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बिहार के महत्वपूर्ण व्यक्ति

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2 बिहार के महत्वपूर्ण व्यक्ति

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बिहार के महत्वपूर्ण व्यक्ति

याज्ञवल्क्य

उपनिषद काल के महान ऋषि याज्ञवल्क्य राजा जनक की सभा के प्रधान दार्शनिक, शुक्ल यजुर्वेद साहित्य शतपथ ब्राह्मण, बृहदारण्यक व याज्ञवल्क्य स्मृति के रचयिता तथा योग दर्शन के आरंभ करता थे. याज्ञवल्क्य ऋषि वैशंमपायन के प्रमुख शिक्षा में से थे

महावीर (540-468 ईसा पूर्व)

महावीर को जैन धर्म का वास्तविक प्रवर्तक माना जाता है. इसके 5 मुख्य उपदेश थे- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य.

महात्मा बुद्ध (563- 483 ईसा पूर्व)

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्त किया और बिहार में अत्यधिक सक्रिय रहे. उन्होंने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग का प्रतिपादन किया.

वृहद्रथ

वृहदथ मगध के प्राचीनतम राजवंश वृहदरथ वंश का संस्थापक था. चेदिराज बसु के पुत्र वृहदथ ने गिरी वज्र को राजधानी बना कर मगध में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया. उसे ही मगध साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है. मगध सम्राट जरासंध उसी का महा पराक्रमी पुत्र था.

जीवक

जीवक बौद्ध काल का उत्कृष्टतम वैध एवं चिकित्सक था. हर्यक वंशीय मगध के शासक बिंबिसार के पुत्र अभय ने उनका लालन-पालन किया. उन्होंने वैध की शिक्षा तक्षशिला में ग्रहण की. गिलगिट से प्राप्त पांडुलिपि के अनुसार जनक के गुरु तक्षशिला के प्रसिद्ध वैद्य आत्रेय पुनर्वसु थे.

घोषा

पाटलिपुत्र की विख्यात नर्तकी थी. वह हजार सुईया की नोक पर नृत्य करती थी.

चाणक्य

विष्णु गुप्त और कौटिल्य के नाम से विख्यात यह महान कूटनीतिज्ञ चंद्रगुप्त मौर्य के राजनीतिक गुरु और पथ-प्रदर्शक था. उनकी सुविख्यात रचना अर्थशास्त्र मौर्य कालीन राजनीतिक व्यवस्था संबंधी एक मानक रचना मानी जाती है.

पाणिनि

मौर्यकालीन प्रसिद्ध व्याकरण शास्त्री और अष्टाध्याई के रचीयता पाणिनि, जो तक्षशिला के विद्यार्थी रह चुके थे, को कुछ लोग जहां मनेर (पटना) का निवासी मानते हैं, वहीं कुछ इतिहासकार उन्हें उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत के लातूर नामक स्थान का निवासी मानते हैं.

आर्यभट्ट (पांचवी शताब्दी इशा)

आर्यभट्ट का जन्म 476 ईसवी में प्राचीन कुसुमपुर (पाटलिपुत्र या आधुनिक पटना) में (वर्तमान खगोल में) हुआ था.

अश्वघोष

अश्वघोष महान संगीतज्ञ, नाटककार,कवि, दार्शनिक एवं धर्मज्ञ थे.

पुष्यमित्र शुंग

पुष्यमित्र शुंग ने 38 वर्षों तक मगध पर शासन किया. उसने दीर्घ अंतराल के बाद अश्वमेघ यज्ञ करवाया, हिंदू धर्म को पुनर्जीवित किया तथा संस्कृत को राजभाषा बनाया.

बाणभट्ट

बाणभट्ट का जन्म बिहार में सोन नदी के किनारे बसा  प्रीति कूट नामक नगर में एक समृद्ध वात्सयायन गोत्रीय के ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम चित्रभानु और माता का नाम राज्य देवी था.

सरहपाद

भारतीय जनमानस को अद्भुत रूप से प्रभावित करने वाले सरहपाद 84 सिद्धों में सबसे अधिक समादरित हुए. महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इन्हें हिंदी काव्य का प्रथम जनक माना है.

शांतरक्षित

पाल शासकों के काल में आठवीं शताब्दी में नालंदा महाविहार के आचार्य और बुद्ध विद्वान शांतरक्षित ने तिब्बत जाकर वहां बौद्ध धर्म का प्रचार किया.

अतीश दीपांकर श्रीज्ञान

वह विक्रमशिला के प्रसिद्ध आचार्य थे, जिन्होंने 11 वीं शताब्दी में तिब्बत के शासक के निमंत्रण पर वहां भेजा गया. बौद्ध धर्म के तांत्रिक रूप के प्रचार प्रसार में इनका विशेष योगदान रहा.

धीमन एवं बिठपाल

वे पालकालीन सुप्रसिद्ध मूर्तिकार थे, जो नालंदा के निवासी थे. पाल कालीन कांस्य प्रतिमाओं की रचना और चित्रकला के विकास में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा.

मंडन मिश्र

पंडित मंडन मिश्र 9 वीं सदी में मिथिला क्षेत्र के प्रसिद्ध विद्वान एवं दार्शनिक थे, जिन्होंने न्याय, मीमांसा तथा वेदांत दर्शन की समृद्धि एवं प्रचार-प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया. आदि शंकराचार्य के साथ उनके शास्त्रार्थ की चर्चा अनुश्रुतियों में मिलती है.

वाचसप्ती मिश्र

वाच्सप्ती मिश्र का जन्म मधुबनी जिला अंतर्गत ठाडी गांव (अंधरा ठाडी) में हुआ था.

मोहसिन फानी

जहांगीर का समकालीन इतिहासकार मोहसीन फानी ने पटना में अपनी प्रसिद्ध रचना द्बिस्तानेन मजाहीब लिखी. इसमें विभिन्न धर्मों का तुलनात्मक वर्णन है. इसी पुस्तक में पहली बार अकबर के दाने इलाही को एक नए मार्ग की संज्ञा दी गई.

