आज इस आर्टिकल में हमने आपको रसायन विज्ञान से जुडी जानकारी दे रहे है. रसायन विज्ञान रासायनिक पदार्थों का वैज्ञानिक अध्ययन है। पदार्थों का संघटन परमाणु या उप-परमाण्विक कणों जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से हुआ है।
द्रव्य वह है जो स्थान घेरता है तथा जिसमें आयतन तथा द्रव्यमान होता है. द्रव्य की तीन भौतिक अवस्थाएं होती है- ठोस, द्रव तथा गैस. द्रव तथा गैस अवस्था को तरल अवस्था भी कहते हैं. क्योंकि द्रव तथा गैस दोनों में बहने का गुण विद्यमान होता है.
गैस इस अवस्था में द्रव्य के कणों के मध्य आकर्षण बल कम होता है तथा उनकी गतिज ऊर्जा अधिक होती है. अणुओं के मध्य की दूरी अधिक होती है. यह एक दूसरे से स्वतंत्र रूप में तथा व्यवस्थित रूप में भ्रमण करते हैं. गैस किस पात्र में रखी जाती है, उस पत्र का पूरा आयतन गैस द्वारा घेर लिया जाता है. गैस संपीडित किया जा सकता है
जो पदार्थ का ताप कम करते हैं, तो उसके कणों की गतिज ऊर्जा कम हो जाती है. इस कारण अनुपात पास आ जाते हैं तथा आकर्षण बल बढ़ जाता है. अणुओं की गति एक दूसरे से प्रभावित होती है. द्रव का आयतन निश्चित होता है. किन्तु आकार निश्चित नहीं होता. द्रव को जिस पात्र में लिया जाता है, वह उसी का आकार ग्रहण कर लेता. द्रव को एक परी सीमा से संपीडित किया जा सकता है.
जब पदार्थ के कणों के मध्य का आकर्षण बल बढ़ जाता है तथा गतिज ऊर्जा कम होती है, तो पदार्थ ठोस अवस्था में पाया जाता. होश में कोणों के मध्य की दूरी बहुत कम होती है. ठोस का आकार एवं आयतन निश्चित होता है. कणों को व्यवस्था निश्चित होती है. ठोस पर दाब का प्रभाव नगन्य होता है.
नियम के अनुसार, रासायनिक परिवर्तन में भाग लेने वाले पदार्थ का कुल द्रव्यमान, परिवर्तन में बने हुए पदार्थों के कुल द्रव्यमान के बराबर होता है अर्थात द्रव्य अविनाशी है.
इस नियम के अनुसार, रासायनिक यौगिक में उनके अव्य्वी तत्वों का हरात्मक अनुपात सदैव सत्य रहता है. उदाहरण- जल को किसी भी स्त्रोत से अथवा प्रयोगशाला में हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के सहयोग से प्राप्त करें, इसमें बाहर की दृष्टि से हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का अनुपात 1:2 है,
इस नियम के अनुसार, जब दो तत्वों सहयोग करके दो या दो से अधिक यौगिक बनाते हैं, तो 12 के भिन्न-भिन्न भार जो, कि दूसरे अनिश्चितताओं के बाहर से सहयोग करते है, पृष्ठ पर सदैव सरल अनुपात में होते हैं.
नियम के अनुसार, यदि दो भिन्न भिन्न तो किसी तीसरे तत्वों के एक निश्चित मार्ग से सहयोग करते हैं, तो पहले दोनों तत्वों के बाहर या तो उस अनुपात में हो गए जिसमें वे दोनों परस्पर सहयोग करते हैं अथवा अनुपात उनके सहयोग करने के भारों का सरल गुणांक होगा
इस नियम के अनुसार, जब गैसें आपस में संयोग करती हैं, तो उनके आयतनी में सरल अनुपात होता है और यदि उनके संयोग से बना हुआ पदार्थ भी गैस हो, तो उसका आयतन भी क्रियाकारी गैसों के आयतन के सरल अनुपात में होगा, जयबकि सभी आयतन एक हो ताप व दाब पर नापे जायें।
जब एक या एक से अधिक पदार्थ पर अभिक्रिया करके नए पदार्थ बनाते हैं, जिनके भौतिक व रासायनिक गुण मूल पदार्थों से भिन्न होते हैं, तो ऐसी अभिक्रिया को रासायनिक अभिक्रिया कहते हैं. मुख्यत रासायनिक अभिक्रिया निम्न प्रकार की होती है
इसमें दो या दो से अधिक पदार्थ आपस में सहयोग करके केवल एक नया प्रदार्थ बनाते हैं तथा कोई अन्य पदार्थ नहीं बनाता
इनमें एक यौगिक किसी बहाय कारक (जैसे, ऊष्मा, विद्युत) की उपस्थिति में दो या अधिक छोटे योगी अथवा अपने अवयवी तत्व में अपघटित हो जाते है.
