मानव शरीर के सभी तंत्रों से जुडी जानकारी

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

पाचन तंत्र

ठोस, जटिल व बड़े अघुलनशील भोजन अणुओं का विभिन्न एंजाइमों एवं रासायनिक क्रियाओं की सहायता से सरल, तरल व घुलनशील अणुओं में, निम्नीकरण पाचन कहलाता है और यह तंत्र, जो इस पूरी प्रक्रिया को संपन्न करता है, पाचन तंत्र कहलाता है.

मनुष्य के पाचन तंत्र के दो भागों (i) आहार नाल (ii) पाचन ग्रंथियां में बांटकर अध्ययन किया जाता है.

आहारनाल मुख से गुदा तक होती है, इसके प्रमुख भाग हैं

  1. मुखगुहा
  2. ग्रास नली
  3. आमाशय
  4. आंत

आहार नाल से संबंधित वह ग्रंथियां, जो भोजन के पाचन में मदद करती है, पाचन ग्रंथियां कहलाती है.  

यकृत

यह मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है, जो एक गहरे गर्त द्वारा दो भागों में विभाजित रहती है, इस के निचले भाग में नाशपाती के आकार की एक थैली होती है. यकृत द्वारा स्रावित पित्त रस पित्ताशय में ही संचीत रहता है. यकृत शरीर में उत्पन्न जीव विषों को प्रभावहीन करता है. यह प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट का पाचन करता है.

श्वसन तंत्र

श्वसन की संपूर्ण प्रक्रिया को चार भागों, जैसे- ब्राहा श्वसन, गैंसों का परिवहन, आंतरिक श्वसन तथा कोशिकीय श्वसन में बांटा जा सकता है.

वातावरण से हवा, ब्राहा नासा छिद्र, नासिका गुहा, ग्रसनी, श्वासनली से गुजर कर फेफड़े में पहुंचती है, प्रत्येक श्वसन फेफड़े में प्रवेश करते ही श्वस्निकाओं में विभाजित हो जाती है.

श्वसन गैसों का परिवहन, रुधिर परिसंचरण तंत्र की सहायता से होता है. शरीर में ऑक्सीजन का परिवहन मुख्यतया रुधिर में पाए जाने वाले हीमोग्लोबिन द्वारा होता है.

कुछ जीवो के मुख्य श्वसन अंग

श्वसन अंग जीव
फेफड़े मनुष्य, मेंढक, पक्षी, छिपकली, पशु,  इत्यादि
त्वचा मेंढक तथा  केंचुआ
गिल्स टेडपॉल, मछली तथा प्रोन
श्वसन नाल कीट
शरीर सतह अमीबा तथा युग्लीना

परिसंचरण तंत्र

खुला परिसंचरण तंत्र

यह तिलचट्टा, प्रान, कीट तथा मकड़ी आदि में पाया जाता है.

बंद परिसंचरण तंत्र

यह एनीलिडा, मोलस्क तथा सभी कशेरुकीयों में पाया जाता है.

हृदय

एक मोटा पेशीय  संकुचनशील, स्वत: पम्पिंग अंग है. मछलियों में ह्रदय दो कोष्ठीय, उभयचरों तथा सरीसृपों में तीन कोष्ठीय तथा पक्षियों व् स्त्नियों में चार कोष्ठीय होता है.

ह्रदय का वह भाग, जो शरीर के ऊतकों के रुधिर ग्रहण करता है, अलिंद कहलाता है तथा हृदय वह भाग है, जो उसको में रुधिर पंप करता है, नियल कहलाता है.  

हृदय वक्ष गुहा

इसमें दोनों फेफड़ों के मध्य स्थित होता है. हृदय के चारों ओर द्विकलायुक्त कोष पाया जाता है. यह कला पेरीकार्डियम कहलाती है. दोनों कलाओं के मध्य पेरीकार्डियल द्रव से भारी एक गुहा पाई जाती है. पेरीकार्डियम द्रव हृदय की धक्कों से सुरक्षा करता है. मनुष्य का हृदय चार-कोष्ठीय होता है, जिसमें दो अलिंद एवं दो निलय पाए जाते हैं. अन्लिंद की दीवार पतली होती है, जब की निलय की दीवार अपेक्षाकृत मोटी होती है.