दाऊद खां करारानी

वह बिहार एवं बंगाल के स्वतंत्र अफगान राज्य का अंतिम शासक था, जिसे 1578 में पराजित कर अकबर ने बिहार को अंतत मुगल साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया.

विद्यापति

श्रृंगार रस के प्रसिद्ध मध्यकालीन कवि विद्यापति का जन्म दरभंगा (अबे मधुबनी) जिले के विस्फी ग्राम में 1368 या 1377 ई. में हुआ. मैथिली भाषा में रचित उनकी पदावली अवहट में कृतिलता और कृतिपुतका सुविख्यात है.

मखदूम सरफुद्दीन याहिया मनेरी

वह 13वीं शताब्दी के प्रसिद्ध सूफी संत थे, जिन्हें बिहार में सूफी आंदोलन का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि माना जाता है. उनका जन्म 1263 ई. में हुआ था. इनका संबंध फिरदोसी संप्रदाय से था. वह सूफी संत शेख निजामुद्दीन फिरदोसी के शिष्य थे तथा 1332 ई. में उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी बने.

मोहम्मद साह नुहानी

मोहम्मद साहिल वानी लोधी शासकों के काल में बिहार का महत्वपूर्ण अफगान सामंत था.

शेरशाह (1486- 1545)

भारत के सर्वश्रेष्ठ अफगान शासक शेरशाह का जन्म 1486 में हुआ था. उनका राजनीति के उत्कर्ष बिहार में सासाराम के क्षेत्र से आरंभ हुआ. यहीं पर उसने अपने प्रशासनिक सुधारों, विशेषकर लगान संबंधी सुधारों का प्रयोग किया है.

गौतम मुनि

गौतम मुनि न्यायशास्त्र के विख्यात आचार्य तथा न्यायसूत्र के लेखक थे.

गुरु गोविन्द सिंह जी (1666-1708)

पटना सिटी में 26 दिसंबर, 1666 ई. को जन्म लेने वाले गोविंद सिंह जी सिखों के दसवें एवं अंतिम गुरु थे, जिन्होंने मुगल शासकों से संघर्ष के लिए सिख संप्रदाय को संगठित किया और उनके धार्मिक एवं सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण सुधार लाएं.

गुलाम हुसैन तबातभाई

वह पटना के निवासी और 18वीं शताब्दी के विख्यात इतिहासकार थे. उनकी रचना सियरुल मुताखेरिन, ब्रिटिश सत्ता के बिहार और बंगाल के प्रसार और उससे उत्पन्न हानिकारक प्रभावों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करती है.

वीर कुंवर सिंह

बिहार के शाहाबाद (वर्तमान भोजपुर) जिले के जगदीशपुर ग्राम में 23 अप्रैल,1717 इ. को जन्मे बाबू कुंवर सिंह ने 1857 के गदर में बिहार के क्रांतिकारी देशभक्तों का नेतृत्व करते हुए अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए.

वीर अमर सिंह

शाहाबाद (बिहार) में जन्मे अमर सिंह वीर कुंवर सिंह के सबसे छोटे भाई थे. कैमूर पहाड़ियों में स्थित अड्डे का नेतृत्व करने वाले अमर सिंह अंग्रेजों के साथ गुरिल्ला युद्ध में माहिर तथा नेपाल में नाना सेना के गठन के सूत्रधार थे.

विलायत अली (1791- 1852)

वह बिहार में बहावी आंदोलन के अग्रणी नेता थे. उन्होंने 1826 में पश्चिमोत्तर सीमांत में बहावी आंदोलन को संगठित किया. 1836 के बाद वह सीताना कि वहाबी के सभी राज्य के प्रधान रहे.

इनायत अली (1793- 1858)

विलायत अली के अनुज इनायत अली ने 1852 से 1858 के बीच पश्चिमोत्तर सीमांत के वह भी राज्य के प्रधान का पद ग्रहण किया और ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध रहे थे.

पीर अली

पीर अली पटना सिटी के पुस्तक विक्रेता थे, जिन्होंने पटना में 1857 के आंदोलन का नेतृत्व करते हुए अंग्रेजों से संघर्ष किया. अंग्रेज ऑफिसर डॉ लायल की हत्या के आरोप में 7 जुलाई, 1857 को पटना के कमिश्नर एम टेलर के आदेश पर इन्हें पटना में फांसी दे दी गई. उस समय वे 37 साल के थे.

शेख भिखारी

1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के शहीदों में एक से शेख भिखारी भी थे, जिन्हें अंग्रेजों द्वारा फांसी दी गई थी.

मौलाना मजहरुल हक (1866- 1930)

शेख अहमददोला के इकलौते पुत्र के रूप में मजहरुल हक का जन्म पटना से 25 किलोमीटर पश्चिम में स्थित बाहपूरा में 22 दिसंबर, 1866 ई. को हुआ था. इनके द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र राष्ट्रीय एकता का प्रबल समर्थक है रहा. गांधी जी इन्हें देशभूषण कहते थे. 2 जनवरी, 1930 को इनका निधन हो गया.

डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा

सच्चिदानंद सिन्हा का जन्म 10 नवंबर, 1871 को आरा में हुआ था. उनके पिता राम याद सिन्हा आरा के प्रसिद्ध वकील और डुमराव राज के स्थाई अधिवक्ता थे. 9 दिसंबर, 1940 को इन्हीं की अध्यक्षता में हमारे देश के संविधान सभा का अधिवेशन प्रारंभ हुआ था. उनकी मृत्यु (6 मार्च, 1950) के बाद डॉ राजेंद्र प्रसाद ने यह पद ग्रहण किया .

हसन इमाम (1871- 1933)

वरिष्ठ बैरिस्टर और राष्ट्रवादी नेता हसन 1912 में कोलकाता हाई कोर्ट के प्रथम बिहारी जज नियुक्त हुए. 1921 में वह बिहार एवं उड़ीसा विधान परिषद के प्रथम उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए. बिहार के पृथक्करण में उल्लेखनीय योगदान के साथ-साथ बिहार में शिक्षा और पत्रकारिता के विकास में भी इनकी देन काफी महत्वपूर्ण है.

