एक प्रकार की ऊर्जा है जो विद्युत आवेश के प्रवाह के कारण होती है.
विद्युत आवेश के प्रभाव को विद्युत धारा कहते हैं। इसे किसी क्षेत्र विशेष में इकाई समय में बहने वाले आवेश की मात्रा के रूप में प्रवाहित किया जाता है।
विद्युत धारा का सतत व बंद पथ, विद्युत परिपथ कहलाता है।
किसी विद्युत परिपथ में विद्युत धारा की दिशा, इलेक्ट्रॉन के बहने की दिशा के विपरीत ली जाती है। इसे धनात्मक आवेश के बहने की दिशा के रूप में लिया जाता है।
विद्युत धारा का SI मात्रक ऐम्पियर है।
धारा का मान 1 ऐम्पियर तब कहा जाता है जब सालक में से प्रति सेकंड एक कूलॉम आवेश प्रवाहित होता है।
एक कूलॉम वह विद्युत आवेश है जो 6 X 10-18 इलेक्ट्रॉनों में निहित होता है।
एक इलेक्ट्रॉन पर 1.6 X 10-19C आवेश होता है।
एक कूलॉम आवेश 6 X 10-18 इलेक्ट्रॉन पर आवेश के समान होता है।
इलेक्ट्रॉनों के कारण।
धारा का प्रवाह रुक जाता है।
यह परिपथ को पूरा करता है या उसे तोड़ देता है।
आंद्रे मेरी ऐम्पियर (1775-1836) एक फ्रांसीसी विज्ञानिक।
धारा की दिशा Y से X की ओर होगी।
एमीटर द्वारा
ऐमीटर परिपथ में सदैव श्रेणी क्रम में जुड़ा हुआ है।
यह सेल के धनात्मक टर्मिनल से ऋण आत्मक है टर्मिनल की ओर बहती है।
इसे उस कार्य के रूप में परिभाषित किया जाता है जो उसे विद्युत क्षेत्र के किसी बिंदु तक इकाई धनात्मक आवेश को अनंत से लाने में किया जाता है।
विद्युत विभवांतर का SI मात्रक वॉल्ट है।
दो बिंदुओं के बीच विभवांतर को उस कार्य के रूप में परिभाषित किया जाता है जो एक इकाई आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किया जाता है।
यदि एक कूलॉम आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में एक फूल कार्य है किया जाए तो उन 2 बिंदुओं के बीच विभवांतर को एक वॉल्ट कहा जाता है। (1 Vवॉल्ट = 1 जूल/1 कूलॉम)
इटालियन भौतिक शास्त्री एलसैड्रा वोल्टा (1745-1827)
किया गया कार्य, W = V X Q जहां V विभव तथा Q आवेश है।
वोल्टमीटर।
एक रासायनिक ए सेल जो विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करता है विद्युत रासायनिक सेल कहलाता है।
विद्युत रासायनिक सेल ओं का संयोजन, बैटरी अथवा सेल कहलाता है।
वोल्टमीटर।
धारा नियंत्रक के के परिवर्तनीय प्रतिरोध होता है जो किसी परिपथ में धारा के प्रवाह को नियंत्रित करता है।
वोल्टमीटर प्रतिरोधक के पार्श्वक्रम में जुड़ा हुआ होता है।
प्रतिरोधक कोई तार, विद्युत उपकरण या कोई कुंडली आदि होता है।
इस नियम के अनुसार किसी चालक तार में से बहने वाली धारा (l) उसके शेरों के बीच विभवांतर (v) के अनुक्रमानुपाती होती है यदि चालक के तापमान में कोई परिवर्तन नहीं हो तो। V∝I
नाइक्रोम निकील, मैग्नीज तथा लोहे धातुओं की एक मिश्र धातु होती है।
पदार्थों का वह गुण जो विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करता है प्रतिरोध कहलाता है।
v/I = R या = IR
प्रतिरोध का SI मात्रक ओम है।
यदि किसी चालक के सिरों के बीच 1 वोल्ट विभवांतर हो तथा बहने वाली धारा का मान 1 एंपियर हो, तब चालक का प्रतिरोध एक ओम होता है।
1ओम= 1 वॉल्ट/ 1 एंपियर
एक यंत्र जिसे बिना विभव स्रोत ( वोल्टेज) बदले धारा को नियंत्रित करने के लिए प्रयोग किया जाता है, परिवर्तित प्रतिरोधक कहलाता है।
