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उत्तर प्रदेश की जलवायु, up ki jalvaayu, up mein kinti vrsha hoti hai, up mein jalvaayu ke aadhar par vargikaran, up jalwaayu ke baare mein
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उत्तर प्रदेश की जलवायु
भारतीय जलवायु के समान उत्तर प्रदेश की जलवायु, उष्णकटिबंधीय मानसूनी अर्थात समशीतोष्ण उष्णकटिबंधीय है. उत्तर प्रदेश की जलवायु में धरातलीय विषमताओ, समुंद्र से दूरी, समुद्र तल से ऊंचाई व स्थलखंड की विशालता के कारण विषमता पाई जाती है. मैदानी भाग सामान्यतया शीत ऋतु में अति ठंडे और ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक गर्म रहते हैं. सहारनपुर से देवरिया तक के क्षेत्र की जलवायु और अस्वास्थकर है. राज्य का दक्षिणी भाग पहाड़ी और पठारी है, यहां का धरातल बंजर व पथरीला है. इस भाग में गर्मियां बहुत गर्म और गाढ़े अधिक ठंडे होते हैं.
जलवायु प्रदेश
उत्तर प्रदेश के अधिकांश भाग की जलवायु सामान्यत: उपोषण कटिबंधीय स्थलीय है, वर्षा के आधार मानकर ही प्रो. केडरय व सैयद अहमद ने भारत की जलवायु को विभिन्न भागों में विभाजित किया है. उत्तर प्रदेश के जलवायु विभाग यहां भी वर्षा के वितरण के आधार पर प्रकार से विभाजित किए गए हैं.
- आर्द्र एवं उष्ण प्रदेश
- उपार्द्र एवं उष्ण प्रदेश
आर्द्र एवं उष्ण प्रदेश
बिजनौर, मुरादाबाद, बरेली, रामपुर, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी,गोंडा, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, शाहजहांपुर, सीतापुर, बाराबंकी, फैजाबाद, आजमगढ़, बलिया, गाजीपुर, जौनपुर, वाराणसी और मिर्जापुर जिले में इस प्रकार की जलवायु पाई जाती है. इस प्रदेश के इस भाग को भेज दो उप-विभागों में विभाजित किया जा सकता है-
- तराई क्षेत्र
- पूर्वी उत्तर प्रदेश
तराई क्षेत्र
बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, पीलीभीत, लखमीपुर खीरी, बहराइच, गोंडा, बस्ती, गोरखपुर और देवरिया जिले क्षेत्र में सम्मिलित है. यहां पर वार्षिक वर्षा का औसत 120 सेंटीमीटर से 150 सेंटीमीटर तक है. जनवरी माह में क्षेत्र का तापमान 18 डिग्री सेंटीग्रेड और जुलाई माह का तापमान 30 सेंटीग्रेड रहता है. हिमालय की तलहटी में स्थित होने के कारण यहां पर आए हुए दलदली क्षेत्र अधिकता से पाए जाते हैं, इस क्षेत्र में मलेरिया और फाइलेरिया आदि रोगों का प्रकोप अधिक रहता है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश
शाहजहांपुर, सीतापुर, बाराबंकी, फैजाबाद, आजमगढ़, बलिया, गाजीपुर, जौनपुर, वाराणसी, इलाहाबाद और मिर्जापुर जिले क्षेत्र में सम्मिलित है. यहाँ वार्षिक वर्षा का औसत 100 से 120 तक रहता है. क्षेत्र में वर्षा की मात्रा पूर्व से पश्चिम की ओर कम होती जाती है. वाराणसी और इलाहाबाद में वर्षा का क्रमश: 103.8 सेमी, और 96.6 सेंटीमीटर रहता है. इसका कोई प्रभाव काफी कम अथवा नहीं के समान है.
उपार्द्र एवं उष्ण प्रदेश
सामान्यत: उत्तर प्रदेश के मध्यवर्ती मैदान,पश्चिमी मैदान और बुंदेलखंड के पहाड़ी और पठारी क्षेत्र में वर्षा 50 से 100 सेंटीमीटर के मध्य होती है. क्षेत्र को वर्षा की समानता के आधार पर तीन उप- विभागों में विभाजित किया जा सकता है-
- मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्र
- पश्चिमी मैदानी क्षेत्र
- बुंदेलखंड का पहाड़ी व पठारी क्षेत्र
मध्यवर्ती मैदानी क्षेत्र
इस क्षेत्र में शाहजहांपुर, फर्रुखाबाद, हरदोई, का, उन्नाव, लखनऊ, सुल्तानपुर, रायबरेली, फतेह, प्रताप और इलाहाबाद आदि जिले सम्मिलित है. ग्रीष्म ऋतु में क्षेत्र में कड़ी गर्मी पड़ती है तथा तापमान 44 डिग्री सेंटीग्रेड के आसपास रहता है. ग्रीष्म ऋतु में तेज हवाएं अर्थात लू चलती है. शीत ऋतु शुष्क एवं ठंडी रहती है. जनवरी का औसत तापमान यहां 15 से 16 सेंटीग्रेड तक रहता है, जबकि कानपुर, फर्रुखाबाद, और इटावा की वर्षा का औसत 85 सेंटीमीटर से 79.2 में 18.2 सेंटीमीटर है.