सर सुल्तान अहमद (1880- 1963)

विश्व प्रसिद्ध विधिशास्त्र थे, जिन्हें पटना विश्वविद्यालय के प्रथम भारतीय कुलपति होने का श्रेय प्राप्त हुआ है. 1937 में वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के सदस्य भी रहे हैं.

डॉ राजेंद्र प्रसाद (1884- 1963)

डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को सारण (वर्तमान सिवान) जिले के जीरादेई नामक गांव में हुआ था. इनके पिता महादेव सहाय फारसी एवं संस्कृत के विद्वान होने के साथ-साथ आयुर्वेदिक के ज्ञाता भी थे. उनकी मृत्यु 28 फरवरी, 1963 को पटना स्थित सदाकत आश्रम में हुई है.

खान बहादुर खुदाबख्श खां (1842- 1908)

खान बहादुर खुदा बख्श खां पांडुलिपियों के प्रसिद्ध संग्रहकर्ता थे. इनके द्वारा पटना में स्थापित पुस्तकालय खुदाबख्श लाइब्रेरी को 1891 में बंगाल की तत्कालीन सरकार ने अपनी देखरेख में ले लिया था. 1969 में संसद में इस पुस्तकालय को राष्ट्रीय महत्व की संस्था घोषित कर दिया. 1917 में उन्हें पटना हाई कोर्ट का जज और 1919 में हैदराबाद राज्य का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया. उनकी मृत्यु 27 अक्टूबर, 1932 को रांची में हो गई थी.

बैंकुठ शुक्ल

सन 1910 में जलालपुर गांव, लालगंज थाना (वैशाली) में जन्मे बैंकुंठ शुक्ल का 1930 में नमक सत्याग्रह में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. नमक आंदोलन के दौरान उन्हें छह माह की सजा हुई थी. सरदार भगत सिंह को फांसी के मामले में मुखबिरी करने और गद्दार वरिंद्र घोष की 23 मार्च, 1932 को बेतिया में उन्होंने सरेआम हत्या कर दी. 14 अप्रैल, 1934 को गया जेल में इन्हें फांसी दे दी गई.

फणींद्र नाथ घोष

बेतिया निवासी फणींद्र नाथ घोष 1916 से ही बिहार में बंगाल अनुशीलन समिति के सदस्य के रूप में सक्रिय था. 1925 में उसने हिंदुस्तान सेवा दल की स्थापना की तथा हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी को दिल्ली सभा में बिहार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.

बाद में वह लाहौर षड्यंत्र कांड, पटना षड्यंत्र कांड आदि में क्रांतिकारियों के विरुद्ध गुवाहाटी देखकर मुख भरी बन गया. चंद्रमा सिंह की सहायता से बैंकुठ शुक्ल ने उसकी हत्या कर दी.

योगेंद्र शुकुल

1896 ई. में लालगंज (वैशाली) में जन्मे योगेंद्र शुकल एक महान देश भगत और स्वाधीनता सेनानी थे, जिन्होंने 1942 के आंदोलन में सक्रिय योगदान दिया था. 1958 से 1960 तक बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे जोगेंद्र शुक्ल का निधन 19 नवंबर 1960 को हो गया.

जगत नारायण लाल

वे एक प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी तथा जयप्रकाश नारायण के सहयोगी थे.

रामप्यारी देवी

प्रख्यात सविधानता सेनानी श्रीमती रामप्यारी देवी देशभक्त जगत नारायण लाल की पत्नी थी. उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बिहार के बांकीपुर (पटना) में एक सभा को संबोधित करते हुए लोगों से सरकारी नौकरियां छोड़ने का आहान किया.

सिताब राय

सीताब राय बिहार के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे जिन्हें राजा की उपाधि मिली थी.

रामचंद्र शर्मा

बिहटा (पटना) के निकट अमरोहा गांव के निवासी रामचंद्र शर्मा बिहार में फॉरवर्ड ब्लॉक के एक प्रमुख नेता थे. स्वाधीनता संग्राम में उनका काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

श्री नरसिंह नारायण

श्री नरसिंह नारायण एक समाजवादी नेता एवं स्वतंत्रता सेनानी थे. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल से फरार होने के पश्चात, 14 नवंबर, 1942 को उन्हें गया में गिरफ्तार किया गया.

अब्दुल बारी

प्रों अब्दुल बारी का जन्म शाहाबाद जिला के कोईलवर में 1896 को हुआ. 1919 में उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से एम. ए. किया. खिलाफत आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई. उन्हें बिहार विद्यापीठ में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया. 1946 में बिहार के दंगा पीड़ितों के बीच उन्होंने गांधी जी के साथ मिलकर काम किया. 28 मार्च. 1939 को पुलिस की गोलियों से इनकी हत्या हो गई थी.

राजकुमार शुक्ल

मुरली भहराव गांव के निवासी राजकुमार शुक्ल चंपारण के प्रसिद्ध किसान नेता थे. इन्होंने ही गांधी जी को 1917 में चंपारण लाया और किसानों के प्रति नील कोठियों के मालिकों के अत्याचार के विरुद्ध ध्यान केंद्रित कराया.

सत्येंद्र प्रसन्न सिन्हा

वे बिहार उड़ीसा के प्रथम भारतीय गवर्नर थे. 1919 के भारत सरकार अधिनियम के अंतर्गत स्थापित बिहार सरकार के गवर्नर के रूप में इन्होंने 29 दिसंबर, 1920 को पद ग्रहण किया. 1921 ई. लॉर्ड सिंहा ने गवर्नर पद से त्यागपत्र दे दिया.

मोहम्मद यूनुस

मोहम्मद यूनुस 1937 के चुनाव के पश्चात बिहार के प्रथम भारतीय मुख्यमंत्री बने. चुकि डॉ श्रीकृष्ण सिंह (कांग्रेस) ने मंत्रिमंडल बनने से इनकार कर दिया था, इसलिए मोहम्मद यूनुस को बिहार का मुख्यमंत्री (प्रधानमंत्री) बनाया गया. उस समय मुख्यमंत्री को राज्य का प्रधानमंत्री कहा जाता था.

