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KUK BA Sem 5 Geography of India Question Paper

आज इस आर्टिकल में हम आपको KUK BA Sem 5 Geography of India Question Paper के बारे में बताने जा रहे है. इसकी मदद से आप KUK एग्जाम की तैयारी कर सकते है.

KUK BA Sem 5 Geography of India Question Paper

नोट : सभी प्रश्नों में से पाँच प्रश्न करने होंगे। प्रत्येक इकाई में से एक प्रश्न जरूरी है। इकाई V अनिवार्य है। सभी प्रश्नों के अंक समान हैं।

KUK BA Sem 5 Geography of India Question Paper

इकाई-I

Q. 1. आर्थिक भूगोल की प्रकृति एवं विषय क्षेत्र का वर्णन कीजिए।

Ans. आर्थिक भूगोल मनुष्य दवारा किए जाने वाले आर्थिक कार्यों में धरातल पर से दुसरे स्थान पर मिलने वाली विभिन्नताओं का अध्ययन करता है। धरातल पर प्रव एक-दूसरे से प्राकृतिक, जैविक, मानवीय एवं आर्थिक तत्वों एवं क्रियाओं में एक दूसरे से भिन्न होता है। इन विभिन्नताओं के अध्ययन करने के साथ-साथ आर्थिक भूगोल मनष्य की आर्थिक क्रियाआ क प्राकृतिक परिस्थितियों के साथ सम्बन्ध का भी अध्ययन करता है। मनष्य की आर्थिक क्रियाआ में वस्तुओं के उत्पादन, उपभोग, वितरण आदि क्रियाओं को शामिल किया जाता है।

परिभाषा

चिशोल्म के अनुसार, “आर्थिक भूगोल के अन्तर्गत उन सब भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन आता है, जो वस्तुओं की उत्पत्ति उनके विनिमय एवं स्थानान्तरण पर प्रभाव डालती है। आथिक भूगोल का महत्व इस बात में है कि इसके द्वारा किसी प्रदेश के वाणिज्यिक विकास की दशा का ज्ञान हो जाता है और यह पता चलता है कि उन पर भौगोलिक दशाओं का क्या प्रभाव पडता है।

मरफी- आर्थिक भूगोल मनुष्य के जीविकोपार्जन की विधियों में एक स्थान से दूसरे स्थान पर मिलने वाली समानता एवं विषमता का अध्ययन करता है।

गौटज, “आर्थिक भूगोल में विश्व के विभिन्न भागों की उन विशेषताओं का वैज्ञानिक विवेचन किया जाता है, जिनका वस्तुओं के उत्पादन पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।”

एल.ई. क्लिन, ओ.पी. स्ट्रैकी के अनुसार, “आर्थिक क्रियाओं के वितरण तथा भौतिक वातावरण के साथ उनके सम्बन्धों के अध्ययन को आर्थिक भूगोल कहते हैं।”

आर्थिक भूगोल का क्षेत्र

आर्थिक भूगोल का सम्बन्ध मनुष्य के भोजन, वस्त्र, विश्राम की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए मनुष्य द्वारा किए गए आर्थिक प्रयत्नों से है। आर्थिक भूगोल का सम्बन्ध इस बात से है कि किस प्रकार मानव पृथ्वी के आर्थिक संसाधनों का विदोहन करता है, विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करता है और किस प्रकार उनका परिवहन, वितरण, उपभोग व विनियम करता है। अतः आर्थिक भूगोल के अन्तर्गत हम यह जानना चाहते हैं कि किस प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ, कहाँ, क्यों, कब तथा कैसे की जाती हैं। पृथ्वी के धरातल पर मानव की स्थिति का महत्व बहुत अधिक है।

वह अपने रहन-सहन, भोजन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सदा प्रयत्नशील रहता है। इसके लिए वह अपने भौतिक वातावरण का अधिक उपयोग करता है। किन्तु मानव की आवश्यकताएँ उसी वद्धि के साथ-साथ बढ़ती जाती है। उन में से कुछ आवश्यकताओं की पर्ति ने पर निर्भर रहना पड़ता है और इस प्रकार उत्पादन की क्रियाओं के साथ-साथ व्या उद्योगों के लिए कच्चे माल व अन्य आवश्यक वस्तुओं का स्थानान्तरण आवश्यक होता परिवहन, आवागमन के विभिन्न साधनों का विकास होता है। इस प्रकार धीरे-धीरे क्रियाओं में परिवर्तन एवं विकास होता जाता है। इसलिए कहा जाता है कि परिवर्तनशील है, जिसका केन्द्र बिन्दु मनुष्य व स्थान है। इसके अन्तर्गत हम पर कि किस प्रकार मनुष्य योजनाबद्ध रीति से अपने निवास स्थान के भौतिक व अलि संसाधनों का उत्पादन करता है

