आज इस आर्टिकल में हम आपको मूर्तिकला, चित्रकला, संगीत और नृत्य – भारतीय इतिहास के बारे में विस्तृत जानकरी देने जा रहे है.
स्थापत्य कला के प्रारंभिक साक्ष्य सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त होते हैं. नगर नियोजन, स्नानगार, अंनगारा आदि इसके प्रमुख उदाहरण है. सैंधव सभ्यता में मूर्ति- निर्माण कला भी काफी उन्नत अवस्था में दिखाई देती है.
मोहनजोदड़ो से प्राप्त मृत्यूनंतर नर्तकी की कांस्य प्रतिमा सेंधव कला का बेजोड़ नमूना है. मौर्य काल का उत्कृष्ट नमूना अशोक द्वारा निर्मित एकाश्म स्तंभ है.
मौर्यकालीन लोक कला के रंग की चमक यक्षिणी, बेसनगर की एक शैली तथा प्रखम (मथुरा) यक्ष की मूर्ति में देखने को मिलती है. राजकीय कला का प्रथम उदाहरण चंद्रगुप्त मौर्य का राज प्रसाद है. मौर्य काल में ही एक नई शैली चट्टानों को काटकर कंदराओं का निर्माण प्रारंभ हुआ.
सतीश मौर्य कालीन वास्तुकला की महत्वपूर्ण देन है. अशोक में अनेक स्तूपों का निर्माण कराया. सारनाथ स्थित सिहं शीर्ष स्तम्भ जिसमें चार सिंह पीठ सट्टाये बैठे हैं नीचे एक चक्कर बना है. इसे भारत सरकार ने राज्य की अच्छी हैं बनाया है. मौर्योत्तर काल मूर्तिकला व्यापक विकास हुआ तथा बौद्ध, जैन एवं हिंदू धर्म से संबंधित मूर्तियों का निर्माण प्रारंभ हुआ.
यूनानियों के प्रभाव से मूर्ति कला की एक नवीन शैली गंधार शैली का जन्म हुआ. गंधार कला भारत में ई.पू. प्रथम शताब्दी के मध्य पाषाण काल में विकसित हुई. गांधार शैली तथा मथुरा शैली में बुध सहित अनेक मूर्तियों का निर्माण किया गया. प्रारंभिक गुप्तकालीन मंदिरों की स्थापना ऊंचे चबूतरे पर की गई. उत्तर गुप्त काल में मंदिरों में ईंटों का प्रयोग प्रारंभ हुआ.
पल्लव स्थापत्य कला की दक्षिण द्रविड़ शैली का आधार बनी. सप्त पैगोडा का निर्माण पल्लो काल में हुआ था. चालू क्यों द्वारा पर्वतों को काटकर मंदिर बनवाए गए. भारत में मंदिर निर्माण की तीन प्रमुख शैलियां-नागर, द्रविड़, एवं बेसर शैल प्रचलित थी. चोल कालीन मूर्तिकला में नटराज की कांस्य मूर्ति विश्व विख्यात है. सल्तनत कालीन स्थापत्य की महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि यह खुले स्थान का प्रयोग करते थे और अपने भावों में मेहराब एवं गुम्बद का प्रयोग करते थे,मीनारों का निर्माण करते थे.
बलबन के मकबरे में पहली बार वैज्ञानिक मेहराब का इस्तेमाल किया गया है. मजबूती के क्षेत्र में तुगलक शताब्दी की सलामी पद्धति का विशेष महत्व है, जिसके तहत उन्होंने दीवारें बनवाई. मुस्लिम स्थापत्य में सजाने के लिए जीवित वस्तुओं का चित्रण निषिद्ध होने के कारण लिखावट एवं ज्यामितीय डिजाइन का अंकन प्रचलित था, अरब शेख चिल्ली कहलाती है.
लोधियों के काल में अष्टभुजिय मकबरों के साथ है द्विगुण स्थापत्य का विकास हुआ. शर्की शैली, मालवा शैली, गुजराती शैली, कश्मीरी शैली, बंगाली शैली तथा दक्षिणी शैली स्थापत्य कला की प्रमुख प्रांतीय शैलियाँ थी.
मुगल शासकों द्वारा अनेक को मध्य एशिया विशेषताओं को, जैसे- गुम्बद, ऊँची मीनार, मेहराब आदि का अधिकाधिक प्रयोग किया गया. अकबर के शासनकाल में हुमायूं के मकबरे का निर्माण फारसी शिल्प कला के आधार पर हुआ है. विजयनगर कालीन कला के अंतर्गत कई मंदिरों का निर्माण हप्पी में हुआ था.
