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ऊर्जा के स्रोत से जुड़े प्रश्न उत्तर

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ऊर्जा स्रोतों के अनिवार्य विशेषताएं लिखिए?

  • ऊर्जा स्रोत पर्याप्त मात्रा में उपयोगी ऊर्जा उपलब्ध करा सके, उनका उपयोग आसानी से हो सके,
  • उनका भंडार का परिवहन आसान हो
  • वह दीर्घकाल तक वाञ्छित ऊर्जा का एक समान दर से प्रदान कर सकें।

हम ऊर्जा संकट में कैसे निपट सकते हैं?

  • ऊर्जा संसाधनों का उपयोग प्रयोग।
  • ऊर्जा के फिजूल खर्च को रोककर।
  • ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की खोज करके।
  • ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का अधिक उपयोग करके।
  • सार्वजनिक यातायात/परिवहन तंत्र का अधिक प्रभावी बना करें।
  • निजी वाहन का उपयोग केवल आपातकालीन स्थिति में करके।
  • कम दूरी के लिए साइकिल जैसे साधन का प्रयोग को प्रोत्साहित करके।
  • ऐसी तकनीकों का विकास करके जिन से गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत को अधिक दक्षत्ता पूर्वक प्रयोग किया जा सके।

ऊर्जा के विभिन्न प्रकारों के नाम लिखें।

विद्युत ऊर्जा, रासायनिक उर्जा, यांत्रिक ऊर्जा, गतिज ऊर्जा, पेशीय ऊर्जा, उष्मा ऊर्जा, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा, ध्वनि ऊर्जा, प्रकाश ऊर्जा, विकिरण ऊर्जा, समुद्री तापीय उर्जा, तरंग ऊर्जा, जैव मात्रा ऊर्जा।

उपयोगी तथा अनुपयोगी प्रकार की ऊर्जा के बीच अंतर करें?

उपयोगी (उपयोग करने योग्य) उर्जा वह है जिसे किसी अन्य प्रकार की ऊर्जा में रूपांतरित किया जा सकता है अथवा आसानी से उपयोग में लाया जा सकता है।  उदाहरण के लिए- विद्युत ऊर्जा, रसायनिक उर्जा आदि।

अनुपयोगी ऊर्जा वह है जिसे उपयोगी उर्जा में आसानी से परिवर्तित नहीं किया जा सकता।  उदाहरण के लिए जब हम किसी इंधन को उपयोग में लाते हैं, तो बहुत सारी उस्मा पर्यावरण में लुप्त हो जाती है, जिसे हम उपयोगी ऊर्जा में रूपांतरित नहीं कर सकते।

इंधन का चुनाव करते समय हमे क्या क्या ध्यान में रखना चाहिए?

  • प्राप्ति तथा उपयोगिता आसान (सहज) होनी चाहिए।
  • उष्मीय मान अधिक हो।
  • ज्वलन ताप कम हो।
  • दहन के उत्पाद आदि पर्यावरण को दूषित करने वाले न हो।

ऊर्जा के परंपरागत तथा गैर परंपरागत स्रोतों के बीच उदाहरण सहित अंतर करें।

  • ऊर्जा के स्रोत जिन्हें प्रयोग करने हेतु हमने दक्ष तकनीकों को विकसित कर लिया है, ऊर्जा के परंपरागत स्रोत कहलाते हैं।
  • उन्हें हम अनेक वर्षों से उपयोग करते आ रहे हैं।
  • इन्हें उपयोग करना सुविधाजनक है।
  • उदाहरण- कोयला,  पेट्रोलियम, विद्युत, नाभिकीय ऊर्जा।

ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोत-

  • ऊर्जा के वे स्त्रोत जिन्हें प्रयोग करने हेतु हमने दक्ष तकनीकें विकसित नहीं की है, उन्हें ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोत कहते हैं।
  • उन्हें प्राचीन समय से अधिक उपयोग में नहीं लाया गया है।
  • उन्हें उपयोग करना सुविधाजनक नहीं है।
  • उदाहरण- वायु ऊर्जा, जल उर्जा, सौर ऊर्जा,

ऊर्जा की आवश्यकता अधिक क्यों बढ़ गई है?

  • ऊर्जा पर आधारित जीवन पद्धति तथा बढ़ते हुए जीवन चक्र के कारण।
  • औद्योगीकरण के कारण।
  • वाहनों की बढ़ती संख्या व उपयोग।
  • कृषि पद्धतियां।
  • मूलभूत ढांचे की बढ़ती आवश्यकता, जैसे सड़के , इमारत है।
  • बढ़ती हुई जनसंख्या के जीवन यापन के लिए।

जीवाश्म ईंधन क्या है? दो उदाहरण दें।

जीवाश्म ईंधन वे इंधन है जो प्राचीन समय में पाए जाने वाले जीव जंतुओं और पौधों को आशिक अपघटन से बने है। उदाहरण- कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, गैस  हाइड्रेट से,

जीवाश्म ईंधन के उपयोग के दो लाभ तथा हानियां बताइए?

जीवाश्म ईंधन के लाभ-

  • उन्हें उपयोग करना सुविधाजनक है।
  • उन का उष्मीय मान अधिक है।

जीवाश्मी ईंधन से हानियां-

  • उनके ध्यान से पर्यावरण प्रदूषण होता है।
  • उनके भंडार सीमित है।

कोयले के तीन सामान्य किस्मों को बताइए।

  • भूरा या लिग्नाइट- इस में कार्बन की मात्रा लगभग 35% होती है।
  • बिट्टूमनी या डामर- इस में कार्बन की मात्रा लगभग 65% होती है।
  • ऐथ्रासाइट- इस में कार्बन की मात्रा लगभग 96% होती है।

जीवाश्म इंधन कैसे बने? संक्षेप में समझाइए।

जीवाश्म ईंधन करोड़ों वर्षों तक पृथ्वी की सतह में गहरी दबे हुए जंतु एवं वनस्पति अवशेषों से बने हैं। धीरे धीरे धीरे तलछट के नीचे दबकर इक्कठे हो जाते हैं जिससे उन्हें ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं हो पाती। तलछट के आवरण के कारण न तो जीव अवशेषों का ऑक्सीकरण हो पाता है और ना ही विघटन। परंतु इसी तलछट के भार के कारण इन अवशेषों में से पानी तथा अन्य वाष्पजनय पदार्थ निचूड़कर बाहर निकल जाते हैं। अंत जीवाश्म ईंधन ऊर्जा युक्त कार्बनिक योगिक के अणु है जिनका निर्माण मूलतः सौर ऊर्जा का उपयोग करते हुए वनस्पतियों ने किया था। जीवाश्म ईंधन पृथ्वी के असमान्य प्रक्रियाओं के फलस्वरुप  उत्पादित हुए जो पृथ्वी के अंदर करोड़ो वर्षो से परिचालित हो रहे हैं। जीवाश्म ईंधन के उदाहरण है- कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस।