श्री कृष्ण सिंह

श्री कृष्ण सिंह का जन्म 21 अक्टूबर, 1887 को मुंगेर जिला के बरबीघा थानांतर्गत माउर गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम हरिहर सिंह था. उन्होंने मैट्रिक 1913 में एम. ए. एवं उसके बाद की बी. एल, की परीक्षा पास की.कुछ समय तक ए बी एन कॉलेज, पटना में इतिहास विभाग में व्याख्याता के रूप में कार्य करने के पश्चात मुंगेर में वकालत करने लगे. स्वतंत्र भारत में बिहार राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री एवं सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी डॉक्टर श्री कृष्णा सिंह की बिहार में नमक सत्याग्रह में अग्रणी भूमिका रही है. वह 1937 में बिहार में कांग्रेसी मंत्री मंडल के अध्यक्ष और बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री भी रहे. बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह को आधुनिक बिहार का निर्माता भी कहा जाता है. 1961 में उनकी मृत्यु हो गई.

दीप नारायण सिंह

दीप नारायण सिंह स्वतंत्र भारत में बिहार विधान सभा के प्रथम अध्यक्ष और सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे. उनके परिजनों से बिहार प्रांतीय कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन हुआ. वह बिहार के कार्यवाहक मुख्यमंत्री भी रहे हैं.

ब्रज किशोर प्रसाद

बिहार में सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रमुख नेता बाबू ब्रजकिशोर प्रसाद एक कानूनविद थे. 1916 में कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में उन्होंने ही सर्वप्रथम चंपारण के किसानों की दुर्दशा पर प्रस्ताव दौरान ध्यान केंद्रित कराया.

अनुग्रह नारायण सिंह

असहयोग आंदोलनके दौरान बिहार के प्रमुख नेताओं में एक अनुग्रह बाबू स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद एक मंत्री और एक प्रशासक के रूप में विख्यात हुए हैं. 1946 और 1952 में वे राज्य के मंत्री बने तथा 1939 में जेनेवा में हुए अंतर्राष्ट्रीय खाद्य एवं कृषि सम्मेलन एवं मंत्र राष्ट्रीय समाज कल्याण सम्मेलन में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया. 5, जुलाई 1957 को उनकी मृत्यु हो गई.

चुनचुन पांडे

भागलपुर निवासी चुनचुन पांडे बिहार में क्रांतिकारियों के प्रमुख नेता थे, जिन्होंने 1905 से 1917 तक अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने 1905 में पुलिन बिहारी दास, राम बिहारी बोस, नलिनी बगीचा में रेवती मोहन नाग, जैसे महापुरुषों के साथ मिलकर ढाका अनुशीलन समिति का गठन किया. उस समय यह देश का सबसे बड़ा संगठन था तथा देश भर में इसकी 600 शाखाएं थी.

जगजीवन राम

बाबूजी उप नाम से विख्यात जगजीवन राम सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी और दलित वर्ग के प्रमुख नेता थे. उनका जन्म 5 अप्रैल, उन्नीस सौ आठ को शाहाबाद (वर्तमान भोजपुर) जिला के चंदवा गांव में हुआ था. 1926 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की, विद्यासागर कॉलेज, कोलकाता से बी.एससी. की डिग्री प्राप्त की, 1929 में कोलकाता में अखिल भारतीय रविदास सभा की तथा 1937 में खेतिहर मजदूर की स्थापना की.

डॉ सैय्यद मोहम्मद (1889- 1971)

डॉ सैयद मोहम्मद होमरूल लीग आंदोलन में स्वतंत्रता प्राप्ति सक्रिय स्वतंत्रता- सेनानी तथा स्वतंत्र भारत के मंत्री परिषद के सदस्य रहे हैं. उन्होंने शिक्षा के विकास में भी उल्लेखनीय योगदान दिया है.

अब्दुल कयूम अंसारी

खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन के समय सक्रिय अब्दुल कयूम अंसारी बिहार में मुसलमानों के पिछड़े वर्ग के प्रमुख नेता थे.

खुदीराम बोस

खुदीराम बोस ने केवल 18 वर्ष की अवस्था में प्रफुल्ल चाकी के साथ मिलकर 30 अप्रैल, 1908 में किंग्स्फोर्ड को बम से उड़ाने की योजना बनाई थी. दुर्भाग्यवंश किंग्स्फोर्ड के स्थान पर एक स्थानीय वकील की पत्नी तथा बेटी घायल हो गई तथा उनकी घोड़ा गाड़ी का चालक मारा गया. इस आरोप में खुदीराम बोस को 18 अगस्त, 1908 को फांसी दे दी गई थी.

जयप्रकाश नारायण (1902- 1979)

जयप्रकाश नारायण का जन्म सारण जिले के सिताबदियारा नामक स्थान पर 11 अक्टूबर, 1902 को हुआ. उनके पिता का नाम हरसू दयाल और माता का नाम फुल रानी देवी था. 1919 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की है तथा इस वर्ष उनका विवाह बाबू ब्रजकिशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती से हुआ. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी.

ललित नारायण मिश्र

पूर्व केंद्रीय मंत्री ललित नारायण मिश्र का जन्म सहरसा जिला अंतर्गत बासोपट्टी (वर्तमान में सुपौल जिला अंतर्गत बलवा बाजार/ललित ग्राम) में जनवरी, 1923 में हुआ था.

बिरसा मुंडा

बिरसा का जन्म 15 नवंबर, 1800 को तमाड़ के निकट उलीहातू, नामक गांव (अब झारखंड में) हुआ था. उनके पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम कदमी था. है. 3 मार्च, 1900 को बिरसा को पकड़ लिया गया तथा 9 जून, 1900 को उनकी मृत्यु जेल में हैजा से हो गई.

तिलक मांझी

अमर शहीद तिलक मांझी का जन्म 1750 ई. तीलकपुर गांव में हुआ था. अंग्रेजों के दमन में ट्रस्ट तिलक मान जी के नेतृत्व में भागलपुर के निकट बनचरी जोर नामक स्थान पर संथाली तथा सभी वर्ग के लोगों ने संगठित रूप से स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम अध्याय शुरू किया. तिलक मांझी की चुनौतियों का सामना करने में कंपनी असमर्थ थी, क्योंकि उसकी सारी सेना 1767 से ही धालभूम, मानभूम, बाकुंडा आदि में चुआर विद्रोह का सामना करने में व्यस्त थी. 13 जनवरी, 1784 को तिलक मांझी ने खुले तौर पर भागलपुर पर आक्रमण कर दिया, जिसमें क्लीवलैंड मारा गया. बाद में तिलक पकड़ा गया और उसे फांसी दे दी गई.