इनमें किसी यौगिक के अणु के किसी परमाणु अथवा परमाणुओं के समूह को दूसरे योगीक परमाणु या परमाणुओं का समूह विस्थापित कर देता है और स्वयं उस स्थान पर आ जाता है
इनमें यौगिकों के आयनों अथवा घटकों का विनिमय हो जाता है तथा नए योग बनते हैं.
किसी पदार्थ से ऑक्सीजन का जुड़ना अथवा हाइड्रोजन का निकलना ऑक्सीकरण कहलाता है. जब भी किसी पदार्थ से ऑक्सीजन का निकलना अथवा हाइड्रोजन का जुड़ना अपचयन कहलाता है.
परमाणु या अणु द्वारा एक या अधिक इलेक्ट्रॉन त्याग करने की प्रक्रिया ऑक्सीकरण कहलाती है तथा एक या अधिक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रक्रिया अपचयन कहलाती है.
परमाणु तत्व को है छोटे से छोटा कण है जो किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में भाग ले सकता है, परंतु स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकता.
किसी तत्व का परमाणु भार क्या है जो यह प्रदर्शित करती है कि तत्वों का एक परमाणु कार्बन- 12:00 के परमाणु के 1\12 के भाग द्रव्यमान अथवा हाइड्रोजन के 1.008 भाग द्रव्यमान के कितने गुना भारी है. यह संख्या तत्वों के एक परमाणु के द्रव्यमान तथा कार्बन – 12 के परमाणु के 1\12 भाग के अनुपात को प्रकट करती है.
तत्व का छोटे से छोटा कण जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकता है, अणु कहलाता है. तत्वों के अणु एक ही प्रकार के परमाणु और से मिलकर बनते हैं. यह एक परमाणुक , द्विपरमाणुक, या बहु परमाणुक होते हैं.
किसी पदार्थ का अनुभव है संख्या है, जो यह प्रदर्शित करती है कि उस पदार्थ का एक अणु कार्बन – 12 के परमाणु के 1\12 से कितना गुना भारी है.
किसी तत्वों का तुल्यांकी भार उसके द्रव्यमान भागों की व्यवस्था क्या है जो हाइड्रोजन के 1.008 द्रव्यमान भाग, ऑक्सीजन के 8 बेईमान भाग्य क्लोरीन के 35.5 द्रव्यमान भाग से संयुक्त हो सके या उसके किसी यौगिक में से इन द्रव्यमान भागों में विस्थापित कर सके.
जब किसी पदार्थ का तुल्यांकी भार ग्रामों में प्रदर्शित किया जाए, तब उसे ग्राम तुल्यांकी भार कहते हैं.
एक मॉल किसी भी निश्चित चित्र वाले पदार्थ कि वह राशि है जिसमें इस पदार्थ के सूत्र की संख्या उतनी ही है, जितनी शुद्ध कार्बन-12 समस्थानिक के ठीक 12 ग्राम में परमाणुओं की संख्या है.
किसी तत्व के परमाणु नाभिक में उपस्थित प्रोटॉन की संख्या उत्सव का परमाणु क्रमांक(z) होता है. प्रत्येक तत्व का परमाणु क्रमांक निश्चित स्थिर होता है. भिन्न भिन्न तत्वों के परमाणु क्रमांक भिन्न-भिन्न होते हैं. किसी तत्व के सभी परमाणुओं में प्रोटॉन की संख्या समान होती है.
किसी परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉन और न्यूट्रॉन की संख्याओं का योग उस परमाणु के द्रव्यमान संख्या (A) कहलाता है.
बीसवीं शताब्दी की आधुनिक खोजों के परिणाम स्वरुप जे जे थॉमसन रदरफोर्ड, चैडविक आदि वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया कि परमाणु अविभाज्य है तथा मुख्य तीन मूल कणों से मिलकर बना होता है. जिन्हें इलेक्ट्रोन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन कहते हैं. अंतर प्रमाण पत्रों का वह छोटे से छोटा कण है जो किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में भाग ले सकता है परंतु स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकता.
