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बिहार के प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल

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बिहार के प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल

राजधानी पटना में स्थित प्रमुख मंदिर\देवालय

बड़ी पटन देवी मंदिर (पटना):  इक्यावन शक्तिपीठों में माना जाने वाला वह प्राचीन मंदिर पटना सिटी के पश्चिम दरवाजा के निकट महाराजगंज क्षेत्र में है. यहां भगवती दुर्गा की उपासना की जाती है.

छोटी पटनदेवी मंदिर (पटना): पटना सिटी के चौक क्षेत्र में अवस्थित यह पुरातन मंदिर भी भगवती दुर्गा को समर्पित है.

काली स्थान (पटना सिटी): चौक क्षेत्र के मंगल तालाब के निकट स्थित देवी कालिका यह प्राचीन मंदिर एक विख्यात पूजा स्थल है.

शीतला माता मंदिर (पटना): गुलजारबाग रेलवे स्टेशन से दक्षिण पश्चिम में अवस्थित ऐतिहासिक अगमकुआं परिसर में शीतला माता का यह प्राचीन मंदिर स्थानीय लोगों की श्रद्धा का केंद्र है. खसरे की बीमारी से देवी उनके और उनके परिवार की रक्षा करेगी, ईश्वर से लोग यहां पूजा अर्चना करते हैं.

कालीस्थान, दरभंगा हाउस: पटना में गंगा नदी के तट पर पटना विश्वविद्यालय के दरभंगा हाउस के निकट स्थित यह काली मंदिर श्रद्धालुओं की उपासना का अनन्य स्थान है.

चैतन्य महाप्रभु मंदिर (पटना): पटना सिटी में महात्मा गांधी सेतु से सटे गाय घाट क्षेत्र में अवस्थित लगभग 400 वर्ष पुराना यह चैतन्य मंदिर देश के ऐसे गिने-चुने मंदिरों में से एक है जहां ईश्वर की प्रतिमाओं के अलावा दुर्लभ साहित्यिक कृतियां, पांडूलीपिया, ऐतिहासिक महत्व की असंख्य वस्तुएं, चित्र एवं पुत्र कार्तिकेय भी अमूल्य संग्रह है.

हनुमान मंदिर (पटना): पटना जंक्शन के बिल्कुल सामने स्थित हनुमान जी की प्रतिमा वाला विशाल महावीर मंदिर श्रद्धालुओं की चर्चा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है.

महावीर मंदिर (पटना): पटना साहिब रेलवे स्टेशन के निकट बेगमपुर के जल्ले क्षेत्र में 400 वर्ष पुराना एक महावीर मंदिर है जो जल्ले का महावीर मंदिर नाम से जाना जाता है.

अन्नपूर्णा मंदिर (पटना): पटना सिटी में अशोक राजपथ से सटे संकट मोचन मार्ग (मछरहटा गली) में स्थित पटना का यह एकमात्र अन्नपूर्णा देवी का प्राचीन मंदिर है.

बिडला मंदिर (पटना): भारत के प्रतिष्ठित उद्योगपति राजा बलदेव दास जी बिड़ला द्वारा सन 1942 विक्रम संवत में निर्मित पटना के सब्जी बाग क्षेत्र में अवस्थित यह मंदिर हिंदू धर्मालांबिया की अटूट आस्था का केंद्र है.

राज्य के अन्य प्रमुख स्थल

अजगैबीनाथ मंदिर: भागलपुर से 26 किलोमीटर पश्चिम सुल्तानगंज में उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर स्थित भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर श्रद्धालुओं का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है. प्रत्येक वर्ष श्रावण महीने में लोग इस मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं और यहीं से गंगाजल का कांवर लेकर देवघर तक की पैदल यात्रा आरंभ करते हैं तथा वहां बाबा वैद्यनाथ का इस जल से अभिषेक करते हैं.

अरेराज का शिव मंदिर: पूर्वी चंपारण जिले के जिला मुख्यालय मोतिहारी से 35 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में अवस्थित भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का बहुत महत्व है.