पानीपत जिला – Haryana GK Panipat District

2. आर्थिक क्रियाओं के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।

Ans. मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनेक क्रियाएँ करता है अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालती हैं। मनुष्य की इन क्रियाओं पर भौतिक व सामाजिक वातावरण प्रभाव डालते हैं। जैसे मनुष्य वनों में संग्रहण, आखेट व लकड़ी काटने का व्यवसाय, घास के में पशुचारण, जल से मछली पालन आदि का कार्य करता है। मनुष्य द्वारा की जाने वाली आशा क्रियाओं को तीन भागों में बांटा जाता है।

(1) प्राथमिक क्रियाकलाप।
(2) द्वितीयक क्रियाकलाप।
(3) तृतीयक क्रियाकलाप।

प्राथमिक क्रियाकलाप

इन क्रियाओं में मनुष्य सीधा प्राकृतिक साधनों का प्रयोग करता है और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, जैसे-वनों से लकड़ी काटना, संग्रहण, आखेट मछली पालन, कृषि करना, खनिज निकालना आदि। इन क्रियाकलापों का वर्णन इस प्रकार है

एकत्रीकरण

वनों से विभिन्न प्रकार की वस्तुओं जैसे लकड़ी, फल, फूल आदि के इकटठा करने को एकत्रीकरण कहते हैं।

एकत्रीकरण को दो भागों में बांटा जाता है

(i) जीवन निर्वाह के लिए एकत्रीकरण- इसमें अपने निर्वाह के लिए जंगलों में रहने वाली जनजातियाँ वस्तुओं को एकत्रित करती हैं, जैसे कि भोजन के लिए फल, शहद, चिकिल आदि, वस्त्रों के लिए वृक्षों की छाल व पत्तियाँ, जलाने के लिए लकड़ी आदि।
(ii) व्यापार के लिए एकत्रीकरण- इस प्रकार के व्यवसाय में जनजातियाँ व्यापार के उद्देश्य से वस्तुओं को एकत्रित करती हैं। इस व्यवसाय में विभिन्न प्रकार की उपजों को एकत्रित किया जाता है, जैसे

(a) जंगली रबड़ व बलाटा- जंगली रबड़ अमेजन बेसिन में उगने वाले ब्राजीलियनसिस नामक पेड़ के तने की छाल को काटकर इससे प्राप्त होने वाले दूध से बनाई जाती है। जंगली रबड़ की तरह ही एक पेड़ होता है, जिसके दूध से बलाटा नामक पदार्थ प्राप्त किया जाता है।
(b) फल- वनों से कई प्रकार के फल, बेर, महुआ, खजूर, जामुन आदि प्राप्त किए जाते हैं।
(c) चिकल- चिकल एक प्रकार का गोंद होता है जो कि जपोटा नामक वृक्ष के दूध से तैयार किया जाता है।
(d) रेशे- इन वनों से अनेक प्रकार के रेशे प्राप्त किए जाते हैं, जो कि चटाई, रस्से आदि बनाने में काम आते हैं।
(e) गोंद व लाख- वनों से गोंद व लाख भी प्राप्त की जाती है। लाख को कीडों से प्राप्त किया जाता है।

आखेट

आखेट मनुष्य के प्राचीनतम व्यवसायों में से एक व्यवसाय है। कम जनसंख्या का भरण-पोषण करने के कारण ये विरल जनसंख्या वाले प्रदेशों में किए जाते हैं। ये प्रदेश निम्न हैं

(1) दक्षिण अमेरिका के अमेजन बेसिन की अमेरिण्ड आदिम जाति।
(2) मध्य अफ्रीका के कांगो बेसिन के पिग्मी
(3) मलाया के समांग व सकाई
(4) न्यूगिनी के पापुआन
(5) कालाहारी मरूस्थल के बुशमैन
(6) उत्तरी आस्ट्रेलिया की आदिम जातियाँ।

ये लोग अलग-अलग उद्देश्य के लिए आखेट करते थे। ये उद्देश्य निम्नलिखित हैं

(1) भोजन – उष्ण कटिबन्ध में रहने वाली जनजातियाँ उस क्षेत्र में पाए जाने वाले पशुओं जैसे जिराफ, हिरण, शुतुरमुर्ग, जंगली सुअर आदि का शिकार करते हैं, जबकि टुण्ड्रा प्रदेश में रहने वाली जनजातियाँ हवेल, सील, ध्रुवीय भालू आदि स्थलीय जीवों का आखेट करके भोजन प्राप्त करती हैं।
(2) वस्त्र – इन शिकार किए गए पशुओं की खालों का प्रयोग वस्त्र के रूप में भी किया जाता था। टुण्ड्रा प्रदेशों में रेण्डियर, कैरिवों आदि पशुओं की खालों का प्रयोग किया जाता है।
(3) आवास – इन पशुओं की खालों का प्रयोग रहने के लिए तम्बू के लिए प्रयोग किया जाता है। याकूत व सैमोयेड जनजातियाँ रेण्डियार पशु की खाल का प्रयोग तम्बू के लिए करती थीं।
(4) अन्य – पशुओं का शिकार कई बार हथियार प्राप्त करने के लिए भी किया जाता है। ये लोग पशुओं की हड्डियों को अपने अस्त्र-शस्त्र के रूप में प्रयोग करते हैं तथा पशुओं के बचे हुए अंगों से अनेक उपकरण भी बनाते हैं। जैसे बुशमैन जनजाति शुतुरमुर्ग के अण्डे को बीच में से काटकर पानी भरने के लिए इस्तेमाल करते हैं।