नवीकरणीय व अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से क्या अभिप्राय है? उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।

  • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत- ऐसी ऊर्जा स्रोत जो प्रकृति में निरंतर उत्पन्न रहते हैं तथा कभी समाप्त नहीं होते, उन्हें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहते हैं, जैसे सौर ऊर्जा, वायु उर्जा, जल ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, साग्रीय तापीय उर्जा इत्यादि।
  • अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत- ऐसी ऊर्जा स्रोत जिनका भंडार सीमित मात्रा में है तथा यह स्रोत समय के साथ साथ समाप्त हो जाते हैं, उन्हें अनवीकरणीय स्रोत कहते हैं। जैसे कोयला, पेट्रोलियम, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस है।

जीवाश्म इधनों को अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के रूप में क्यों वर्गीकृत किया गया है? इन स्रोतों के संरक्षण के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?

जीवाश्म ईंधनों, जैसे कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस की उत्पत्ति अति मंद परिवर्तनों के कारण हुई थी। क्योंकि यह परिस्थितियां अब नहीं रही, अंत: वर्तमान में  और जीवाश्म ईंधन की उत्पत्ति नहीं हो रही है तथा इनके भंडार सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है। अंतर इन ऊर्जा स्रोतों का वर्गीकरण अनवीकरणीय स्रोतों के रूप में किया जाता है।

इन स्रोतों के संरक्षण के लिए हमें अधिक से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत की खोज करनी चाहिए तथा उनका उपयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त ऊर्जा के अपव्यय रोककर अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को तभी उपयोग में लाना चाहिए, जब कोई दूसरा साधन उपलब्ध न हो।

उर्जा के अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बुद्धिमता से प्रयोग करना क्यों आवश्यक है?

ऊर्जा के अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (जीवाश्म ईंधनों) का उपयोग ऊर्जा की लगातार बढ़ती हुई मांग की पूर्ति के लिए व्यापक रूप से हो रहा है।  यदि हम इन अ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग इस इधर से करते रहे तो उनके ज्ञात भंडारों का तीव्र गति से क्षय हो जाएगा। साथ ही उनके नए भंडारों की खोज करना कठिन होता जा रहा है। ऐसा अनुमान है कि हमारे देश के पेट्रोलियम के ज्ञात भंडार सन 2020 तक समाप्त हो जाएंगे।  कोयले के ज्ञात भंडारों के लगभग 250 वर्षों तक और चलने की आशा है किंतु तेल के भंडारों के ह्रास, जनसंख्या वृद्धि और ऊर्जा उपयोग की विधि डर के कारण कोयले के भंडार बहुत पहले समाप्त हो सकते हैं। जीवाश्म ईंधन का व्यापक पैमाने पर उपयोग पर्यावरण प्रदूषण का एक मुख्य कारण है।  अंतर यह आवश्यक है कि हम ऊर्जा के इन अ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का समझदारी से उपयोग करें और इनके संरक्षण में सहयोग करें ताकि यह अधिक समय तक उपलब्ध हो सके।

अम्लीय वर्षा क्या है? अम्लीय वर्षा कैसे होती है? इसके हानिकारक प्रभाव क्या है?

जीवाश्म इंधन के दहन से अम्लीय वर्षा गैस वायुमंडल में छोड़ी जाती है या रासायनिक उद्योगों से उनके वाष्प वायु मंडल में आ जाते हैं, जो वर्षा के जल के साथ घुलकर जल के साथ अम्लीय वर्षा के रूप में गिरते हैं. अम्लीय गैस जैसे- SO2 , SO3, NO, सरलता से वर्षा के जल में  घुलकर अमल बनाती है। H2O + SO2 – H2SO3 अम्लीय वर्षा जलीय पारितंत्र को बुरी तरह से प्रभावित करती है जिससे दल तथा मृदा का ph मान बदलता है जिससे सूक्ष्म जीव तथा मछलियां मर जाती है.

ग्रीन हाउस प्रभाव क्या है? चार ग्रीन हाउस गैसों के नाम दें.  इसके क्या क्या हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं?

ग्रीन हाउस प्रभाव- पृथ्वी के तापमान ( वायुमंडल) में होने वाली बढ़ोतरी जो मुख्यतः पृथ्वी द्वारा अवरक्त किरणों के अधिक है अवशोषण के कारण होती है, ग्रीन हाउस प्रभाव का लाती है.

ग्रीन हाउस गैस- CO2, CH4, हाइड्रोकार्बन, NH3, O3 आदि.

हानिकारक प्रभाव- मौसम संबंधी परिवर्तन, कृषि उत्पादन पर बुरा प्रभाव.

हमारा जीवन किस प्रकार बदलेगा, यदि हमें विद्युत की आपूर्ति मिलनी बंद हो जाए?

  • इससे जीवन ठहर सा जाएगा.
  • इसे सार्वजनिक यातायात जिसे रेल तथा मेट्रो रेल पर असर पड़ेगा.
  • प्रकाश के बिना रात को अंधेरा रहेगा.
  • नतो पानी मिलेगा और ना ही ओवन में पका हुआ खाना. गर्मी में नहीं पंखे की हवा मिलेगी और जीवन दयनीय हो जाएगा.

हम जीवाश्म इधनों से होने वाले वायु प्रदूषण को किस प्रकार कम कर सकते हैं?