सिद्धू और कान्हू

1855-56 में संथालों ने अंग्रेजो के विरुद्ध विद्रोह किया तथा अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर दिया. वीरभूम, सिंहभूम, राज महल, भागलपुर, हजारीबाग, और बांकुड़ा इस विद्रोह के प्रमुख केंद्र है. इस संथाल विद्रोह का नेतृत्व सिद्धू और कान्हू किया. आदिवासियों के विद्रोह में यह सबसे जबरदस्त था.

जुब्बा साहनी

बिहार के अग्नि स्वतंत्रता सेनानियों में से एक जुब्बा साहनी का जन्म 1906 ई. में मुजफ्फरपुर जिलातर्गत चैनपुर गांव में हुआ था. अत्यंत निर्धन परिवार में जन्म होने के बावजूद उनमें देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी. बाद में वह पकड़े गए और 11 मार्च, 1944 उन्हें फांसी दे दी गई.

मोइनुल हक

प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री एवं खेल प्रेमी माइनुल हक 1928 से 1956 तक भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन के सचिव रहे. प्रथम एशियाई खेलों के आयोजकों में वह भी एक थे.

गणेश दत्त सिंह

गणेश दत्त सिंह का जन्म 15 जनवरी, 1868 को वर्तमान नालंदा जिलानतगर्त छतियाना में हुआ था. 1891 ई. में उन्होंने पटना कॉलेजिएट स्कूल से प्रथम श्रेणी में प्रवेशिका की परीक्षा उत्तीर्ण की. 1895 में पटना कॉलेज से बी. ए. 897 में पटना लॉ कॉलेज से बी. एल. करने के उपरांत उन्होंने वकालत करना आरंभ किया.

जगलाल चौधरी

संविधान का संग्राम के अग्रणी योद्धा तक शोषित पंडितों के मसीहा जगलाल चौधरी का जीवन गांधी जी की विचारधारा से ओत-प्रोत था. उनका जन्म 1 मार्च, 98 को सारण जिला के गड़खा गांव में हुआ था. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया. 4 साल तक जेल में रहे. 1940 में रिहा होकर श्री कृष्ण सिंह के मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री बने. 9 मई, 1973 को उनका देहांत हो गया.

कर्पूरी ठाकुर

कर्पूरी ठाकुर बिहार के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी एवं समाजवादी नेता थे. इनका जन्म 24 जनवरी, 1921 को समस्तीपुर जिले के पितोझीया गांव में हुआ था. 24 जून, 1977 से 21 अप्रैल, 1979 तक में जनता पार्टी सरकार में पुनः बिहार के मुख्यमंत्री रहे.  1982 में जनता पार्टी से अलग होकर उन्होंने पृथक दल का गठन किया. 1985 में वह बिहार विधानसभा में विरोधी दल के नेता बने. 17 फरवरी, 1988 को उनका निधन हो गया.

दरोगा प्रसाद राय

दरोगा प्रसाद राय एक स्वतंत्रता सेनानी, प्रशासन एवं समाजसेवी थे. 2 सितंबर, 1923 को इनका जन्म बजहिया गांव, परसा थाना, सारण जिला, में हुआ था. इन्होंने टी. एन.बी कॉलेज भागलपुर से अर्थशास्त्र में बी. ए. की डिग्री प्राप्त की. वह समाजवादी विचारधारा के थे और 1942 ई. के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने सक्रिय योगदान दिया.

लालू प्रसाद यादव

लालू प्रसाद का जन्म 11 जून, 1948 को छोटी फुलवरिया, मीरगंज प्रखंड, गोपालगंज, बिहार में. इनके पिता का नाम श्री कुंदन राय एवं माता का नाम म्रछीया देवी था.

नीतीश कुमार

नितीश कुमार का जन्म पटना जिलातर्गत बख्तियार के कल्याणपुर (कल्याण बिगहा) गांव में एक साधारण किसान परिवार में एक मार्च, 1951 ई. को हुआ. उनकी माता का नाम श्रीमती परमेश्वरी देवी था. उनके पिता कविराज रामलखन सिंह जी एक प्रसिद्ध वैद्य थे. 22 फरवरी, 1973 को उनका विवाह मंजू कुमारी सिन्हा से हुआ. उनकी एकमात्र संतान का नाम निशांत है.

बी पी मंडल

पिछड़ी जाति आयोग के प्रमुख एवं राज्य के मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल अपने सामाजिक न्याय संबंधी विचारों के लिए याद किए जाते हैं.

राबड़ी देवी

बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री श्रीमती राबड़ी देवी का जन्म सेलारकला (गोपालगंज) में हुआ था. उनके पिता का नाम शिव प्रसाद चौधरी है.

राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की पत्नी राबड़ी देवी 25 जुलाई, 1997 को पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बनी एवं तब से 2005 तक वह तीन बार इस पद को संभाल चुकी है.

दशरथ मांझी

पर्वत पुरुष (माउंटेन मैन) के नाम से जाना जाने वाला दशरथ मांझी का जन्म 1934 ई. में गया जिला के गहलौर गांव में हुआ था. पानी के लिए इस गांव के लोगों को 3 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था. लोगों की सुविधा के लिए दशरथ मांझी ने पहाड़ को छेनी-हथौड़े से काटकर 360 फीट लंबा और 30 फीट चौड़ा रास्ता बना दिया.

22 वर्ष (1960 से 1982) तक किए गए उनके पुरुषार्थ और भागीरथ प्रयास से गया जिला के अतरी और वजीरगंज प्रखंड के बीच की दूरी 80 किलोमीटर से घटाकर मात्र 3 किलोमीटर रह गई. इतना ही नहीं तत्कालीन केंद्रीय मंत्री जगजीवन राम और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने के लिए उन्होंने गया से दिल्ली तक रेल पटरी के सारे पैदल यात्रा की. 18 अगस्त, 2007 ई. को ए, आई. आई एम एस. नई दिल्ली में उनका निधन कैंसर के कारण हो गया.

