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उत्तर प्रदेश वन संपदा
वनों का मानव जीवन के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। एक समय था जब ग्रामीण जीवन पूरी तरह वनो पर निर्भर था जो अब कुछ हद तक कम हुआ है। वहीं दूसरी और शहरी क्षेत्रों में होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए भी आज तक वनों के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
अनेक उद्योग जैसे कागज, कत्था, लिसा, फर्नीचर, आदि वन पर आधारित है। भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 23.68% पर ही वन है। जबकि राष्ट्रीय वन नीति में पर्वतीय भागों में 60% तथा मैदानी भागों में 25% (देश के कुल 33%) भौगोलिक क्षेत्रों में वन का विस्तार आवश्यक माना गया है।
उत्तर प्रदेश में प्राकृतिक संपदा प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। राज्य के कुल 16583 वर्ग किलोमीटर भाग पर ही वन पाए जाते हैं, राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 6.88% है।
वन स्थिति रिपोर्ट 2009 के अनुसार राज्य में वन स्थिति
अभीलिखत वन क्षेत्र | 16583 वर्ग किलोमीटर (6.88%) |
वनावरण | 14341 वर्ग किमी (5.95?%) |
वृक्षावरण | 7381 वर्ग किलोमीटर (3.06) |
अभिलिखित वन क्षेत्र |
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प्राकृतिक वनस्पति के मामले में यूपी प्रदेश के मैदानी क्षेत्र बड़े धनी थे, परंतु पर्यावरण प्रदूषण तथा वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण में काफी कमी आ गई है।
15 नवंबर 1974 UP राज्य में वन विभाग की स्थापना की गई तथा इसी के साथ राज्य सरकार द्वारा राष्ट्रीय वन नीति, 1972 में संशोधित करके भारतीय वन (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम 2000 को 14 मार्च 2001 को अनुमति प्रदान करके 16 अप्रैल 2001 से क्रियाशील कर दिया गया।
खीरी में राज्य का सर्वाधिक बड़ा वन परिक्षेत्र 15,776 हेक्टेयर तथा मुरादाबाद में न्यूनतम आरक्षित क्षेत्र (14 हेक्टेयर) है। प्रदेश में उपलब्ध अल्प वन क्षेत्र एवं विगत वर्षों में वनों के अन्धाधुध कटान के कारण उपजे पर्यावरण असंतुलन को ध्यान में रखकर राज्य सरकार द्वारा पेड़ों के कटान को प्रतिबंध किया गया है तथा वनों के संरक्षण में वनों के अभीवर्धन हेतु शीघ्र उगने वाले एवं आर्थिक महत्व के अधिकाधिक वृक्षों के रोपण की नीति अपनाई गई है।
राज्य सरकार द्वारा उपचार अभियान ऑपरेशन ग्रीन के अंतरगर्त 1 जुलाई 2001 से चलाया गया है। इस ऑपरेशन का उद्देश्य वन क्षेत्र का विस्तार करना है क्योंकि उत्तराखंड के गठन के पश्चात राज्य का वन क्षेत्र बहुत कम हो गया है।