  • सड़कों के दोनों और अधिक से अधिक पेड़ लगा कर।
  • वाहनों के इंजन में सुधार लाकर तथा उनके सही रख-रखाव से।
  • सबसे अधिक महत्वपूर्ण है उनके उपयोग को कम करना।

तापीय विद्युत संयंत्र में किस प्रकार का ऊर्जा रूपांतरण होता है? इसके लिए प्रवाह चार्ट बनाएं।

तापीय विद्युत संयंत्र में उसमें ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है। कोयला या प्राकृतिक गैस को ईंधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है, जिसके दहन से उष्मा उत्पन्न होती है, ऊष्मा का उपयोग पानी को भाप में बदलने के लिए किया जाता है, जिसे विद्युत के उत्पादन में प्रयोग करते हैं।

  • रासायनिक उर्जा –  उष्मीय ऊर्जा। (इंधन)
  • उष्मीय ऊर्जा-  भाप की गतिज ऊर्जा।
  • भाप की गतिज ऊर्जा – विद्युत ऊर्जा।

क्या कारण है कि तापीय विद्युत संयंत्रों को कोयले तथा तेल क्षेत्रों के निकट स्थापित किया जाता है?

कोयले तथा पेट्रोलियम के परिवहन की तुलना में विद्युतीकरण अधिक दक्ष होता है। यही कारण है कि तापीय विद्युत संयंत्र को कोयले या तेल के क्षेत्रों के निकट स्थापित किया जाता है।  इन संयंत्रों में कोयले या तेल से दहन द्वारा उसमें ऊर्जा उत्पन्न की जाती है और उष्मीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है।

जल ऊर्जा का प्रयोग विद्युत उत्पादन में किस प्रकार किया जाता है?

बहते पानी की गतिज ऊर्जा बांध बनाकर स्थितिज ऊर्जा के रूप में सचित कर ली जाती है। संचित जल टरबाइन के बड़े-बड़े ब्लेडों पर गिराया जाता है। घूमती हुई टरबाइन के साथ जुड़ी शैफ़्ट जनरेटर या डायनेमो को तेजी से घूम आती है। डायनेमो की घूमती हुई कुंडली से विद्युत पैदा करती है। इसे जल विद्युत शक्ति कहते हैं। भाखड़ा बांध पर इसी विधि से जलविद्युत पैदा की जाती है। यहीं पन-बिजली घर का सिद्धांत भी कहलाता है।

जल-उर्जा किसे कहते हैं? इसके दो मुख्य उपयोग लिखे हैं?

बहते हुए जल में गतिज के कारण इस में कार्य करने की क्षमता होती है, जिसे जल ऊर्जा कहते हैं।

जल ऊर्जा के उपयोग-

  • जल ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित कर घरों तथा कल-कारखानों में प्रयोग किया जाता है।
  • जल ऊर्जा से पवन चकिया चलाकर आटा पीसने का कार्य किया जाता है।
  • जल ऊर्जा के कारण लकड़ी के बड़े-बड़े लट्ठे पानी के साथ है एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं।

जल ऊर्जा का सीमा निर्धारण करें।

जल ऊर्जा केवल बहते पानी से ही प्राप्त की जा सकती है। जहां बहते जल को बांध बनाकर एकत्रित करने की सुविधा न हो और जहां पर पानी स्थितिज ऊर्जा के रूप में न हो, उसका जल ऊर्जा के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है। अंत: जल ऊर्जा पर आधारित उद्योग हर स्थान पर संभव नहीं है।

क्या कारण है कि प्रारंभ में अधिकतर फैक्ट्रियां बहती नदी अथवा बांध के पास लगाई जाती थी?

बहती नदियों के पानी में गतिज ऊर्जा पाई जाती है जबकि बांध के पानी को भी गतिज ऊर्जा में रूपांतरित किया जा सकता है। इसी ऊर्जा का उपयोग फैक्ट्रियों में किया जाता था। अंत: बहती नदिया या बांध के पास फैक्ट्री लगाने का प्रमुख कारण यही था।

जल विद्युत के दोहन में कौन-कौन सी पर्यावरण संबंधी समस्याएं जुड़ी हुई है?

जल विद्युत शक्ति द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करना ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत भी है। इसको उत्पन्न करने में प्रदूषण नहीं होता। फिर भी जल विद्युत के दौहन में निम्नलिखित समस्याएं हैं-

  • किसी नदी में बांध बनाने के परिणाम स्वरूप उस नदी के अनुप्रवाह क्षेत्र में परिस्थितिकी संबंधी अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जाती है।
  • अनेक प्रकार की वनस्पतियों एवं जीव जंतु, यहां तक कि मानव आवास स्थल इत्यादि बांध के बनने पर उसमें डूब जाते हैं।

जल ऊर्जा से उत्पन्न विद्युत शक्ति के दो लाभ लिखे हैं।

  • जल ऊर्जा से विद्युत शक्ति उत्पन्न करने से हमारा पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता है।
  • यह ऊर्जा स्रोत कभी समाप्त न होने वाला संसाधन है।

बड़े बांधों के निर्माण से किस प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती है?

  • बड़े बांधों के कारण बहुत बड़ा भू-भाग/वन क्षेत्र पानी में डूब जाता है।
  • इसमें जीव विविधता तथा परितंत्र की हानि होती है।
  • इसमें मानव तथा पशु जनसंख्या विस्थापित होती है।
  • इसमें विस्थापित लोगों के विस्थापन में बहुत कठिनाइयां आती है।
  • इसमें भूकंप आदि आ सकते हैं क्योंकि एक तरफ जल भूमि की सतह पर बहुत अधिक दाब डालता है।
  • इसमें आसपास के क्षेत्रों में औसत जल स्तर बढ़ जाता है जिसे भूमि बंजर बन जाती है।

इंधन के रुप में लकड़ी का उपयोग उचित क्यों नहीं है, जबकी जंगलों की पुनः  पूर्ति हो सकती है?

वृक्षों को काटकर जलाने की लकड़ी प्राप्त करना ऊर्जा का एक नवीकरणीय स्रोत है, फिर भी ईंधन के रूप में लकड़ी का उपयोग बुद्धिमता पूर्ण कार्य नहीं समझा जाता क्योंकि एक वृक्ष की पूर्णतया विकसित होने से कम से कम 15 वर्ष का समय लगता है। अधिक संख्या में जंगलों से वृक्षों को काटना या गिराना वातावरण में असंतुलन उत्पन्न कर सकता है। इसके अतिरिक्त, लकड़ी के जलने से प्रदूषण की समस्या भी बढ़ती है।

जैव-मात्रा को ईंधन के रूप में किस प्रकार प्रयोग किया जाता है?