अहिरोली (बक्सर): बक्सर शहरी क्षेत्र से प्राय 5 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में माता टीला का मंदिर है. ऐसा विश्वास किया जाता है कि ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या का उद्धार भगवान राम ने यहां पर किया था. यहां प्रतिवर्ष खिचड़ी उत्सव (मकर सक्रांति) के अवसर पर बड़ा मेला लगा रहता है.

उच्चैठ स्थान (मधुबनी): यहां माता काली का एक प्राचीन मंदिर है. इसके संबंध में किवदंती है कि महाकवि कालिदास द्वारा यहाँ देवी की आराधना की जाती थी.

उग्रतारा मंदिर (महिशी, सहरसा): सहरसा शहर से 17 किलोमीटर पश्चिम में स्थित महिषी ग्राम में एक प्राचीन उग्रतारा मंदिर है, जिसमें नील सरस्वती की प्रतिमा भी मूल प्रतिमा के साथ अवस्थित है. मधुबनी के नरेंद्र सिंह देव की पत्नी रानी पद्मावती द्वारा लगभग 500 वर्ष पूर्व तापी जी मंदिर सहित परिसर में स्थित अन्य मंदिरों की प्रतिमाएं पाल काल की है. प्राचीन मान्यता है कि आठवीं शताब्दी के दार्शनिक पंडित मंडल मिश्रा का जन्म महिशी ग्राम में हुआ था, आदि गुरु शंकराचार्य ने मिश्र तथा उसकी पत्नी भारतीय से यहां शास्त्रार्थ किया था.

कुशेश्वर स्थान (दरभंगा): यह स्थान भगवान शिव के 1 प्राचीन मंदिर के लिए विख्यात है. शिवरात्रि के अवसर पर प्रतिवर्ष यहां बहुत बड़ा मेला लगता है.

गिरिजा स्थान (मधुबन): हरलाखी से प्राय: 6 किलोमीटर की दूरी पर फूलहर में एक प्राचीन गिरिजा (पार्वती) मंदिर है. मान्यता है कि विवाह के पहले सीता (जानकी) नियमित रूप से यहां स्नान करने के लिए एवं फूल तोड़ने आती थी तथा मंदिर में पार्वती का पूजन करती थी.

गुप्त-धाम (रोहतास): कैमूर की पहाड़ियों में एक प्राकृतिक गुफा में प्राकृतिक रूप से ही बना एक शिवलिंग अवस्थित है जिसे गुप्तेश्वर नाथ के रूप में पूजा जाता है. बसंत पंचमी और शिवरात्रि के अवसर पर यहां बड़े मेले लगे रहते हैं.

चौमुखी महादेव (वैशाली): प्राचीन वैशाली नगर (आधुनिक बसाढ़) में एक तो मुखी महादेव सहित अन्य अति प्राचीन शिवलिंग है जिनकी पूजा अर्चना पूरी श्रद्धा से की जाती है.

चंडी स्थान (विराट पुर, सहरसा): सोनबरसा से लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर विराटपुर ग्राम में देवी चंडिका का एक प्राचीन मंदिर स्थित है. लोक आस्था के अनुसार यह मंदिर महाभारत काल से संबंध रखता है.

देवकुली का शिव मंदिर (शिवहर): शिवहर से प्राय: 6 किलोमीटर पूर्व दिशा में महाभारत कालीन राधा द्रुपद का किला (गढ़) माने जाने वाले स्थान पर भगवान भुवनेश्वर (शिव) का एक अति प्राचीन मंदिर है जिसके प्रति लोगों में अपार श्रद्धा है.

थावे (गोपालगंज): गोपालगंज से 6 किलोमीटर दक्षिण में थावे नामक ग्राम के समीप भगवती दुर्गा का एक प्राचीन मंदिर है. इसे सिद्ध पीठ माना जाता है, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं. यहां निकटस्थ जंगल में शेरों को भोजन कराने की परंपरा है. प्रत्येक वर्ष मार्च-अप्रैल (चैत) महीने में यहां बहुत बड़ा मेला लगा करता है.

