कर लेता है तथा इसमें जीव को हानि पहुंचती है।
वह जीव जो अन्य जीवो के शरीर में रहकर उन्हें हानि पहुंचा कर पोषण प्राप्त करते हैं, परजीवी कहलाते हैं।
अमर बेल
रिक्तिकाएँ जिनमें खाद्य पदार्थ के कण विद्यमान होते हैं खाद्य रिक्तिकाएँ कहलाती है।
पोषण की प्रक्रिया जिसमें कोई कोशिका को सुजन के करण ग्रहण करती है।
एमिलेज (टायलिन)
जठर ग्रंथिया
हाइड्रोक्लोरिक अम्ल
पेप्सिन तथा ट्रिप्सिन
श्लेष्मा भोजन को चिकना बना देता है जिससे आहारहाल में इसकी गति नियमित हो जाती है।
अमाशय मे हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का अधिक स्त्राव्ण होना जिसे आंत में जलन तथा दर्द होता है।
बाघ एक मांसाहारी जीव है। मांस का पाचन सेल्यूलोज़/घास की अपेक्षा अधिक शीघ्रता से हो जाता है।
यकृत मानव शरीर में उपस्थित सबसे बड़ी ग्रंथि है।
यकृत से स्त्रावित रस जिसमें बहुत सारे लवण होते हैं।
अग्नाशय एक मिश्रित ग्रंथि है जो आंत के मोड में स्थित होती है, जो एक रस स्त्रावित करती है जिसमें अनेक पाचक एंजाइम होते हैं।
दीर्घ रोम क्षुदांत्र का भोजन को अवशोषित करने का क्षेत्र बढ़ाते हैं।
प्रकाश संश्लेषण में CO2 प्रयुक्त होती है तथा O2 उत्पादित होती है।
क्लोरोप्लास्ट के अंदर।
प्रकाश, CO2
ये विशेष प्रकार के प्रोटीन होते हैं जो जैव उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं। वे जैव प्रक्रियाओं को प्रेरित करते हैं।
क्लोरोफिल प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित कर लेता है जिसे CO2 के कार्बोहाइड्रेट्स में स्थिरीकरण के लिए प्रयोग किया जाता है।
कैक्टस – ओपनशिया
पैरामीशियम में भोजन एक विशिष्ट स्थान से ही ग्रहण किया जाता है, भोजन स्थान तक पक्षमाभ की गति द्वारा पहुंचता है, जो जीव के पूरे शरीर को ढके रखता है।
अमावस्या की भीती में स्थित जठर ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित रस जिसमें पेप्सिनोजन, HCL तथा श्लेष्मा, विद्यमान होते हैं।
भोजन, जैसे ग्लूकोज के CO2 तथा H2O मे वशीकरण की क्रिया जो श्वसन एंजाइमों की सहायता से संपन्न होती है और जिस क्रिया में ए टी पी के रूप में ऊर्जा उत्सर्जित होती है श्वसन कहलाती है।
सूक्ष्म जीवों या एंजाइमों की सहायता से अवायवीय परिस्थितियों में कार्बनिक पदार्थों जैसे शर्करा का एथेनॉल तथा CO2 में अपघटन किरण कहलाता है।
माइटोकॉन्ड्रिया में
साइटोप्लाज्म के अंदर ग्लूकोज का वायु की अनुपस्थिति में पायरुवेट में परिवर्तन, ग्लाइकोलिसिस कहलाता है।
ग्लाइकोलाइसिस कोशिका के जीवद्रव्य में होती है।
एडिनोसिन ट्राईफास्फेट
जलीय जीव, पौधे तथा जंतु जल में घुली हुई ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।
क्योंकि जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है। ऑक्सीजन की उपयुक्त मात्रा प्राप्त करने के लिए उनमें श्वसन की दर अधिक होती है।
श्वसनिकाओ के अंत में गुब्बारों की तरह की सूचनाएं उपस्थित होती है जो गैस के विनिमय का मुख्य स्थान होते हैं।
हिमोग्लोबिन
श्वसन एक यात्री की प्रक्रिया है जिस में अंत श्वसन तथा निष्कासन दोनों ही निहित है।
रंध्रो के द्वारा
विसरण द्वारा
लगभग 80m2
रक्त एक लाल रंग का तरल संयोजी उत्तक है, जो पदार्थों के संवहन माध्यम के रूप में कार्य करता है।
रक्त प्लाज्मा
हृदय एक पेशीय अंग है जो एक पंप की तरह कार्य करता है और रक्त को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाते हैं।
जब रक्त का ह्रदय चक्र में ह्रदय में से दो बार गुजरता है तो इसे दोहरा परिसंचरण कहते हैं।
रक्त के द्वारा रक्त वाहिकाओं की भीति पर जो दाब डाला जाता है, रक्तदाब कहते हैं।
स्फाइग्मोमेनोमीटर यंत्र से रक्त दाब को मापा जाता है।
उच्च रक्तदाब को अति तनाव कहते हैं।
क्योंकि उनमें से बहने वाला रक्त दाब के साथ नहीं बहता।
धमनियों में हृदय द्वारा पंप किया गया रक्त बहता है। इसलिए उनमें रक्त दाब के साथ एक ही दिशा में बहता है।
बिल्कुल पतली रक्त वाहिका है जिनकी भित्ति केवल एक कोशिका जितनी मोटी होती है, रक्त कोशिकाएं कहलाती है।
रक्त प्लेटलेट्स चोट लगे स्थान पर रक्त जमाने में सहायक है।
पौधे की जड़े।
जाइलम
पौधे में उपस्थित रंध्रों में से पानी का वाष्प के रुप में उत्सर्जन वाष्पोत्सर्जन कहलाता है।
लसीका
लसीकाणु शरीर को संक्रमण से बचाती है।
हृदय में बाई और ऑक्सीजन रक्त रहता है।
वाष्पोत्सर्जन
व्यर्थ पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की क्रिया उत्सर्जन कहलाती है।
यूरिया, यूरिक अम्ल।
वृक्क की संरनात्मक तथा कार्यात्मक इकाई वृक्काणु कहलाती है ।
लगभग 180 लीटर/दिन
बड़े आकार के अणुओं जिसे प्रोटीन को छोटे अणुओ/आयनों को छानकर अलग करने की प्रक्रिया अपोहन कहलाती है।
रेजिन, गोंद
शरीर में जल तथा लोगों को उपयुक्त मात्रा में बनाए रखने की प्रक्रिया प्रसारण नियमन कहलाती है।
वृक्काणु में उपस्थित कप की आकृति की श्रंखला बोमन संपुट कहलाती है।
यकृत में अमोनिया यूरिया में परिवर्तित हो जाती है।
ऑक्सीजन तथा विऑक्सीजनित रक्त को मिश्रित होने से रोकने के लिए।
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