बिहार में स्थानीय प्रशासन, bihar prshaasan se judi janakri, bihar se judi janakri, bihar gk, bihar se jude swaal, bihar se judi mahatvpurn janakari
स्थानीय प्रशासन का तात्पर्य वैसे प्रशासन से है, जो नगर निगमों, सुधार न्यासों, नगर पालिकाओ, पंचायती राज संगठन, महानगर पालिकाओं, क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण, छावनी बोर्डों आदि के रूप में नागरिक जीवन की सुविधाओं से संबंध रखता है. शहरी क्षेत्र की कुछ प्रमुख संस्थाएं नीचे दी गयी है.
यह नगरीय शासन का शीर्ष निकाय है. इसकी स्थापना राज्य सरकार द्वारा की जाती है. महानगर निगम उस शहर में स्थापित किए जाते हैं. जिसकी आबादी 20 लाख से ऊपर है.
नगर निगम की स्थापना भी राज्य सरकार के विधायी अंग द्वारा की जाती है. नगर निगम के उन शहरों में स्थापित किए जाते हैं, जिनकी आबादी 20 लाख से कम की 10 लाख से ऊपर हो.
नगरी क्षेत्र में स्थानीय स्वायत्त शासन की इकाइयों को संवैधानिक आधार प्रदान किया गया है. इसके तहत संविधान का भाग 9(क) 1 जून 1993 को प्रभावी हुआ. इस भाग ने दो प्रकार के निकायों को जन्म दिया-
शहरी स्वायत्त शासन की संस्थाओं को नगरपालिका का नाम दिया गया है. अनुच्छेद 243 थ ने प्रत्येक राज्य के लिए ऐसी इकाइयां गठित करना अनिवार्य कर दिया है किंतु यदि कोई ऐसा नगर क्षेत्र है, जहां कोई औधोगिक स्थापना हेतु नगरपालिका सेवाएं प्रदान कर रहा है या इस प्रकार किए जाने का प्रस्ताव है तो ऐसी स्थिति में क्षेत्र का विस्तार और अन्य तथ्यों पर विचार करने के पश्चात राज्यपाल उसे औद्योगिक नगर घोषित कर सकता है. ऐसे क्षेत्र के लिए नगरपालिका गठित करना आवश्यक नहीं है.
नगर पालिका मुख्य तीन प्रकार की होती है,
नगर पालिकाओं के सदस्य साधारण प्रत्यक्ष निर्वाचन से निर्वाचित होते हैं. राज्य का विधानमंडल, विधि द्वारा, नगर पालिका में प्रतिनिधित्व के लिए उपबंध कर सकता है.
सदस्यता के लिए आवश्यक है कि उम्मीदवार या प्रत्याशी
अध्यक्षों का निर्वाचन विधान मंडल द्वारा उपबंधित रीति से होता है.
3 लाख या उससे अधिक जनसंख्या वाले नगर पालिका के क्षेत्र में आने वाले दो या अधिक वार्डों के लिए वार्ड समितियां बनाना आवश्यक माना गया है. राज्य विधानमंडल उनके गठन, क्षेत्र और वार्ड समितियों में स्थानों के बरे जाने के बारे में उपबंध करता है. राज्य विधान मंडल वार्ड समितियों के अतिरिक्त भी समितियां गठित कर सकता है.
जो व्यक्ति राज्य विधानमंडल के लिए चुने जाने योग्य है. वह नगर पालिका का सदस्य होने के योग्य होगा. अनुच्छेद 243 फ इसमें एक बात में बनता है कि नगरपालिका के लिए 21 वर्ष की आयु का व्यक्ति सदस्यता के लिए योग्य होता है, जबकि राज्य विधानसभा के लिए 5 वर्ष का होना आवश्यक है.
दलित आदिवासियों के लिए उनकी आबादी के अनुरूप आरक्षण का प्रावधान है. नगरपालिका में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण का प्रावधान है. यदि अनुसूचित जातियों की जनसंख्या 30% और अनुसूचित जनजातियों की संख्या 21% है तो उनके लिए क्रमशः 30% और 21% स्थान आरक्षित होंगे.
बिहार में वर्ष 2007 से त्रि स्तरीय पंचायतों की तरह नगर निगम और नगर निकायों के सभी कोटि के पदों पर महिलाओं के लिए 50% तथा अति पिछड़े वर्ग के लिए 20% आरक्षण सुनिश्चित किया गया है. यह विधानमंडल पर छोड़ दिया गया है कि इस बात का निर्णय करें कि नगरपालिका के अध्यक्ष पद के लिए आरक्षण किस प्रकार का होगा.