नेपाली मंदिर (हाजीपुर): पटना से उत्तर हाजीपुर में गंगा और गंडक नदियों के पवित्र संगम स्थल पर अवस्थित यह प्राचीन नेपाली मंदिर अपने लघु आकृति में कार से सिलाव का अद्भुत नमूना है. इसके प्रत्येक कास्ट स्तंभ में भिन्न-भिन्न देवताओं की आकृतियां उत्कीर्ण है. यहां कुछ अन्य आकर्षक, आकृतियां, खुजराहो मंदिर की शैली में उत्कीर्ण है.

भलूनी धाम (रोहतास): विक्रमगंज के निकट भलुनी ग्राम में अवस्थित पार्वती के प्राचीन मंदिर के समीप प्रतिवर्ष अक्टूबर और अप्रैल माह में मेला लगा करता है.

मंदारगिरी (भागलपुर): भागलपुर शहर में प्राय 50 किलोमीटर दक्षिण में बौंसी से 5 किलोमीटर की दूरी पर ग्रेनाइट चट्टानों से बना 700- 8 फीट ऊंचा मंदार पर्वत पौराणिक महत्व का स्थान है. ऐसी मान्यता है कि देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन कार्य में इस पर्वत का मथानी के रूप में प्रयोग किया गया था. यहां पर मकर संक्रांति के अवसर पर बौंसी का विख्यात मेला लगता है. इस पर्वत शिखर पर भगवान मधुसूदन (विष्णु) का एक प्राचीन मंदिर है.

राजगीर (नालंदा): पटना शहर से 102 किलोमीटर की दूरी पर राजगीर का एक तीर्थ स्थान है. ऐसा विश्वास है कि मलमास की अवधि में सभी हिंदू देवी-देवताओं यहां एकत्र होते थे. मलमास के अवसर पर यहां लगभग एक माह चलने वाला बहुत बड़ा मेला लगता है. यहां बौद्ध, जैन, मुस्लिम धर्म संप्रदायों के भी अनेक पूजा स्थल है.

राम-जानकी मंदिर (सीतामढ़ी): सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन से 1 किलोमीटर की दूरी पर शहर में स्थित यह स्थान भगवती सीता का जन्म स्थल माना जाता है. यहाँ राम जानकी का मंदिर हिंदू आस्था का केंद्र है.

विष्णुपद मंदिर (गया): गया शहर में विष्णुपद मंदिर जहां अवस्थित है, उसके संबंध में पौराणिक गाथा है कि यहां पर भगवान विष्णु ने गयासुर नामक दैत्य का नाश यहां पर किया था. एक शीला पर दो चिन्हित अंकित है, जिन्हें भगवान विष्णु का पद जिन्हें माना जाता है और उसकी पूजा की जाती है. वर्तमान मंदिर का निर्माण आदि के अंत में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था.

शिव मंदिर (बराबर, जहानाबाद): गया से 24 किलोमीटर उत्तर में स्थित बराबर पहाड़ी के शिखर पर सिद्धेश्वर महादेव का एक प्राचीन मंदिर है. इतिहासज्ञो के अनुसार यह मंदिर सातवीं शताब्दी में निर्मित हुआ था. शिवरात्रि के अवसर पर दूर-दूर से कांवर में जल लाकर श्रद्धालु इस मंदिर में स्थित शिवलिंग का अभिषेक करते हैं.

शिव मंदिर (बैंकटपुर): ऐतिहासिक तथ्य है कि मुगल सम्राट अकबर के सेनापति राजा मानसिंह की माता ने इस स्थान पर शरीर त्याग किया था. राष्ट्रीय राज्य पथ संख्या 30 पर स्थित है वेंकटपुर नामक ग्राम में गंगा तट पर भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है जो राजा मान सिंह द्वारा बनवाया गया था. यह स्थान फतवा से 8 किलोमीटर पूर्व में अवस्थित है. शिव रात्रि में यहां मेला लगता है.

सिंहेश्वर स्थान (मधेपुरा): कहा जाता है कि यह शिव मंदिर श्रृंगी ऋषि के द्वारा स्थापित किया गया था. इसमें स्थापित शिवलिंग अति प्राचीन है. वर्तमान मंदिर प्राय: 200 वर्ष पुराना है.