आरसी प्रसाद सिंह

हिंदी एवं मैथिली के प्रसिद्ध कवि आर सी बाबू का जन्म रोसड़ा (समस्तीपुर) के निकट एरोत (इरावत) गांव में 19 अगस्त, 1911 को हुआ था. उदय, कुंवर सिंह, आरसी, संचीयत्ता, कलापी, पूजाक फुल, चाणक्य शिखा पंच पल्लव,, कागज की नाव, हीरा मोती, आदि उनके कुछेक महत्वपूर्ण रचनाएं हैं. मैथिली काव्य संकलन सूर्यमुखी पर साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित अनेक स्थानों से सम्मानित आरसी प्रसाद सिंह का निधन 15 नवंबर, 1996 ई. को पटना में हो गया.

राधा कृष्ण जालान

राधाकृष्णन जलान कलाकृतियों और ऐतिहासिक अवशेषों के प्रसिद्ध संग्रह करते थे, जिनके व्यक्तिगत संग्रह पर आधारित जलान संग्रहालय, पटना सिटी में स्थापित है.

सैय्यद हसन अस्करी (1901-1990)

सैयद हसन आस्करी मध्यकालीन भारतीय इतिहास और विशेषकर सूफी मत के विख्यात विद्वान, शोधकर्ता एवं अध्यापक थे, जिन्होंने बिहार में इतिहासकारों की नई पीढ़ियों को प्रभावित किया. भारत सरकार द्वारा उन्हें पदम श्री सहित अन्य सामान प्रदान किए गए.

कालिकिंकर दत्त

प्रसिद्ध इतिहासज्ञ और शिक्षा शास्त्री कालिंकिंकर दत्त न केवल बिहार में स्वतंत्रता संग्राम नामक पुस्तक के रचयिता थे, बल्कि वे पटना एवं मगध विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे.

गोरखनाथ सिंह

छपरा के गोरखनाथ सिंह प्रसिद्ध अर्थशास्त्री तथा शिक्षाविद थे. वह पटना कॉलेज के प्राचार्य तथा एनएसी ना समाज अध्ययन संस्थान के निर्देशक भी रहे.

डॉक्टर अजिमउद्दीन अहमद (1882- 1949)

डॉक्टर अजीमुद्दीन अहमद ऐसे प्रथम बिहारी थे जिन्होंने लिप्जिग विश्वविद्यालय (जर्मनी) से डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की. इनकी शोध रचना शमशुल उलूम लंदन की गिब्स मेमोरियल सीरीज में प्रकाशित हुई. इस सम्मान को पाने वाला वह प्रथम भारतीय था. इन्हें उर्दू कविता में सोनेट शैली का प्रथम प्रयोग का भी श्रेय प्राप्त है.

कलीमुद्दीन अहमद (1908- 1985)

कलीमुद्दीन अहमद उर्दू भाषा के सुप्रसिद्ध विद्वान एवं अंग्रेजी के अध्यापक थे, जिन्होंने उर्दू में आलोचना की नई शैली का विकास किया. बिहार सरकार में दो दशकों तक उच्च पद पर रहने वाले श्री अहमद पदम श्री सहित अनेक सम्मानों से पुरस्कृत हुए.

काजी अब्दुल बदूद

काजी अब्दुल बदूद उर्दू भाषा के प्रसिद्ध विद्वान थे, जिन्होंने उर्दू साहित्य में वैज्ञानिक शोध प्रबंध को प्रचलित किया है.

शाद अजीमाबादी (1848- 1927)

शाद अजीमाबादी पटना सिटी के रहने वाले उर्दू के सुप्रसिद्ध कवि थे, जिन्होंने उर्दू गजल को लोकप्रिय बनाने में निर्णायक योगदान दिया. उन्होंने उर्दू भाषा में बिहार पर पहली ऐतिहासिक रचना नक्शे पायदार लिखी.

कलीम अजीज

वर्तमान काल में बिहार के सर्वाधिक लोकप्रिय उर्दू कवि, जो पदम श्री से सम्मानित भी थे.

रामधारी सिंह दिनकर (1908-1974)

राष्ट्रकवि दिनकर जी की नवीन चेतना और ओर से भरी अधिकांश कविताओं में राष्ट्रीयता की भावना तथा कुछ कविताओं में विश्व प्रेम की भावना स्पष्ट परिलक्षित होती है.

आचार्य नलिन विलोचन शर्मा (1916- 1961)

आचार्य नलिन विलोचन शर्मा का जन्म पटना के बदर घाट मोहल्ले में हुआ था. वह हिंदी के मौलिक साहित्यकार, नई दृष्टि के समीक्षक, प्रयोगधर्मी कवि. मनोवैज्ञानिक, कहानीकार, अध्यापक, निबंधकार, अनुवादक, संपादक तथा चित्रकार थे. साहित्य और बौद्धिकता के क्षेत्र में इनकी पेठ अद्वितीय थी.

केदारनाथ मिश्र प्रभात

भोजपुरी भाषा के महाकवि पंडित केदारनाथ मिश्र प्रभात छायावादी और राष्ट्रवादी चेतना के सामान्य वादी कवि थे. इनकी रचना में दोनों प्रकार के (छायावादी और राष्ट्रवादी) स्वर मुखरित होते हैं.

नागार्जुन (1919- 1998)

तरोनी ग्राम (दरभंगा) के निवासी श्री वैद्यनाथ मिश्र, यात्री उर्फ नागार्जुन का जन्म जून, 1919 में हुआ था. आरम्भ से ही उनका जीवन संघर्ष में रहा है. इसी कारण उनकी रचनाओं में मानवीय दुख, अभाव व संघर्षों की कहानी प्रतिबिंबित होती है.

