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बिहार राज्य का नाम कैसे पड़ा
इस क्षेत्र के नामकरण के रूप में बिहार शब्द सर्वप्रथम मिनहास-उस-सिरजा द्वारा तेरहवीं शताब्दी (सन 1203 ई. के लगभग) में रचित तबकात-ए-नासीरी में प्रयुक्त हुआ है.
1390 ईसवी में विद्यापति रचित कीर्तिलता में भी बिहार शब्द का उल्लेख मिलता है. मध्यकाल में नालंदा और ओदंतपुरी के निकट स्थित अनेक बौद्ध विहारों को देखकर संभवत: मुसलमान शासकों ने इस प्रदेश का नाम बिहार रख दिया. तुगलकों के समय में बिहारशरीफ का तथा शेरशाह के समय सासाराम और पटना सहित पूरे बिहार को ख्याति मिली.
1580 ईसवी में अकबर ने इसे एक प्रांत के रूप में संगठित किया. औरंगजेब की मृत्यु के बाद 18वीं शताब्दी में यह क्षेत्र बंगाल के नवाब के अधीन आ गया. 1733 में बंगाल के नवाब शुजाउददीन ने बिहार को बंगाल सुबे का हिस्सा बना लिया. तत्पश्चात यह क्षेत्र बंगाल प्रांत का अंग बना रहा.
1774 ई. में रेगुलेटिंग एक्ट द्वारा बिहार के लिए एक प्रांतीय सभा का गठन किया गया. 1835 ई. में पटना और गया के जिले अलग अलग संगठित किए गए. डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा, महेश नारायण, नंदकिशोर लाल तथा श्री कृष्ण सहाय (इन चारों) ने मिलकर जनवरी 1894 में पटना से बिहार टाइम्स या बिहारी समाचार पत्र निकालना प्रारंभ किया.
महेश नारायण या बाबू महेश्वर प्रसाद के संपादन में प्रकाशित समाचार पत्र के माध्यम से बिहार पर्थिकीकरण आंदोलन अपनी जड़ें जमाने लगा. 1905 ई. में बंगाल विभाजन का प्रस्ताव लार्ड कर्जन ने किया, जिसके अंतर्गत हिंदू बाहुल्य क्षेत्र पश्चिमी बंगाल एवं मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र पूर्वी बंगाल का गठन होना था. इस प्रस्ताव का राष्ट्रवादी होने विरोध किया.
1906 ई. में राजेंद्र बाबू, जो उन दिनों कोलकाता के बिहारी क्लब के मंत्री थे, ने डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा, श्री महेश नारायण तथा अन्य नेताओं से विचार-विमर्श के प्रसाद पटना में एक विशाल बिहारी छात्र सम्मेलन करवाया, जिसमें छात्रों की एक स्थाई समिति बनाई गई. इससे बिहार पृथक्करण आंदोलन का पर्याप्त बल मिलने लगा.
1908 ई. में बिहार प्रादेशिक सम्मेलन का पहला अधिवेशन पटना में हुआ. इस अधिवेशन में मोहम्मद फखरुद्दीन ने बिहार को बंगाल से पृथक कर एक नए प्रांत के रूप में संगठित करने का प्रस्ताव रखा, जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया. 1908 ई. में ही नवाब सरफराज हुसैन खा की अध्यक्षता में आयोजित सभा में बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ. तदोपरांत हसन इमाम बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पहले अध्यक्ष चुने गए. 1909 ई. में बिहार प्रादेशिक सम्मेलन का दूसरा अधिवेशन भागलपुर में संपन्न हुआ. इसमें भी बिहार को अलग करने की जोरदार मांग की गई.
1911 में बिहार बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा था. 1911 ई. में केंद्रीय विधान परिषद में सच्चिदानंद सिन्हा और मोहम्मद अली ने बंगाल से बिहार के विभाजन का प्रस्ताव पेश किया. 12 दिसंबर 1911 ई. को दिल्ली में आयोजित शाही दरबार में बिहार और उड़ीसा के क्षेत्रों के बंगाल प्रेसीडेंसी से पृथक एक नए प्रांत के रूप में संगठित करने की घोषणा सम्राट जॉर्ज पंचम की उपस्थिति में गवर्नर जनरल लार्ड होर्डिंज द्वारा की गई.
इस घोषणा के अनुसार 1 अप्रैल, 1912 ई.को बंगाल से 3करोड़ 50 लाख की जनसंख्या वाला 1 लाख 13 हजार वर्ग मील क्षेत्र अलग कर बिहार (उड़ीसा सहित) का नए प्रांत के रूप में विधिवत उद्घाटन हुआ तथा पटना को इसकी राजधानी बनाया गया.
बिहार को पृथक राज्य बनाने की मुहिम का नेतृत्व डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा और महेश नारायण ने किया था, अत: बिहार को स्थापित को दिया जाता है. 20 जनवरी 1913 ई. को बिहार उड़ीसा के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने नवगठित काउंसलिंग की प्रथम बैठक बांकीपुर पटना में हुई, जिसकी अध्यक्षता बिहार उड़ीसा के लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल स्टुअर्ट बेली ने की.
1916 में पटना उच्च न्यायालय और 1917 में पटना विश्वविद्यालय की भी स्थापना हुई. पटना में एक नए भवन (वर्तमान विधानसभा भवन) का निर्माण किया गया जिसमें 7 फरवरी, 1921 ई. को बिहार एवं उड़ीसा लेजिस्लेटिव काउंसलिंग की प्रथम बैठक हुई, जिसकी अध्यक्षता से मुड़ी ने की.
1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पारित होने के बाद 1 अप्रैल, 1936 ई. को बिहार से अलग उड़ीसा प्रांत का गठन किया गया तथा पुराने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट- 1919 के एक सदनी विधानमंडल की जगह नए कानून के अनुसार द्विसदनी विधानमंडल स्थापित किया गया 1947 ई. में खरसावाँ और सरायकेला के क्षेत्र उड़ीसा को हस्तांतरित किए गए, किंतु 18 मई, 19 को इन्हें पुन: बिहार में सम्मिलित किया गया.
भाषा के आधार पर राज्य के पुनर्गठन के आलोक में 1956 ई. में बिहार विधानसभा की सीटों में परिवर्तन हुआ. बिहार तथा पश्चिम बंगाल (क्षेत्रों का अंतरण) अधिनियम, 1956 के अधिनियम के परिणाम स्वरुप 1 नवंबर, 1956 ई. को बिहार की कुल 166 वर्ग मील भूमि, 14,45,323 की आबादी के साथ पश्चिम बंगाल का अंग हो गई, जिसके कारण बिहार विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या 331 से घटकर 316 हो गई. 1956 ई. में राज्यों के पुनर्गठन के क्रम में पुरुलिया एवं पूर्णिया जिला के कुछ क्षेत्र पश्चिम बंगाल को हस्तांतरित किए गए.
15 नवंबर 2000 को बिहार के दक्षिणी भाग (18 जिलों) को अलग अलग झारखंड नामक एक अलग राज्य का गठन हुआ. इस विभाजन से पूर्व बिहार में 13 प्रमंडल और 55 जिले थे, जबकि विभाजन के पश्चात बिहार में 9 प्रमंडल और 37 जिले रह गए. 2001 में अरवल जिला के निर्माण के बाद बिहार में जिलों की संख्या 38 हो गई.