सीता कुंड (मुंगेर): रामायण की पौराणिक कथाओं से जुड़ा यह स्थान मुंगेर से प्राय: 6 किलोमीटर पूर्व दिशा में अवस्थित है, जहाँ गर्म जल के कई कुंड और हिंदू मंदिर है.

सूर्य मंदिर (देव, औरंगाबाद): औरंगाबाद से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह प्रसिद्ध सूर्य मंदिर प्राय: 600 साल से भी अधिक पुराना और 100 फीट ऊंचा है. सामान्य सूर्य मंदिरों से विलग पश्चिम महाभिमुख होना इसकी विशेषता है. इस मंदिर का निर्माण उमगा के चंद्रवंशी राजा धर्मेंद्र सिंह द्वारा 15 वीं शताब्दी में कराया गया था. छठ पर्व के अवसर पर दूर-दराज के लोग भगवान सूर्य को अर्ध्य देने यहां आते थे.

सोमनाथ मंदिर (सोरठ, मधुबनी): सोरठ का महत्व मिथला वासियों के लिए अनन्य है. जहां मैथिल ब्राह्मण के विवाह निर्धारित होते हैं. इस हेतु प्रतिवर्ष एक बड़ा मेला लगता है इसे सोरठ मेला के नाम से जाना जाता है. गुजरात के सोमनाथ मंदिर के सदृश ही यहां भगवान शिव का एक मंदिर है जो प्राचीन मंदिर है.

हरिहर नाथ मंदिर (सोमनाथ): गज (हाथी) और ग्राह (घड़ियाल) की लड़ाई के पौराणिकआख्यानो का स्मरण करने वाला हरि (विष्णु) और हर (शिव) का यह प्राचीन मंदिर पटना शहर से उत्तर दिशा में प्राय 36 किलोमीटर दूर गंडक नदी के तट पर स्थित है. कार्तिक महीने में इसके आसपास सोनपुर का उत्सव विख्यात हरिहर क्षेत्र मेला लगा करता है.

बिहार में मुसलमानों के मुख्य खाने व पवित्र स्थल

इमामबाड़ा (पटना सिटी): पश्चिम क्षेत्र में शताब्दी में बनी मिर्जा मासूम की मस्जिद स्थित है. बुलंदी बाग (कुम्हरार) के पास गुनसर तालाब (झील) के निकट 19वीं शताब्दी में बना शाह अराजनी का मकबरा, इमाम बड़ा और ईदगाह दर्शनीय पवित्र स्थान है.

खानकाह (फुलवारी शरीफ, पटना): प्राय 13वीं शताब्दी से यह स्थान इस्लाम धर्म के प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित है. यहां हजरत मखदूम शाह द्वारा स्थापित खानकाह है, पैगंबर मोहम्मद की स्मृति में यहां उर्स शरीफ-रवि-उल-ओवल (10, 11 एवं 12 वीं तिथियों को) मनाया जाता है.

पत्थर की मस्जिद (पटना): पटना शहर में सुल्तानगंज क्षेत्र के मुख्य मार्ग पर 1621-26 में जहांगीर के पुत्र परवेज का बनवाया हुआ एक मस्जिद अवस्थित है. जिसे सगी या पत्थर की मस्जिद के नाम से जाना जाता है.

बड़ी दरगाह (बिहार शरीफ, नालंदा): पीर पहाड़ी पर स्थित हजरत मालिक बया तथा मख्दूम शाह श्फ्रुद्दीन की बड़ी दरगाह और हजरत बदरूद्दीन-ए-आलम की छोटी दरगाह, जामा मस्जिद मुसलमानों की अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थान है. यहां देश-विदेशी लोग आते हैं और इबादत करते हैं.

मनेर शरीफ (पटना): हजरत शाह दौलत या मखदूम दौलत का मकबरा (छोटी दरगाह) और हजरत शेख याहिया का मकबरा (बड़ी दरगाह) अत्यंत प्राचीन एवं मुसलमानों के लिए पवित्रतम तीर्थ स्थान है.