अर्थव्यवस्था की सामान्य जानकारी
वात्सायन के कामसूत्र ग्रंथ में चित्रकला को 64 कलाओं में चौथा स्थान दिया गया है. अजंता गुफाओं की प्राचीन चित्रकारी ई.पु. असलम साबरी की है. चित्रकारी के प्रारंभिक साक्षी पाषाण कालीन स्थल भीमबेटका से प्राप्त हुए हैं. 7वीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के मध्य जैन शैली का उद्भव एवं विकास हुआ, विश्व का प्रथम प्रमाण सित्तनवासल की गुफा से प्राप्त होता है.
अपभ्रंश शैली के चित्रों का निर्माण 11 वीं शताब्दी के बीच ताडपत्र, कपड़े एवं कागज पर हुआ. गुजराती शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय आनंद कुमार स्वामी को है. ढक्कन शैली का प्रधान केंद्र बीजापुर था, जिसे बीजापुर की रअली आदिल शाह तथा इब्राहिम सा है मैं सरंक्षण दिया.
मुगल चित्रकला शैली भारतीय और फास्ट चित्र कलाओं का संगम थी. जहांगीर के काल में चित्रकला शैली अपना पराकाष्ठा पर पहुंच गई थी. राजस्थान की किशनगढ़ शैली अपने श्रृंगार चित्रों के लिए प्रसिद्ध है. बीसवीं शताब्दी के आरंभ में अवनींद्र नाथ टैगोर की अध्यक्षता में चित्र कला के क्षेत्र में एक नई क्रांति हुई, जिसे नव्या कला आंदोलन कहा जाता है.
पत्रकारों में राजा रवि वर्मा सर्वाधिक उल्लेखनीय है, जिन्होंने पुरानी चित्रों को लोकप्रिय बनाया. अजंता, एलोरा, बाघ, एलीफेंटा, बादामी, भीमटेका, आदमगढ़ आदि की गुफाएं प्राचीन भारतीय चित्रकला के प्रमुख जा रहा है.
सामवेद के संगीत की प्राचीनतम पुस्तक माना जाता है. आधुनिक संदर्भ के अशुद्ध गायन संबंधी ग्रंथों में लोचन कवि की रागतरंगिणी और सारंगदेव का संगीत रत्नाकर संगीत के आदि ग्रंथ है. वर्तमान में भारतीय संगीत को दो प्रमुख वर्गों में विभाजित किया गया है- हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक. हिंदुस्तान पद्धति में स्वर की वर्कृत अवस्था प्राय : शुद्ध सवर के पहले मानी जाती है, वहीं कर्नाटक शैली में पुलिस और पहले माने जाते हैं.
हिंदुस्तानी शैली की तुलना में कर्नाटक चली में तारों का वर्गीकरण अधिक वैज्ञानिक है. राग स्वरों का अनुशासित रूप में प्रस्तुतीकरण है. भारतीय संगीत के इतिहास में रात का उल्लेख सर्वप्रथम मतंगमुनि के ग्रंथ वृहदेशी में किया गया है. धूरपद- भारत का प्राचीनतम गीत प्रकार है जिस का प्रचार उत्तर भारत में 15 वि. एव 16 वीं सदी में हुआ था.ख्याल खबर प्रधान गायन शैली है.
प्रसिद्ध सूफी संत अमीर खुसरो को ख्याल का जनक माना जाता है. 19वीं शताब्दी में नवाब वाजिद अली शाह के काल में ठुमरी गायन शैली अत्यधिक लोकप्रिय हुई.
तराना एक कर्क प्राकृतिक राग है. इस शैली का प्रारंभ अमीर खुसरो ने किया था.
गजलों का जनक मिर्जा गालिब को माना जाता है.
चैतन्य महाप्रभु ने कीर्तन को अत्यंत लोकप्रिय बनाया था.
नृत्य का आविभार्व संभवत: प्रागैतिहासिक काल में हुआ था. भारतीय नृत्य पर सबसे पुरानी पुस्तक नाट्यशास्त्र है, जो भरत मुनि द्वारा लिखी गई है.
संगीत नाटक अकादमी भारत सरकार ने 8 लड़कियों को शास्त्रीय नृत्य के रूप में मान्यता प्रदान की है.
भारतनाट्यम का प्रतिदिन दक्षिण भारत की देवदासियों ने किया. इसे भरतमुनि का नाट्यशास्त्र से संबंधित माना जाता है. इस नृत्य का विकास मुख्यतया तमिलनाडु में हुआ. इस नृत्य शैली में हाथ, पैर, मुक्त एवं शरीर को हिलाने के नियम है. मृदगम, घटम, सारंगी, बांसुरी एवं मंजीरा स्मृति के समय गाए जाने वाले प्रमुख वाद्ययंत्र हैं.
