शरीर के वे अंग, जो संवेदना ग्रहण करते हैं उन्हें संवेदी अंग कहते हैं, जैसे- नेत्र.
नेत्र वे स्वयं होते हैं, जो प्रकाश/दृश्य सवेंदना/उद्दीपिन को ग्रहण करते हैं तथा इसे विश्लेषण के लिए मस्तीष्क तक भेज देते हैं।
नेत्र की प्रकाश संवेदी कि सबसे अंदर वाली पत्ती, जिस पर प्रतिबिंब बनता है, रेटिना कहलाती है।
कॉर्निया पर।
मानव नेत्र लेंस की अपनी फोकस दूरी के संमजन, परिवर्तन की क्षमता नेत्र की समंजन क्षमता का जाती है।
न्यूनतम दूरी जिस पर किसी बिंब को अधिकतम स्पष्टता से बिना किसी तनाव के कारण देखा जा सकता है, स्पष्टतंम दूरी की न्यूनतम दूरी कहलाती है।
25 सेंटीमीटर।
अनंत ।
कुछ शिकारी जंतुओं में दोनों आंखें सिर पर विपरीत दिशाओं में स्थित होती है जिससे अधिकतम क्षेत्र को देखा जा सकता है, यह स्टीरियोप्सिस कहलाता है।
परितारिका पुतली के आकार कि नियंत्रित करके नेत्र में प्रवेश पाने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करते हैं।
प्रतिबिंब वास्तविक तथा उल्टा होता है।
पक्ष्माभी पेशियां नेत्र लेंस की फोकस दूरी परिवर्तित करती है।
नेत्र लेंस में समजन की क्षमता होती है, जबकि कांच की लेस की फोकस दूरी निश्चित होती है।
सामान्य मानव नेत्र 25 सेंटीमीटर तथा अनंत के बीच की वस्तुओं को फोकस कर सकते हैं।
नहीं, नेत्र रेटिना पर बना प्रतिबिंब सथाई नहीं होता है। यह अस्थाई होता है।
प्रतिबिंब वस्तु की हटाने के 1/16 सेकंड बाद तक भी रेटिना पर बना रहता है।
आयु बढ़ाने के साथ नेत्र लेंस दूधिया हो जाने को मोतियाबिंद कहते हैं।
दो आंखों के कारण हम एक ही समय वृहत क्षेत्र देख पाते हैं।
इससे स्टीरियोप्सिस की और फ़ेवर में क्षेत्र दृश्य कम हो जाता है।
नेत्र दोष जिसमें दोष युक्त व्यक्ति पास की वस्तुओं को स्पष्ट देख सकता, लेकिन दूर की वस्तुओं को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकता, निकट दृष्टि दोष कहलाता है।
अवतल लेंस का उपयोग निकट दृष्टि दोष को दूर करने के लिए किया जाता है।
नेत्र दोष से पीड़ित व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो स्पष्ट रूप से देख सकता है, लेकिन पास की वस्तुओं को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकता, दूर दृष्टि दोष कहलाता है।
दूर दृष्टि दोष को उत्तल लेंस की सहायता से दूर किया जा सकता है।
दोष युक्त कार्निया को किसी सामान्य कार्य के साथ बदल देना, कॉर्निया प्रत्यारोपण कहलाता है।
नहीं, AIDS/हिपेटाइटस से पीड़ित व्यक्ति नेत्र दान नहीं कर सकता।
मृत्यु से 4-6 घंटे बाद तक।
जब किसी व्यक्ति की आंखों की समजन क्षमता समाप्त हो जाती है तो वह बिना तनाव के वस्तुओं को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकता।
निकट दृष्टि दोष, दूर दृष्टि दोष
यदि कोई व्यक्ति निकट दृष्टि दोष तथा दूर दृष्टि दोष दोनों से पीड़ित हो तो उसे द्विफोकसीय लेंसों की आवश्यकता होती है।
एक जोड़ी आंखें दो लोगों को दृष्टि प्रदान कर सकती है, जो कार्निया दोष युक्त हो।
कांच के प्रिज्म एक 3-D ज्यामितिक मॉडल/उपकरण होता है जिसकी दो त्रिभुजाकार पृष्ठ एक दूसरे के समानांतर होते हैं तथा तीन आयताकार पृष्ठ होते हैं।