प्रत्येक नगरपालिका अपने पहले अधिवेशन की तारीख से 5 वर्षों की अवधि तक कार्य करती है. किंतु उसका विघटन विधि के अनुसार अवधि की समाप्ति के पूर्व भी किया जा सकता है.
विघटन के पहले नगरपालिका को सुनवाई का अवसर दिया जाता है.
निर्वाचन अवधि (5 वर्ष) की समाप्ति के पूर्व नगरपालिका का गठन हो जाना चाहिए.
यदि नगरपालिका को उसकी अवधि के पहले विघटित कर दिया जाता है तो निर्वाचन विघटन की तारीख से छह माह के भीतर हो जाना चाहिए. 5 वर्ष की पूरी अवधि की समाप्ति के पहले भी गठित नगर पालिका गठित की जाती है तो वह अवशिष्ट अवधि के लिए ही होगी. किंतु यदि शेष अवधि 6 माह से कम है तो निर्वाचन आवश्यक नहीं है.
राज्य विधान मंडल को यह शक्ति दी गई है कि वे नगर पालिकाओं को ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान करें, स्वायत शासन की संस्थाओं के रूप में अधिकारियों के लिए आवश्यक हो.
नगर पालिकाओं को जो उत्तर दायित्व सौंपा जा सकते हैं, वह है-
राज्य विधानमंडल विधि द्वारा, नगर पालिकाओं को कर, शुल्क, पथकर आदी उगाही करने, उनका संग्रह करने और उन्हें भी नियोजित करने के लिए और प्रधिकृत कर सकता है. राज्य सरकार द्वारा संग्रहित कर शुल्क आदि नगर पालिकाओं को समानुदेशित किए जा सकते हैं. राज्य की संचित निधि से नगर पालिकाओं को सहायता अनुदान भी दिया जाता है.
राज्य सरकार द्वारा नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति का पुनरावलोकन करने तथा इस बारे में सिफारिश करने के लिए 1 वित्त आयोग की स्थापना करने का प्रावधान है (अनुच्छेद 243 म).
संविधान में 47वें संशोधन अधिनियम में नगर पालिकाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान की है. इस संशोधन अधिनियम में यह कहा गया है कि प्रत्येक राज्य में दो समितियां- जिला स्तर पर जिला योजना समिति तथा प्रत्येक महानगर क्षेत्र में महानगर योजना समिति गठित की जाएगी (अनुच्छेद 243 य, घ और 243 य,ड).
राज्य विधान मंडल द्वारा समिति के गठन और उसमें स्थानों के भरे जाने के विषय में उपबंध किया जाता है. किंतु उसके लिए आवश्यक है कि-
जिला योजना समिति की दशा में कम से कम 4/5 सदस्य जिला सत्र पंचायत और जिलों की नगर पालिकाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से निर्वाचित किए जाएं. उनका अनुपात जिले में नगर और ग्राम की जनसंख्या के अनुपात में होगा.
महानगर योजना समिति की दिशा में समिति के कम से कम 2/3 सदस्य नगर पालिकाओं के सदस्यों के सदस्य और नगर पालिका क्षेत्र में पंचायत के अध्यक्षों द्वारा अपने में से निर्वाचित किए जाएं. स्थानों का विभाजन उस क्षेत्र में नगर पालिकाओं पंचायतों की जनसंख्या के अनुपात में होगा.
बिहार सरकार ने 1922 ई० नगर पालिका अधिनियम के अनुसार नगर पालिकाओं की स्थापना की है. पटना नगर निगम की स्थापना 15 अगस्त को हुई. पटना नगर निगम का एक महापौर (मेयर) तथा एक उपमहापौर (डिप्टी मेयर) होता है. इनका कार्यकाल 1 वर्ष का होता है. पटना नगर निगम संगठन ,निगम समितियां तथा प्रमुख प्रशासकीय पदाधिकारी को मिलाकर हुआ है. पटना नगर के आए को सौंप विभिन्न प्रकार के कर, शुल्क एवं सरकारी अनुदान है.
उन्नयन न्यास शहरों के विकास के लिए बनाए जाते हैं तथा नगरों के आधुनिकीकरण, सफाई, स्वास्थ्य, सौंदर्य करण तथा योजनाबद्ध निर्माण के लिए कार्य करते हैं.
आज बड़े शहरों में योजनाबद्ध विकास का जिम्मा क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण ने ले लिया है. इनका कार्य शहरों का आधुनिकीकरण व चतुर्दिक विकास है.