पश्चिमी मैदानी क्षेत्र
इस क्षेत्र में सहारनपुर, मुजफ्फरपुर, मेरठ, गाजियाबाद, मुरादाबाद का दक्षिणी पश्चिमी भाग, बुलंदशहर, बंदायु, अलीगढ़, एंटा, मथुरा, आगरा, मैनपुरी आदि जिले सम्मिलित है. क्षेत्र में शीत ऋतु में तापमान 12 से 14 डिग्री सेंटीग्रेड तक रहता है. इस क्षेत्र में चक्रवात द्वारा शीतकाल में वर्षा भी हो जाती है. क्षेत्र के उत्तरी भाग में ग्रीष्म ऋतु का तापमान कम रहता है और दक्षिणी भाग में तापमान अधिक पाया जाता है.
पर्वतीय क्षेत्र के निकटतम भागों में वर्षा अधिक और दक्षिण-पश्चिम भागों में कम होती है. वर्षा का औसत आगरा में 65 सेंटीमीटर और मेरठ में 80 सेंटीमीटर वार्षिक होता है.
बुंदेलखंड का पहाड़ी में पठारी क्षेत्र
इसमें इटावा का दक्षिणी भाग, जालौन, हमीरपुर, बांदा, झांसी और ललितपुर जिले क्षेत्र में सम्मिलित हैं. क्षेत्र का शीत ऋतु में तापमान 18 डिग्री सेंटीग्रेड और 19 डिग्री सेंटीग्रेड रहता है तथा ग्रीष्म ऋतु में तापमान 40 से 45 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है. 1987 में बांदा का उच्चतम तापमान 49 डिग्री रिकॉर्ड किया गया था. पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है.
राज्य की ऋतुएँ
तापमान एवं वर्षा के आधार पर राज्य में तीन प्रकार की ऋतू पाई जाती हैं-
- शीत ऋतु नवंबर से फरवरी तक
- ग्रीष्म ऋतु मार्च से मध्य जून तक
- वर्षा ऋतु मध्य से जून अक्टूबर तक
शीत ऋतु
नवंबर माह से शीत ऋतु का शुभारंभ होता है, जब संपूर्ण पश्चिमोत्तर भारत उच्च-भार की पेटी के प्रभाव में आ जाता है. इस भाग में नवंबर से जनवरी तक तापमान निरंतर गिरता जाता है तथा जनवरी में सर्वाधिक ठंड पड़ती है. स्वच्छ आकाश, सुहावना मौसम, निम्न ताप एवं आर्द्रता, अधिक मौसमी तापांतर तथा मध्य चलने वाली उत्तर उत्तर पश्चिम नेतृत्व की प्रमुख विशेषताएं हैं.
उत्तर प्रदेश में उत्तर से दक्षिण की ओर शीत ऋतु में तापमान बढ़ता है. शीत ऋतु में प्रदेश के दक्षिणी पहाड़ी एवं पठारी भाग में सर्वाधिक और अधिकतम तापमान 28.3 डिग्री सेंटीग्रेड और औसत न्यूनतम तापमान 13.3 डिग्री सेंटीग्रेड रहता है. प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र और पश्चिमी मैदानी भागों में तापमान सबसे कम (10 डिग्री सेंटीग्रेड) रहता है. मध्य मैदानी क्षेत्र में औसत अधिकतम तापमान 27.2 सेंटीग्रेड और औसत न्यूनतम तापमान 11.7 सेंटीग्रेड रहता है. सर्वाधिक तापमान (16 डिग्री सेंटीग्रेड) पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में (16० सेंटीग्रेड) और पूर्वी मैदान क्षेत्र में तापांतर सबसे कम (14.4 सेंटीग्रेड) रहता है. फरवरी में तापमान में वृद्धि होती है.
