बिलासपुर
शैलाश्रयों का गढ़
6527.74 वर्ग किलोमीटर
9 (रायगढ़, खरसिया, घरघोड़ा, लेलूंगा, सारंगगढ़, धरमजयगढ़, पुसौर, तमनार, बरमकेला)
1430
09
762
01
01
08
7
14,93,984
7,50,278
7,43,706
1,95,069
1,00,204
94,865
947
73.26 प्रतिशत
83.49 प्रतिशत
63.02 प्रतिशत
229 प्रतिवर्ग किलोमीटर
1000 : 991
14
6
6
5,05,609
2,50,473
2,55,136
2,24,942
1,12,111
1,12,631
12,47,682
6,23,817
6,23,065
2,46,302
1,26,461
1,19,841
लाल एवं पीली मिट्टी
गेहूं, मूंग, मेस्टा, बाजरा, सनई।
गोमरदा अभयारण्य
केलो, महानदी, मांड
बॉक्साइट, कोयला, चूना-पत्थर ,डोलोमाइट, फ्लोराइट, क्वार्टजाइट, फेल्डसपार, बेरिल, क्ले, सोना
चक्रधर समारोह
रायगढ़ पेपर एवं बोर्ड मिल, मोदी सीमेंट लिमिटेड ( मोदीग्राम), केलकर प्रोडक्ट्स प्रा. लिमिटेड, भूपदेवपुर ( रायगढ़), बीड़ी उद्योग, जूट उद्योग, रेशम उद्योग।
2543 वर्ग किलोमीटर
कोरबा, उराव, कंवर, कुमार, भैना, नगेसिया, मंझबार, पारधि, खारिया, गडाबा।
200, 216।
किंकारी जलाशय, कोडर जलाशय , घुटका जलाशय
मांड घाटी ताप विद्युत गृह, रायगढ़।
दैनिक जनकर्म, रायगढ़ संदेश।
नाम | स्थान |
लेखाभाडा | रायगढ़ |
करमागढ़ | रायगढ़ |
बेनीपाट | रायगढ़ |
खैरपुर | रायगढ़ |
बसनाझार | रायगढ़ |
काबरा | रायगढ़ |
भैंसाडाढ़ी | रायगढ़ |
ओगना | रायगढ़ |
सिंघनपुर | रायगढ़ |
चितवा डोंगरी | रायगढ़ |
रायगढ़ जिला छत्तीसगढ़ का एक पूर्वी जिला है जिसकी सीमाएं पूर्व में उड़ीसा प्रांत, उत्तर-पूर्व में झारखंड प्रांत के गुमला जिले से लगती है. रायगढ़ प्रागैतिहासिक पुरावशेषों, गुप्तकालीन धरोहर प्रांतर में बसे आदिम आखेट जीवन जीते पहाड़ी कोरबा एवं ग्रामीण आबादी के मध्य घुमावदार घाटियों अभयारण्य तथा अतीत के अवशेषों के कारण दर्शनीय पर्यटन स्थल है। रायगढ़ नगर में स्थित पर्यटन स्थल भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है, जिनमें इंदिरा विहार, पहाड़ मंदिर, डियर पार्क, कमला नेहरु पार्क, मोती महल आदि प्रमुख है। तत्कालीन रायगढ़ रियासत के आदिवासी राजाओं द्वारा निर्मित महल जिसे मोती महल नाम दिया गया , जिला मुख्यालय, रायगढ़ में, केलो नदी के किनारे स्थित है। दुर्गोत्सव एवं दशहरे के अवसर पर रामलीला समारोह एवं महत्वपूर्ण स्थानीय उत्सव है, जिसमें भक्तिपरक छत्तीसगढ़ तथा ओडिया लोक नृत्यों का प्रदर्शन विशिष्ट सांस्कृतिक आयोजन होता है। रायगढ़ कोषा वस्त्र उद्योग के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
रायगढ़ अपने कत्थक घराने के साथ सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है।
रायगढ़ खरसिया मार्ग में 14 किलोमीटर की दूरी पर जिंदल स्ट्रिप्स लिमिटेड का संप्ज आयरन उद्योग प्रदेश में निजी क्षेत्र का सबसे बड़ा लौह उद्योग एवं विश्व का सबसे बड़ा कोयला प्रधान स्पंज आयरन निर्माण सयंत्र है। जिसकी वार्षिक क्षमता 650,000 मीट्रिक टन है, जिंदल समुदाय का छत्तीसगढ़ में 900 करोड रुपए का पूंजी निवेश है, जो प्रदेश में सर्वाधिक है। इन सबके अलावा जिंदल स्ट्रिप्स लिमिटेड का अपना स्वयं का 150 मेगावॉट का पावर हाउस जो स्टील प्लांट से उत्सर्जित गैस से देश में सबसे सस्ती विद्युत पैदा करता है। जो स्वयं के उपयोग के अलावा छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल को दिया जा रहा है। साथ ही जिले में 1000 मेगावॉट का ताप विद्युत संयंत्र भी रायगढ़ ताप विद्युत परियोजना के नाम से इनके द्वारा स्थापित किया जा रहा है। यह वर्तमान में छत्तीसगढ़ में निजी क्षेत्र का सबसे बड़ा प्लांट होगा। कंपनी के द्वारा विश्व में सबसे अधिक लंबी रेल पटरियों का निर्माण ( 120 मीटर) किया जा रहा है। यह भारत में पहली बार बड़े आकार की यूनिवर्सल बीम (समांतर फ्लैंज बिम्स) का निर्माण करेगी
