मानव नर जनन तंत्र

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मानव नर जनन तंत्र

वृषण

यह प्राथमिकी नर जनन अंग होते हैं। यह कोमल अंडाकार के सरचनाएं 5cm*2.5cm*3cm के आकार की होती है।

मानव नर जनन तंत्र

यह थैली नुमा संरचना में बंद होती है जिन्हें वृषणकोश कहते हैं। वृषण कोश उदर गुहा के बाहर टांगों के बीच स्थित होते हैं।

कार्य

  • वृषण शुक्राणु उत्पन्न करते हैं जिन्हें नर जनन कोशिकाएं कहते हैं।
  • ये नर लैंगिक हार्मोन टेस्टोस्टेरोन स्त्रावित करते है।
  • वृषणकोश ताप नियंत्रक के रूप कार्य करते है क्योंकि शुक्राणुओं के बनने के लिए शरीर के ताप (37०C) से 1-3०C न्यून ताप की आवश्यकता होती है।

मानव नर जनन तंत्र

मानव नर जनन तंत्र

अधिवृषण

यह लगभग 6 मीटर लंबी आती कुंडलित नलिकाएं होती है जो वृषण के साथ जुड़ी होती है।

कार्य

यह वृषण से शुक्राणु ग्रहण करती है तथा उन्हें स्खलन से पहले अस्थाई रूप से संचित करके रखती है।

शुक्रवाहिनी

प्रत्येक शुक्रवाहिनी एक लम्बी नलिका होती है जिसकी भित्ति मोटी व पेशीय होती है. यह उदर गुहा में एक नाली के माध्यम से प्रवेश करती है जिसे इनगूइनल कैनाल कहते है.

कार्य

ये वृषण से शुक्राणु ग्रहण करती है तथा स्खलन से पहले अस्थायी रुप से संचित करके रखती है.

स्खलन नलिका

प्रत्येक नलिका एक छोटी पतली नलिका होती है जो गदूद (प्रोस्टेट ग्रंथि) में से होकर गुजरती है तथा मूत्र मार्ग में खुलती है। मुत्र मार्ग शिश्न में से होकर शिश्न की चोटी पर नर जनन छिद्र के रूप में खुलती है।

कार्य

मूत्र नली स्खलन नलिका से वीर्य को ग्रहण करके बाहर निकालती है। यह मूत्र को भी शरीर से बाहर निकालती है।

शिश्न

यह एक सिलेंडर की आकृति का स्पंजी, पेशी तथा अति रक्त संचित अंग है।

कार्य

  • इसे लैगिक कार्य के लिए उपयोग किया जाता है तथा योनि में शुक्राणुओं को जमा करने के लिए भी।
  • इसे मूत्र को शरीर से बाहर निकालने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।

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