राजगीर (नालंदा): राजगीर में मखदूम कुंड मुसलमानों का अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थान है. यहाँ मुसलमान संत चिल्ला साहब की मजार है. मखदूम शाह शेख सरफुउद्दीन का यह निवास स्थान था. यह 14वी शताब्दी सऊदी में बना प्रतीत होता है. यहां मखुदम कुंड के नाम से विख्यात गर्म जल का प्राकृतिक झरना भी है.

राज्य में स्थित अन्य विख्यात इस्लामी धर्म-स्थल

शाही मस्जिद (हाजीपुर), पत्थर की मस्जिद (वैशाली) जामा मस्जिद (सासाराम) और अमझर शरीफ (औरंगाबाद) भी मुसलमानों के प्राचीन स्मारक है, तीर्थ स्थान तथा इबादतगाह के रूप में प्रसिद्ध है. पटना सिटी में ही हाजी गंज क्षेत्र में शेरशाह के शासन काल में निर्मित एक प्राचीन मस्जिद है. इनके अलावा सहायक काले का मकबरा (18वीं शताब्दी) मालसलामी मस्जिद (1738 ई.) शीश महल मस्जिद (1776 ई.) इत्यादि अनेक प्राचीन इबादतगाह पटना सिटी क्षेत्र में अवस्थित है.

बिहार में सीखें धर्मावलंबियों के धर्म-स्थल

तख्त श्री हरमंदिर साहिब (पटना): पटना जंक्शन से प्राय 12 किलोमीटर एवं पटना साहिब रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर की दूरी पर पटना सिटी में स्थित यह स्थान सिख धर्म के दसवें एवं अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म स्थल है. उनकी अनेक वस्तुएं अभी भी यहां सुरक्षित है. यहां सिक्खों का पवित्र स्थान है.

गुरुद्वारा गाय घाट (पटना): गुरु नानक देव जी यहां पहली बार 1509 ई. में ठहरे थे. बाद में1666 ई. में गुरु तेग बहादुर भी अपने परिवार के साथ यहां रुके थे. यह स्थान गाय घाट के पास आलमगंज मोहल्ले में अवस्थित है.

गुरुद्वारा गोविंद घाट (पटना सिटी): स्थान का संबंध गुरु गोविंद सिंह जी से रहा है और यहां हरमंदिर साहिब से लगभग 200 मीटर हटकर गंगा नदी के किनारे स्थित है.

गुरुद्वारा गुरु बाग (पटना): पटना फतवा मार्ग पर हरमंदर साहब से 3 किलोमीटर पूर्व की दिशा में अवस्थित है. गुरु तेग बहादुर बंगाल से लौटने के बाद अपने 4 वर्षीय पुत्र गोविंद राय से पहली बार यहां मिले थे.

गुरुद्वारा हांडी साहब (दानपुर): पटना से पंजाब के लिए प्रस्थान करते समय गुरु गोविंद सिंह ने यहां पर पहला ठहराव किया था. यह पवित्र स्थल तख्त श्री हरिमंदिर से 20 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में स्थित है.

राज्य के अन्य प्रमुख सिक्ख धर्म-स्थल: राज्य के गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा (पूर्णिया), मुंगेर गुरुद्वारा (मुंगेर), गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा (गया), गुरुद्वारा (सासाराम), आदि.

बिहार में ईसाइयों के धर्म-स्थल

पादरी की हवेली (पटना): पटना में अशोक राजपथ पर स्थित हुआ 1772 में निर्मित ब्लेस्ड वर्जिन मैरी चर्च पटना और राज्य का उल्लेखनीय चर्च है. मदर टेरेसा ने यहां पर नर्सिंग का प्रशिक्षण प्राप्त किया है.

राज्य के अन्य विख्यात इसाई धर्म स्थल: सेंट जोसेफ चर्च (बांकीपुर, पटना), सेंट टामस दी एपार्सल चर्च (गया), सेंड फ्रांसीसी आसीसी चर्च (मुजफ्फरपुर), सेंट जोसेफ चर्च (जमालपुर), सेंट स्टीफन चर्चे (दानपुर), ऑवर लेडी ऑफ़ सरोज चर्च (आरा) और ब्लेस्ड वर्जिन चर्च (बक्सर) आदि.

