आज इस आर्टिकल में हम आपको किसान आन्दोलन का इतिहास के बारे में बताने जा रहे है.
चंपारण सत्याग्रह की सफलता ने छपरा (सारण) के विभूशरण प्रसाद एवं अन्य किसानों को भी शोषण और अत्याचार के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा दी. जून 1919 ई. में मधुबनी जिला के किसानो को दरभंगा राज के विरुद्ध आंदोलन के लिए स्वामी विद्यानंद के नाम से विख्यात विभूशरण प्रसाद ने संगठित किया. लगान वसूली के क्रम में राज के गुमाशतों के अत्याचार के विरोध और जंगल से फल और लकड़ी प्राप्त करने के अधिकार की प्रस्तुति इस आंदोलन की मुख्य विशेषता थी.
आंदोलन का विस्तार धीरे-धीरे पूर्णिया, सहरसा, भागलपुर, और मुंगेर जिला तक हो गया. महाराजा दरभंगा ने आंदोलन का प्रभाव नष्ट करने के लिए एक प्रांतीय सभा का गठन 1922 ई. में कराया. कालांतर में महाराजा ने किसानों की कुछ मांगें स्वीकार कर ली और आंदोलन शिथिल पड़ गया.
1922-23 ई. में मुंगेर में किसान सभा का गठन सहाय मोहम्मद जुबेर और श्रीकृष्ण सिंह द्वारा किया गया. 4 मार्च, 1928 ई. को बिहटा (पटना) में स्वामी सहजानंद सरस्वती ने किसान सभा की औपचारिक स्थापना की तथा 1929 में सोनपुर मेला में आयोजित सभा में बिहार प्रांतीय किसान सभा की स्थापना की गई तथा स्वामी सहजानंद इसके अध्यक्ष एवं श्री कृष्ण सिंह इसके सचिव बने.
इसे बिहार के गांवों में फैलाने में उन्हें कार्यानंद शर्मा, राहुल सांकृत्यायन, पंचानन शर्मा, यदुनंदन शर्मा आदि वामपंथी नेताओं का सहयोग मिला. 1935 ई. में किसान सभा में जमीदारी अनुमुलन का प्रस्ताव पास किया.
कार्यानंद शर्मा के नेतृत्व में मुंगेर जिले में बडहीया ताल या बकाशत आंदोलन चला. 1936 ई. में लखनऊ में स्वामी सहजानंद की अध्यक्षता में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हुआ. प्रो. एन जी रंगा को इसका सचिव बनाया गया.
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