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कृषि विज्ञान से सम्बन्धित जानकारी

भारत में लगभग 50% जनसँख्या कृषि करती है और भारत को कृषि प्रधान भी माना जाता है. आज इस आर्टिकल में हम आपको कृषि विज्ञान और इसकी शाखाओं के बारे में बताने जा रहे है.

कृषि विज्ञान
कृषि विज्ञान

कृषि विज्ञान (Agriculture Science)

भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहाँ की लगभग 50% जनसंख्या कृषि व उससें सम्बद्ध कार्यो में लगी है.

कृषि विज्ञान के जनक डॉ अनुज प्रताप सिंह है.

भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् (Indian Council Of Agricultural Research, ICAR) कृषि, पशुपालन एंव मत्स्य पालन के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर की एक स्वायत सर्वोच्च संस्था है, जिसका प्रमुख कार्य इन क्षेत्रों में अनुसंधान करना, योजना बनाना एंव उन्हें खेतो तक क्रियान्वित कराना तथा प्राथमिक कृषि प्रसार शिक्षा की व्यवस्था करने में विज्ञान एंव कृषि प्रोघौगिकी कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देना है.

शस्य विज्ञान (Agronomy), कृषि की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जो फसल उत्पादन एंव भूमि प्रबन्धन से सम्बन्धित है.

तीन प्रकार की फसलों में अंतर

विशेषता खरीफ रबी जायदा
समय मध्य जून-जुलाई से अक्टूबर-नवम्बर अक्टूबर-नवम्बर से मार्च-अप्रैल अप्रैल-मई से जून जुलाई
वातावरण अधिक ताप एंव आर्द्रता (बोते समय) अधिक ताप तथा शुष्क (काटते  समय) कम तापक्रम व आर्द्रता (बोते समय) शुष्क एंव गर्म वातावरण (पकते समय) शुष्क एंव गर्म वातावरण
उदाहरण धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंगफली, अरहर, मूंग, कपास, सोयाबीन, आदि गेंहू, चना, मटर, बरसीम, आलू, तम्बाकू, आदि कद्दू वर्गीय अरहर, मूंग, उड़द, लोबिया, टमाटर आदि
  • फसल चक्र (Crop Rotation) किसी निशिचत समय में, निशिचत क्षेत्र पर तथा निशिचत क्रम में फसलों को उगाना ही फसल चक्र कहलाता है.
  • सघन खेती (Intensive Cropping) कृषि उत्पादन हेतु उपलब्ध किसी साधन स्तर पर वर्ष में खेत में अधिक-से-अधिक फसलें उगाना सघन खेती कहलाती है.
  • जीरो टिलेज प्रणाली (Zero Tillage System) में फसल को काटने के बाद अवशेष खेत में ही छोड़ दिया जाता है. इससे जहाँ उर्वरक की बचत होती है, वही खेत को बार-बार जोतने की आवश्यकता नहीं पड़ती है.

बीज विज्ञान (Seed Science)

फसल का उचित पादप घनत्व प्राप्त करने हेतु रोग, कीट एंव यांत्रिक क्षति से मुक्त लैंगिक अथवा वानस्पतिक सामग्री, जो फसल बोने अथवा रोकने के लिए प्रयोग की जाती है, बीज विज्ञान कहलाती है.

बीजों के सन्दर्भ में भारत सरकार ने वर्ष 1966 में भारतीय बीज अधिनियम (Indian Seed Act, ISA) स्वीकृत किया, जो 1 अक्टूबर, 1969 से लागू हो गया

संकर बीज (Hybrid Seed)

इसके अन्तर्गत पहली पीढ़ी के जो बीज प्राप्त किए जाते है, वह दो या अधिक स्वपरागित फसलों या शुद्ध वंशक्रमों के संकरण से प्राप्त होते है.

इन बीजों को प्रत्येक साल परिवर्तित करना पड़ता है.

पारजीनी बीज (Transgenic Seed)

जब किसी बीज के प्राकृतिक जीन में कृत्रिम उपायों द्वारा किसी दूसरे पौधे या जंतु के जीन का कोई भाग जोड़ दिया जाता है, जिसका उद्देश्य पौधों में किसी विशिष्ट गुण या क्षमता का विकास करना होता है.

टर्मिनेटर बीज (Terminator Seed)

यह वह बीज होता है, जिसे एक बार फसल लेने बाद अगली फसल के लिए किसानों को पुन: नया बीज खरीदना पड़ता है अर्थात् इस बीज से उत्पन्न पौधे तथा उस पौधे से उत्पन्न बीज को बीज के रूप में दोबारा प्रयोग में नहीं लाया जा सकता है.

पादप जनन (Plant Breeding)

पादप जनन वह कला व विज्ञान है, जिसमें आनुवंशिक सिद्धांतो का प्रयोग करके जीवों की वंशागतिक प्रणाली में स्वेच्छा से परिवर्तन किया जाता है. पादप जनन का प्रयोग अधिक पैदावार या उच्च उत्पादन क्षमता युक्त पौधों को उत्पन्न करने में किया जाता है.

HYV का पूरा नाम (High Yielding Variety) है अर्थात् उच्च उत्पादक किस्म.

पादप जनन की विधियों को पाँच वर्गों में बाँट सकते है.

  1. पुर:स्थापण
  2. चयन
  3. संकरण
  4. उत्परिवर्तन
  5. बहुगुणिता

ऊतक संवर्धन (Tissue Culture)

पृथककृत भ्रूण, पादपांगो, ऊतको व कोशिकाओं का किसी पात्र में  (In Vitro अर्थात् परखनली, फ्लास्क, आदि) निजर्म विवर्धन (aseptic growth ऊतक संवर्धन कहलाता है. इस विधि द्वारा कम समय में एक समान पौधे अधिक संख्या में उत्पन्न किए जा सकते है.

ऊतक संवर्धन तकनीक के अन्तेगत ऊतकों का संवर्धन किया जाता है. जिसके अन्तर्गत बिना बीज के फलों को भी विकसित किया जा सकता है.

इस तकनीक को पार्थनाक्रापीकहा जाता है ऊतक संवर्धन तकनीक का प्रयोग बहु प्ररोहिका उत्पादन कायिक भूर्ण विकास, रोग  मुक्त पौधों के उत्पादन में तथा पूंजनिक अगुणित (androgenic haploid) पौधों की प्राप्ति में करते है.

खाघ प्रंसस्करण (Food Processing)

खाघ पदार्थों का किसी रसायनिक अथवा भौतिक प्रिक्रिया द्वारा बिना किसी क्षति के उनके गुणों को बनाए रखना एंव उन्हें उनकी सामान्य जीवन अवधि से अधिक समय तक सुरक्षित रखना ही खाघ प्रंसस्करण है.

भारत में फलों एंव सब्जियों का प्रंसस्करण स्तर मात्र 2.2% है, जबकि 78% फिलीपिंस में, 65% USA में एंव 23% चीन में है.

खाघ परिरक्षी के रूप में पोटेशियम मेटा बाइ सल्फाइट का प्रयोग फलों के रस को, साइट्रिक एसिड का प्रयोग अचार को तथा सोडियम बेंजोएट का प्रयोग साँस आदि को परिरक्षी करने में होता है.

चाय की पतियों की संसाधन प्रिक्रिया में बेल्लन शुस्कन, किण्वन आदि प्रक्रम सम्मिलित होते है.

सोडियम बेंजोएट का प्रयोग अनाज से उत्पादित खाघ पदार्थों के परिरक्षण में भी किया जाता है.

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