इस ऋतु में चलने वाली हवाएं स्थल से चलती है, अत: शुष्क होती है. इन हवाओं से वर्षा प्राप्त नहीं होती है. कभी-कभी दिसंबर और जनवरी माह में शर्दी पड़ती है तथा सर्वोदय के पूर्व और बाद में दो-तीन घंटे घना कोहरा छा जाता है. पर्वतीय क्षेत्र में हिमपात भी होता है.
भू-मध्य सागरीय क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाली चक्रवात जनवरी और फरवरी महीनों में ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान तथा तथा पंजाब व हरियाणा होते हुए पश्चिम उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर मौसम में आकस्मिक परिवर्तन ला देते हैं. कभी-कभी फारस की खाड़ी तथा अरब सागर से होती हुई इन चक्रवातों की एक शाखा यहां तक पहुंचती है. इसके द्वारा 10 सेंटीमीटर तक वर्षा हो जाती है. यह वर्षा रवि की फसल के लिए विशेष लाभप्रद है. इस ऋतु में आने वाले चक्रवात की संख्या 3 से 5 तक होती है. कभी-कभी इनके साथ ओलावृष्टि भी होती है.
इस क्षेत्र में उत्तरी व पश्चिम क्षेत्र में शीतकालीन चक्रवात द्वारा 7 से 10 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है. उत्तर प्रदेश में सबसे कम वर्षा व दक्षिणी पठार प्रदेश के झांसी, जालौन, हमीरपुर, बांदा और ललितपुर जिले में (5 से 7.5 सेंटीमीटर तक) होती है. मैदानी क्षेत्र में वर्षा की मात्रा 7.5 से 10 सेंटीमीटर तक रिकॉर्ड की जाती है.
ग्रीष्म ऋतु
उत्तर प्रदेश में मार्च से प्रारंभ होकर मध्य जून ग्रीष्म ऋतु रहती है. मार्च में निरंतर तापमान में वृद्धि होती है, तथा मई में तापमान सर्वाधिक हो जाता है. मई जून माह में भयंकर एवं असहनीय झुलसा देने वाली गर्मी पड़ती है. मई की भांति जून में भी तापमान उच्च ही रहता है.
इस ऋतु में प्रदेश में और अधिकतम तापमान 36 डिग्री से 39 डिग्री तक और औसत न्यूनतम तापमान 21 डिग्री सेंटीग्रेड तक रहता है. कई नगरों में तापमान 40 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है. कानपुर, इलाहाबाद, लखनऊ, आगरा, उरई आदि प्रमुख है. सर्वाधिक उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में पाया जाता है, क्योंकि क्षेत्र कर्क रेखा के निकट स्थित है. उत्तर प्रदेश में तापमान कम पाया जाता है. लगभग सभी क्षेत्रों में तापमान 14 डिग्री तक रहता है.
उत्तर प्रदेश में मई माह में तापमान अधिक होने के कारण वायुभर कम हो जाता है. उसी समय उत्तर पश्चिम भारत निम्नतम वायुभार की पेटी उत्तर प्रदेश के समीप स्थित होती है. वायुभार के निरंतर गति से कम होने के फलस्वरूप हवाएं तीव्र गति से चलने लगती है. ग्रीष्म ऋतु में विशेष रूप से मई और जून में पश्चिम तीव्र गति से चलती है, इन्हें लू कहते हैं. लू प्राय: शाम 5 बजे तक चलती है. यह अत्यंत शुष्क, गर्म होती हैं.
कभी कभी इन शुष्क हवाओं में सामुद्रीक हवाएं मिल जाती है, जिसके कारण 100 से 115 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से चलने वाले तूफान और आंधीया जन्म ले लेती है. यह धूल भरी होती है. इन का वेग इतना अधिक होता है कि इनके द्वारा वृक्ष तक उखड़ जाते हैं.
ग्रीष्म ऋतु में वर्षा नहीं के बराबर होती है. कभी-कभी शुष्क एवं आर्द्र हवाएं के मिलने के फलस्वरूप अप्रैल, अप्रैल-मई, जून में मैदानी क्षेत्रों में वर्षा होती है, जिससे झुलसाने आने वाली गर्मी में त्वचा से राहत मिलती है. कभी-कभी ग्रीष्मकालीन वर्षा के साथ साथ ओले भी आ जाते हैं. वर्षा का औसत सेंटीमीटर तक रहता है. वर्षा की सर्वाधिक मात्रा में दानी और बुंदेलखंड क्षेत्र में पाई जाती है.
