उत्तर प्रदेश में सिंचाई संसाधन और परियोजना, up mein sinchai kaise hoti hai, up mein sinchai ke liye kul nahre, up mein kitni nahar hai
उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था में कृषि प्रधान राज्य होने के कारण सिंचाई का महत्वपूर्ण स्थान है. प्रदेश में गंगा, यमुना, घाघरा, गंडक आदि अनेक प्रमुख नदियां एवं उनकी सहायक नदियों के प्रवाहित होने के कारण सतही जल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है. साथ ही साथ उत्तर प्रदेश में अधिकांश क्षेत्रों में भूमिगत जल की भी प्रचुरता है. उत्तर प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र (240.93 लाख हेक्टेयर), में से 193.07 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य है तथा 178.87 लाख हेक्टेयर कृषित क्षेत्र है. प्रदेश के कुल कृषित क्षेत्र का सिंचित भाग 78.48% है. उत्तर प्रदेश का देश में प्रतिशत सिंचित क्षेत्र की दृष्टि से पंजाब एवं हरियाणा के बाद तीसरा स्थान है.
UPPSC RO ARO Prelims 20 Sep 2020 Solved Question Paper
नहर प्रणाली | 71,781.97 किमी (71782 किलोमीटर) |
कुल सतही जल | 126.20 मिलियन एकड़ फूट |
सिंचाई हेतु उपलब्ध जल | 71.20 मिलियन एकड़ फूट |
जलाशय | 67 |
राजकीय नलकूप (चलीत) | 27,988 |
लघुडाल नहरे | 243 |
वृहद एवं मध्यम पंप नहर | 27 |
प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों में खेती के लिए पानी की कमी को पूरा करने के लिए कई प्रकार से सिंचाई की जाती है जिसमें मुख्य साधन निम्नलिखित है- कुआं, तालाब, नहरे, नलकूप
प्राचीन काल से ही प्रदेश में सिंचाई का प्रमुख साधन कुआ रहा है. कुँए प्रदेश के पर्वतीय और पथरीले हिस्से को छोड़कर शेष सभी स्थानों पर काफी संख्या में पाए जाते हैं. प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में कुआं से सिंचाई करने के लिए सुविधा अनुसार विभिन्न प्रकार विधियां अपनाई जाती है, जिनमें रेहट, ढेकुली, पैर (दो बैलों द्वारा खींच कर) का प्रचलन काफी समय से है. आज भी कुँओं द्वारा ही प्रदेश के अधिकांश खेतों की सिंचाई की जा रही है.
गंगा की घाटी के मध्य क्षेत्र में कुओं द्वारा सिंचाई की जाती है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोंडा, बहराइच, बस्ती, फैजाबाद, सुल्तानपुर, जौनपुर, रायबरेली, प्रताप गढ़, वाराणसी, आजमगढ़, मऊ, बलिया, गाजीपुर, गोरखपुर, महाराजागंज एवं देवरिया जिला में कुँओं द्वारा सिंचाई की जाती है. प्रदेश में निजी लघु सिंचाई के साधनों का सिंचाई सुविधाओं के विस्तार को दृष्टिगत रखते हुए विकास किया गया है.
प्रदेश में कृषि योग्य भूमि के कुछ भाग की सिंचाई तालाबों द्वारा भी की जाती है. खेतों के पास तालाब आदि होने पर मोखे द्वारा या अन्य स्थानीय विधियों द्वारा तालाब से सिंचाई की जाती है. वर्षा काल में तालाबों में वर्षा का पानी भर जाता है, जिसके द्वारा आवश्यकता पड़ने पर सिंचाई की जाती है. कभी कभी कम वर्षा होने पर तालाबों में प्रचुर मात्रा में जल एकत्र नहीं हो पाता है. जिसके फलस्वरूप कृषि बिना पानी के सूख जाती है. अतः वर्तमान में कृषि के लिए केवल तालाबों पर निर्भर रहना उचित नहीं है. नहरें के एक अच्छा विकल्प साबित हो रही है.
उत्तर प्रदेश में बड़ी-बड़ी नदियों के होने के कारण नहर द्वारा सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है. प्रदेश का पूर्वी भाग अवश्य पर्याप्त वर्षा प्राप्त करता है, किन्तु पश्चिमी भाग में सिंचाई की विशेष आवश्यकता पड़ती है. अत: प्रदेश के पश्चिमी भाग में ही नहरों का निर्माण अधिकता से किया जाता है.