इन समितियों की स्थापना उन छोटे छोटे शहरों में की जाती है, जहाँ महानगरपालिका व्यवस्था उपयुक्त नहीं समझी जाती है. अनुसूचित क्षेत्र समिति की स्थापना का उद्देश्य वहां बाद में नगरपालिका को स्थापित करना है. समिति उन सभी कार्यों को करती है जो नगर पालिका करती है.
छावनी बोर्ड केंद्र शासित क्षेत्र है तथा प्रति रक्षा मंत्रालय के प्रत्यक्ष नियंत्रण में है. देश में 63 छावनी परिषद कार्यरत है. 1924 छावनी अधिनियम पारित हुआ, जिसके अनुसार छावनी के प्रबंध के लिए छावनी परिषद स्थापित करने की व्यवस्था की गई.
इसका गठन सार्वजनिक आवास की परियोजनाओं को तैयार करने और क्रियान्वित करने के लिए किया जाता है.
नगरीय स्थानीय स्वशासन में संबंधित 74 वें सविधान संशोधन विधेयक द्वारा नगर पालिका, टाउन एरिया तथा अधिसूचित क्षेत्र आदि स्थानीय निकायों में महिलाओं, पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है.
इस विधेयक दौरान राज्य विधानसभाओं को नगर निकायों के लिए आर्थिक विकास योजना बनाने तथा कर एवं शुल्क की वसूली एवं उपयोग करने का अधिकार दिया गया है.
बिहार में ग्रामीण प्रशासन के प्रमाण प्राचीन काल से ही मिलते हैं. भारतीय संविधान की धारा 40 में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य का कर्तव्य है कि वह ग्राम पंचायतों का गठन करें. 1956 में भारत सरकार ने बलवंत राय मेहता समिति की नियुक्ति की, जिसके प्रतिवेदन के आधार पर पंचायती राज्य संगठनों को लागू करने की योजना को मूर्त रुप दिया गया.
बिहार सरकार ने सर्वप्रथम बिहार पंचायत समिति तथा जिला परिषद अधिनियम, 1961 पारित किया, जिसने 17 फरवरी, 1962 ई. को कानून का रूप ग्रहण किया. इस अधिनियम के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के स्थानीय संस्थाओं के लिए 3 इकाइयों : ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद का निर्माण किया गया है.
बिहार में ग्राम पंचायत प्रशासन की सबसे छोटी किंतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण इकाई है. प्रथम पंचवर्षीय योजना में ग्राम विकास को एक शब्द अलग क्षेत्र घोषित कर दिया गया तथा ग्राम विकास विभाग को बिहार पंचायती राज योजना के कार्यान्वयन की जिम्मेवारी सौंपी गई है.
भारतीय संसद द्वारा 73वां संविधान संशोधन विधेयक, 1992 के आलोक में बिहार सरकार ने भी उसी के अनुरूप अपने राज्य में प्रशासन के विकेंद्रीकरण के उद्देश्य से बिहार राज्य पंचायत राज्य अधिनियम 1993 लागू किया.
इस अधिनियम के अनुसार राज्य में तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू करने की व्यवस्था है. मूल रूप से यह विधेयक बिहार में 1947 और 1961 के पंचायती राज विधेयक को निरस्त कर के उसके स्थान पर लागू किया गया है.
बिहार राज्य में ग्राम पंचायत के छह अंग है-
ग्राम सभा ग्राम पंचायत की विधायिका होती है. इसमें ग्राम या ग्राम समूह में रहने वाले सभी पदाधिकारी शामिल होते हैं. बिहार पंचायत राज अधिनियम 2006 के अनुसार, ग्राम सभा की बैठक समय-समय पर होगी, किंतु किन्हीं दो बैठकों के बीच 3 महीने से अधिक का अंतराल नहीं होना चाहिए.
ग्राम सभा के कुछ प्रमुख कार्य है- ग्राम पंचायत के प्रशासनिक कार्यों को स्वीकृति देना, वार्षिक बजट, लेखा और लेखा परीक्षण रिपोर्ट को स्वीकृति देना, समुदाय सेवा, स्वैच्छिक शर्म विकास संबंधी कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं को स्वीकृति देना तथा कर संबंधी प्रस्ताव पर विचार करना और उसकी स्वीकृति देना. किसी बैठक की गणपूर्ति ग्राम सभा के कुल सदस्यों के बीसवें भाग से पूरी होती है.