इलेक्ट्रॉन की खोज 1896 में जे जे थॉमसन में कैथोड किरणों के अध्ययन के परिणाम स्वरुप की. इलेक्ट्रॉन अत्यंत सूक्ष्म ऋणवेशित मूल कण है. इलेक्ट्रॉन पर एकांक ऋणआवेश होता है. जिसका मान 1.6 x 10 कूलाम होता है. इसका द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान 1\1837 बाग के बराबर होता है.
प्रोटॉन की खोज 1919 में रदरफोर्ड नामक वैज्ञानिक ने की थी. प्रोटोन अत्यंत सूक्ष्म धनाआवेशिक कण है. प्रोटोन पर एकांक धनावेश होता है. प्रोटोन का द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान के लगभग बराबर होता है इसे p या i से प्रदर्शित करते हैं.
न्यूट्रॉन की खोज 1932 में जेम्स चैडविक नामक वैज्ञानिक ने की थी. न्यूट्रॉन विद्युत उदासीन कण है. इसका द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान के लगभग बराबर होता है.
विभिन्न परमाण्विक स्पीशीज महत्वपूर्ण परमाण्विक स्पीसीज निम्न है:-
समान परमाणु क्रमांक परमाणु द्रव्यमानों (या द्रव्यमान संख्याओं) के परमाणुओं को समस्थानिक कहते हैं. समस्थानिकों में प्रोटॉन की संख्या समान होती है, किंतु न्यूट्रॉन की संख्या भिन्न होती है. उदाहरण – हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक होते हैं, जिनमें प्रत्येक का परमाणु क्रमांक 1 है, किंतु उनकी द्रव्यमान संख्या क्रमशः 1, 2 तथा 3 है समस्थानिकों को हाइड्रोजन-1, हाइड्रोजन – 2, हाइड्रोजन – 3 कहते हैं.
समान परमाणु द्रव्यमान परंतु भिन्न परमाणु क्रमांक के परमाणुओं को संभारीक कहते हैं.
जिन परमाणु में न्यूट्रॉन की संख्या समान होती है उसे समन्युट्रानिक कहते हैं.
जिन नैनो और परमाणुओं का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान होते हैं, उन्हें सम इलेक्ट्रॉनिक कहते हैं.
परमाणु की संरचना को समझाने के लिए अनेक विज्ञानिकों ने विभिन्न मॉडल प्रस्तुत किए, जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण निम्न प्रकार है
जे जे थॉमसन ने सन 1904 में प्रथम परमाणु मॉडल प्रस्तुत किया. उनके अनुसार, परमाणु एक अति सूक्ष्म, गोलाकार विद्युत उदासीन कण है,जिसमें धनावेशित कण (प्रोटॉन) समान रूप से पहले होते हैं तथा ऋणवेशित इलेक्ट्रॉन उसमें इस प्रकार धसे होते है. अंतर परमाणु विद्युत रूप से उदासीन होते हैं.
इस मॉडल को परमाणु का तरबूज मॉडल या प्लम-पुडिंग मॉडल भी कहा जाता है. इस मॉडल की सहायता से अन्य वैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयोगों जैसे a कण प्रकीर्णन प्रयोग तथा परमाणु के स्पेक्ट्रम की व्याख्या नहीं की जा सकी. इसे अमान्य कर दिया गया.
परमाणु का समस्त धनावेश एक सूक्ष्म आयतन में केंद्रित होता है जिसे नाभीक कहते है. नाभिक की त्रिज्या 10-12 सेंटीमीटर होती है. नाभिक के चारों ओर नुकसान होता है जिसमें इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर भ्रमण करते हैं. परमाणु विद्युत उदासीन होता है.
किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर वृतीय हैं कक्षाओं में घूमते रहते हैं. प्रत्येक कक्षा की उर्जा निश्चित होती है अतः इन कक्षाओं को उर्जा स्तर भी कहते हैं.
जब तक इलेक्ट्रॉन अपनी स्थिर कक्षा में परिक्रमा करते रहते हैं, तब तक परमाणु द्वारा ऊर्जा विकृत नहीं होती. एक निश्चित मात्रा में ऊर्जा विकृत कर या शोषित कर परिक्रमा करता हुआ इलेक्ट्रॉन अपनी कक्षा परिवर्तित कर सकता है. इस निश्चित मात्रा की ऊर्जा को क्वांटम कहते हैं.
