जन्तु विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है. जिसके अंतर्गत समस्त जंतुओ का अध्ययन किया जाता है. आज इस आर्टिकल में हम जंतु विज्ञान विषय पर ही बात करेंगे की इसको कितने भागों में बाँटा गया है.
जंतुओ को मुख्य रूप से उनमें पाए जाने वाले कशेरुक दण्ड के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है.
इस आधार पर जंतुओ को दो उप-जगतों में विभाजित किया गया है.
अकशेरुकी उपजगत के अंतर्गत वे जन्तु आते है, जिसमे कशेरुक दण्ड नहीं पाए जाते है.
इस उप-जगत के जन्तु को non-chordates भी कहा जाता है.
वे जन्तु जिनमे कशेरुक दण्ड पाए जाते है, उन्हें कशेरुकी उपजगत के अंतर्गत रखा जाता है. जंतुओ के इस समूह को chordates भी कहा जाता है
प्रोटोजोआ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम गोल्डफस ने 1820 में किया, जिसका अर्थ है प्रथम जन्तु. ये एक कोशिकीय तथा सूक्ष्मदर्शी जन्तु है, ये परिजिवी सहजीवी या सहभोजी होते है.
शरीर नग्न या पोलिकल द्वारा ढका रहता है.
प्रचलन कूट्पाद, कोशाभिका या पक्ष्माभिक द्वारा होता है.
इसके जीव द्रव्य में एक या अनेक केन्द्रक पाए जाते है.
गैसीय विनिमय, भोजन, पाचन, श्वसन एवं उत्सर्जन शरीर सतह से सामान्य विसरण द्वारा होते है.
प्रजनन अलैंगिक या लैंगिक दोनों प्रकार का होता है.
उसमे प्रतिकूल वातावरण से सुरक्षा के लिए परिकोष्टन की व्यापक क्षमता होती है.
श्वसन और केन्द्र के आधार पर उसे चार उपसंघो में विभाजित किया जाता है.
इसमें कुटपाद जैसी कशाभिकाएँ पाई जाती है, उदहारण- युग्लिना
ये परजीवी के रूप में दुसरे पर निर्भर रहते है. उदहारण- प्लाजामोडियम.
उदहारण- सौरेटोमिक्स
उदहारण- पैरामिशियम
ये बहुकोशिकीय तथा अरीय सममित जन्तु है.
कुछ जातियाँ स्वच्छ जल एवं तालाबो में, जैसे हाइड्रा और अधिकाश समुंद्री खारे पानी में पायी जाती है.
शरीर की सपूर्ण कार्य ऊतको द्वारा सम्पन्न होते है.
इनका शरीर द्विस्तरीय होता है.
इस जन्तु का आकार बेलनाकार पालिप या छाते के समान मेडसा के रूप में पाया जाता है.
उदहारण-हावड़ा, मूंगा, जेलिफिश, ओबेलिया, मलिपोय, फाइसेलिया आदि हाइड्रा में पुनरूभीत की तीव्र क्षमता होती है.
शरीर में घायल या टूटे भाग शीघ्र वापस बन जाते है
ये जन्तु प्राय: फीते के समान चपटे अथवा पत्ते की आकृति के होते है. ये त्रिस्तरीय जन्तु है अर्थात शरीर इक्टोडर्म, मीसोडर्म तथा इन्डोडर्म का बना होता है.
इनको मुख्यत: गोलकृमि कहा जाता है. इसका शरीर पतला, नालाकर, अविभाजित तथा दोनों सिरे पर नुकीला होता है.
श्वसन तथा परिसचरण तंत्रों का अभाव होता है. इसमें निषेचन आंतरिक होता है. उदहारण- एस्केरिस ल्म्ब्रीक्वांएडिस.
मछलियाँ | संघ |
ह्वेल-फिश | स्तनधारी |
क्रे-फिश | आर्थोपोडा |
कटक-फिश | मोलस्का |
टारपीडो-फिश | मत्स्य वर्ग |
झीगा-फिश | आर्थोपोडा |
जेली-फिश | सीलेनट्रेडा |
डेविल-फिश | मोलस्का |
सिल्वर-फिश | आर्थोपोडा |
डाग-फिश | मत्स्य वर्ग |
स्टार-फिश | इकोइनोडमैंटा |
इनका शरीर बेलनाकार, कोमल तथा कृमिवत होता है. ये त्रिस्तरीय होते है.
इनमे मेटामेरिक विखण्डन पाया जाता है.
यह जंतुओ का सबसे बड़ा संघ हैं. इसका शरीर, सिर, वक्ष, उदर तीन भागों में विभक्त होता है.
इसके पाद संधि यूक्त होते है.
मोलास्का अकशेरुकी का दूसरा सुबसे बड़ा संघ है.
इनका शरीर प्रवाल से ढका होता है, जो केल्सियम कार्बोनेट का बना होता है.
इनका शरीर सिर, विसलर मास तथा पाद में विभाजित है इन जन्तुओं में श्वसन मेंटल हिमिडिया अथवा गिल द्वारा होता हैं, परन्तु स्थानीय जंतुओ में फेफड़ा द्वारा होता है.
परिसचरण तंत्र खुला या बंद प्रकार का होता है इनमें निषेचन बाह्य या आन्तरिक होता है.
ये अधिकाशंत:अंडे देते है. किन्तु कुछ जरायुज भी होता है.
इनके रक्त रंगहीन होते है. उत्सर्जन वृक्को के द्वारा होता है उदहारण – पाइला(घोघा), सीपिया(कटल फिश), सिप्रिया(कौड़ी), एप्लिसिया(समुंद्री खरगोश), डोरिस(समुंद्री निम्बू) आदि.
नोट:- मोतियों का निर्माण सीपिया द्वारा होता है यदि कोई बाहरी जीव या रेत के कण सीपी के मांटेल तथा कवच के बीच में प्रवेश करता है तो उसके चारों और मेंटल से चुने का स्राव हो जाता है जिससे मोती का निर्माण होता है सबसे बहुमूल्य मोती पिक्टोडा वेल्गैरिया आ आँस्ट्री वेजींन्युलैला नमक सीपी से प्राप्त होता है.
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