इस आर्टिकल में हम आपको सरदारी लड़ाई और मुंडा विद्रोह (1858-95 ई., 1895-1901 ई.) के बारे में बताने जा रहे है.
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सरदारी लड़ाई और मुंडा विद्रोह (1858-95 ई., 1895-1901 ई.)
मुंडा सरदारों का आंदोलन सरदारी लड़ाई के नाम से प्रसिद्ध है. यह सरकारी आंदोलन रांची से आरंभ हुआ और शीघ्र ही सिहंभूम में फैल गया. 1818 ईस्वी में आरंभ हुआ यह आंदोलन 30 वर्षों तक जारी रहने के बाद बिरसा मुंडा के नेतृत्व में परवान चढ़ गया.
बिरसा आंदोलन एक सुधारवादी प्रयास के रूप में आरंभ हुआ. बिरसा ने नैतिक आचरण की सभ्यता, आत्म- सुधार और एकेश्वरवाद का उपदेश दिया. उन्होंने एक ईश्वर (सिंह बोगा) की पूजा का निर्देश दिया.
बिरसा की बढ़ती लोकप्रियता को ईसाई मिशनरी अपने धर्म प्रचार के मार्ग में बंधक मानने लगे, फलत: उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. परंतु 1897 ईसवी में उसे रिहा कर दिया गया. 1818 ईसवी में आंदोलन शुरू हो गया. 1899 ईसवी में बिरसा आंदोलन का नेतृत्व करना आरंभ किया, ईसाई मिशनों पर आक्रमण किया. उसने ब्रिटिश सत्ता के अस्तित्व का स्वीकार करते हुए अपने अनुयायियों को सरकार को लगान ना देने का आदेश दिया.
इस आंदोलन के विरुद्ध सरकार ने दमन चक्र चलाया और 3 मार्च, 1920 को बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया और 1901 ईसवी में जेल में ही हैजा से उसकी मृत्यु हो गई.