प्राचीन समय से लकड़ी के रूप में जैव मात्रा एक परंपरागत इंधन है। अब तक अलग प्रकार की जैव मात्रा पादप तथा जंतु उत्पाद को जैव गैस संयंत्रों में इंधन के रुप में प्रयोग की जाती है। जिअव गैस यंत्रों में जैव मात्रा के अपघटन से जैव गैस बनती है। जैव गैस जिससे मुख्य रूप से मेथेन होती है। (75% तक) एक उत्तम घरेलू इंधन है। हरे पौधे, खराब हुए फल व सब्जियां तथा जंतु अपशिष्ट जैसे गोबर सरलता पूर्वक ईंधन के रूप में जैव गैस संयंत्र में प्रयोग किए जाते हैं।

जैव-गैस संयंत्रों, में जैव-मात्रा के ईंधन के रूप में प्रयोग के क्या लाभ है?

  • इनसे जैव-गैस के रूप में स्वच्छ इंधन प्राप्त होता है।
  • जैव द्रव्यमान के अपघटन के पश्चात बचा हुआ कर्दम एक उत्तम खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • इस प्रकार से हमें जंतु अवशिष्ट है जैसे गोबर से छुटकारा मिल जाता है।

चारकोल का निर्माण किस प्रकार किया जाता है?

चारकोल को लकड़ी के भंजक आसवन द्वारा निर्मित किया जाता है। जब हम लकड़ी को वायु की अनुपस्थिति में गर्म करते हैं, तो लकड़ी से वाष्पशील पदार्थ नष्ट हो जाते हैं तथा हमें कार्बन का अपरूप जिसे चारकोल कहते हैं, प्राप्त होता है। 1 kg लकड़ी से लगभग 250 ग्राम चारकोल प्राप्त किया जा सकता है। एक उप उत्पाद के रूप में हमें वुड गैस तथा टार प्राप्त होता है।

जैव गैस किसे कहते हैं? इसे गोबर गैस क्यों कहा जाता है?

गोबर, कृषि, अपशिष्ट, सब्जियों के पत्तों व छिलको, वाहित मल आदि का ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में अपघटन कर बनी गैस जैव गैस कहलाती है, क्योंकि इस गैस को बनाने में उपयोग होने वाला आरंभिक पदार्थ गोबर है इसलिए इसका प्रचलित नाम गोबर गैस है।

पशुओं के गोबर तथा जैव अपशिष्ट से जैव गैस बनाने के क्या लाभ है?

  • जैव-गैस बिना धुएं के जलती है जिस कारण वातावरण प्रदूषित नहीं होता।
  • जैव-गैस का उष्मीय मान उच्च होता है।
  • जैव-गैस संयंत्र में जैव गैस निकालने के बाद शेष बची सलरी में नाइट्रोजन वह फास्फोरस के यौगिक अत्यधिक मात्रा में पाए जाते हैं जिसे खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • इससे अपशिष्ट के निपटान की एक सुरक्षित विधि मिल जाती है।
  • जैव-गैस के जलने पर कोई अवशेष नहीं बचता।

चारकोल को लकड़ी की अपेक्षा एक अच्छा इंधन क्यों माना जाता है?

  • इस का उष्मीय मान लकड़ी की तुलना में बहुत अधिक है।
  • यह एक धुआ रहित इंधन है, जिससे प्रदूषण नहीं होता है ।
  • यह लकड़ी की अपेक्षा कम स्थान घैरता है।

जैव-गैस को एक अच्छा इंधन क्यों माना जाता है?

  • जैव-गैस में मुख्यतः मेथेन गैस होती है जिसका उष्मीय मान बहुत अधिक  50-55 kj\g है।
  • यह धुआं रहित इंधन है जो घरेलू इंधन के रुप में अच्छा है।
  • जैव-गैस का उत्पादन करता है।

जैव-गैस के दो उपयोग लिखो।

  • इसका उपयोग गांवों में घरेलू इंधन के रुप में किया जाता है।
  • इसका उपयोग घर में प्रकाश करने के लिए किया जाता है तथा इसे मेथेन के स्रोत के रूप में प्रयोग किया जाता है।

पवन ऊर्जा के उपयोग से क्या लाभ है?

  • यह ऊर्जा का नवीकरणीय के योग्य स्रोत है, जिसे बार-बार प्राप्त किया जा सकता है।
  • यह प्रदूषण रहित है।
  • पवन-चक्की एक बार लगाने के पश्चात है और लागत या इंधन की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

पवन ऊर्जा की सीमाएं बताइए।

  • उच्च गतिशील वायु  (15 km\h) सभी स्थानों पर वर्षभर उपलब्ध नहीं रहती।
  • पवन ऊर्जा फार्म की आरंभिक लागत बहुत अधिक है।
  • यह देश की अधिकतर भागों में आर्थिक की दृष्टि से ठीक नहीं है।

पवन-चक्की के कार्य करने के सिद्धांत को स्पष्ट कीजिए।

पवन चक्की के कार्य करने का सिद्धांत पवन ऊर्जा पर आधारित है। इसके ब्लडो को इस प्रकार बनाया जाता है की पवन के टकराने से इन के विभिन्न क्षेत्रों के बीच दाबातर उत्पन्न हो जाए। यह दाबातर एक घूर्णी प्रभाव उत्पन्न करता  है जो ब्लेडों को घुमा देता है जिससे पवन ऊर्जा को यांत्रिक या विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। घूर्णन की चाल पवन वेग के अनुसार कम या अधिक हो सकती है।

पवन चक्की से उपयोगी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पवन का न्यूनतम वेग कितना होना चाहिए?

पवन चक्की से उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पवन का न्यूनतम वेग 15 km\h होना चाहिए।

पवन ऊर्जा के उपयोग लिखें।

  • पवन ऊर्जा का उपयोग पाल नावो को चलाने में किया जाता है।
  • पवन ऊर्जा से पवन चकिया चलाई जाती है, जिन से जल पंप सेंट और आटा पीसने की चकिया चलाई जा रही है।
  • वायुयान की उड़ानों में, विशेषकर ग्लाइडर, जो बिना इंजन का हवाई जहाज होता, के उड़ान भरने में पवन ऊर्जा का उपयोग होता है।
  • पवन ऊर्जा से भारी मात्रा में विद्युत पैदा करने की संभावनाएं हैं और आजकल से विद्युत पैदा करने के प्रयास चल रहे हैं।
  • भूसे व अनाज के दानों को अलग करने में पवन ऊर्जा का उपयोग होता है।