दाया आलिंद में सुपीरियर वेना कावा एवं इन्फीरियर वेना कावा से अनाक्सीकृत रुधिर आता है. दाएं अलिंद, दाएं निलय में एक चोडे वृत्तीय दाएं आलिंद निलय छिद्र द्वारा खुलता है, जो ट्राईकस्पीड वाल्व द्वारा ढका होता है. ट्राईकस्पीड वाल्व, दाएं अलिंद से दाएं निलय कि और रुधिर के एक दृश्य प्रवाह को नियंत्रित करता है. दायाँ निलय इससे फुस्फुस धमनी निकल कर फेफड़ो में पहुंचती है, जिसमें अनाक्सीकृत प्रवाहित होता है.

बायां आलिंद इससे फुफ्फुस शिरा  के द्वारा फेफड़ों से ऑक्सीकृत रुधिर आता है इनमें वाल्व नहीं  होते हैं. बायां आलिंद, बायाँ निलय में,  बाएं आलिंद-निलय छिद्र द्वारा खुलता है. आलिन्द-निलय छिद्र बाइकस्पीड वाल्व अथवा मिट्रल वाल्व द्वारा ढका रहता है.

हृदय की क्रिया विधि

शरीर में रुधिर का परिसंचरण हृदय की पंप क्रिया द्वारा संपन्न होता है. इसमें 2 अवस्थाएं होती है. प्रथम प्रूकुंचन की अवस्था, जिसमें निलय सिकुड़ते हैं और उनमें भरे रुधिर की महाधमनियों में पंप करते हैं. द्वितीय अवस्था को अनुशीथिलन कहते हैं. जिसमें निलय फेलते हैं. और अलिंद से रुधिर प्राप्त करते हैं. एक प्रकुंचन तथा 1 अनुशिथिलन मिलकर हृदय धड़कन का निर्माण करते हैं.

एक स्वस्थ मनुष्य का हृदय 1 मिनट में 72 बार धड़कता है, जबकि कड़ी मेहनत या व्यायाम के फलस्वरूप बढ़कर 1 मिनट में 180 बार तक हो सकता है. हृदय की धड़कन दाहिने आलिंद के ऊपरी भाग में स्थित उत्तकों के समूह शिरा अलिंद नोड से शुरू होती है. इसे ही पेसमेकर कहते हैं.

हृदय के भीतर संकुलन एवं अनुशिथिलन के आवेग का प्रसारण विद्युत रासायनिक के तरंगों के रूप में होता है ,जो शिरा आलिन्द नोड से प्रारंभ होकर निलयों तक जाता है. ह्रदय के धड़कन के दौरान विद्युत परिवर्तन को इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम नामक उपकरण द्वारा रिकॉर्ड किया जाता है, जिसे इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम या ECG कहते हैं. नवजात शिशु की हरिजन स्पंदन लगभग 140 बार प्रति मिनट होती है.

रुधिर

रुधिर एक हल्का क्षारीय अपारदर्शी, चिपचिपा, प्लाज्मा तथा रुधिर कणिकाओं का बना द्रव है.

प्लाज्मा

  • इसमें 90-92% जल ,1-2% अकार्बनिक लवण, 6-7 प्रतिशत प्लाज्मा प्रोटीन तथा 1-2% कार्बनिक यौगिक पाए जाते हैं.
  • स्तनधारियों के अतिरिक्त सभी कशेरुकियों  मे लाल रुधिर कणिकाएं अंडाकार, द्विउत्तल एवं केंद्रकीय होती है.
  • स्तनधारियों की लाल रुधिर कणिकाओं में केंद्रक का अभाव होता है, लेकिन ऊंट एवं लामा में यह कोशिकाएं केंद्र युक्त होती है.
  • इनमें वसन वर्णक हीमोग्लोबिन होता है,जो ऑक्सीजन के परिवहन का कार्य करता है.
  • श्वेत रुधिर कणिकाएं के केंद्रयुक्त, वणर्कविहिन कोशिकाएं हैं, यह रोगाणुओं से शरीर की रक्षा करती है. इनको पुलिस मैन ऑफ सेल कहा जाता है.
  • रुधिर प्लेटलेट्स- बिना रंग तथा केन्द्रकहिन होती है और रुधिर का थक्का जमने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