त्रिभुजाकार आधार का शीर्ष कोण, प्रिज्म का कौण कहलाता है। यह लगभग 60० का होता है।
आपतन बिंदु अप्रवर्तन किरणें, अविलंब के साथ जो कौण बनाती है, उसे अपवर्तन कोण कहते हैं।
अप्रवर्तित किरण आपतन कोण के साथ जो कौण बनाती है, उसे विचलन कोण कहते हैं।
जब प्रकाश की किरणें सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती है, तो वे अभिलंब से परे मुड़ जाती है।
श्वेत प्रकाश के सात रंगों में विभक्त होने कि परघटना, प्रकाश विक्षेपण कहलाती है।
सात रंगों की पट्टी जो प्रकाश विक्षेपण के द्वारा प्राप्त होती है, प्रकाश वर्ण कर्म कहलाती है।
बैंगनी रंग सबसे अधिक विचलित होता है और लाल रंग न्यूनतम विचलित होता है।
इंद्रधनुष बनने का कारण विक्षेपण तथा परिक्षेपण है।
लाल रंग की।
बैंगनी रंग का।
आइज़क न्यूटन ने।
वर्ण क्रम के बीच एक उल्टा प्रिज्म रख कर।
वह प्रकाश को सूर्य के प्रकाश के समान वर्ण क्रम प्रदान करता है, श्वेत प्रकाश कहलाता है।
इंद्रधनुष एक प्राकृतिक वर्णक्रम होता है जो वर्षा के बाद आकाश में प्रकट होता है।
यह सूर्य के विपरीत दिशा में प्रकट होता है।
दक्षिण दिशा में इंद्रधनुष प्रकट नहीं हो सकता है। ‘
प्रकाश के विभिन्न रंगों, विभिन्न तरंगदैर्ध्य के कारण तथा उनकी चाल भिन्न होने के कारण विक्षेपण होता है।
तारों का टिमटिमाना, सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य की डिस्क का समतल हो ना।
वायुमंडल के भौतिक गुणों में परिवर्तन या वायु की विभिन्न परतों के अपवर्तनांक में होने वाले परिवर्तन।
यह तारे द्वारा प्रति सेकंड उत्सर्जित प्रकाश ऊर्जा देता है।
पृथ्वी के वायुमंडल की निचली परतें कुछ संघन होती है, इसलिए तारे से आने वाला प्रकाश है अभिलंब की ओर मुड़ जाता है। इसलिए तारा उसकी वास्तविक स्थिति से कुछ ऊपर की ओर दिखाई देता है।
तारे टिमटिमाते हैं ,जबकि कर टिमटिमाते नहीं है।
तारों की पृथ्वी से दूरी सूर्य की अपेक्षा बहुत ही अधिक होने के कारण वह हमें छोटे दिखाई देते।
वास्तविक सूर्य अस्त तथा आभासी सूर्य अस्त के समय के बीच 2 मिनट का अंतर होता।
सूर्योदय व सूर्यास्त के समय सूर्य का लाल दिखाई देना।
आकाश का रंग नीला दिखाई देना।
प्रकाश प्रकीर्णन।
लाल रंग की ।
प्रकाश प्रकीर्णन के कारण।
कोलाइडी विलयन।
जब प्रकाश की किरण किसी कोलॉइडी विलयन में से गुजरती है।
जब प्रकाश किसी कोलॉइडी विलयन में से गुजरता है, तो प्रकाश प्रकीर्णन के कारण उसका पति दिखाई देता है। यह प्रघटना टिंडल प्रभाव कहलाती है। ।
प्रकाश प्रकीर्णन के कारण।
नीला रंग/प्रकाश जिसकी तरंग धैर्य कम होती है को सूक्ष्म कण प्रकीर्णित कर देते हैं।
लाल प्रकाश
श्वेत प्रकाश।
खतरे का संकेत लाल रंग का होता है।
वायुमंडल में नीले रंग का प्रकीर्णन अधिकतम होता है।
क्योंकि लाल रंग की चाल अधिकतम होती है तथा वायु व धुंध के कारण न्यूनतमम प्रकीर्णित होती है।
क्योंकि दोपहर को नीला प्रकाश बहुत कम प्रकीर्णित होता है।
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