यह मणिपुरी राज्य का नृत्य है. यह एक धार्मिक नृत्य है, जो भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है. यह उत्तेजक नहीं होता है. नर्तक रंग- बिरंगे कपड़े पहनते हैं. इसमें ढोल बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस नृत्य शैली में राधा- शिक्षण की रासलीला का आयोजन किया जाता है. रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
कत्थक शब्द का उद्भव तथा से हुआ है, जिसका अर्थ है- कहानी. इस नृत्य शैली का उद्भव एवं विकास ब्रजभूमि की रासलीला से माना जाता है. बदचलन, चक्कर खाते हुए चलना तथा शरीर के चौकोर आकार में घूमने के बाद अचानक मित्तल हो जाना इस नृत्य की प्रमुख विशेषता है. इसमें ध्रुपद, तराना, ठुमरी एवं गजलें शामिल होती है.
यह केरल का अति परिष्कृत एवं परिभाषित नृत्य है. इस नृत्य में भाव-भंगिमाओं का बहुत महत्व है. इस नृत्य के विषय को रामायण, महाभारत, एवं हिंदू पौराणिक कथाओं से लिया गया है. इसमें देवताओं और राक्षसों से विभिन्न रूपों को दिखाने के लिए मुखौटों का प्रयोग किया जाता है.
यह उड़ीसा का शास्त्रीय नृत्य है. इटली में नृत्यांगना मूर्ति के समान भाव-भंगिमाएं प्रदर्शित करती है. इसे भारत मुनि के नाट्य शास्त्र पर आधारित माना जाता है.
यह आंध्र प्रदेश का नृत्य है. किस का उद्भव आंध्र प्रदेश के कुचेल्पुरम नामक गांव में हुआ था. इसमें लय और तांडव नृत्य का भी समावेश होता है. इसकी गति तेज एवं.शैली मुक्त होती है. यह मुख्यता पुरुषों का दृश्य है.
यह केरल का शास्त्रीय नृत्य है, जो देवदासी परंपरा की प्रचलित एकल नृत्य शैली है. इस का प्रथम उल्लेख 23 वीं शताब्दी के माजहामंगलम नारायण नम्बूबतरी द्वारा रचित व्यवहारमाला से प्राप्त होता है.यह भारतनाट्यम एवं कथकली से समानता प्रदर्शित करता है.
यह असम का शास्त्रीय नृत्य है इस को प्रतिपादित करने का सरिया असम के प्रसिद्ध वैष्णव संत शंकरदेव को है.
अरुंडेल, यामिनी कृष्णमूर्ति, रुकमणी देवी, एस के सरोज, टी बाला सरस्वती, सोनल मानसिंह, ई. कृष्ण अय्यर, राम गोपाल, लीला सैमसन, पद्मा सुब्रहार्य्म,सपन सुंदरी, मृणालिनी साराभाई, वैजयंती माला बाली, कोमल वरददन.
वलतोल नारायण मेनन,राम गोपाल, मृणालिनी साराभाई, शांताराम, आनंद शिवरामन, कृष्ण कुट्टी, क्थ्त्क लच्छू महाराज, अछन महाराज, सुखदेव महाराज, शंभू महाराज, मर, जयलाल, दमयंती जोशी, सितारा देवी, चंद्रलेखा, भारती गुप्ता, शोभना नारायण, मालविका सरकार, गोपीकृष्ण बिरजू महाराज आदि.
वनस्पति सत्यनारायणन, यामिनी कृष्णमूर्ति, राधा रेडी लक्ष्मी नारायण शास्त्री, सपन सुंदरी, राजा रेडी आदि,
इंद्राणी रहमान, काली चंद्र, कालीचरण, पटनायक, संयुक्ता पाणिग्रही, माधवी मुद्गल आदि.
रीता देवी, सविता मेहता, थांबल यामा, सिहं जीत सिंह, झावेरी बहनों, कलावती देवी, निर्मला मेहता, बिंबा वती देवी आदि.
तारा निदिगाडी, तकमणी, कल्याणी अम्मा, भारती शिवाजी, श्रीदेवी, रागिनी देवी. आदि.
नाट्य कला का विकास सर्वप्रथम भारत में ही हुआ. ऋग्वेद के कुछ क्षेत्रों में नाटक के विकास के हित में पाए जाते हैं. भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र की रचना कर उसे शास्त्रीय रूप दिया. भारतीय रंगमंच कला पर यूनानी प्रभाव भी पडा, उदाहरण के लिए पर्दे के लिए यवनिका शब्द का प्रयोग.
पाश्चात्य रंगमंच के प्रभाव में सबसे पहले बंगाल आया. कठपुतली का खेल अत्यंत प्राचीन नाटक की एक खेल है. राजस्थान की कठपुतली काफी प्रसिद्ध है.
उत्तर प्रदेश में सबसे पहले कठपुतलियों के माध्यम का इस्तेमाल शुरू हुआ था.
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