बिहार में बौद्ध धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थल

बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर: बोधगया स्थित है इस मंदिर की भव्यता सुविख्यात है. स्थान पर सर्वप्रथम सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी में एक स्तूप बनवाया था, जिसे बाद में कुषाण काल में मंदिर का स्वरूप दिया गया. कुख्यात आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने 1205 ई. में इस मंदिर को नष्ट कर दिया था.

बोधि वृक्ष (बोधगया): महाबोधि मंदिर के पश्चिम में पवित्र पीपल का वृक्ष है, जिसके नीचे समाधि लगाकर सिद्धार्थ ने ज्ञान प्राप्त किया तथा वह  बुद्ध बन गए. इतिहासकारों के अनुसार वर्तमान वृक्ष अपने वंश की चौथी पीढ़ी का है. कहा जाता है कि इस वृक्ष की पहले की पीढ़ियों को सम्राट अशोक की रानी तिस्यारक्षिता, बंगाल के हिंदू शासक संसाक का भ्रमण और प्राकृतिक आंधी-तूफानी ने गिरा दिया था. चौथी टहनी जो निकली वही वर्तमान वृक्ष है जिसके पत्ते पौधे धर्मावलंबियों के लिए अत्यंत श्रदेय हैं.

वज्रासन (बोध गया):  यह चबूतरे का आकार का है. मान्यता है कि इसे प्रस्तर चबूतरे पर बैठकर बुद्ध ने ध्यान लगाया था.

राजगीर: बौद्ध धर्म की दृष्टि से राजगीर काफी महत्वपूर्ण है. यहां बौद्धों के कई समर्थक हैं जिन्हें देखने देश विदेश से भारी संख्या में पर्यटक आते हैं.

विश्व शांति स्तूप (राजगीर): जापान-भारत सर्वोदय मैत्री संघ द्वारा रत्नागिरी पर्वत के शिखर पर 1969 में विश्व शांति के प्रतीक के रूप में यह विशाल स्वरूप निर्मित हुआ. प्रत्येक वर्ष वार्षिकोत्सव के अवसर पर देश विदेश से अनेक श्रद्धालु यहां आकर भगवान बुद्ध को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.

गृद्ध-कूट पर्वत (राजगीर): भगवान बुद्ध ने इस स्थान पर वर्षा-वास किया था.

सप्तपर्णी गुफाएं (राजगीर): भगवान बुद्ध के निर्वाण प्राप्त करने के उपरांत इसी स्थान पर प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था और बुद्ध के संदेशों को पहली बार लिपिबद्ध किया गया था.

जीवक-आम्रवन (राजगीर): विख्यात आयुर्वेदाचार्य जीवक द्वारा स्थान पर एक चिकित्सालय स्थापित किया गया था. मान्यता है कि चचेरे भाई देवदत्त ने जब ईर्ष्यावश बुद्ध को घायल कर दिया था, तब इस स्थान पर उनकी चिकित्सा-सुश्रुषा हुई थी.

वेणुवन बिहार (राजगीर): मगध सम्राट बिंबिसार द्वारा यह वेणुवन भगवान बुद्ध को निवास के लिए उपहार में दिया गया था. यह स्थान भगवान बुद्ध को बहुत प्रिय था.

वैशाली: भगवान बुद्ध के निर्वाण प्राप्ति के बाद उनकी पवित्र अस्थियों को मुख्य श्रद्धालुओं द्वारा जिन स्तूपों के नीचे सुरक्षित किया गया था.

बिहार में जैन धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थल

कमलदह (पटना): गुलजारबाग रेलवे स्टेशन के निकट ही कमलदह नामक क्षेत्र में जैनियों का प्राचीन मंदिर है.

कुंडा ग्राम (वैशाली): कुंडा ग्राम (बासोंकुंड) में भगवान महावीर का जन्म हुआ माना जाता है. यह स्थान पटना से 54 किलोमीटर उत्तर में वैशाली के निकट है.

गुनावा जी (नवादा): पटना-रांची सड़क मार्ग पर नवादा के निकट संस्थान स्थित है जहां जैनियों का प्राचीन मंदिर है.