लकड़ी काटना

वनों से लकड़ी काटना मनुष्य के प्राथमिक व्यवसायों में से एक है। वनों से लकड़ी काटना एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है। वनों से लकड़ी अनेक उद्देश्यों के लिए काटी जाती है। लकड़ी को कोयला बनाने, जलाने, फर्नीचर, कागज, भवन निर्माण, वस्तुओं को पैक करने आदि के लिए प्राप्त किया जाता है।

पशुपालन व पशुचारण

पशुपालन व पशुचारण मनुष्य के प्राथमिक व्यवसायों में से एक है. पशुओं से दूध, मांस, ऊन, खाल आदि वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए पशुपालन कि जनजातियाँ अपने-अपने पशुओं को चारे की खोज में इधर-उधर चराती रहती हैं। पशुचरण व्यवसाय को तीन भागों में बांटा जाता है।

(i) चलवासी पशुचारण- चलवासी पशुचारण में ये लोग एक जगह पर चारे के पर अपने पशुओं के साथ दूसरी जगह पर चले जाते हैं। अतः चरवाहों का तलाश मे एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास करना चलवासी पशुचारण कहलाता है.
(ii) जीविका पशुचारण- इस व्यवसाय में आजीविका कमाने के लिए पशुओं को पाला जाता है। इस व्यवसाय में चरवाहे अपने पशुओं के साथ इधर-उधर घूमने की बजाय एक जगह रहकर पशु चराते हैं।
(iii) व्यापारिक पशचारण- इस व्यवसाय में चरवाहे एक निश्चित स्थान पर पर जीवन व्यतीत करते हैं। पशुओं को बड़े-बड़े बाड़ों में रखा जाता है। इनका पालन पोषण वैज्ञानिक ढंग से किया जाता है।

मत्स्य-मछली

मछली पालन मनुष्य के प्राचीनतम व्यवसायों में से एक है। आज भी मछली पालन विश्व के विभिन्न भागों में आजीविका का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जापान, नार्वे, न्यूफाउंड लैंड  आदि देशों में जहाँ पर भूमि पथरीली व अनुपजाऊ है, वहाँ पर भोजन का अधिकतर भाग मछली से ही प्राप्त किया जाता है। जल की प्रकृति के आधार पर मछलियों को दो भागों में बांटा जाता है-

(1) ताजे जल की मछलियाँ।
(2) खारे जल की मछलियाँ।

खनन व्यवसाय

खानों को खोदकर उनसे खनिज अयस्क प्राप्त करना खनन व्यवसाय कहलाता है। यह मनुष्य के प्राचीनतम व्यवसायों में से एक है। यह एक महत्वपूर्ण प्राथमिक व्यवसाय है।

कृषि

कृषि एक व्यापक व्यवसाय है। इसमें विभिन्न प्रकार की फसलों को बोना – उगाना, पशुओं को पालना आदि सम्मिलित हैं। कृषि आज विकासशील देशों का एक महत्वपर्ण व्यवसाय है, जिस पर उस देश की अधिकतर जनसंख्या भोजन, वस्त्र व आवास के लिए निर्भर रहती है।

इकाई-II

3. प्राकृतिक संसाधन को परिभाषित कीजिए। प्राकृतिक संसाधनों के वर्गीकरण का कीजिए।

4. प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।

इकाई-III

5. भारत में गेहूँ एवं चावल की फसलों का स्थानिक वितरण का वर्णन कीजिए।

6. पैट्रोलियम के उत्पादन एवं वितरण का वर्णन कीजिए।

इकाई-IV

7. संसार में लौह-इस्पात उद्योग के उत्पादन एवं वितरण का वर्णन कीजिए।

8. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की आधुनिक प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिये।

इकाई-V

9. निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए :

(i) मानव की आर्थिक क्रियाएँ
(ii) आर्थिक भूगोल के अध्ययन का महत्व
(iii) प्राकृतिक संसाधनों के प्रकार
(iv) पौधरोपण फसलें
(v) भारत में प्राकृतिक गैस का वितरण
(vi) वायु परिवहन का महत्व

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Deep Khicher

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