बिट्टूमेन व कोलतार।
लगभग 300 मिलीयन वर्ष पूर्व पृथ्वी पर निचले जलीय क्षेत्रों में घने वन थे। बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण यह वन मृदा व चट्टानों के नीचे दब गए। पृथ्वी के निचले भाग में उच्च तापमान वह दाब के कारण मृत पेड़-पौधे धीरे- धीरे कोयले में परिवर्तित हो गए। कोयला कार्बन का स्रोत है। मृत पौधों से कोयला बनाना कार्बनीकरण कहलाता है। मृत वनस्पति से बने इस कोयले को जीवाश्म ईंधन भी कहते हैं।
जीवाश्म ईंधन मृत जीवों के अवशेषों से बने होते हैं। ये जीव अवशेष पृथ्वी के नीचे सीमित मात्रा में पाए जाते हैं। साथ ही जीवाश्म ईंधन बनने की प्रक्रिया अति धीमी है। इसलिए जिस दर से जीवाश्म ईंधन उपयोग में लाए जा रहे हैं, उस दर से या अधिक दर से इसका निर्माण नहीं हो रहा है। अत: जीवाश्म ईंधन समाप्त होने वाले प्राकृतिक संसाधन ही है।
कोक के अभिलक्षण- कोक कठोर,संरध्र और काला पदार्थ होता है। यह कार्बन का लगभग शुद्धतम रूप है।
उपयोग-
‘पेट्रोलियम’ शब्द ग्रीक शब्द ‘पेट्रो’ तथा ‘ओलियम’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है क्रमश ‘चट्टान’ तथा ‘तेल’ अर्थात ‘चट्टानों का तेल’ है। ऐसा विश्वास है कि पृथ्वी में पेट्रोलियम का निर्माण एवं उसका कच्ची अवस्था में परिरक्षण सूक्ष्म समुद्री पादपों वह समुंद्र में रहने वाले अन्य जीवों, जो लाखो वर्ष पूर्व समुद्र की तलहटी पर जम गए थे, के मृत अवशेषों से हुआ है। लंबे समय तक इन कार्बनिक अवशेषों पर है प्राकृतिक उत्प्रेरकों की उपस्थिति में दाब द्वारा इनके पाककर्म के फल स्वरुप इन का परिवर्तन पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस में हो गया। इसलिए पेट्रोलियम को जीवाश्म ईंधन कहते हैं।
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