उत्तर प्रदेश में नलकूपों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई की जाती है. राज्य में वर्ष 2005-06 राज्य राजकीय नलकूपों की संख्या 28,020 थी. जिन से राज्य में शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल का लगभग 72% क्षेत्र वर्तमान में नलकूपों द्वारा सींचा जाता है. प्रदेश में राजकीय एवं निजी दोनों प्रकार के नलकूपों द्वारा सिंचाई का प्रचलन है किंतु यहां निजी नलकूपों की संख्या अधिक है. प्रदेश के मेरठ, फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, इटावा, मुजफ्फर, बुलंदशहर, फर्रुखाबाद, अलीगढ़ एवं सहारनपुर जिले में नलकूपों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई की जाती है.
उत्तर प्रदेश का नहरों के वितरण एवं विस्तार की दृष्टि से स्थान है. नहरों द्वारा यहां की कुल सिंचित भूमि का लगभग 30% किया जाता है. यहाँ की नहरें भारत की प्राचीनतम नहरों में से है. प्रदेश की प्रमुख नहरें नीचे बताई गयी है-
सहारनपुर जिले के फैजाबाद नामक स्थान के निकट यमुना नदी के किनारे से निकाली गई थी. नहर की लंबाई सहित 1440 किलोमीटर है. नहर के द्वारा सहारनपुर, मुजफ्फरपुर, मेरठ, गाजियाबाद और दिल्ली लगभग 2 लाख हेक्टेयर भूमि सींची जाती है. यह महार दिल्ली तक यमुना के समांतर बहती है और पुन: यमुना में मिल जाती है.
यह नहर दिल्ली से 18 किलोमीटर दक्षिण में यमुना नदी के किनारे से ओखला नामक स्थान से निकाली गई थी. इससे दिल्ली, गुड़गांव, मथुरा, आगरा और भरतपुर की लगभग 1.5 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करती है. इस नहर की शाखाओं और प्रशासन सहित कुल लंबाई 1600 किलोमीटर है.
यह नहर गंगा नदी के दाहिने किनारे से हरिद्वार (उत्तराखंड) के समीप निकाली गई है. इसका निर्माण कार्य वर्ष 1842 में प्रारंभ हुआ था और वर्ष 1856 में समाप्त हुआ. यह नहर सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, एटा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, कानपुर, फर्रुखाबाद और फतेहपुर आदि जिलों की लगभग 7 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करती है.
इस नहर की लंबाई 340 किलोमीटर है, परंतु शाखा और प्रशाखाओं सहित कुल लंबाई 5640 किलोमीटर है. आगरा नहर और गंगा की निचली नहर को यह नहर जल प्रदान करती है. ऊपरी गंगा नहर का आधुनिकरण 1,313 करोड रुपए की अनुमानित लागत से किया जा रहा है.
निचली गंग नहर बुलंदशहर जिले के नरोरा नामक स्थान से निकाली गई है. वर्ष 1872 इसका निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ था और वर्ष 1818 में समाप्त हुआ था. इस नहर की दो मुख्य शाखाएं हैं- कानपुर शाखा और इटावा शाखा. इस नहर द्वारा बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, कानपुर, फतेहपुर, और इलाहाबाद जिलों की लगभग 4.5 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करती है. मुख्य नहर, शाखा हुए प्रशाखाओ सहित इस नहर की कुल लंबाई 8800 किलोमीटर है.
शारदा नहर उत्तर प्रदेश की सबसे लंबी नहर है. यह नहर उत्तर प्रदेश-नेपाल सीमा के समीप गोमती नदी के किनारे वनबसा नामक स्थान से निकाली गई है. वर्ष 1920 से इसका निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ और वर्ष 1928 में पूर्ण हुआ था. इस नहर द्वारा पीलीभीत, बरेली, शाहजहांपुर, लखमीपुर, हरदोई, सीतापुर, बाराबंकी, लखनऊ, उन्नाव, रायबरेली, सुल्तान, प्रतापगढ़, इलाहाबाद आदि जिलों की लगभग 8 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है. शाखा, प्रशाखाओं सहित नहर की कुल लंबाई 12,368 किलोमीटर है. इसकी मुख्य शाखाएं खीरी, शारदा देवा, बिसलपुर, निगोही, सीतापुर, लखनऊ, और हरदोई है. खातीमा शक्ति केंद्र इस नहर पर ही स्थापित है.