रसायन विज्ञान के महत्वपूर्ण सवाल और उनके जवाब
परमाणु नाभिक के चारों ओर का वह स्थान जहां इलेक्ट्रॉन के पाए जाने की संभावना अधिकतम होती है, परमाणु कक्षक कहलाता है
कुछ पदार्थों जैसे यूरेनियम, रेडियम अति सर्वत्र एक प्रकार की बेदी किरण उत्सर्जित करते रहते हैं, ऐसे पदार्थों को रेडियोएक्टिव पदार्थ कहते हैं, तथा पदार्थों का सूत्र बेदी किरण उत्सर्जित करने का गुण रेडियोऐक्टिवता कहलाता है.
रेडियोएक्टिव तत्व के नाभिक अस्थाई होते हैं. उनमें सवत वीघटन का गुण होता है. परमाणु नाभिक के स्वत विघटन को रेडियोएक्टिव विघटन कहते हैं. रेडियोएक्टिव विघटन में परमाणु नाभिकोन से बेदी किरणें उत्सर्जित होती है. यह किरणें रेडियोएक्टिव किरणें चलाती है. रेडियोएक्टिव होता का गुण भारी नागरिकों में पाया जाता है, क्योंकि भारी नाभि के अस्थाई होते हैं.
किसी तत्व के परमाणु नाभिक के विघटित होने को नाभिकीय विघटन कहते हैं. रेडियोऐक्टिवता परमाणु विघटन के फलस्वरूप होती है. यह दो प्रकार का होता है –
रेडियोएक्टिव तत्वों के परमाणु नाभिक से विघटित होकर अन्य तत्वों के परमाणु नाभिक में परिवर्तित हो जाते हैं.
तिवर्ग्रामी कणों की बौछार करके सभी को विघटित कर के दूसरे में परिवर्तित करने की क्रिया को कृत्रिम विघटन कहते हैं.
किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ का अर्धायु काल वह समय है जिसमें उसके किसी नमूने की आधी मात्रा विघटित हो जाती है.
भारी परमाणुओं के नाभिक के मध्य द्रव्यमान वाले परमाणुओं के नाविकों में विभक्त हो जाने की क्रिया को नाभिकीय विखंडन कहते हैं.
वह नाभिकीय अभिक्रिया जिसमें 2 हल्के नाभिक परस्पर संयुक्त होकर एक नाभिक का निर्माण करते हैं, नाभिकीय संलयन अभिक्रिया कहलाती है. उच्च ताप होने के कारण नाभिकीय संलयन अभिक्रिया को ऊष्माअभिक्रियाएं भी कहते हैं. हाइड्रोजन बम नाभिकीय संलयन क्रिया पर आधारित होता है
नाभिकीय अभिक्रिया के फलस्वरूप निकलने वाली ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा कहते हैं.
रेडियोऐक्टिवता की नाभिकीय संलयन अभिक्रिया से हाइड्रोजन बम बनता है, रेडियोऐक्टिवता की नियंत्रित नाभिकीय विखंडन अभिक्रिया से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न होती है. रेडियोएक्टिव समस्थानिकों का अनेक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है.
जैसे-
नाभिकीय विखंडन के फलस्वरूप a व b कण तथा x – किरण युक्ति विकिरण उत्सर्जित होती है. यह किरणें कैंसर में गुणसूत्रों में परिवर्तन पैदा कर देती है. यह कोशिका को नष्ट कर देती है तथा हमारे शरीर को आसानी से भेद देती है.
तारापुर परमाणु शक्ति स्टेशन ( महाराष्ट्र) , राजस्थान परमाणु शक्ति स्टेशन ( राणा प्रताप सागर, कोटा) , मद्रास परमाणु शक्ति स्टेशन ( कलपक्कम ) , नरोरा परमाणु शक्ति स्टेशन ( बुलंदशहर उत्तर प्रदेश )
अणुओं के मध्य रासायनिक बंध उपस्थित रहते हैं आकर्षण बल का कार्य करते हैं. स्वतंत्रता नहीं होते, यह अवस्था में ही रह सकते हैं. बंन्ध बनने से उर्जा (स्थतिज ) में कमी आती है. परमाणु युद्ध मत हो कर ही स्थायित्व प्राप्त करते हैं. परमाणुओं के ब्राहा कोष में उपस्थित इलेक्ट्रॉन ही रसायनीक बंन्ध के निर्माण में भाग लेते हैं. यह इलेक्ट्रॉन संयोजी इलेक्ट्रॉन कहलाती है. संयोजकता के इलेक्ट्रॉनिक के सिद्धांत के अनुसार, रासायनिक बन्ध तीन प्रकार के होते हैं.
परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रॉन के हस्तांतरण से जो बंन्ध बनते हैं, उन्हें वैद्युत संयोजी बंध या आयनिक बंध कहते हैं. उदाहरण – जब सोडियम तथा क्लोरीन संपर्क में आते हैं तो सोडियम (2,8, 1) अपने ब्र्हातंम कोष से एक इलेक्ट्रॉन क्लोरीन परमाणु (2, 8, 7 ) को दान देता है, जिसमें सोडियम तथा क्लोरीन दोनों ही सफाई विन्यास प्राप्त कर लेते हैं.
परमाणुओं के मध्य इलेक्ट्रॉनिक उनकी साझेदारी से जो बंन्ध बनते हैं उन्हें सह संयोजी बंध कहते हैं
दो परमाणुओं के मध्य दो इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी द्वारा जब एक रासायनिक बंध इस प्रकार बनता है कि साझे के दोनों इलेक्ट्रॉन उनमें से एक परमाणु के द्वारा दिए जाए तो इस प्रकार के बंन्ध को ऊप – सहसंयोजक बंध कहते हैं. राज्य में इलेक्ट्रॉन देने वाले परमाणु को दाता परमाणु तथा दूसरे परमाणु को ग्राही परमाणु कहते हैं.
गैसीय नियम प्रमुख गैसीय नियम निम्न है –
किसी निश्चित आप पर किसी गैस के निश्चित द्रव्यमान का आयतन उसके दाग के व्युत्क्रमानुपाती होता है.
जब किसी शुष्क गैस को नियत दाब पर रखा जाता है तो केल्विन तापमान और आयतन एक दूसरे के अनुक्रमानुपाती होते हैं। k नियतांक है। सन् 1787 मे फ्रांस के वैज्ञानिक जे0 चार्ल्स ने संपादन किया। इस नियम के अनुसार स्थिर दाब पर किसी गैस की निशचित मात्रा का आयतन के परमताप के समानुपाती होता है ।
यह समीकरण बॉयल तथा चाल्र्स के नियमों का योग है तथा किसी गैस के ताप, आयतन में संबंध बताती है.
विसरण की परिभाषा क्या है , सूत्र , उदाहरण “जब ताप और दाब को नियत रखा जाए तो गैस के विसरण को दर गैस के घनत्व के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होती है। “ यहाँ दाब P व ताप T को नियत रखा गया है।
अक्रियाशील गैसों के मिश्रण द्वारा डाला जाने वाला दाब पृथक-प्रीत गैसों द्वारा डाले गए आंशिक दाब के योग के बराबर होता है,
अंग्रेज वैज्ञानिक जॉन न्यूलैंड्स ने सन्1866 में ज्ञात तत्वों को परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में व्यवस्थित किया ,उन्होंने सबसे कम परमाणु द्रव्यमान वाले तत्व हाइड्रोजन से आरंभ किया तथा 56 वें तत्व थोरियम पर इसे समाप्त किया उन्होंने पाया कि प्रत्येक आठवे तत्व का गुणधर्म पहले तत्व के गुणधर्म के समान है उन्होंने इसकी तुलना संगीत के अष्टक से की और उन्होंने इसे अष्टक सिद्धांत कहा।
मेंडलीफ के अनुसार तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु भार ओके आवर्ती फलन है. मेंडलीफ की मूल आवर्त सारणी में तत्वों का परमाणु भार के बढ़ते हुए क्रम में रखा गया है.
इसके अनुसार तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु क्रमांक को की आवर्ती फलन है. आधुनिक आवर्त नियम के आधार पर तत्वों को उनके बढ़ते हुए परमाणु क्रमांक को के क्रम में रखकर आधुनिक आवर्त सारणी बनाई गई है. इस सारणी में 7 आवर्त तथा 9 ऊर्ध्वाधर स्तम्भ ( वर्ग) हैं. यह 0 से (VII) वर्ग है. वर्ग I से VII प्रत्येक को दो उप वर्गों A व B में विभाजित किया गया है.