पवन ऊर्जा के महत्वपूर्ण सीमा निर्धारण बताएं। इसका एक लाभ भी बताएं।

पवन ऊर्जा की सबसे बड़ी कमी या दोष यही है कि प्रत्येक स्थान पर हर समय उपलब्ध नहीं होती। यह भी संभव नहीं है कि हर जगह वर्षभर वायु ऊर्जा गति में रहे। कभी यह तेज होती है या फिर बिल्कुल बंद होती है। अंत पवन ऊर्जा पर हर स्थान पर, हर समय निर्भर रहना संभव नहीं है। पवन ऊर्जा फार्म स्थापित करने के लिए काफी भूमि की आवश्यकता होती है। पवन ऊर्जा फार्म स्थापित करने के लिए आरंभिक खर्चा अत्यधिक होता है। पवन चकियों दृढ़ आधार की आवश्यकता होती है। साथ ही अंधड़, चक्रवात, धूप, वर्षा के प्राकृतिक प्रभाव के कारण उच्च स्तर के रखरखाव की आवश्यकता होती है।

लाभ- इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि पवन ऊर्जा के उपयोग से वायु प्रदूषण नहीं होता है और इस पर बार-बार धन खर्च नहीं करना पड़ता है।

भारत में पवन ऊर्जा क्षमता पर टिप्पणी करें।

भारत की पवन ऊर्जा की अनुमानित क्षमता लगभग 20,000 MW है। सन 1999 तक भारत में पवन ऊर्जा से 1025MW से अधिक ऊर्जा का उत्पादन हो रहा था और नई सुविधाओं के प्रारंभ में इस में और वृद्धि होने की संभावना है। तमिलनाडु में कन्याकुमारी के पास स्थित पवन ऊर्जा फार्म धारा 380 MW विद्युत का उत्पादन हो सकता है। पवन ऊर्जा द्वारा विद्युत उत्पन्न करने वाले देशों में भारत का पांचवा स्थान है। डेनमार्क (पवन का देश ) का पहला स्थान है।

पवन ऊर्जा फार्म किसे कहते हैं?

किसी एकल पवन चक्की द्वारा उत्पन्न विद्युत कम होती है इसलिए किसी विशाल क्षेत्र में बहुत सी पवन चकिया लगाई जाती है, इस क्षेत्र को पूर्ण ऊर्जा फार्म कहते हैं। पवन ऊर्जा फार्म से प्राप्त विद्युत का परिमाण अधिक होने के कारण इसका व्यापारिक उपयोग किया जा सकता है। MW के जरित्र के लिए पवन ऊर्जा फार्म के लिए 2 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होती है।

भारत में उर्जा के मुख्य स्रोत क्या है?

पेट्रोलियम तथा इसके उत्पाद, कोयला, जल शक्ति, नाभिकीय उर्जा, प्राकृतिक गैस।  

जीवाश्म ईंधन (कोयला,  पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस) कैसे बनते हैं?

जीवाश्म ईंधन पौधे तथा जंतु के शरीर के अपघटन से बनते हैं जो करोड़ों वर्ष पूर्व पृथ्वी के अंदर दब गए थे। वायु में ऑक्सीजन (O2) की अनुपस्थिति में अधिक दाब व उच्च ताप पर जीवाणु तथा कवक इन्हें जीवाश्म ईंधन में अपघठित कर देते हैं।

कोयला तथा पेट्रोलियम को अनवीकरणीय/समाप्य ऊर्जा के स्रोत क्यों माना जाता है?

कोयला तथा पेट्रोलियम के भंडार सीमित है। उन्हें तीव्रता से प्रयोग (खर्च) किया जा रहा है। पृथ्वी पर आज की परिस्थिति में उनका बनना संभव नहीं है।  इसलिए वे अधिक समय तक उपलब्ध नहीं रह पाएंगे और हम उनका पुन पूर्ण भी नहीं कर सकते।  इसलिए उन्हें ऊर्जा के अनवीकरणीय स्रोत कहा जाता है।

बांधों का निर्माण किस प्रकार सहायक है?

  • यह विद्युत के उत्पादन में सहायक है।
  • यह कृषि में सहायक है क्योंकि इसे सिंचाई के लिए पानी मिलता है।
  • इससे बाढ़ को रोकने में सहायता मिलती है। इससे खेतों तथा घरों के उपयोग के लिए पानी उपलब्ध करवाया जाता है।

जैव-गैस यंत्रों को किसानों के लिए एक वरदान क्यों माना जाता है?

  • जैव-गैस संयंत्र में सामान्यतः गोबर को इंधन के लिए प्रयोग में लाया जो किसानों के पास मुफ्त में ही उपलब्ध रहता है।
  • यह किसानों को खाना पकाने, का धुआ रहित सस्ता साधन उपलब्ध करवाता है।
  • कर्दम के रूप में किसानों को बिना किसी लागत के खाद प्राप्त होती है।
  • किसानों को जंतु तथा पादप अपशिष्ट के निपटान से छुटकारा मिल जाता है।

पवन ऊर्जा क्या है? पवन के चलने के कारण लिखे।

बहती हुई पवन के अंदर निहीत गतिज ऊर्जा पवन ऊर्जा कहलाती है।

पवन के चलने के कारण

  • सौर विकरण के कारण ध्रुवीय तथा विषुवत क्षेत्रों का असमान तापन।  
  • मौसम संबंधी परिस्थितियां।
  • पृथ्वी पर घूर्णन ।

पवन-चक्कियों ने अपना महत्व क्यों खो दिया है? लेकिन आज भी उन्हें उर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत क्यों माना जाता है?

  • जीवाशमी ईंधन- कोयला,  पेट्रोलियम, तथा प्राकृतिक गैस की खोज बाद में हुई, जिन्हें उपयोग करना अधिक सुविधाजनक रहा है तथा यह आज भी अच्छे इंधन है।
  • ऊर्जा स्रोत के रूप में विद्युत की खोज बाद में हुई है जो ऊर्जा का सबसे अच्छा विकल्प माना जाता है।

लेकिन आज हम पवन ऊर्जा को एक अच्छे विकल्प के रूप में देखते हैं क्योंकि-

  • यह ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है और जीवाशमी इंधन समाप्त होते जा रहे हैं।
  • यह पर्यावरणीय दोस्त है।
  • उपलब्ध तकनीकों के कारण तथा इस क्षेत्र में उन्नति होने के कारण यह ऊर्जा का एक दक्ष स्रोत बन गया है।

सौर ऊर्जा का क्या होता है जो पृथ्वी तक पहुंचती है?

  • पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल द्वारा 53% ऊर्जा वापिस अंतरिक्ष में परावर्तित कर दी जाती है तथा 47% ऊर्जा पृथ्वी की सतह तक पहुंचती है।
  • प्रकाश ऊर्जा की कुल मात्रा जो पौधों को उपलब्ध होती है, वे उसका केवल 1% भाग ही प्रकाश संश्लेषण में उपयोग कर पाते हैं।
  • पृथ्वी के वायुमंडल, समुंदरों तथा पृथ्वी की सतह द्वारा इसका केवल एक भाग ही अवशोषित किया जाता है तथा शेष वापस अंतरिक्ष में चला जाता है।

सौर कुकर की दक्षता को बढ़ाने के लिए उपाय सुझाइए?

  • यह वायुरुद्ध होना चाहिए.
  • इसके अंदर की प्रति कॉपर तथा एल्युमिनियम धातु से बनी होनी चाहिए तथा इस पर काला पेंट किया होना चाहिए। ‘
  • इसके कांच की पट्टी/प्लेट द्वारा ढका जाना चाहिए।
  • सबसे अधिक जरूरी है कि प्रवर्तक के रूप में एक समतल या अवतल दर्पण का प्रयोग किया जाना चाहिए जो ऊष्मा ऊर्जा को एक बिंदु पर केंद्रित करके सौर कुकर का तापमान उच्च डिग्री तक बढ़ा सके।

बॉक्स प्रकार के सौर कुकर के दो लाभ व हानियां बताइए।

बोक्स प्रकार के सौर कुकर के लाभ-

  • यह सरल तथा सस्ता उपकरण है जिसे बिना किसी इंदन के खाना पकाने में प्रयोग किया जा सकता है।
  • यह ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत पर आधारित है तथा कोई प्रदूषण नहीं करता।

बॉक्स प्रकार का सौर कुकर उपयोग करने से हानि-

  • क्योंकि इससे प्राप्त अधिकतम ताप ज्यादा नहीं होता इसलिए इसे चपाती बनाने तथा खाना खाई करने के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता।
  • बादलों वाले दिन इसका कोई उपयोग नहीं है तथा इसे रात में भी प्रयोग नहीं किया जा सकता है।  यह ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत पर आधारित है तथा कोई प्रदूषण नहीं करता है।

सौर ऊर्जा युक्तियों से क्या अभिप्राय है? इनके कार्य करने के सिद्धांत को कितने वर्गों में बांटा जा सकता है?

सौर ऊर्जा के दोहन के लिए सामान्यतः प्रयुक्त युक्तिया सौर कुकर, सौर जल उष्मक, सौर जल पंप और सौर सेल इत्यादि को सौर ऊर्जा युक्तियां कहते हैं। इन युक्तियों को अनेक कार्य करने के सिद्धांत के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। पहले प्रकार की युक्तियों में सौर ऊर्जा को ऊष्मा के रूप में एकत्र किया जाता है, जैसे कि सौर कुकर सौर जल उस्मक में। दूसरे प्रकार की युक्तियों में सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर लिया जाता है जैसे सौर सेल में।

सौर ऊर्जा के प्रमुख उपयोग लिखो।

  • सौर-जल ऊष्मक द्वारा सौर ऊर्जा का उपयोग बड़ी-बड़ी इमारतों, अस्पतालों तथा होटलों में गर्म पानी की सप्लाई के लिए किया जाता है।
  • सौर ऊर्जा का उपयोग सौर सेल द्वारा इलेक्ट्रॉनिक के घड़ियों तथा केलकुलेटर को चलाने के लिए किया जाता है।
  • सौर सेलों द्वारा सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा को विद्युत उत्पन्न करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • पौधों द्वारा सौर ऊर्जा का उपयोग अपने भोजन के निर्माण में किया जाता है।
  • सौर ऊर्जा का उपयोग अनाज, मछली, कपड़े व लकड़ी आदि सुखाने में किया जाता है।
  • सौर ऊर्जा द्वारा सौर जल पंप चलाकर पृथ्वी से पानी निकाला जा सकता है।

सौर ऊर्जा के सीमा बंधनों का वर्णन कीजिए।

  • यह पृथ्वी पर अत्यधिक विस्तृत रूप में पहुंचती है। पृथ्वी के वायुमंडल के ऊपरी भाग के प्रत्येक वर्ग मीटर द्वारा 1.4 किलो जुल ऊर्जा प्रति सेकंड प्राप्त की जाती है।  इसमें से केवल 47% अर्थात लगभग 0.66 kj उर्जा ही पृथ्वी तल के प्रत्येक वर्ग मीटर तक 1 सेकंड में पहुंचती है। इसलिए इस ऊर्जा की सांदर्ता अधिक  कार्य नहीं कर सकती।
  • सौर ऊर्जा हमेशा एक समान में उपलब्ध नहीं होती है।
  • सौर उर्जा रात के समय तथा वर्षा ऋतु में प्राप्त नहीं होती है।
  • सौर ऊर्जा बादलों से ढकी आसमान के समय भी प्राप्त नहीं होती है।

ज्वारीय ऊर्जा किसे कहते हैं? इसका उपयोग विद्युत उत्पादन में किस प्रकार किया जाता है?

महासागरों में ज्वार भाटे में पानी के चढ़ने व गिरने से अर्जित ऊर्जा को ज्वारीय ऊर्जा कहते हैं। इस ऊर्जा का उपयोग विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।

विद्युत उत्पादन के लिए सागर के किसी संकीर्ण क्षेत्र पर एक बांध बनाया जाता है। उच्च व निम्न ज्वार के समय तक संकीर्ण क्षेत्र से जल बांध के अंदर व उससे बाहर जाता रहता है।  इस प्रकरण में यह जल बांध की दीवार में लगी टरबाइनों को घुमाता है, जिसके फलस्वरूप जनरेटर द्वारा विद्युत उत्पन्न होती है परंतु इस प्रकरण में विद्युत का उत्पादन बहुत कम होता है।

ज्वारीय ऊर्जा एक संभावित ऊर्जा स्रोत क्यों नहीं हो सकता? कारण लिखिए।

  • ज्वार भाटा के समय चढ़ते उतरते पानी की ऊंचाई विद्युत उत्पादन के लिए पर्याप्त नहीं होगी।
  • ज्वारीय ऊर्जा के दोहन के लिए बांध बनाने के लिए केवल कुछ ही स्थान उपयोगिता है।
  • इस ऊर्जा से अधिक विद्युत ऊर्जा नहीं मिलती है।

सौर सान्द्रक क्या होते हैं? उन के दो उपयोग बताएं।

  • सौर सांद्र्क वे यंत्र है जो विकिरण को एक बिंदु या छोटे क्षेत्र में केंद्रित कर देते हैं।
  • वे उपकरण का ताप बहुत ऊंच डिग्री तक बढ़ा सकते हैं।  

उपयोग- यह सौर ताप नियुक्तियों में प्रयोग किए जाते हैं जैसे- सौर भट्टी, सौर हीटर आदि।

अपने घरों में सौर ऊर्जा पर आधारित उपकरणों को उपयोग करने के क्या क्या लाभ है?