लछुआर (जमुई): सिमरिया से 8 किलोमीटर और सिकंदरा से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित स्थान पर जैनियों का प्राचीन मंदिर है.

चंपा, नाथ नगर (भागलपुर): भागलपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर चंपा (नाथ नगर) में दिगंबर जैनियों का प्राचीन मंदिर अवस्थित है.

पावापुरी (नालंदा): पटना से 92 किलोमीटर दूर पटना रांची राष्ट्रीय उनसे पथ पर स्थित पावापुरी भगवान महावीर का यह निर्माण स्थल है. जल मंदिर और समोसा मंदिर यहां के प्रमुख तीर्थ स्थान है.

आरा (भोजपुर): आरा शहर में जैनियों के 45 मंदिर है. इस के निकट मसार में भी एक प्राचीन जैन मंदिर है.

राजगीर (नालंदा): पटना से 102 किलोमीटर की दूरी पर स्थित राजगीर में मनियार मठ है, सोन भंडार तथा पहाड़ों में के शिखर पर जैनियों के कई पवित्र मंदिर स्थित है.

बिहार के प्रमुख पर्यटन परिपथ

बिहार में रामायण, भगवान बुद्ध और बौद्ध धर्म, सूफी संत व सूफी सिलसिला तथा कोशी क्षेत्र से संबंधित चार प्रमुख परिपत्थ सर्किट. है.

रामायण परिपथ (रामायण सर्किट)

रामायण परिपथ के अंतर्गत बिहार के वे स्थान आते हैं जिनका बिहार में सीता(जानकी), राम अथवा रामायण कालीन कथा या प्रसंगों से कोई संबंध रहा है.

रामायण परिपथ के प्रमुख स्थलों से जोधपुर स्थित थाड़ (जहां राक्षसी ताड़का का वध हुआ), बक्सर स्थित अहिरौली (गौतम ऋषि की पत्नी देवी अहिल्या को जहां राम ने श्राप मुक्त कर उनका उद्धार किया था) तथा रामरेखा घाट (सीता स्वयंवर में शामिल होने के लिए जनकपुर जाते समय गुरु विश्वामित्र के साथ है राम और लक्ष्मण ने यहीं से गंगा नदी को पार किया), गया स्थित प्रेतशिला पहाड़ (जहां के 1 कुंड में राम ने स्नान किया था), जहानाबाद स्थित काको (धाराम की सौतेली माता केकई ने कुछ दिन प्रवास किया), दमोह स्थिति गीदेश्वर (सीता का हरण करके ले जाते समय यहां पर जटायु नामक है गिद्ध के साथ लंकापति रावण की लड़ाई हुई थी), मधेपुरा स्थिति सिंघेश्वर स्थान (यह उसी ऋषि श्रृंग की तपोभूमि है जिसे अयोध्या नरेश दशरथ के प्रथम अश्वमेघ यज्ञ तथा पुत्रेषिट यज्ञ संपन्न कराने का श्रेय दिया जाता है.तथा जिनकी दिव्य औषधि से राजा दशरथ है को चार पुत्र प्राप्त हुए), मधुबनी स्थित से फूलहर (जहां स्थित गिरजा मंदिर में राजा जनक की पुत्री सीता देवी- आराधना हेतु आती थी तथा पुष्प वाटिका से फूल तोड़कर भगवंती की पूजा करती थी), वैशाली स्थित रामचौरा (जनकपुर जाते समय भगवान राम स्नान आदि के लिए रुके थे), सीतामढ़ी स्थित जानकी मंदिर और जानकी मंदिर, पुनौर (जिसे राजा जनक की पुत्री सीता का जन्म स्थान माना जाता है), हलेश्वर स्थान (जहां पर विदेह राज जनक ने हल चलाया था) तथा पथ पाकड़ (जहां पर विवाह उपरांत अयोध्या जाते समय सीता डोली को बरगद वृक्ष के नीचे आश्रम हेतु रखा गया था), पूर्वी चंपारण स्थित सीता कुंड (जहां पर भगवान राम की पत्नी सीता ने स्नान किया था), पश्चिम चंपारण चनकीगढ़ (जिसे जानकी गढवी कहा जाता है तथा जहां राजा जनक के किला का अवशेष देखा जा सकता है), मुंगेर स्थित सीता कुंड (अग्नि परीक्षा के पश्चात शरीर की तपन को शांति के लिए सीता ने यहां पर स्नान किया था). नवादा सीतामढ़ी (जहां पर भगवान राम द्वारा निर्वाचित किए जाने के बाद वाल्मीकि मुनि के आश्रम के निकट गुफा में सीता निवास किया था तथा यहीं पर उनके दोनों पुत्रों लव और कुश ने भगवान राम की सेना से युद्ध किया था).

