आज इस आर्टिकल में हम आपको स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार की महिलाओं का योगदान के बारे में बताने जा रहे है.
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स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार की महिलाओं का योगदान
सन 1917 ई. में बिहार में महात्मा गाँधी के पदार्पण के साथ ही आंदोलन में महिलाओं का झुकाव बढ़ गया. 1919 तक कस्तुरुबा गाँधी, श्रीमती सरला देवी, प्रभावती जी, राजवंशी देवी, सुनीता देवी, राधिका देवी, और वीरांगना महिलाओं की प्रेरणा से सम्पूर्ण बिहार की महिलाओं में आजादी के प्रति रुझान बढ़ गया,
सरला देवी ने 1921 में बिहार आहांन किया. श्रीमती सावत्री देवी, ने प्रिंस ऑफ़ वेल्स के भारत आगमन के दौरान होने वाला समारोहों के बहिष्कार आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया. पटना की श्रीमती सी. सी. दास, और श्रीमती उर्मिला देवी, ने स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में चरखा एवं अन्य स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार में भाग लिया.
1921 ई. में देशबंधु कोष के लिए जब गांधी जी ने बिहार का भ्रमण किया तो यहां की महिलाओं ने अपने आभूषण तक को दान में दिया. इस कार्य में महात्मा गांधी के साथ श्रीमती प्रभावती देवी (जयप्रकाश नारायण की पत्नी) ने महत्वपूर्ण योगदान दिया.
सन 1921 ई. के नमक आंदोलन में भी बिहार की महिलाओं ने बड़े जोश- खरोस के साथ भाग लिया. श्रीमती शैलबाला राय के उत्तेजक भाषण से प्रभावित होकर संथाल परगना की महिलाओं के नमक कानून को भंग किया. शाहाबाद जिले के श्री राम बहादुर बार-एट- ला की पत्नी ने सासाराम थाने के समक्ष नमक बनाकर नमक कानून का उल्लंघन किया.
हजारीबाग की श्रीमती सरस्वती देवी तथा श्रीमती साधना देवी को नमक कानून के उल्लंघन के लिए छह माह की सजा भी मिली. गिरिडीह है कि श्रीमती मीरा देवी को भी गिरफ्तार किया गया.
पटना में श्रीमती हसन इमाम तथा श्रीमती विंध्यवासिनी देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने विदेशी वस्त्रों के दुकानों के सामने धरना प्रदर्शन को सफल बनाया. पटना के तत्कालीन कलेक्टर को इन महिलाओं से मुकाबला करने के लिए भारी संख्या में महिला पुलिस बल की बहाली करनी पड़ी. मूंगेर की श्रीमती शाह मोहम्मद जुबेर एक बड़े घराने की मुस्लिम महिला थी, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया.
संथाल परगना जिले में श्रीमती साधना देवी के नेतृत्व संभाल कर रखा था. 23 मार्च 1931 को सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को दिए गए मृत्युदंड के के विरोध में आरा में एक विराट सभा का आयोजन हुआ, जिस की अध्यक्षा श्रीमती कुसुम कुमारी देवी ने की. 4 जनवरी 1933 को गांधीजी एवं अन्य नेताओं को गिरफ्तार किया गया तब भी बिहार में हड़ताल और प्रदर्शनों का सिलसिला चलता रहा.
4 जनवरी, 1933 को बिहार में गांधीजी की गिरफ्तारी दिवस मनाया गया. 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाने के आरोप में पटना में डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की पत्नी श्रीमती राजवंशी देवी तथा डिक्टेटर चंद्रावती देवी सहित साथ महिलाओं को गिरफ्तार किया गया. श्रीमती राजू जी देवी तथा चंद्रावती देवी को डेढ वर्ष कारावास का दंड भी मिला.
1941 में महात्मा गांधी ने जब संप्रदाय के तत्वों के विरोध सत्याग्रह किया तो इसके समर्थन में बिहार की महिलाओं ने भी सत्याग्रह किया. बिहार के खादी आंदोलन में महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. सरला देवी, सावित्री देवी, लीला सिंह, श्रीमती शफी, शारदा कुमारी, विंध्यवासिनी देवी, प्रियबंदा देवी, भगवती देवी जैसे महिलाओं ने इस आंदोलन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बिहार की महिलाओं, विशेषकर चरखा समिति की सदस्यों, ने अगस्त क्रांति की ज्वाला को धधकाने और उसे व्यापक बनाने की भरपूर कोशिश की. 9 अगस्त, 1942 को पटना में प्रसाद की बहन श्रीमती भगवती देवी के नेतृत्व में महिलाओं का एक विशाल जुलूस निकाला.
हजारीबाग में महिलाओं का नेतृत्व श्रीमती सरस्वती देवी कर रही थी, जिन्हें गिरफ्तार किया गया. लेकिन जब श्रीमती सरस्वती देवी को हजारीबाग से भागलपुर जेल ले जाया जा रहा था तो विद्यार्थियों के एक जत्था ने धावा बोलकर उन्हें छुड़ा लिया. फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
भागलपुर जिले में आंदोलन का नेतृत्व श्रीमती माया देवी कर रही थी. गोविंदपुर गांव के श्री नरसिंह गोप की पत्नी जिरियावती ने 16 अंग्रेज सिपाहियों को गोली मार दी. छपरा में 19 अगस्त, 1942 को हुई एक विशाल जनसभा की अध्यक्षता शांति देवी ने की.
छपरा जिले के दिघवारा प्रखंड पर तिरंगा झंडा फहराने के आरोप में मलखाचक के स्वर्गीय राम विनोद सिंह की दो पुत्रियां शारदा एवं सरस्वती को 14 और 11 वर्ष की सजा दी गई. संथाल परगना के हरिहर मिर्धा की पत्नी बीरजी देवी की पुलिस ने हत्या कर दी.
गया जिले की प्यारी देवी को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया. वैशाली जिले के किशोरी प्रसन सिंह की पत्नी सुनीति देवी एवं बैकुंठ शुक्ल की पत्नी राधिका देवी ने पुरुष के वेश में साइकिल पर भ्रमण करके जन जागरण किया.
वैशाली की ही श्रीमती विंदा देवी, शहीद फुलेना प्रसाद की पत्नी तारा देवी, मुजफ्फरपुर की भवानी मेहरोत्रा, भागलपुर की रामस्वरूप देवी, कुमारी धतूत्री देवी, जिरिया देवी, मुंगेर की संपत्तिया देवी, शाहाबाद की फूई कुमारी, पटना की सुधा कुमारी शर्मा आदि महिलाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय योगदान दिया,
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अनेक महिलाएं पुलिस की गोली से शहीद भी हुई, जिनमें प्रमुख है- छोड़मारा गांव की श्रीमती विराजी मधीयाइन, शाहाबाद के गांव लासाढी के शिव गोपाल दूषाद की पत्नी अकेली देवी, मुंगेर के गांव रोहियार की कुंवारी धतूरी देवी आदि. बिहार की अन्य अज्ञात महिला नेत्री थी- शारदा देवी एवं श्रीमती पुष्पा रानी मुखर्जी.