मौलिक अधिकार वे अधिकार है जो एक व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए अनिवार्य है और जाती, रंग, धर्म, नस्ल और लिंग का लिहाज किए बिना इसका उपयोग सभी के द्वारा किया जाता है. संविधान का भाग 3 (अनुच्छेद 12 से 35) मौलिक अधिकारों की व्याख्या करता है.
भारतीय नागरिकों की अनिवार्य है. स्वतंत्रता के मैग्नाकार्टा का निर्माण करता है. यह अधिकार न्याय संगत है और आवश्यक हो तो न्यायालय द्वारा इसे लागू भी किया जा सकता है. मुलत: यह सात थे, लेकिन वर्ष 1978 में 44 वें संविधान संशोधन द्वारा संपत्ति के अधिकार को हटा दिया गया. भारतीय संविधान निम्नलिखित मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है-
मानव के व्यापार और बंधुआ मजदूरी का निषेध (अनुच्छेद 23), 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को उद्योग, खानों और जोखिम भरे कार्य में लगाने का निषेध (अनुच्छेद 24)
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर में अनुच्छेद 32 (संवैधानिक उपचारों का अधिकार) को संविधान की आत्मा एवं हृदय बताया. अनुच्छेद 32 के अंतर्गत उपरोक्त अधिकारों को लागू करने के लिए न्यायिक वीटो का प्रवधान है, जो निम्न है –
बंदी प्रत्यक्षीकरण- जब किसी व्यक्ति को अवैध रूप से बंदी बनाया जाता है, तो सर्वोच्च न्यायालय उस बंदी बनाने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी बनाए गए व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर न्यायालय के समक्ष पेश करें. यह अपराधिक एवं के मामलों में जारी नहीं किया जा सकता,
परमादेश- यह उस समय जारी किया जाता है, जब कोई पदाधिकारी अपने सर्वाजनिक कर्तव्य का निर्वाह करता है., प्रतिषेध- यह निचली अदालत को ऐसे कार्य करने से रोकता है, जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है,
अधिकार पृच्छा- यह एक व्यक्ति को 1 दिन कार्यालय में काम करने से मना करता है, जिसका उसे अधिकार नहीं है,
उत्प्रेक्षण- यह तभी जारी किया जाता है, जब एक डाल दिया न्यायालय अपने न्याय क्षेत्र से बाहर कार्य करता है. यह निषेध से अलग है और यह कार्य संपादित होने के बाद ही जारी किया जाता.
सरदार स्वर्ण सिंह समिति की अनुशंसा पर मौलिक कर्तव्यों को वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 51 ए के अंतर्गत संविधान में समाविष्ट किया गया. यह न्यायालय के माध्यम से प्रवृत्त तो नहीं कराए जा सकते, किंतु संविधान के निर्वाचन में दिशा दर्शन के रूप से महत्वपूर्ण है. 86 वें संविधान संशोधन, 2002 द्वारा एक नया कर्तव्य जोड़ा गया, जिससे वर्तमान में इनकी संख्या 11 हो गई.
भारतीय संविधान के भाग ii में अनुच्छेद 5-11 तक नागरिकता संबंधी उपबंधों का वर्णन है. भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान है. भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार, निम्न में से किसी एक आधार पर नागरिकता प्राप्त की जा सकती है. जन्म से (26 जनवरी, 1950) या इसके बाद पैदा होने वाले व्यक्ति जन्म से ही भारत के नागरिक माने जाएंगे.
भारतीय नागरिकता का अंत निम्न प्रकार से हो सकता है-
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