इस सारणी में तत्वों को उनके बढ़ते हुए परमाणु क्रमांक क्रम में व्यवस्थित किया गया है. इसमें 7 क्षेतिज खाने (आवर्त) तथा 18 उर्ध्वाधार खाने (वर्ग) है. 1 वर्ग के सभी तत्व की बाह्यय कक्षा इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान होता है’. लैंथेनाइडस एवं 138 तत्वों का आवर्त सारणी में नीचे अलग स्थान पर रखा गया है.
आवर्त में बाएं से दाएं चलने पर तत्वों में संयोजी इलेक्ट्रॉन एक से आठ तक बढ़ते हैं. आवर्त में तत्वों की संयोजकता बाएं से दाएं चलने पर 1 से 4 तक बढ़ती है तथा फिर शून्य तक घटती है. आवर्त में बाएं से दाएं चलने पर परमाणु का आकार, नाभिकीय आवेश बढ़ने के कारण घटता है. आवर्त में बाएं से दाएं चलने पर धात्विक लक्षण घटता है.
एक वर्ग के सभी तत्वों में समान संयोजी इलेक्ट्रॉन होते हैं, एक वर्ग के सभी तत्वों की संयोजकता समान होती है, वर्ग में ऊपर से नीचे चलने पर परमाणु का आकार बढ़ता है, वर्ग में ऊपर से नीचे चलने पर धात्विक लक्षण बढ़ता है.
जो तत्व इलेक्ट्रॉन को त्याग कर अपना अष्टक पूर्ण करते हैं, धातु कहलाते हैं
धातु अधातवर्धनीय कठोर, (सोडियम और पोटेशियम को छोड़ कर) तन्य व चमकदार होती है,धातु को ठोस होती है (hg को छोड़कर), धातु ऊष्मा में विद्युत की सुचालक होती है, धातु ऑक्सीजन से क्रिया कर धात्विक ऑक्साइड बनाती है. धात्विक क्षारीय प्रकृति के होते हैं.
अधातुएं आघातवर्धनीय, मुलायम (कार्बन के रूप में डायमंड को छोड़ कर) तथा भूंगर होती है. अधातुएँ ऊष्मा व विद्युत की कुचालक होती है. (कार्बन के रूप में, ग्रेफाइट को छोड़कर), अधातुए ओक्सीजन से क्रिया कर, अम्लीय या उदासीन ऑक्साइड बनाती है. अधातुएँ जलवा अम्लों से हाइड्रोजन को विस्थापित नहीं करती है. एक अधिक क्रियाशील अधातु, कम क्रियाशील धातु को उसके लवण विलियन में विस्थापित कर देती है.
किसी धातु का इसके अयश्क से शुद्ध रूप में निष्कर्षण धातु कर्म कहलाता है. धातु कर्म में प्रयुक्त पद निम्न है.
किसी धातु के योगिक जो प्रकृति में पाए जाते हैं वे खनिज कहलाते है.
वे खनिज जिनसे धातु व्यापारिक रूप से निष्कर्षित की जाती है, अयश्क कहलाते है. अत: सभी अयश्क खनिज है किन्तु सभी खनिज अयश्क नही है.
किसी धातु के निष्कर्षण में प्रयुक्त प्रक्रिया निम्न प्रकार है तोड़ना या पीसना
धातु निष्कर्षण के लिए सर्वप्रथम अय्श्क को तोड़ा एवं पीसा जाता है
अयश्क प्रकृति के आधार पर सांद्रण निम्न प्रकार किया जा सकता है – गुरुत्वीय पृथक्करण विधि, ऑक्साइड कथा कार्बोनेट अयश्क के लिए
चुंबकीय अयश्क के लिए
सल्फाइड अयश्क के लिए
बॉक्साइट अयस्क के लिए
अयस्क को वायु की अनुपस्थिति में उनके ग्लानाको को से निम्न ताप पर गर्म करने को विस्थापन कहते हैं.
अयश्क को वायु की उपस्थिति में गर्म करने को भर्जन कहते हैं.
जल में आयतनात्मक तथा भारात्मक रूप से H तथा O क्रमशः 2:1 वह 1:8 के अनुपात में होते हैं. जल का अधिकतम घनत्व 4 डिग्री सेल्सियस पर होता है. यह एक अच्छा विलायक है. आयनिक यौगिक जल में विलय होते हैं किंतु सह संयोजक योगीक सामान्यतः जल में अविलय होते हैं. जल की संरचना V के आकार की होती है. जल का अणु ध्रुवीय होता है.