V = IR
किसी प्रतिरोधक में बहने वाली धारा प्रतिरोधक के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
प्रतिरोध, प्रतिरोधक (तार) की मोटाई के व्युत्क्रमानुपाती होती है। पतली तार का प्रतिरोध मोटी तार की अपेक्षा अधिक होता है।
प्रतिरोध, तार की लंबाई के अनुक्रमानुपाती होता है।
धारा परिवर्तक/नियंत्रक।
प्रतिरोध तापमान बढ़ने के कारण बढ़ जाता है।
इकाई अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल की चालक तार की प्रति इकाई लंबाई के प्रतिरोध को प्रतिरोधकता कहते हैं।
चांदी= 1.60 X 10-8 Ω m
धातुओं की प्रतिरोधकता कम होती है।
वे पदार्थ इन का प्रतिरोध अधिनियम ताप पर समाप्त हो जाता है, अति चालक कहलाते हैं।
वह पदार्थ जो बहुत कम आवेश/ धारा को अपने में से प्रभावित होने देते हैं, अर्धचालक कहलाते हैं।
अर्धचालकों को सौर सेलों के निर्माण, कंप्यूटर चिप, ट्रांजिस्टर आदि के निर्माण में प्रयोग किया जाता है।
तांबा तथा एल्युमीनियम।
वह पदार्थ जो अपने में से विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होने देते, उन्हें कुचालक पदार्थ कहते हैं।
उनकी उच्च प्रतिरोधकता के कारण।
उनकी न्यून प्रतिरोधकता के कारण।
जब प्रतिरोध को को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है कि पहले प्रतिरोधक का दूसरा सिरा तथा दूसरे प्रतिरोधक का पहला सिरा जुड़े हैं, तो इसे संयोजन को श्रेणी क्रम में कहते हैं।
जब पहले, दूसरे तथा तीसरे प्रतिरोधक के पहले सिरे एक स्थान पर जुड़े हो तथा दूसरे सिरे एक स्थान पर जुड़े हो, तव्य प्रतिरोध को को पार्श्व कर्म में जुड़ा हुआ कहा जाता है।
उत्पादित ऊष्मा धारा के मान तथा प्रतिरोध पर निर्भर करती है।
श्रेणी क्रम, पार्श्व कर्म,
नहीं, ऐसा नहीं है।
हमारे घरों में विद्युत उपकरणों को पार्श्वक्रम में व्यवस्थित किया जाता।
ताकि उन्हें स्वतंत्रता पूर्वक प्रयोग किया जा सके।
घरेलू परिपथ में फ्यूज को श्रेणी क्रम में जोड़ा जाता।
यदि विद्युत परिपथ विशुद्ध प्रतिरोधी हो, तो यह स्रोत विद्युत ऊर्जा को पूर्ण रूप से ऊष्मा में परिवर्तन कर देता है। इसे विद्युत धारा का तापीय प्रभाव कहते हैं।
विद्युत हिटर, विद्युत इस्त्री।
H = I2 Rt
तापीय प्रभाव, चुंबकीय प्रभाव, रासायनिक प्रभाव।
विद्युत ऊर्जा।
E = I2Rt
ऊर्जा का SI मात्रक जूल है।
विद्युत मोटर, विद्युत जनित्र।
इसके उच्च प्रतिरोध तथा अंसक्षारणीय होने के कारण।
क्योंकि नाइट्रोजन तथा आर्गन जैसी गेम्स अक्रिय है तथा वे ततू के ऑक्सीकरण को रोकती है।
यह एक कम गलनाक का तार होता है जिसे विद्युत परिपथ में उसे लघु पथन से बचाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
फ्यूज परिपथ को अति भारण तथा लघु पथन से बचाता है। आवश्यकता पड़ने पर यह गर्म होकर टूट जाता है।
5A से 15A
5A का फ्यूज प्रयुक्त होना चाहिए, क्योंकि धारा का मान (1000 W 220 V) 4.54 A है।
विद्युत बल्ब का तंतु टंगस्टन का बना होता है, जिसकी प्रतिरोधकता बहुत उच होती है। यह उच तब तक के गर्म होकर प्रकाश देने लगता है।
जब कोई विद्युत उपकरण प्रति सेकंड 1 जूल ऊर्जा खर्च करता है तो उसकी शक्ति को एक वाट कहते हैं।
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