रुधिर आधान

रुधिर समूह रुधिर प्राप्तकर्ता वर्ग रुधिरदाता वर्ग
A A, AB A, O
B B,AB B, O
AB AB A, B, AB, O
O A, B, AB, O O

उत्सर्जन तंत्र

विभिन्न जंतुओं भिन्न भिन्न प्रकार के नाइट्रोजनी पदार्थ उत्सर्जित करते हैं. उदाहरण अमोनिया,  यूरिया, यूरिक अम्ल, मानव शरीर का प्रमुख उत्सर्जी अंग वृक है. यह अनेक छोटी-छोटी संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई यों का बना होता है, इन्हें नेफ्रॉन कहते हैं.

तंत्रिका तंत्र

तंत्रिका तंत्र केंद्रीय,  परिधीय और स्वायत तंत्रिका तंत्र से मिलकर बना होता है.

मानव तंत्रिका तंत्र

मानव तंत्रिका तंत्र के 3 भाग होते हैं

केंद्रीय तंत्रिका तंत्र

यह जंतु की सारी क्रियाओं का नियंत्रण एवं नियमन करता है. इसमें मस्तिषक तथा सुषुम्ना या मेरुरज्जु आता है. अग्रमस्ती के प्रमस्तिष्क में सचेतना और सूचनाओं का संग्रहण होता है. अग्रमस्तिष्क का थेलेमस संवेदी अंगों जैसे- आंख, कान, नाक, त्वचा अभी से आने वाली संवेदित तरंगों को जोड़ता है. अग्रमस्तिष्क का हाइपोथेलेमस, भाषण, शरीर संतुलन, लिंग व्यवहार, निंद्रा तनाव तथा पिट्यूटरी ग्रंथि के हार्मोन के नियंत्रण से संबंधित है.

पश्चमस्तिष्क का अनुमस्तिष्क शारीरिक संतुलन, पेशीय टोन का केंद्र है. पश्चमस्तिष्क का मेड्युला का ओब्ल्गेटा हृदय स्पंदन, रुधिर नलिकाओं, श्वासोच्छवास, लार स्राव तथा बहुत ही प्रत्यावर्ती एवं अनैच्छिक गतियों का नियंत्रण करता है.

प्राधिय तंत्रिका तंत्र

इसके अंतर्गत मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु से निकलने वाली तंत्रिकाएं आती है. मनुष्य में यह 12 जोडे कपालीय एवं 31 जोडे मेरु तंत्रिकाओं के रूप में होता है.

संवेदी अंग

संवेदी तंत्रिकाएं उद्दीपनों को मस्तिष्क तक पहुंचाती है तथा आवश्यकता अनुसार चालक तंत्रिका तंत्र द्वारा इन्हें प्रतिक्रियाओं के रूप में अपवाहक अगो को भेज दिया जाता है. मनुष्य के प्रमुख संवेदी अंग कान, नाक, तथा तथा जीभ है.

मानव कर्ण

यह ध्वनि तरंगों को सुनने एवं संतुलन बनाने में सहायक होता है. मध्य कर्ण में शरीर की सबसे छोटी अस्थि स्टेपिस होती है. कर्ण पल्लव की तत्वों में उपस्थिति ध्वनि तरंगों का संग्रह करती है. मनुष्य में कर्ण पल्लव अवशेषी अंग है, जो हिल-डुल नहीं सकते, परंतु कुछ जंतुओं- जैसे- पशु, कुत्ता, बिल्ली, खरगोश, आदि में यह हिल डुल सकते हैं.

