सभी बहुकोशिकीय, प्रकाश संश्लेषी, यूकेरियोटिक तथा उत्पादक जीवो को पादप जगत के अंतर्गत रखा जाता है. पादप जगत का विस्तृत वर्गीकरण निम्न रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं:
इस विभाजन में पौधों के तीन संपर्क समूह है, जैसे- शैवाल, कवक, लाइकेन, सम्मिलित है.
शैवाल को सामान्यतया प्रोटिस्टा जगत के अंतर्गत रखा जाता है. अधिकांश शैवालों के लक्षण पौधे से मिलते-जुलते हैं, जैसे- पर्णहरिम की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा स्वयं भोजन निर्माण करना .अतः हम कह सकते हैं कि शैवालों का वर्गीकरण मोनेरा, प्रोटिस्टा एवं पादप जगत के अंतर्गत किया जाता है. पादप जगत के अंतर्गत शेवालों के तीन समूह निम्नलिखित है –
इसकी कोशिकाओं में (r फाईकोइरिथ्रिन) नामक के लाल वर्णक अधिकता से मिलते हैं. इसकी कोशिका भित्ति में कैल्शियम कार्बोनेट होता है, जिससे इस का आवरण कठोर एवं पृथक होता है.
इस सवाल का रंग भूरा फ्युकोजैन्थिन नामक वर्णको के कारण होता है.इन्हें पादप जगत के फीयोफाइट मैं रखा गया है. भूरे शैवाल अधिकांशतया समुद्री तथा बहुकोशिकीय होते हैं. इस वर्ग में समुद्री घास आते हैं.
स्थल पर सबसे पहले पौधों का विकास हरे शैवालों से ही हुआ है. हरे शैवाल में क्लोरोफिल – a तथा b और कुछ केरोटीनाइड क्लोरोप्लास्ट की ग्रेना में उपस्थित रहते हैं.इसमें सेलूलोज की बनी कोशिका भित्ति होती है, तथा खाद्य पदार्थों का संचय स्टार्च सरकार के रूप में करते हैं.
भूरे शैवाल, जैसे- लेमेनेरिया, फ्युक्स एवं एकलोनिया ,से आयोडीन का निर्माण होता है.
अगार -आगार का उत्पादन लाल शैवाल से होता है जो जेलिडीयम और ग्रेसीलेरिया नामक से शैवाल से प्राप्त होता है.
शैवालों से प्राप्त एलीजन का उपयोग टाइप राइटरों में तथा अजव्लनशील फिल्मों के निर्माण में प्रयुक्त होता है.
कवक एक या बहुकेंद्रीय जीव है, जो अवशोषण द्वारा गैर प्रकाश- संश्लेषक पोषण करते हैं इनमें उत्तक विभेदन का अभाव होता है.कवक में विषमपोषी पोषण होता है, क्योंकि इनमें पर्णहरिम का अभाव होता है. ये परजीवी, सहजीवी, अथवा मृतोपजीवी होते हैं. यह अवशोषण के माध्यम से पोषण करते हैं. भोजन का पाचन शरीर के बाहर होता है तथा पोषक तत्व सीधे अवशोषित किए जाते हैं. इनकी कोशिका भित्ति रेशेदार पदार्थ काइटिन की बनी होती है. यह नाइट्रोजन युक्त पॉलिसेकैराइड है, जिसकी सरंचना सेलूलोज के समान होती है. कवक में संचित कार्बोहाइड्रेट ग्लाइकोजन होता है न की मंड यह बीजाणुओं के द्वारा प्रजनन करते हैं.
लाइकेन शैवाल तथा कवक से बने होते हैं, यह सहजीवी होते हैं. शैवालांश प्रकाश-संश्लेषण, जबकि कवकांश शुष्कन से रक्षा तथा अवशोषण का कार्य करता है. यह नंगी चट्टानों पर सबसे पहले उगते हैं. रोसेला टिक्टोरिया लाइकेन से लिटमस प्राप्त होता है.
ब्रायोफाइट् को पादप जगत के उभयचर के रूप में माना जाता है अर्थात ऐसे पौधे स्थलीय होते हैं, जिसे निषेचन के लिए जल की अत्यधिक आवश्यकता होती है.
ब्रायोफाइटा में जल तथा लवण के संहवन हेतु संवहन उत्तक नहीं होते हैं. इसमें पदार्थों का संवहन एक कोशिका से दूसरी कोशिका में होता है.
बीज रहित थैलीनुमा पादप, जो प्राचीनतम संवहनी पौधा है. यह मुख्यता स्थलीय तथा छायादार और नम स्थानों पर पाया जाता है, परंतु कुछ टेरिडोफाइटा जलीय होते हैं,- जैसे- एजोला, साल्वीनिया मार्सिलिया आदी.टेरिडोफाइट के मुख्यतया तीन समूहो जैसे- क्लब मांस, हॉर्स टेल तथा फर्न में बांटा जाता है.
इस समूह के पौधे में बीज किस प्रकार की सरंचना से ढके हुए नहीं होते हैं अर्थात् बीज नंग्न ( खुला हुआ एवं अंडाशय का अभाव) होता है. यह पौधा सदाबहार, काष्ठीय तथा लंबा होता है.ये मरूद्भिद स्वभाव के होते हैं, जिनमें रंध्र पत्ती में धँसे होते हैं, तथा ब्राह त्वचा पर क्यूटीकल की परत चढ़ी होती है.अनावृतबीजी के अंतर्गत शंकुधारी पौधे रखे गए हैं, जिसमें चीड, फर, स्प्रूस आदि आते हैं.
यह पुष्प युक्त पौधे होते हैं, जिसमे बीज सदैव फलों के अंदर होता है. इस वर्ग के पौधों में जड़, तना, फूल और फल लगते हैं. ये शाक झाड़ियों या वृक्ष तीनों ही रूप में मिलते हैं.आवृत्तबीजी में परागकण तथा बीजांड विशिष्ट रचना के रूप में विकसित होते हैं, जिन्हें पुष्प कहा जाता है. जबकि अनावृतबीजी में बीजांड अनावृत होते हैं. और अभिजीत को दो वर्गों एकबीजपत्री, तथा द्विबीजपत्री में बांटा गया है.
विभिन्न सूक्ष्म जीव पादपों में कई बीमारियां की उत्पत्ति के लिए उत्तरदायी है. इन जीवो एवं उनसे संबंधित पादप रोगों को निम्न सारणी के द्वारा समझा जा सकता है.
फसल | रोग |
चकुंदर | ऐठा हुआ सिरोभाग |
भिण्डी | पीली नाडी मौजेक |
गन्ना | तृण समान वरोह |
पपीता | मौजेक |
केला | मौजेक |
तिल | फिल्लोड़ी |
सरसों | मोजेक |
बादाम | रेखा पैटर्न |
नींबू | नाड़ी का उत्तक क्षयन |
टमाटर | पत्तियों की एंठन |
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