वह दिल जो साबुन के साथ आसानी से झाग दे देता है, मृदु जल कहलाता है, परंतु जो जल साबुन के साथ कठिनाई से झाग दे देता है, कठोर जल कहलाता है, कठोर जल साबुन के साथ झाग नहीं देता क्योंकि यह सब उनके साथ क्रिया करके अवक्षेप बनता है.
जल की कठोरता कैल्शियम और मैग्नीशियम के बाईकोबोर्नेटो, सेल्फेटो वह क्लोराइड की उपस्थिति के कारण होती है. यह दो प्रकार की होती है
यह ca व mg के बाईकाबोर्नेटो की उपस्थिति के कारण होती है. अस्थाई कठोरता जल को उबालकर या चूने को मिलाकर दूर की जा सकती है.
यह जल में ca व mg सल्फेटो तथा क्लोराइड की उपस्थिति के कारण होती है.
कार्बन तत्व सभी जीवित वस्तुओं में पाया जाता है. सभी जीवित वस्तुओं पौधे तथा जानवर कार्बनिक यौगिक से बने होते हैं, जिन्हें कार्बनिक योगिक कहते हैं. कार्बन तत्व हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. कार्बन हमेशा सहसंयोजक बंध बनता है. कार्बन की संयोजकता 4 होती है. इस का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास C(6):2, 4 होता है. कार्बन तत्व के श्र्खलित होने के गुण तथा संयोजकता 4 होने के कारण कार्बन बहुत अधिक संख्या में कार्बनिक योगिक बनता है.
किसी कार्बनिक यौगिक की शुद्धता का निर्धारण उसके गलनाक, क्वथनांक, अपवर्तनांक, तथा श्यानता के आधार पर किया जाता है.
कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस जीवाश्म ईंधन के उदाहरण है. यह मृत जानवरों वह पेड़ पौधों के अपघटन के फलस्वरूप बने हैं. यह मृत जानवर में पौधे पृथ्वी के नीचे दबे रहेता भौगोलिक परिवर्तन हो उंच ताप है उच्च दाब के कारण जीवाशम ईंधन में परिवर्तित हो गए.
सालों से पेड़-पौधों पृथ्वी के नीचे सतह में दबते रहे उच्च ताप व दाब के कारण. यह पेड़ पौधे कोयले में परिवर्तित हो गए. कोयले में कार्बन और हाइड्रोजन होते हैं.
झारीयां ( झारखंड) , बोकारो ( झारखंड), रानीगंज ( पश्चिम बंगाल)
यह ऊर्जा का मुख्य स्रोत है, यह काले गैस, विद्युत, संश्लेषित पेट्रोल आदि के उत्पादन में काम आता है. कार्बनिक योगिक के उत्पादन में काम आता है.
यह गहरे रंग का तरल द्रव है. यह जल से हल्का सा इसमें अविलेय है. यह समुंदरी पेड़ पौधों और जानवरों के, उच्च ताप व दाब पर, अपघटन होने के कारण बना है. यह प्रक्रिया हजारों सालों में संपन्न हुई है. पेट्रोलियम का प्रभाजी आसवन के फलस्वरूप पेट्रोलियम गैस, पेट्रोल, डीजल, केरोसिन, मॉम, रेजिन, आदि उत्पाद होते हैं. जो विभिन्न प्रकार से प्रयोग में लाए जाते हैं
प्राकृतिक गैस कोयले को हाइड्रोजन के साथ उत्प्रेरक की उपस्थिति मैं उच्च दाब पर गर्म करने पर प्राप्त होती है. यह तेल के कुओं से सह – उत्पाद के रुप में प्राप्त किया जाता है. प्राकृतिक गैस का मुख्य अवयव मेथेन (CH4 ) है. भारत में प्राकृतिक गैस के कुए, त्रिपुरा, जैसलमेर, मुंबई, कृष्णा गोदावरी डेल्टा में पाए जाते हैं. यह घर व फैक्ट्रियों में ईंधन के रूप में प्रयुक्त हो सकता है. आजकल प्राकृतिक गैस के रूप में मोटर वाहनों में प्रयुक्त होती है.