मानव नेत्र

नेत्र गोलक मुख्यता तीन स्तरों का बना होता है

दृढ़ पटल

ब्राहा दृढ तथा गोलक के कोटर से बाहर पारदर्शी कार्निया बनाता है.

रक्तक पटल

कोमल, संयोजी ऊतक का बना, इसमें रंगीन कणिकाएं होती है. रंगीन कणिकाएं खरगोश में लाल, मनुष्य में काली, भूरी या नीली होती है.

दृष्टि पटल

सबसे भीतरी परत है, जो संवेदी होती है. दृष्टिपटल पर प्रतिबिंब सत्य एवं उल्टा बनता है.

मानव के प्रमुख दृष्टि दोष

मानव के प्रमुख दृष्टि दोष निम्नलिखित है

निकट दृष्टि दोष

इसमें केवल कम दूरी की वस्तुएं सही दिखाई देती है. प्रतिबिंब दृष्टिपटल के सामने बनता है. यह रोग अवतल लेंस के उपयोग द्वारा ठीक हो सकता है.

दूर दृष्टि दोष

इसमें केवल दूर की वस्तुएं दिखाई देती है. प्रतिबिंब दृष्टिपटल के पीछे बनता है. इस रोग को उत्तल लेंस का उपयोग करके दूर किया जा सकता है.

दृष्टिवैषम्य 

इसमें कार्निया की आकृति असामान्य हो जाती है. Cylindrical लेंस द्वारा यह रोग दूर हो सकता है.

मोतियाबिंद

इसमें विटामिन A की कमी से रोडास्पिन का संश्लेषण कम होने लगता है, जिससे कम प्रकाश दिखाई नहीं देता.

कंजक्टिवाइटिस

जीवाणु द्वारा कंजक्टीवा में सूजन आ जाती है.

रतौंधी

विटामिन A की कमी से रोडास्पिन का निर्माण कम होता है, जिसके कारण कम प्रकाश में दिखाई नहीं देता.

अंत स्रावी तंत्र

केशेरुकी जंतुओं में शरीर की विभिन्न क्रियाओं का नियंत्रण-नियमन, तंत्रिका तंत्र के अतिरिक्त अंत स्रावी तंत्र द्वारा होता है.

मनुष्य में कुल 9 अंतः स्रावी ग्रंथियां पाई जाती है-

  1. पिट्यूटरी ग्रंथि
  2. पीनियल ग्रंथि
  3. एड्रिनल ग्रंथि
  4. अग्नाशय ग्रंथि
  5. हाइपोथेलेमस
  6. थायराइड ग्रंथि
  7. पैराथाइरॉइड ग्रंथि
  8. जनन ग्रंथि
  9. थाइमस ग्रंथि

जनन

जनन द्वारा जीवधारियों की एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी का जन्म होता है. जनको की सहभागिता के आधार पर जनन दो प्रकार का होता है.

अलैगिक जनन

दो विपरीत लिंग (नर एवं मादा) के जीवन की आवश्यकता नहीं होती है. कायिक जनन भी अलैंगिक जनन के अंतर्गत आता है.

लैगिक जनन

दो विपरीत लिंग के जीवो के योगदान से संतानोत्पत्ति. पौधों में लैंगिक जनन पादपों का जनन भाग पुष्प होता है.

मानव जनन तंत्र

सभी स्तनधारियों में अलग-अलग नर व मादा जनन तंत्र होता है

नर जनन तंत्र

वृषण प्राथमिक नर जनन अंग है. वृषणकोष का तापमान शरीर के तापमान से 2०C कम होता है, जिस पर शुक्राणुओं का निर्माण होता है. शुक्रनलिकाओं में शुक्रजननीय में कोशिकाएं जो शुक्राणु बनाती है. वृषण में स्थित लीडीग की कोशिकाएं टेस्टोस्टेरोंन हार्मोन का श्रावण करती है.