फणीश्वर नाथ रेणु (1921- 1977)

फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म 4 मार्च, 1921 को पूर्णिया (अब अररिया) जिला के औराही हिंगना गांव में हुआ था. वह एक साहित्यकार ही नहीं पत्रकार भी थे. उन्होंने नई दिशा (1945) नया कदम (1952-53) आदि पत्रों का संपादन किया है. 11 अप्रैल, 1970 को उनका निधन हो गया.

देवकीनंदन खत्री (1861- 1913)

देवकीनंदन खत्री पत्रकार एवं साहित्यकार थे. इनका जन्म 18 जून, 1861 को मुजफ्फरपुर के पूसा में हुआ. इन्होंने उपन्यास लहरी का संपादन किया. 1818 ई. में लहरी प्रेस की स्थापना की एवं माधव प्रसाद मिश्रा के संपादन में प्रकाशित पत्र सुदर्शन का संचालन किया.

चंद्रकांता (1891), नरेंद्र मोहिनी (1892), कुसुम कुमारी (1898), कटोरा भर खून (1895), काजल की कोठरी (1902) ,चंद्रकांता संतति (1905) भूतनाथ (1907), के अतिरिक्त लैला मजनू, गुप्त गोदना, नौलखा हार, अनूठी बेगम अधीन की महत्वपूर्ण कृतियां है. इनका निधन 1913 में हुआ.

राजा राधिकारमण प्र. सिंह (1890- 1971)

राधा राधिकारमण प्रसाद सिंह स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, समाजसेवी एवं साहित्यकार थे. उनका जन्म 10 सितंबर, 1890 को सूर्यपुरा रियासत (मुंगेर) में हुआ. उन्हें 1962 ई में पदम भूषण एवं 1965 ई में उत्कृष्ट साहित्य रचना हेतु डेढ़ लाख का पुरस्कार सम्मानित किया गया था, 24 मार्च, 1971 को उनका निधन हो गया.

आचार्य शिवपूजन सहाय (1893- 1962)

पत्रकार, साहित्यकार, अध्यापक आचार्य शिवपूजन सहाय का जन्म 9 अगस्त, 1893 को बिहार के शाहाबाद (वर्तमान भोजपुर) के उनवास ग्राम में हुआ था.

रामवृक्ष बेनीपुरी (1902- 1968)

साहित्यकार, राजनीतिज्ञ, समाजसेवक एवं पत्रकार बेनीपुरीजी, का जन्म जनवरी, 1902 में मुजफ्फरपुर के बेनीपुर ग्राम में हुआ था. उन्होंने कांग्रेस पार्टी सहित बिहार सोशलिस्ट पार्टी एवं बिहार प्रांतीय किसान सभा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.

गोपाल सिंह नेपाली (1911- 1963)

कवि, पत्रकार, गीतकार एवं फिल्म निर्माता नेपाली जी का जन्म 11 अगस्त, 1911 को बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के बेतिया में हुआ था. 17 अप्रैल, 1963 को उनका निधन भागलपुर जंक्शन के प्लेटफार्म नंबर 2 पर हुआ.

आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री (1916- 2011)

गया जिले के मेरवा में 1916 ई को जन्मे शास्त्री जी ने मुजफ्फरपुर को अपनी कर्मभूमि बनाया. 16 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने संस्कृत भाषा में काकली नामक पुस्तक की रचना की. इसके बाद उन्होंने संस्कृत में- वदी मंदिरम, लीला पदम आदि के अतिरिक्त हिंदू में- रूप-अरूप, राधा, तीर तरंग, हंस कीकिणी आदि कविताओं की रचना की. उनका महाकाव्य राधा, उपन्यास कालिदास और उनकी आत्मकथा हंस ब्लॉक का विश्व प्रसिद्ध हुई.

राज मोहन झा

प्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय हरिमोहन झा के सुपुत्र श्री राज मोहन झा मैथिली के सुप्रसिद्ध कथाकार हैं. काल्हि परसू आदि इन की प्रमुख रचनाएं हैं, इन्हें वर्ष 2009 का प्रबोध साहित्य सम्मान दिया गया है. वर्ष 1996 में इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.

स्वामी सत्यानंद सरस्वती (1923-2009)

अल्मोड़ा (उत्तराखंड) में 23 दिसंबर, 1923 को जन्मे स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने 20 वर्ष की अवस्था में (1940 में) गृह त्याग किया. स्वामी सत्यानंद सरस्वती योग और तंत्र के एक अग्रणी शांति थे. 6 दिसंबर, 2009 को वे ब्रहालीन हो गए.

नंदलाल बसु (1882- 1966)

नंदलाल का जन्म 3 दिसंबर, 1882 को खड़गपुर (मुंगेर) में हुआ. उनकी शिक्षा गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स कोलकाता (कोलकाता) में हुई. 1954 ई में वे ललित कला अकादमी के रतन सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए. 1957 ई. में उन्होंने अवकाश ग्रहण किया. 16 अप्रैल, 1966 को शांति निकेतन में उनका निधन हो गया.

ईश्वरी प्रसाद (1887-19449)

1887 ई. में लोदी कटरा,पटना सिटी, बिहार में दिन में ईश्वरी प्रसाद ने प्रसिद्ध चित्रकार एवं अपने नाना शिवलाल से कला की शिक्षा ग्रहण की थी.

महाराजा भूपेंद्र नारायण सिंह

इन्हें बिहार में फिल्मों के निर्माण (सिनेमा) की शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है. 1931 में इन्होंने हिंदी में पुनर्मिलन नामक फिल्म का निर्माण किया था, जिसे बिहार की पहली फिल्म होने का गौरव प्राप्त है.

विश्वनाथ प्रसाद (बी. पी.) शाहाबादी

1960-62 के दौरान गंगा मैया तोहे पियरी चढेबो नामक भोजपुरी फिल्म के माध्यम से इन्होंने बिहार में फिल्मों के व्यवसायिक निर्माण की शुरुआत की. इन्हीं से जुड़े लोगों ने बाद में लागी नाही छूटे रामा नामक लोकप्रिय भोजपुरी फिल्म का निर्माण किया था.

अल्लामा जमील मजहरी

आप स्वतंत्रता सेनानी एवं उर्दू के प्रमुख शायर होने के साथ-साथ राज्य के प्रमुख शिक्षाविद थे.