यह ऊर्जा के असमाप्य, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत पर आधारित होते हैं, जिसमें ऊर्जा संकट उत्पन्न नहीं होता।

  • क्योंकि वे कोई इंधन या विद्युत का उपयोग नहीं करते इसलिए उनसे ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों की बचत होती है।
  • वे किसी प्रकार के प्रदूषण का कारण नहीं बनते, अंत वे प्रदूषण रहित है।
  • वह सस्ते उपयोगी तथा सुरक्षित उपकरण है जिनको विशेष रखरखाव की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

सौर पैनल क्या है? उनका उपयोग कहां होता है?

सौर पैनल एक ऊर्जा दोहन उपकरण है जिसमें बहुत सारे सौर सेल जुड़े रहते हैं। ये सीधे सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर देते हैं.

सौर पैनलों के उपयोग- कृत्रिम उपग्रह में, अंतरिक्ष अन्वेषण में, अंतरिक्ष अड्डों पर, गली तथा घरों में प्रकाश करने के लिए, दूरदर्शन प्रसारण केंद्रों में।

इतने महत्वपूर्ण उपयोग के बाद भी सौर सेल\ पैनल का उपयोग इतना लोकप्रिय नहीं हुआ है क्यों?

  • यह बहुत महंगे होते हैं।
  • सिलिकॉन/सैलिनियम को शुद्ध अवस्था में प्राप्त करना महंगा है।
  • सौर सेलों को जोड़ने के लिए चांदी का उपयोग किया जाता है जो बहुत महंगी है।
  • सौर सेल/पैनल द्वारा उत्पादित विद्युत ऊर्जा को संचायक बैटरी में पंडित करना पड़ता है जो बहुत ही महंगी होती है।

समुद्र में किस प्रकार की ऊर्जा निहित है?

ज्वारीय ऊर्जा, तरंग ऊर्जा, समुंदर यह तापीय उर्जा, जैव मात्रा, गैस हाइड्रेट्स, लवण प्रवणता ऊर्जा।

तरंग ऊर्जा (समुद्र की) क्या है? इस ऊर्जा के दोहन के लिए 3 उपकरणों के नाम दें।

तरंग ऊर्जा समुंदर की लहरों की ऊर्जा होती है जो समुद्र की सतह पर तेज हवाओं से उत्पन्न होती है।  इन लहरों की गतिज ऊर्जा का उपयोग, डायनेमो चलाने के लिए किया जा सकता है, जो विद्युत उत्पन्न करता है।

इस प्रक्रिया के लिए 3 उपकरण-

  • सतही तैरते हुए उपकरण।
  • हिलते हुए जल स्तंभ।
  • केंद्रीय उपकरण।

OTE क्या है? इसका दोहन किस प्रकार किया जाता है?

OTE का अर्थ है समुद्र यह तापीय उर्जा, जो समुंदर की विभिन्न परतों के बीच में तापांतर के कारण उपलब्ध रहती है। वह उपकरण जिनका उपयोग है OTE के दोहन के लिए किया जाता है, उन्हें OTE प्रवर्तक कहते हैं। OTEC संयत्र को चलाने के लिए 2000m की गहराई तक पानी की परतों के बीच कम से कम 20 डिग्री सेल्सियस का अंतर होना चाहिए। गर्म पानी का उपयोग तरल अमोनिया (NH3) या क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFCs) आदि पदार्थों के वाष्प बनाने में किया जाता है। इन पदार्थों के वाष्पों को टरबाइन चलाने के लिए उपयोग करते हैं जो विद्युत जनित्र को चलाते हैं। विद्युत जनित्र विद्युत का उत्पादन करते हैं। समुंद्र की गहरी परतों से ठंडा पानी, वास्तव को ठंडा करके तरल बनाने के लिए प्रयोग करते हैं ताकि इन पदार्थों का उपयोग बार-बार किया जा सके।

हम भूतापीय उर्जा तप्त स्थलों से विद्युत का उत्पादन किस प्रकार कर सकते हैं? इसके क्या लाभ है?

भू-तापीय ऊर्जा पृथ्वी के गर्भ में निकली हुई चट्टानों के रूप में उष्मा ऊर्जा है क्योंकि पृथ्वी के गर्भ में ऊष्मा ऊर्जा की मात्रा बहुत अधिक है। भूपर्पटी में पानी को गर्म करके भाप में बदल देती है। भाप का उपयोग डायनेमो चलाने के लिए किया जा सकता है जो विद्युत जनित्र से जुड़ा हुआ होता है। भाप की गतिज ऊर्जा डायनेमो को घूर्णन करती है तथा विद्युत जनित्र विद्युत का उत्पादन करता है।

लाभ-

  • इस प्रकार की ऊर्जा को दिन में 24 घंटे उपयोग किया जा सकता है।
  • इससे विद्युत उत्पादन का खर्च बहुत कम पड़ता है।
  • यह एक असमाप्य स्रोत है।

कुछ लोग कहते हैं कि यदि हम अपने पूर्वजों की तरह रहना आराम्भ कर दें, तो इसे उर्जा का तथा परितंत्र का संरक्षण होगा। क्या आप समझते हैं कि यह विचार सही है?