वर्षा ऋतु
उत्तर प्रदेश में वर्षा ऋतु का प्रारम्भ जून के तृतीय या चतुर्थ सप्ताह से होता है, जब दक्षिण पश्चिम मानसून का प्रवेश होता है. बिहार राज्य के मैदानी भागों से होता हुआ बंगाल की खाड़ी का मानसून उत्तर प्रदेश के पूर्वी भागों में प्रवेश करता है. इसे पूर्वा कहते हैं. जून के अंतिम सप्ताह में प्रथम मानसूनी वर्षा होती है.
सर्वाधिक वर्षा जुलाई तथा अगस्त माह में होती है. जुलाई और अगस्त माह का तापमान वर्षा के कारण जून की अपेक्षा काफी कम हो जाता है. जिन दिनों वर्षा नहीं होती है और आकाश स्वस्थ रहता है, तापमान काफी बढ़ जाता है. लेकिन वर्षा के कारण तापमान मई-जून में कम ही रहता है. सितंबर में वर्षा की मात्रा में निरंतर कमी होती जाती है तथा वर्षा के दिनों में मध्यावधि भी बढ़ती जाती है इसलिए सितंबर माह में तापमान अधिक हो जाता है. प्रदेश में औसत उच्चतम तापमान 32 डिग्री सेंटीग्रेड से 34 डिग्री सेंटीग्रेड तक, औसत न्यूनतम तापमान 25 डिग्री सेंटीग्रेड और तापांतर 7 डिग्री से 8 डिग्री सेंटीग्रेड तक पाया जाता है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस ऋतु में तापमान कुछ अधिक पाया जाता है.
उत्तर प्रदेश में वर्षा का वितरण बड़ा ही असमान है. हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में औसत वर्षा 170 सेंटीमीटर, पूर्वी मैदानी क्षेत्र में 112 सेंटीमीटर, मध्यवर्ती मैदान क्षेत्र में 94 सेंटीमीटर, पश्चिमी मैदानी क्षेत्र में 84 सेंटीमीटर और दक्षिणी पहाड़ी एवं पठारी क्षेत्र में 91 सेंटीमीटर रिकॉर्ड की जाती है. इसका कारण वर्षा का मानसून पर निर्भर होना है, क्योंकि यह हवा हिमालय पर्वत के साथ साथ चलती है इसलिए हिमालय पर्वत के निकट स्थित स्थान पर अपेक्षाकृत अधिक वर्षा होती है, जबकि जो स्थान हिमालय से दूर स्थित है उन स्थानों पर वर्षा कम होती है, साथ ही जैसे जैसे यह मानसून प्रदेश के पश्चिमी भाग की ओर चलता है वर्षा की मात्रा कम हो जाती है, क्योंकि यह नमी वाले स्रोतों से दूर होता जाता है.
प्रदेश में मानसून द्वारा वर्षा विश्वासजनक नहीं होती है. कई क्षेत्रों में किसी वर्ष इतनी अधिक वर्षा होती है कि भयंकर बाढ़ आ जाती है और कभी-कभी इतनी कम वर्षा होती है कि खरीफ की फसल खेती बर्बाद हो जाती है. प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा यह अनियमितता भिन्न भिन्न है. उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिला बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, जौनपुर आजमगढ़ में वार्षिक अनियमितता 16-17 प्रतिशत, मध्यवर्ती उत्तर प्रदेश में 18-20% है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 20-22% व दक्षिणी के पहाड़ी का पठारी प्रदेश में 23-24% है.
प्रदेश में वर्षा का स्वरूप मुख्य रूप से मानसूनी है लेकिन यह पर्वतीय, चक्रवर्ती एवं सामान्य रूप से होती है. जब मानसूनी हवाएं हिमालय पर्वत को पार करने के प्रयास में ऊपर उठती है, और शीतल होकर प्रदेश में वर्षा कर देती है इस समय पर्वतीय वर्षा होती है. जबकि चक्रवात अथवा तूफानों के कारण चक्रवाती वर्षा होती है. स्थानीय तापान्तर के कारण यह चक्रवात उत्पन्न होते हैं तथा दल के केंद्रीय भूतल वर्षा के रूप में बरस पड़ते हैं, प्रदेश में स्थानीय रूप में उत्पन्न गर्मी के कारण सामान्य वर्षा होती है, जो कि मुख्य तत्व पतझड़ ऋतु में होती है. प्रदेश में जलवायु संबंधी दशाएं एवं एक समान नहीं पाई जाती है. इनमें अचानक काफी परिवर्तन हो जाते हैं. मौसम की प्रतिकूलता का प्रभाव अतिवृष्टि, अनावृष्टि, चक्रवात, ओले, ठंडी वायु की लहरें, गर्म वायु की लहरें अथवा लू, एवं तेज पवनों के रूप में दिखाई पड़ता है.
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