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विद्युत मोटर की रचना तथा कार्य प्रणाली
विद्युत मोटर एक ऐसी युक्ति है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित कर देती है।
विद्युत मोटर की रचना
आर्मेचर- यह एक आयताकार कुंडली होती है जो तांबे की रोधी तार से बनी होती है। कुंडली चुंबकीय क्षेत्र के दो धुर्वों के बीच इस प्रकार स्थित होती है की भुजा एक दुसरे के क्षेत्र की दिशा के लंबवत हो।
स्थाई चुंबकीय- आर्मेचर कुंडली एक प्रबल स्थाई चुंबक के दो ध्रुवों (उत्तर दक्षिण) के बीच स्थित होती है। चुंबक एक प्रबल चुंबकीय क्षेत्र उपलब्ध करवाता है।
विभक्त वलय- कुंडली के दोनों सिरे विभक्त वलय के दो अर्थ भागों P तथा Q संयोजित होते हैं। इन अर्ध भागों की भीतरी सतह विद्युत रोधी होती है तथा धुरी से जुड़ी होती है। P तथा Q के बाहरी चालक सिरे क्रमश दो स्थिर चालकों ब्रुशो X तथा Y से स्पर्श करते हैं।
ब्रुश- दो कार्बन ब्रश X तथा Y है जो स्थिर है। यह विभक्त वलय के बाहरी चालक सिरे P तथा Q के संपर्क में रहते हैं।
बैटरी- यह कुंडली के लिए धारा का स्रोत होती है तथा दोनों ब्रुशो X तथा Y से जुड़ी होती है।
विद्युत मोटर की कार्य प्रणाली
विद्युत मोटर की रचना तथा कार्य प्रणाली:- जैसे ही हम स्विच ऑन करते हैं ( मोटर को चालू करते हैं) तो X ब्रुश कुंडली ABCD में बैटरी (स्रोत) से प्रवेश करती है तथा ब्रुश में से बाहर आती है। कुंडली की भुजा AB में धारा A से B की ओर बहती है तथा पूजा CD में धारा C से D की ओर बहती है। इसलिए कुंडली के दोनों भुजाओं में धारा विपरीत दिशा में बहती है।
फ्लेमिंग के वाम हस्त नियम (LHR) को लागू करते हुए भुजा AB पर आरोपित बल इसे ऊपर की ओर धकेल का है। जबकि बल भुजा CD को नीचे की ओर धकेलता है। इस प्रकार किसी अक्ष पर घूमने के लिए स्वतंत्र कुंडली तथा धुरी वामावर्त पूर्ण करते हैं। आधे घूर्णन मे Q का सम्पर्क ब्रुश X से होता है तथा P का सम्पर्क Y से होता है। अत: कुंडली में विधुत धारा उत्क्रमित होकर पथ DCBA के अनुदेशित प्र्वाहित होती है।
विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिक् परिवर्तक का कार्य करता है। विद्युत धारा के उत्क्रमित होने पर दोनों भुजाओं AB तथा CD पर आरोपित बलों की दिशाएं भी उत्क्रमित हो जाती है। इस प्रकार कुंडली की भुजा AB जो पहले अधोमुखी धकेली गई थी। अब उपरिमुखी धकेली जाती है तथा कुंडली की भुजा CD जो पहले ऊपर मुख्य खेली गई, अधोमुखी धकेली जाती है। अत: कुंडली तथा दूरी उसी दिशा में अब आधा और धुर्णन पूरा कर लेती है। प्रत्येक आदि घूर्णन के बाद विद्युत धारा के उत्क्रमित होने का क्रम दोहराया जाता है। जिसके फलस्वरूप कुंडली तथा दूरी का निरंतर घूर्णन होता रहता है।
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