एपीडीडाइमिस

यह शुक्रवाहिका का समूह होता है, जिस में शुक्राणु परिपक्व होते हैं.

शुक्रवाहिनी

यह एपीडीडाइमिस से निकलती है तथा मूत्रमार्ग के चारों ओर फैल कर शुक्राशय से बनाती है. यह शुक्राणुओं का संग्रह तथा पालन करती है.

शुक्राशय

यह छोटी से थैलेनुमा रचना है,जो मूत्र मार्ग में खुलता है. शुक्राशय शुक्राणु के लिए कुंड नहीं होते हैं, परंतु श्यान द्रव्य बनाते हैं. जो वीर्य के आयतन का भाग होता है, यह शुक्राणु को संरक्षण एवं पोषण प्रदान करता है. प्रोस्टेट ग्रंथि से स्रावित क्षारीय  द्रव्य का मुख्य भाग बनाता है.

मादा जनन तंत्र

अंडाशय प्राथमिक मादा जनन अंग है. स्त्रियों में दो अंडा से बादाम के आकार के भूरे रंग के होते हैं. अंडाशय में वृद्धि की ओर ग्राफियन पुटीकाएं होती है. जिनमें अंडाणु का निर्माण होता है. अंडाणु स्थिर गोलाकार एव निष्क्रिय होता है. यह अंडे एवं लिंग हार्मोन प्रोजेस्ट्रोन उत्पन्न करते हैं.

अंडवाहिनीया या फैलोपियन नलिका  के मुख पर कीप के आकार की फिम्ब्रिएटीड की होती है. इसके बाद का कुंडलीय भाग फैलोपियन नलिका कहलाता है.

गर्भाशय में भूर्ण अपरा के द्वारा जुड़ा रहता है. नाशपति आकार के गर्भाशय में निषेचित अंड का विकास होता है. मानवीय मादा के ब्राह जनन अंगों को सामूहिक रुप से भंग कहते हैं.

मादा में जनन चक्र

प्राइमेट्स में इसे रजोधर्म चक्र तथा अन्य मादाओ में इसे मद चक्र कहते हैं.

रजोधर्म चक्र की तीन अवस्थाएं होती है, जैसे- क्रम, प्रसारी स्त्रावी तथा मानसिक अवस्था.

प्रत्येक अंडाशय में संलग्न  एक अंडवाहिनी होती है. अंडवाहिनी आकृति के अनुसार निम्न प्रकार की होती है, जैसे- अंडनलिका,  गर्भाशय

कर्म प्रसारी अवस्था

FSH पुटिकाओ को एस्ट्रोजन के स्रावण के लिए प्रेरित करता है.इस अवस्था का अंतराल 10-12 दिनों का होता है.

स्रावित अवस्था

कार्पस लुटियम प्रोजेस्ट्रोन तथा एस्ट्रोजन की अधिक मात्रा स्त्राव करती है. इस अवस्था का अंतराल 12-14 दिन का होता है.

मानसिक अवस्था

यह पुरानी मासिक चक्र की अंतिम तथा नई मासिक चक्र की प्रारंभिक अवस्था होती है. यदि अंडाणु निषेचित नहीं है, तो कार्पस लुटियम, प्रोजेस्ट्रोन सत्र में कमी के कारण नष्ट हो जाता है.

जन्म नियंत्रण

जन्म नियंत्रण उपाय, जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए प्रभावकारी साधन है.

परखनली शिशु

परखनली शिशु, एक ऐसी विधि है, जिस में निषेचन मां के गर्भाशय से बाहर परखनली में होता है. इस विधि में भ्रूण को 32 कोशिका अवस्था में किसी प्रतिनिधि माता के गर्भाशय में अगले विकास के लिए स्थापित किया जाता है. संसार का सर्व प्रथम परखनली बच्चा लुईस जोय ब्राउन नामक लड़की है, जिसका जन्म 1978 में इंग्लैंड में हुआ.

Leave a Comment