यह ब्यूटेन तथा एथेन हाइड्रोकार्बनो का मिश्रण है एवं रसोई गैस के रूप में प्रयोग की जाती है. यह प्राकृतिक गैस तथा पेट्रोलियम का प्रभाजी आसवन से प्राप्त होती है. एल.पि. जि. के रिसाव की तुरंत पहचान करने के लिए उसमें दुर्गंध युक्त पदार्थ है मरकैप्टन मिश्रित कर देते हैं.
कार्बन तथा हाइड्रोजन युक्त योगिक हाइड्रोकार्बन कहलाती है. यह दो प्रकार के होते हैं-
इन्हें पेराफैन या एल्केन भी कहते हैं. इनमें (C-C ) एकल बंन्ध पाया जाता है.
CH4 इसे मार्स गैस भी कहते हैं.
एथेनॉल एक रंगहीन वाष्पशील द्रव है. इसका क्वथनांक 87०C होता है. यह एक उदासीन योगिक है.
इसका सामान्य नाम ऐसीटिक अम्ल है. इसका 5 से 8% तक का जलीय विलियन सिरका कहलाता है.
यह नीले लिटमस को लाल कर देता है, इसकी प्रकृति अम्लीय होती है.
प्राकृतिक रबड़ अनेक आइसोप्रीन इकाइयों से बना एक योगात्मक बहुलक है. यह एक चिपचिपा पदार्थ होता है जिसमे अत्यंत कम मात्रा में लचीलापन पाया जाता है. मिश्रण को गर्म किया जाता है जिसे वल्कनीकरण कहते हैं. संश्लेषित रबड़ में, ब्युना रबड़, नियोप्रिन रबड़, ब्युना- S रबड़ तथा ब्यूना-N मुख्य है. इनका उपयोग वाहनों के टायरों को बनाने में किया जाता है.
किसी पदार्थ की उपस्थिति में यदि किसी रासायनिक अभिक्रिया की दर परिवर्तित हो जाती है परंतु वह पदार्थ स्वयं अभिक्रिया के अंत में रासायनिक रूप में अपरिवर्तित रहता है तो उसे उत्प्रेरण कहते हैं. तथा ऐसे पदार्थ को उत्प्रेरण कहते हैं. उत्प्रेरण दो प्रकार का होता है-
जब उत्प्रेरक तथा अभिकारक दोनों की अवस्थाएं समान होती है तो उत्प्रेरण समाग कहलाता है.
जब किसी रासायनिक अभिक्रिया में उत्प्रेरक की प्रावस्था अभीकारकों से भिन्न होती है तो इस उत्प्रेरण को विषमांगी उत्प्रेरण कहते हैं.
रासायनिक अभिक्रिया में उत्प्रेरक के द्रव्यमान तथा संघटन में कोई परिवर्तन नहीं होता, उत्प्रेरक की अल्प मात्रा अभिक्रिया के वेग को परिवर्तित करने के लिए पर्याप्त होती है.उत्प्रेरक अभिक्रिया आरंभ नहीं कर सकता, उत्प्रेरक विशिष्ट होता है, उत्प्रेरक का साम्यावस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.
वह पदार्थ की उत्प्रेरण शक्ति को बढ़ा देते हैं उत्प्रेरक वर्धक कहलाते हैं.
वह पदार्थ जो उत्प्रेरक शक्ति को पूर्ण रूप से नष्ट कर देते हैं या कम कर देते हैं, उत्प्रेरक विष कहलाते हैं.
दो या दो से अधिक पदार्थों के शाम के मिश्रण को विलियम कहते हैं. किसी पदार्थ की वह मात्रा जो निश्चित ताप पर 100 ग्राम विलायक को शतप्त करने के लिए आवश्यक होती है, पदार्थ की विलेयता कहलाती है.
निलंबन एक विषमांगी बिलयन है, इस में विलय के कारण पूर्णता विलेय नहीं होते हैंऔर इनका आकार कितना बड़ा होता है कि इन्हें नंदन आंख से देखा जा सकता है. रखने पर कण तल में बैठ जाते हैं.
विलियम जिसके कण वास्तविक विलियन के कणों से बड़े तथा निलंबन के कणों से छोटे होते हैं कोलाइडी विलियन कहलाते हैं. यह एक विषमांग मिश्रण होता. यह टिंडल प्रभाव, ब्राउनी गति, वैद्युत कण संचलन प्रदर्शित करते हैं
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