रायगढ़ से 10-12 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में एक पहाड़ी गुफा टीपा खोल स्थित है। जिसमें आदिम युग के मनुष्यों द्वारा किए गए चित्रांकन पुरातत्व के क्षेत्र में अध्यक्ष चर्चित है। गुफा में चित्रित मानव तथा कुछ पक्षियों के चित्र अंधेरे में चमकते हैं।
मुंबई-हावड़ा रेलमार्ग में रायगढ़ से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर भूदेवपुर रेलवे स्टेशन से 2 किलोमीटर की दूरी रामझरना स्थित है, जिसे प्रियदर्शनी पर्यावरण परिसर नाम से विकसित किया गया है। लगभग 75 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला यह प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त स्थल है। परिसर में एक जीवन विहार स्थापित किया गया है जिसमें चौशिंघा, चितल, कोटरी, भालू, मोर आदि वन्य प्राणी रखे गए हैं। इस परिसर का प्रमुख आकर्षण रामझरना है। यहां के अन्य आकर्षण तरणताल ( स्विमिंग पूल) एवं समीप ही जलाशय है।
रायगढ़ से 20 किलोमीटर तथा भूपदेवपुर से 3 किलोमीटर की दूरी पर पर्वत श्रृंखलाओं में विश्व का प्राचीनतम मानो शैलाश्रय सिंघनपुर में स्थित है। 30000 वर्ष पूर्व की ये गुफाएं स्पेन-मैक्सिकों में प्राप्त शैलाश्रय के समकालीन है। 1912 में पुरातत्ववेत्ता एंडरसन ने सर्वप्रथम यहाँ शैलचित्रों को देखा बाद में महाकोशल इतिहास परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष पंडित लोचन प्रसाद पांडेय ने प्रकाशित किया। पहाड़ियों में प्रागैतिहासिक काल की तीन गुफाएं लगभग 300 मीटर लंबी एवं 7 फूट ऊची है। पूर्वमुखी गुफा के बाह्रा भाग में विश्व प्रसिद्ध शेलाचित्र है, इस गुफा के बाह्रा भाग पर पशु और मानव आकृतियां तथा शिकार के दृश्य आदि का शैल में काफी सुंदर चित्रण किया गया है। सिंघनपुर शैलाश्रय के पूर्व में प्रकाशित 23 चित्रों में से आज मात्र 10 चित्र ही सुरक्षित बचे हैं। भारत में अब तक ज्ञात शैलाश्रयों में प्रागैतिहासिक मानव ( एवंमेन) व मृतसांगना ( मरमेड) का चित्र केवल सिंघनपुर शैलाश्रय में है।
सिंगापुर से सिर्फ 8 किलोमीटर रायगढ़ से 28 किलोमीटर की दूरी पर बसनाझर शैलाश्रय स्थित है सिंघनपुर की पहाड़ियों में 2000 फुट ऊंचाई पर बसनाझर शैलाश्रय है। काल की दृष्टि से यह सिंघनपुर के बाद के हैं। पुरातत्वविदों के अनुसार, ये 10000 ईसवी पूर्व के हैं अर्थात प्रस्तर तथा नवीन प्रस्तरयुगीन है। पहाड़ी के बाह्रा भाग पर सामूहिक नृत्य और शिकार के दृश्यों तथा हिरण, हाथी, जंगली भैंसे, घोड़े इत्यादि पशुओं के लगभग 400 आदिम शैलाचित्र है।
रायगढ़ से 8 किलोमीटर पूर्व में ग्राम विश्वनाथपाली तथा भ्रजापाली के निकट कबरा पहाड़ है। यहां 2000 फुट की ऊंचाई पर बने गहरे गैरिक रंग के शैलचित्र सुरक्षित है। इन चित्रों में प्रमुख रूप से कछुआ, घोड़ों की सजिले चित्र और हिरण के चित्र हैं। यहां वन्य पशु जंगली भैंसा का एक विशाल रेखाचित्र है, जो गहरे गैरिक रंग के है जिसका बाह्रा रेखाकन हल्के गैरिक रंग का है। यहां आदमी का एक वर्गाकार चित्र है, जिस पर अनेक लहरदार पंक्तियां हैं तथा एक बाघ से घबराए हुए आदमी का चित्र भी है।