यह नहर बेतवा नदी में झांसी से 24 किलोमीटर दूर पारीछा नामक स्थान से निकाली गई है. यह वर्ष 1885 में बनाई गई थी. इस द्वारा झांसी, जालौन, हमीरपुर जिले की लगभग 83,000 हेक्टेयर भूमि नहर द्वारा सिंचाई जाती है. इस नहर की दो मुख्य शाखाएं हैं- हमीरपुर शाखा, कोठाना शाखा,
यह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं बिहार की संयुक्त परियोजना (1:2:1 अनुपात में) है, जिसका निर्माण सोन नदी पर (शहडोल, मध्यप्रदेश में) किया गया है. इससे प्रदेश के इलाहाबाद एवं मिर्जापुर जिलों में सिंचाई की जाती है.
इनके अतिरिक्त बेलन नहर प्रणाली, ललितपुर नहर प्रणाली, केन नहर प्रणाली, सपरार, अर्जुन एवं करबई बांध कि नहरों का विस्तार किया गया है. चित्तौड़गढ़ (गोंडा), चिचितया (गोंडा), भूसाखंड वाराणसी), टकिया (बहराइच), सेवती (मिर्जापुर), नवलगढ़ (गोंडा) एवं तुन्दपारी (इलाहाबाद) जलाशय से निर्मित किए गए हैं. इनसे नहरे निकालकर सिंचाई की जाती है.
इस परियोजना के अंतर्गत प्रदेश के सोनभद्र जिले में कन्हार नदी पर बांध बनाया गया है तथा उन से निकाल कर सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है.
यह उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की संयुक्त परियोजना है. इसके तहत ललितपुर जिले में बेतवा नदी पर राजघाट बांध का निर्माण किया जा रहा है, जिसके दोनों ओर से नहरें निकाली जाएगी. इससे प्रदेश के ललितपुर, झांसी, जालौन, तथा हमीरपुर जिलों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है.
बहराइच जिले का नानपारा तहसील में कतरनिया घाट रेलवे स्टेशन के निकट घाघरा नदी में एक बैराज बनाया गया है. इससे निकाली गई नहरों में बहराइच, गोंडा तथा बस्ती की 6 लाख एकड़ भूमि सींची जाती है.
उत्तर प्रदेश व बिहार राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से नेपाल में उत्तर प्रदेश नेपाल सीमा से 18 किलोमीटर उत्तर में बूढ़ी गंडक नदी पर एक बैराज बनाया गया है, जिसे उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, महाराजगंज, वह देवरिया जिलों की भूमि सिंची की जाती है.
इलाहाबाद जिले में बेलन नदी पर मिट्टी का बांध बनाया गया है, जिसे 315 किलोमीटर लंबी नहर निकालकर इलाहाबाद और मिर्जापुर जिलों में 70,900 एकड़ भूमि सींची जाती है.
पीलीभीत जिले में शारदा सागर बांध के विस्तार के उपरांत 1,115 किलोमीटर लंबी नहर निकाली गई है, जिनसे बाराबंकी, रायबरेली, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़ और जौनपुर की लगभग 1.85 लाख एकड़ भूमि पर सिंचाई की जाती है.
बस्ती जिले में शोहरतगढ़ स्थान से 5 किलोमीटर दूर बानगंगा पर एक बैराज बनाया गया है, जिससे 145 किलोमीटर लंबी नहर निकाली गई है. इन नहरों द्वारा बस्ती जिलों की 23,000 एकड़ भूमि की सिंचाई की जाती है.
वाराणसी जिले में गड़ई नदी अहरौरा नामक स्थान पर एक बांध बनाया गया है, जिसे निकाली गई नहरें वाराणसी और मिर्जापुर जिले की सिंचाई व्यवस्था में सहायक है.
वाराणसी जिले में चकिया स्थान से 19 किलोमीटर दक्षिण में चंद्रप्रभा नदी पर एक बांध बनाया गया है. इस बाँध से निकाली गई नहरों से चकिया और चंदौली तहसीलों की 24,000 एकड़ भूमि सींची जाती है.
गाजीपुर जिले में कर्मनाशा नदी पर नौगढ़ बांध निर्मित किया गया है. इस नहरे निकालकर वाराणसी (चंदौली तहसील) और गाजीपुर (जमानिया परगना) की 80,000 एकड़ भूमि सींची जाती है.