इनके अतिरिक्त सारण स्थितरिविलगंज गोदना, दरभंगा स्थित अहियारी अथवा अहिल्या स्थान, पश्चिम चंपारण स्थित वाल्मीकि नगर आदि भी रामायण परिपथ के अंतर्गत आते हैं.

रामायण परिपथ के अंतर्गत आने वाले उपयुक्त स्थानों से संबंधित विवरण पुरानी के लेखों व्याख्यानों, स्थानीय अवधारणा तथा  किंवदंतियों पर आधारित है.

बुद्ध परिपथ (बुद्धिस्ट सर्किट)

गौतम बुद्ध से जुड़े अनेक स्थल बिहार की धरती पर आज दुनिया भर के श्रद्धालु और सैलानियों के लिए उपासना और पर्यटन के प्रमुख केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है.

केंद्र और राज्य सरकारों ने बौद्ध स्थलों के महत्व को देखते हुए इस पर्यटन के बौद्ध परिक्रमा के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है. जापान सरकार  की मदद से भी बौद्ध स्थलों का काफी विकास व उद्धार कार्य हुआ है बौद्ध परिपथ के तहत मुख्य रूप से बोधगया, राजगीर, नालंदा, वैशाली, लोरिया नंदगढ़, केसरिया विक्रमशिला और औरंगाबाद के स्थल आते हैं.

बुद्ध परिपथ के विकास की दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए केंद्र सरकार ने 148 किलोमीटर लंबी हाजीपुर-सुगौली नई रेल लाइन का निर्माण कार्य आरंभ किया, जिसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेई ने 10 फरवरी, 2004 किया था.

सूफी परिपथ\सूफी सर्किट

इन्हें कुछ प्रमुख स्थल है- मनेर शरीफ, खानकहा मुजीबीया, मंगल तालाब वैशाली स्थित हजरत जनदाह, हाजीपुर कर्बला, मामू भगीना का मजार, मुजफ्फरपुर में स्थित दाता कमाल शाह का मजार, मुंगेर स्थित पीर पहाड़, बिहार शरीफ स्थित बड़ी और छोटी दरगाह, रोहताश स्थित चंदन साहिब की दरगाह, शेरशाह का मकबरा आदि.

कोशी परिपथ

कोशी परिपथ के अंतर्गत आने वाले राज्य के प्रमुख स्थलों में सहरसा स्थिति वर्धा राजस्थान (महिषी) मंडन भारती स्थान (महिषी), सूर्य मंदिर (कन्दाह), कारू स्थान (महापुरा), परमहंस लक्ष्मीनाथ गोसाई स्थान बाबा जी कुटी (बनगांव), चंडी स्थान (विराटपूर, सोनवर्षा), देवनंबन (शाहपुर, नवहटा), मत्स्यगंधा जलाशय (सहरसा सदर), मधेपुरा जिला सिंघेश्वर स्थान, श्रीनगर, नए, बसंतपुर, सुरसंड, रामनगर, सुपौल, परीगंज, देवी पट्टी, परसाराम, पूर्णिया स्थित जलालगढ़, पूर्ण देवी, गुलाब बाग, छोटी पहाड़ी, धरहरा, संपदाहर, किशनगंज स्थिति बहादुरगंज, दिघल बैंक, बड़ीजान, कटिहार स्थित मनिहारी, कुर्सेला, बेलदास, अररिया स्थित पलासी, मदनपुर, खगड़िया स्थिति कात्यानी स्थान, पीर नगर आदि का नाम उल्लेखनीय है.

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