प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक कार्यकारिणी समिति होती है. कार्यकारिणी समिति का प्रधान मुखिया होता है. मुखिया के अलावा कार्यकारिणी समिति के 8 सदस्य होते हैं.
मुख्य ग्राम पंचायत की कार्यपालिका का प्रधान होता है. वह कार्यकारिणी समिति की अध्यक्षता करता है और उसकी बैठक बुलाता है. ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी कर्मचारियों पर नियंत्रण रखने के साथ-साथ कार्यकारिणी समिति की सलाह पर विशेष परिस्थितियों में ग्रामीणों पर जुर्माना भी लगा सकता है तथा संसाधनों में अभिवृधी हेतु वह कुछ क्षेत्रों में भी लगा सकता है.
कार्यकारिणी समिति के सदस्य विहित रीति से अपने में से एक सदस्य को उप मुखिया निर्वाचित करते हैं. मुखिया कार्यकारिणी समिति के अनुमोदन से उप मुखिया को अपनी शक्ति सौंप सकता है. किंतु उप मुखिया 6 महीने से अधिक मुखिया के रूप में कार्य नहीं कर सकता है.
प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक कार्यालय होता है, जो ग्राम सेवक के जिम्मे रहता है. ग्राम सेवक को पंचायत सेवक भी कहा जाता है. वह सरकारी कर्मचारी होता है तथा उसकी नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है. ग्राम सेवक ग्राम पंचायत के सचिव के रूप में कार्य करता है तथा वह मुखिया, सरपंच ग्राम पंचायत के कार्य संचालन में सहायता करता है.
बिहारी पंचायती राज्य अधिनियम के अनुसार ग्राम पंचायतों को ग्राम रक्षा दल कायम रखने का अधिकार दिया गया है. ग्राम रक्षा दल का नेता गणपति कहलाता है तथा इसकी नियुक्ति मुखिया और कार्यकारिणी समिति की राय से होती है.
ग्राम पंचायत की न्यायपालिका को ग्राम कचहरी की संज्ञा दी गई है. इसके माध्यम से ग्रामीण जनता को न्याय मिलता है. भारतीय स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में ग्राम पंचायत एक ऐसी संस्था है, जिसको न्याय से संबंधित शक्तियां प्राप्त है.
मुखिया तथा कार्यकारिणी समिति का कोई भी सदस्य ग्राम कचहरी का सदस्य नहीं हो सकता है. ग्राम पंचायत के न्यायिक कार्यों के निष्पादन के लिए गठित ग्राम कचहरी में सरपंच समेत नौ पंचो की एक तालिका होती है. सरपंच एवं पचों की नियुक्ति 5 वर्षों के लिए की जाती है.
बिहार पंचायत समिति तथा जिला परिषद अधिनियम, 1961 के अनुसार पंचायत समिति के शासन के चार मुख्य अंग है- पंचायत समिति, प्रमुख एवं उप प्रमुख, स्थाई समिति तथा प्रखंड विकास पदाधिकारी.
पंचायत समिति अपने सदस्यों में से एक प्रमुख तथा एक उप प्रमुख 5 वर्षों के लिए निर्वाचित करती है. यदि किसी ग्राम पंचायत का मुखिया प्रमुख या उप प्रमुख के पद पर निर्वाचित हो जाए, तो उसे मुखिया का पद खाली करना पड़ता है.
बिहार पंचायत समिति तथा जिला परिषद अधिनियम के अनुच्छेद के अंतर्गत प्रत्येक प्रखंड के लिए राज्य सरकार लोक सेवा आयोग की अनुशंसा पर प्रखंड विकास पदाधिकारी की नियुक्ति करती है. वह पंचायत समिति का कार्यपालक पदाधिकारी और एक सचिव होता है.
जिले में पंचायती राज प्रणाली की सर्वोच्च संस्था जिला परिषद होती है. यह एक कानूनी संस्था है तथा पंचायत समिति की तरह यह भी कानूनी अधिकार व शक्तियां रखती है. इसके अंतर्गत जिले की सभी पंचायत समितियां आती है.
जिला परिषद के चार प्रमुख अंग होते हैं-
जिला परिषद के प्रमुख कार्यों में जिले की विकास संबंधी गतिविधियों में सरकार को परामर्श देना, पंचायत समितियों के बजट का परीक्षण करना और उनको स्वीकृति देना तथा प्रखंड और जिला द्वारा तैयार विकास योजनाओं का समन्वय और परीक्षण करना आदि प्रमुख है.
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