684 ईसा पूर्व के सोलह महाजनपदों में मगध साम्राज्य सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद था. प्राचीन भारत में साम्राज्यवाद की शुरुआत या विकास का श्रेय मगध को दिया जाता है.
मगध साम्राज्य की महत्ता का वास्तविक संस्थापक बिंबिसार(544 ई.पु. – 412 ई. पु.). उसकी राजधानी गिरिव्रज (राजगृह) थी.
बिंबिसार ने वैवाहिक संबंधों के आधार पर अपने राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ की.
बिंबिसार ने अपने राजकीय चिकित्सक जीवक को पड़ोसी राज्य अवंति के शासंक चंडप्रधोत महासेन की चिकित्सा के लिए भेजा था.
बिंबिसार को उसके पुत्र अजातशत्रु ( 492 ई. पु. – 407 ई. पु.) में बंदी बनाकर सत्ता पर कब्जा जमाया.
अजातशत्रु को पुनीत के नाम से भी जाना जाता.
अजातशत्रु में वज्जि संघ के स्त्रियों को पराजित करने के लिए रत्न मुसल एवं महाशीलाकंटक नामक नए हथियारों का प्रयोग किया.
अजातशत्रु के शासनकाल में राजगृह के सप्तपर्णी गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था.
अजातशत्रु का पुत्र उदयिन ( उदयभद्र) ( 460 ई. पु.- 444 ई.पु.) 1 हर्यक वंश का तीसरा महत्वपूर्ण शासक था, उसने पाटलिपुत्र ( वर्तमान पटना) की स्थापना की तथा उसे अपनी राजधानी बनाया.
हर्यक वंश के सेनापति शिशुनाग ने मगध की सत्ता पर कब्जा कर शिशुनाग वंश की स्थापना की. इस वर्ष के शासक कालाशोक (काकवर्ण) के शासन काल में मगध की राजधानी वैशाली थी, जहां द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ.
नंद वंश का संस्थापक महापद्मनंद था. उसे सर्वक्षत्रातक अर्थात: सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला कहा गया. महापद्मनंद ने एकछत्र राज्य की स्थापना की तथा एकराट की उपाधि धारण की. नंद वंश का अंतिम शासक धननंद था. ऊंची शासनकाल में सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था.
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