धातुएँ विद्युत की अच्छी चालक होती है। जब चालक में से लगातार धारा बहती रहती है, तो उसमें से इलेक्ट्रॉन निश्चित औसत चाल के साथ गमन करते हैं। यह चाल 1 mms-1 होती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक विचलन/गमन विद्युत चालकों में एक बहुत ही धीमी प्रक्रिया है। किसी तार चालक में आवेश का प्रवाह अर्थात इलेक्ट्रॉन का प्रवाह निश्चित दिशा में नहीं होता बल्कि आवेश का प्रवाह किसी भी दिशा में तब तक नहीं होता जब तक चालक को बैटरी से न जोड़ा जाए। बैटरी से जोड़ने पर आवेश धन क्षेत्र की ओर आकृष्ट होते हैं जिसमे प्रवाह ऋण क्षेत्र धन क्षेत्र की ओर होने लगता है।
विद्युत आवेश के प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं। विद्युत धारा का मात्रक ऐपियर (A) है (मात्रक का नाम इस के अविष्कारक आंद्रे- मेरी ऐपियर (1775- 1836) के नाम पर रखा गया)
ठोस तार के कारण एक दूसरे के साथ संकुचित होते हैं और इनके बीच बहुत कम स्थान होता है। इलेक्ट्रॉनिक इस ठोस में से बिना किसी रूकावट के ठीक वैसे ही आसानी से यात्रा करते हैं जैसे कि निर्वात में। चालक में से इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह निश्चित औसत अपवाह चाल से करते हैं। इसे अपवाह चाल का परिकलन किया जा सकता है।
विद्युत क्षेत्र में किसी बिंदु पर विद्युत विभव को उस कार्य है के रूप में परिभाषित किया जाता है जो इकाई धन आवेश को अनंत से उस बिंदु तक लाने में किया जाता है। अर्थात किसी बिंदु पर आवेश की मात्रा को विद्युत विभव कहते हैं। विभव का SI मात्रक वॉल्ट (V) है।
किसी धारावाही चालक तार के दोनों सिरों के बीच विभवांतर को उस कार्य के रूप में परिभाषित किया जाता है जो चालक में इकाई आवेश का एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किया जाता है। इसका SI मात्रक वॉल्ट (V) है।
किया गया कार्य (W)/आवेश(Q) = (V = W/Q)
1 वोल्ट-किसी विद्युत धारावाही चालक के दो बिंदुओं के बीच एक कूलाम आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में 1 जुल कार्य किया जाता है। इन दोनों के दोनों के बीच विभवांतर 1 वोल्ट होता है (एक वोल्ट = 1 जूल/ 1 कुलॉम) विभवांतर को वोल्टमीटर द्वारा मापा जाता है। वोल्टमीटर परिपथ में हमेशा पार्श्वक्रम में संयोजित किया जाता है।
विद्युत परिपथ विभिन्न विद्युत अवयवों को व्यवस्था अनुरूप जोड़कर बनाया जाता है। इस परिपथ का आरेख है सुविधाजनक ढंग से खींचने (बनाने) के लिए ही विद्युत अवयवों को परिपथ में प्रतीकों द्वारा निरूपित किया जाता है।
सुचालक- वे पदार्थ हैं जिनमें से विद्युत धारा बिना किसी विशेष प्रतिरोध के प्रवाहित हो सकती है, उन्हे सुचालक पदार्थ कहते हैं। उदाहरण- चांदी, कॉपर (तांबा), एलुमिनियम, ग्रेफाइट आदि।
कुचालक- वे पदार्थ जिनमें से विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होती है, कुचालक पदार्थ कहलाते हैं। उदाहरण- सूखी लकड़ी, प्लास्टिक, कांच, कागज आदि।
किसी चालक में बह रही विद्युत धारा, इसके सिरों के बीच विभवांतर (V) के अनुक्रमानुपाती होती है यदि तापमान में कोई परिवर्तन में हो तथा दूसरी भौतिक अवस्था में कोई परिवर्तन न हो।
चालक की लंबाई, अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल, प्रतिरोधक के पदार्थ की प्रकृति, अर्धचालक में उपस्थित अशुद्धियाँ।
प्रतिरोधकता- इकाई लंबाई व इकाई अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल की चालक तार का प्रतिरोध, प्रतिरोधकता कहलाता है।
प्रतिरोधकता का महत्व
SI मात्रक- प्रतिरोधकता का SI मात्रक Ωm है।
अर्धचालक- अर्धचालक में पदार्थ हैं जिनकी चालकता को चालक तथा सुचालक पदार्थों के मध्य होती है। यह पदार्थ विद्युत उत्पादित करते हैं जब उन पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है। उदाहरण- सिलिकॉन, जर्मनियम, सैलीनियम, गैलियम आदि।
धातुएँ जिनकी प्रतिरोधकता उच्च होती है तथा मिश्रातूओं को विद्युत तापन यूक्तियां में प्रयोग किया जाता है, क्योंकि-
चालक का प्रतिरोध, इसके सिरों के बीच विभवांतर।
जब प्रतिरोधकों को पार्श्वक्रम में व्यवस्थित किया जाता है, तब-परिपथ का कुल प्रतिरोध कम हो जाता है।
जब प्रतिरोधकों कों उनको श्रेणी क्रम में जोड़ा जाता है, तब –
ऐसा इसलिए है, क्योंकि- उन्हें धारा के भिन्न-भिन्न मान की आवश्यकता है।
उन्हें स्वतंत्रता पूर्वक उपयोग में नहीं किया जा सकेगा।
विद्युत फ्यूज एक कम गलनांक वाली मिश्रातु का तार होता है। जब चालक का प्रतिरोध बढ़ता है अथवा अचानक वोल्टेज बढ़ जाती है या जब उच्च धारा प्रवाहित होती है तब परिपथ का तापमान बढ़ जाता है। तापमान में यदि बढ़ोतरी फ्यूज के तापमान को बढ़ा देती है। अधिक ऊष्मा के कारण फ्यूज पिघल जाता है। इसमें परिपथ टूट जाता है तथा उसमें धारा बहनी बंद हो जाती है। इसमें परिपथ को हानि होने से बचाया जा सकता है।
1 किलो वाट घंटा = 1000 वाट x 3600 सेकंड = 3.6 x 106 वाट सेकंड = 3.6 x 106 जूल
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