कोल विद्रोह (1831- 32 ई.) का इतिहास

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आज इस आर्टिकल में हम आपको कोल विद्रोह (1831- 32 ई.) का इतिहास के बारे में बताने जा रहे है.

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कोल विद्रोह (1831- 32 ई.) का इतिहास

1831 ईसवी में छोटानागपुर क्षेत्र में हुआ यह विद्रोह भारत के इतिहास में अपना एक अविस्मरणीय स्थान रखता है. इस विद्रोह का मुख्य कारण भूमि संबंध असंतोष था. वास्तव में यह मुंडो का विद्रोह है था. जिसमें ‘हो’ उराव एवं अन्य जनजातियों के लोग भी शामिल थे ‘हो’ और मुंडा लोगों पर ही परंपरागत रूप से घर में ग्राम प्रशासन और लगान वसूली की जिम्मेदारी होती थी. परंतु ब्रिटिश सरकार ने इसे अंचल की जिम्मेदारी विभिन्न राज्यों को दे रखी थी.

ये जमीदार अपने रैयतों से अनाप-शनाप कर वसूल करते थे, जिससे वहां के निवासी कोलों का असंतोष बढ़ने लगा. परंतु, कोल विद्रोह तात्कालिक कारण छोटा नागपुर के महाराज भाई हरनाथ सिंह द्वारा इनकी जमीन को छीन कर अपने प्रिय लोगों को सौंप दिया जाना था. शोषणकारी व्यवस्था के विरुद्ध रांची, हजीराबाग, पलामू तथा मानभूम के पश्चिमी से में फैले इस विद्रोह के प्रमुख नेता थे- बुद्धों भगत, विनद राय, सिंह राय एवं सुर्गा मुंडा.

बुद्धो भगत एवं उनके परिजनों के साथ इस विद्रोह में 800 से 1000 लोग मारे गए. सिंगराय, विनद राय, एवं दुर्गा अंत तक लड़ते रहे, लेकिन अंत 19 मार्च, 1835 ईसवी को उन्हें अंग्रेजी सेना के समक्ष आत्मसमर्पण करना पड़ा.

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