चित्रगुप्त

मुंबई की फिल्मी दुनिया में एक महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले बिहार के इस प्रसिद्ध संगीतकार ने गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ेबो फिल्म में संगीत दिया था. हिंदी फिल्मों से जुड़े रहने के बावजूद उन्होंने भोजपुरी फिल्मों से अपना रिश्ता कायम रखा.

रामेश्वर सिंह कश्यप

बिहार और आसपास के क्षेत्रों में लोहा सिंह के नाम से मशहूर श्री कश्यप आकाशवाणी के पटना केंद्र से प्रसारित लोहा सिंह शीर्षक नाटक से काफी प्रसिद्ध हुए. बाद में इसी शीर्षक से इन्होंने एक फिल्म भी बनाई थी.

श्याम सागर

कल हमारा है, बलमा नादान, बंसुरिया बाजे गंगा तीरे, जैसी फिल्मों में लोकप्रिय संगीत देकर वे दूसरे चित्रगुप्त कहलाए. अचानक कैंसर हो जाने के कारण इनका असामयिक निधन हो गया.

लक्ष्मण शाहाबादी

ये भोजपुरी फिल्मों के एक अन्य स्तंभ थे. पेशे से इंजीनियर एवं शोक से संगीतकार श्री शाहाबादी ने दूल्हा गंगा पार के फिल्म में लोकप्रिय संगीत दिया था.

प्रकाश झा

1984 में हिप-हिप हुर्रे, नामक फिल्म बनाकर यह काफी मशहूर हुए. 1985 में इन्होंने दामूल नामक फिल्म बनाई, जिसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. इनकी लोकप्रिय फिल्मों में मृत्युदंड, गंगाजल, अपहरण, राजनीति, आरक्षण, सत्याग्रह आदि का नाम उल्लेखनीय है. उन्होंने कई वृत्त चित्र तथा मुंगेरीलाल के हसीन सपने, विद्रोह आदि टीवी सीरियल भी बनाए हैं. 2009 में हुए आम चुनाव में प्रकाश झा ने बेतिया लोकसभा क्षेत्र से लोक जनशक्ति पार्टी प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा किंतु हार गए.

गिरीश रंजन

फिल्मी दुनिया में निर्देशक के रूप में प्रसिद्ध गिरीश नंदन ने महान फिल्मकार सत्यजीत के साथ सहायक निर्देशक की हैसियत से अपना करियर शुरू किया था. उन्होंने बिहार की पहली हिंदी में सफल फिल्म कल हमारा है बनाई. मोरे मन मितवा, डाक बंगला, आदि कई फिल्मों का निर्देशन किया है.

तिवारी

हिंदी चलचित्रों के प्रसिद्ध चरित्र-अभिनेता रामायण तिवारी ने भोजपुरी फिल्मों के निर्माण में अग्रणी योगदान दिया था. उन्होंने गोपी, यादगार, इज्जत, दुश्मन आदि अनेक हिंदी फिल्मों में खलनायक की कथा चरित्र भूमिकाएं की है.

शत्रुघ्न सेना

हिंदी चल चित्रों के प्रसिद्ध अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने अनेक हिंदी फिल्मों में खलनायक नायक एवं चरित्र अभिनेता के रूप में विभिन्न भूमिकाएं अदा की है. उनकी चर्चित फिल्मों में कालीचरण, विश्वनाथ, खिलौना, गौतम गोविंदा, दोस्ताना, शान, खुदगर्ज आदि का नाम उल्लेखनीय है.

पंडित सियाराम तिवारी

इनकी गणना धुपद-धमार ,ख्याल, ठुमरी, भजन, खेती आदि विधाओं के महान गायको में होती है. उन्होंने प्रमुख नगरों में शास्त्रीय संगीत कला की विभिन्न विधाओं का प्रदर्शन कर भारतीय संगीत का मान बढ़ाया है.

पंडित राम चतुर मल्लिक

हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रमुख घरानों में ग्वालियर, आगरा और मलिक घराना को काफी सम्मान प्राप्त है. इनमें से मलिक घराना के प्रमुख गायक पंडित राम चतुर मल्लिक सुविख्यात ध्रुपद गायक थे. इनका जन्म 1960 में दरभंगा जिला के अमता गांव में हुआ था.

भिखारी ठाकुर

रायबहादुर भिखारी ठाकुर भोजपुरी भाषा के प्रसिद्ध नाटककार, लेखक और अभिनेता थे.

उस्ताद बिस्मिल्लाह खां

1916 में बिहार में जन्मे उस्ताद बिस्मिल्लाह खां एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शहनाई वादक थे. डुमराव के राज दरबार का उन्हें संरक्षण प्राप्त था. बाद में वह बनारस में रहने लगे थे. लगभग 90 वर्ष की अवस्था में 2006 में उनका निधन हो गया.

पंडित श्याम दास मिश्र

संगीत मार्तंड से सम्मानित प्रख्यात गायक व शास्त्रीय संगीत के महान साधक पंडित श्याम दास मिश्र की ख्याति बिहार ही नहीं अपितु देश के विभिन्न हिस्सों और विदेशों में भी थी.

दामोदर प्रसाद अम्बष्ट

दामोदर प्रसाद अम्बष्ट बिहार के गिने-चुने शिल्पकारो में थे, यह अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई. श्री अम्बष्ट पटना के प्रसिद्ध शहीद स्मारक एवं बिहार कला महाविद्यालय के निर्माण से जुड़े थे.

हरि उप्पल

नटराज, नाट्यगुरु, नृत्यगुरु, दादा आदि उप नामों से संबोधित होने वाले हरि उप्पल का जन्म 22 सितंबर, 1926 को हुआ था. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पटना में ग्रहण की. पटना आर्ट कॉलेज में मूर्तिकला की शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत उन्होंने शांतिनिकेतन से जुड़कर कथकली और मणिपुरी नृत्य में महाभारत हासिल की.

मिलन दास

मिलन दास की शिक्षा कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना से हुई, जहां से उन्होंने ललित कला में डिप्लोमा प्राप्त की. कला एवं शिल्प महाविद्यालय, आरा में अध्यापक पद पर कार्य किया.

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