सोनभद्र जिले में रिहंद नदी की तंग घाटी में पिपरी नामक स्थान पर रिहंद घाटी परियोजना बनाई गई है. इस योजना से मिर्जापुर, सोनभद्र, इलाहाबाद, और वाराणसी जिलों की लगभग 40 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई की जाने की आशा है.
कर्मनाशा नदी पर नगवां स्थान पर बने बांध से यह नहर निकाली गई है, जो मिर्जापुर और सोनभद्र जिलों की 60,000 एकड़ भूमि सींचती है.
टोन्स की सहायक नदी बेलन पर रवि जिले (मध्य प्रदेश) में बड़ौदा बांध और बेलन की सहायक मरुहर नदी पर एक जलाशय बनाया गया है. इससे निकाली गई बेलन नहर द्वारा इलाहाबाद जिले की 1 लाख एकड़ भूमि सींची जाती है.
हमीरपुर जिले में चरखारी से 2 किलोमीटर दक्षिण में अर्जुन नदी पर अर्जुन बांध बनाया गया है. इस बांध से नहर निकाली गई है, जो हमीरपुर जिले की 26,700 एकड़ भूमि को सींचती है.
झांसी जिले में बेतवा नदी पर माताटीला स्थान पर निर्मित माताटीला बांध से गुरसराय और मंदर नामक दो नहर निकाली गई है, जो हमीरपुर और जालौन जिलों की लगभग 2.64 लाख एकड़ भूमि सींचती है. इस योजना के दूसरे चरण में पूरा होने पर 40,000 एकड़ अतिरिक्त भूमि सिंचित की जा सकेगी.
यह नहर झाँसी के मऊरानीपुर से 8 किलोमीटर दक्षिण की ओर करौंदा गांव के निकट से सपरार नदी पर बने बांध से निकाली गई है. इसके द्वारा झांसी वह हमीरपुर जिलों की लगभग 40,000 एकड़ भूमि की सिंचाई होती है.
हमीरपुर जिले में बिरमा नदी पर 69.64 करोड रुपए की लागत से एक बांध बनाया जा रहा है. इसके पूरा हो जाने पर जिले में 28,240 हेक्टेयर भूमि के अतिरिक्त सिंचाई हो सकेगी.
ललितपुर जिले की शहजाद नदी पर ललितपुर बांध बनाया गया है, जिससे नहर निकाली गई है. इस नहर में झांसी, ललितपुर, जालौन और हमीरपुर जिलों की भूमि सिंचित होती है.
सोन नदी की सहायक घाघरा नदी से यह नहर निकाली गई है. इसके दो शाखाएं हैं- मरीहम, घोरायल. इस नहर से मिर्जापुर और सोनभद्र जिलों की भूमि सिंची जाती है.
बेतवा की सहायक धसान नदी से यह नहर निकाली गई है. इसके द्वारा हमीरपुर जिले की भूमि सिंची की जाती है.
केन नहर
यमुना की सहायक के नदी से पन्ना (मध्य प्रदेश) के निकट से यह नहर निकाली गई है. इससे उत्तर प्रदेश के बांदा जिले और मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले की लगभग 1.4 लाख एकड़ भूमि सिंचित होती है. इसकी शाखा और प्रशाखाओं सहित लंबाई 640 किलोमीटर है.
क्र. स. | परियोजना | लाभान्वित नगर |
1 | गंगा जल परियोजना | नोएडा, गाजियाबाद |
2 | गोकुल बैराज परियोजना | आगरा, मथुरा |
3 | आगरा बैराज परियोजना | आगरा |
4 | लव-कुश बैराज परियोजना | कानपुर |
आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएँगे की अपने डॉक्यूमेंट किससे Attest करवाए - List…
निर्देश : (प्र. 1-3) नीचे दिए गये प्रश्नों में, दो कथन S1 व S2 तथा…
1. रतनपुर के कलचुरिशासक पृथ्वी देव प्रथम के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन सा…
आज इस आर्टिकल में हम आपको Haryana Group D Important Question Hindi के बारे में…
अगर आपका selection HSSC group D में हुआ है और आपको कौन सा पद और…
आज इस आर्टिकल में हम आपको HSSC Group D Syllabus & Exam Pattern - Haryana…