जैसा की आप सभी को ज्ञात है कि हमारी ऊर्जा की आवश्यकता दिन प्रतिदिन बढ़ रही है तथा हमारी जीवनशैली अधिक ऊर्जा पर आधारित हो चली है। औद्योगीकरण की प्रक्रिया के कारण भी ऐसा है । हम धीरे-धीरे उर्जा संकट की ओर बढ़ रहे हैं क्योंकि परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के भंडार तेजी से समाप्त होते जा रहे हैं। इसलिए कुछ लोग हैं यह सलाह देते हैं कि हमें अपने पूर्वजों की तरह रहना आरंभ कर देना चाहिए ताकि उर्जा की खपत को कम किया जा सके।

यह एक संभव सा विचार नहीं है। विज्ञान तथा तकनीकी के युग में हमें आवश्यकता है-

  • ऊर्जा के फिजूल खर्च को रोकने की। ‘
  • ऊर्जा के नए स्रोतो/विकल्पो को खोजने की।
  • हाइड्रोजन तथा एथिल एल्कोहल को ईंधन के रूप में प्रयोग करने की।
  • वाहनों के आधार पर ऊर्जा के स्रोत।
  • नाभिकीय सलयन पर आधारित रिएक्टर की।

भारत में स्थापित चार नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र  के नाम बताएं।

तारापुर (महाराष्ट्र), राणा प्रताप सागर (राजस्थान), कलपक्कम (तमिलनाडु), नरोरा (उत्तर प्रदेश)

नाभिकीय ऊर्जा के उत्पादन तथा उपयोग में किस प्रकार के खतरे हैं? अथवा नाभिकीय ऊर्जा के उपयोग में क्या क्या होते हैं?

  • नाभिकीय रिएक्टर का ऊर्जा संयंत्रों में रेडियो एक्टिव पदार्थ जैसे यूरेनियम, थोरियम, पोलोनियम आदि का उपयोग होता है जिससे विकिरणों से उदभासन की समस्या उत्पन्न होती है।
  • उपयोग किए गए इंधन भी रेडियोधर्मी होते हैं, इसलिए उनका सुरक्षित निपटना भी एक समस्या है।
  • इसके अतिरिक्त हमें इनकी आपूर्ति तथा संबंधित तकनीकों के लिए अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ता है।

ऐसी परिस्थितियां बताइए जो नाभिकीय सलयन प्रक्रिया के लिए आवश्यक है?

  • इसके लिए आरंभिक तापमान 107 k होना चाहिए।
  • अभी तक हम नाभिक संलयन प्रक्रिया को नियंत्रित करने में सफल नहीं हो पाए हैं, इसलिए अभिक्रिया में उत्पादित ऊर्जा की इतनी अधिक मात्रा का उपयोग में लाना अभी संभव नहीं हो पाया है।
  • संलयन अभिक्रिया के लिए लाखों पास्कल दाब की आवश्यकता होती है।
  • नाभिको सलयन में बहुत अधिक ऊर्जा खर्च होती है।

किसी ताप नाभिकीय संयंत्र/उपकरण (हाइड्रोजन बम) की कार्य प्रणाली को समझाइए?

हाइड्रोजन बम ताप नाभिकीय संलयन अभिक्रिया पर आधारित है। हाइड्रोजन बम के केंद्र में यूरेनियम या प्लूटोनियम पर आधारित परमाणु बम को रखा जाता है। इस नाभिकीय/परमाणु बम को उस पदार्थ में दबाया जाता है जिसमें ड्यूटीरियम तथा लिथियम भरे होते हैं। जब विखंडन पर आधारित बम को चलाया जाता है तो इस पदार्थ का तापमान माइक्रो सेकंड में 107 k तक पहुंच जाता है। इतने उच्च ताप पर इतनी ऊर्जा उत्सर्जित होती है कि हल्के नाभिक आपस में संलयित होते हैं तथा अपार मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित होती है।

नाभिकीय विखंडन की तुलना में नाभिकीय सलयन के लाभ बताएं।

  • नाभिकीय विखंडन की तुलना में संलयन प्रक्रिया में बहुत अधिक ऊर्जा उत्सर्जित होती है-
  • नाभिकीय संलयन अभिक्रिया के उत्पाद रेडियोधर्मी नहीं है।
  • पृथ्वी पर पानी (हाइड्रोजन) की कोई कमी नहीं है, यह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
  • व्यर्थ पदार्थों के निपटान की कोई समस्या नहीं है।

ऊर्जा संसाधनों के प्रयोग के पर्यावरणीय प्रभाव/परिणाम बताएं

वैश्विक उश्मन/ग्रीन हाउस प्रभाव, अम्लीय वर्षा, पर्यावरणीय प्रदूषण, बढ़ती स्वास्थ्य समस्याएं।

जीवाश्म इंधन के दहन से वायु प्रदूषण होता है, टिप्पणी करें।

जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस ,आदि प्राचीन समय में जीव जंतुओं और पौधों के शरीर के आशिक अपघटन के परिणाम स्वरुप बने हैं। इसलिए उन्हें वे तत्व है जो उन जीवों के शरीर में विद्यमान थे। उदाहरण के लिए C, H, O, N, S,आदि। जब हम इन जीवाशमी इधनों को जलाते हैं तब ये प्रदूषक गैस जैसे सल्फर ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन वाष्प, यह सभी गंभीर पर्यावरणीय प्रदूषक है। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के साथ-साथ यह निम्नलिखित समस्याएं उत्पन्न करते हैं।

 ग्रीन हाउस प्रभाव, अम्लीय वर्षा, मौसम संबंधी परिवर्तन।

हमें जीवाशमी इधनों का अधिक उपयोग क्यों रोकना चाहिए?

  • यह ऊर्जा के परंपरागत स्रोत है तथा इनके भंडार सीमित है। यह शीघ्र ही समाप्त हो जाएंगे।
  • इनका अत्यधिक उपयोग प्रदूषण का कारण बनता है जिसे नियंत्रित करना कठिन है।
  • इनका अत्यधिक उपयोग मौसम संबंधी परिवर्तन, अम्लीय वर्षा तथा, वैश्विक उस्मन का कारण बन सकता।

वह कौन से कारक है जिन पर हमारे ऊर्जा के स्रोत का चुनाव निर्भर करता है?

  • उस इंधन के उपयोग हेतु तकनीक उपलब्ध है या नहीं।
  • इंधन का स्रोत सकता है अथवा नहीं।
  • यह प्रदूषण रहित है अथवा नहीं, तथा यह पर्यावरणीय संबंधित समस्याएं उत्पन्न नहीं करता।
  • ऊर्जा के प्राथमिक स्रोत को ऐसे ही उपयोग किया जा सकता है अथवा इसके संसाधन की आवश्यकता पड़ेगी ताकि द्वितीयक इंधन प्राप्त किया जा सके।

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