रायगढ़ से लगभग 30 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में करमागढ़ पहाड़ बास और अन्य पेड़ों से आच्छादित है। करमागढ़ में करीब 200 फुट की पट्टी पर एक-एक इंच पर 300 से अधिक शैलचित्र है, यहां शैलाश्रय रायगढ़ जिले के अन्य शैलचित्रों से काफी अलग है। यहां के शैलचित्रों में एक भी मानवकृति नहीं है । पशुओं में जलचर प्राणियों की प्रमुखता है। सभी चित्र रंगीन डिजाइनों में है। उत्तर से गहरे गैरिक रंग में वन्य पशु, साथ में मेंढक की छोटी एवं बड़ी डिजाइन है। मछली, सांप, कछुआ, छिपकली, बरहा, गोह आदि के चित्र है। उत्तर के चित्रों में लता-पुष्प का एक संतुलित रेखांकन है। जलसहित कमल के सुंदर चित्र एवं रंगीन तितलियां के भी चित्र हैं।
रायगढ़ से 25 किलोमीटर दूर भैंसगढ के दुर्गम वन में प्रागैतिहासिक शैलचित्रों की एक गुफा है, इस शैलाश्रय में प्राप्त चित्रों का समय करमागढ की पहाड़ियों से प्राप्त चित्रों से है। इनमें पशु-पक्षियों के चित्र अधिक है.
रायगढ़ की धर्मजयगढ़ तहसील के दक्षिण-पूर्व में लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर ओगना गांव स्थित है। जिसके पास की पहाड़ियों में 200 फुट की ऊंचाई पर आदिमानवों का चित्रित शैलाश्रय प्राप्त हुआ है। 20 फुट ऊंचे और 30 फुट चौड़े एक ही शीलाखंड में गहरे और हल्के गैरिक रंग में रंगे एक सौ शैलचित्र अंकित है, यहां चित्रों के ऊपर चित्र अंकित है, जिन्हें देखकर लगता है कि, यहां आदिमानव की कई पीढ़ियां ने चित्रांकन किया है। इनमें शिकार, समूह , नृत्य, विचित्र वेशभूषा वाली मानव आकृतियां, बेल, गाय आदि उल्लेखनीय है।
रायगढ़-बिलासपुर मार्ग पर लगभग 43 किलोमीटर दूर बोतल्दा स्थित है। बोतल्दा की पहाड़ियों में आदिम शैलचित्र, गुफाओं की लंबी श्रंखला, पहाड़ी झरना गुप्तकालीन सूर्य मंदिर के अवशेष पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र हैं। पहाड़ी के ऊपर 3 विशाल गुफाएं हैं। गुफा के भीतर जलकुंड है, जिस में वर्षभर पानी रहता है। एक में शिवलिंग स्थापित है।
खरसिया से 16 किलोमीटर की दूरी पर छोटे पंडरमुंडा के मध्य पाषाणयुगीन मनुष्यों की कब्रगाह प्राप्त हुई है।
रायगढ़ जिले के तहसील सारंगढ़ से सरायपाली (जिला महासमुंद) की ओर जाने वाले मार्ग से 20 किलोमीटर की दूरी पर गोमार्डा अभयारण्य स्थित है।
सारंगढ़ के उत्तर-पूर्व तथा सरिया ग्राम के पश्चिम में लगभग 1-1.5 किलोमीटर दूर पुजारी पाली इतिहास में कभी शशि नगर के नाम से प्रसिद्ध था। इस गांव में गुप्त काल का ध्वस्त विष्णु मंदिर अपने गौरवशाली अतीत का साक्षी है। यहां के प्राचीन मंदिरों में एक महाप्रभु का मंदिर दूसरा केंवटिन का मंदिर का तीसरा रानीझूला मंदिर है। यह सभी ईंटों द्वारा निर्मित है।
रायगढ़ से 25 किलोमीटर उत्तर-पूर्व की ओर करमागढ़ से पश्चिम में भैंसागाड़ी में बेनीपाट शैलाश्रय है। इस शैलाश्रय में कभी 50 से अधिक चित्र थे किंतु अब 6-7 चित्र ही आंशिक रूप से परिलक्षित है।
रायगढ़ के उत्तर में 12 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में 12 किलोमीटर दूर टीपाखोल जलाशय के पास खैरपुर पहाड़ी है इस पहाड़ी में छोटी सी गुफा है। यहा अंकित शैलचित्र अद्भुत है। जो अंधेरे में भी चमकते हैं शैलचित्रों में नर्तक वस्त्रधारी है और साथ में पशु-पक्षियों के चित्र भी है।
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