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बिहार की अर्थव्यवस्था

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बिहार की अर्थव्यवस्था

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य और आंकड़े

बिहार की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि से संबंधित क्रियाकलापों और कृषि आधारित उद्योगों पर निर्भर है.

बिहार की अर्थव्यवस्था की हाल की विकास प्रक्रिया में निरंतरता रही है. वर्ष 2005-06 से 2014-15 के बीच स्थिर मूल्य पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में दर्शकों 10.52% की दर से वृद्धि हुई है. साल 2010-11 से 2014-15 के बीच वृद्धि दर उससे थोड़ी कम-9.89 प्रतिशत थी. यह धीमी वृद्धि मूलतः समग्र राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में आ रही गिरावट के अभिव्यक्त है. लेकिन, बिहार की अर्थव्यवस्था की विकास दर अभी भी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से तेज है. अभी बिहार देश के सबसे तेज विकास दर वाले राज्य में से एक है.

वर्ष 2005-06 से 2014-15 के बीच 15% से अधिक विकास दर दर्ज करने वाले क्षेत्र है- निबंधित निर्माण (19.31%), निर्माण (16.58%) एवं बीमा (17.70% ) और परिवहन/भंडार/संचार (15.08), राज्य की लगभग 90% अब जीविका का मुख्य स्रोत रहे कृषि एवं पशुपालन क्षेत्र का विकास 6.02 प्रतिशत की दर से हुआ है.

उच्च विकास के दौर के बावजूद प्रति व्यक्ति आय की तालिका में बिहार की स्थिति अभी भी राज्यों में सबसे नीचे बनी हुई है. वर्ष 2012-13 में बिहार के प्रति व्यक्ति आय संपूर्ण भारत के औसत का 37.0% थी. लेकिन यह अनुपात 2014-15 से बढ़कर 40.6% हो गया है.

साल 2004-05 से 2006-07 के त्रिवर्ष  में सकल राज्य घरेलू उत्पाद में तीन प्रमुख क्षेत्रों के औसत हीसे इस प्रकार थे-प्राथमिक क्षेत्र (प्राइमरी सेक्टर) 30.2%, द्वितीय (सेकेंडरी) क्षेत्र 14.8% तथा तृतीयक  क्षेत्र 55.0% है. एक दशक 2012-13 से 2014-15 के त्रिवर्ष प्राथमिक क्षेत्र का हिस्सा घटकर 20.5% रह गया. साथ ही द्वितीयक क्षेत्र का हिस्सा बढ़कर 18.4% और तृतीयक क्षेत्र का हिस्सा 61.2% हो गया.

प्रमुख क्षेत्रों के अंदर भी कुछ क्षेत्रों के शो में इन वर्षों के दौरान काफी परिवर्तन लिखा है. प्राथमिक क्षेत्र में कृषि एवं पशुपालन के हिस्से में काफी गिरावट देखी गई है. विधि क्षेत्र में निर्माण का हिस्सा 8.0% से बढ़ाकर 12.8% हो गया है. तृतीयक क्षेत्र में अपेक्षाकृत अधिक विकास दर दर्ज करने और अपना हिस्सा बढ़ाने वाले क्षेत्र है संचार, बैंकिंग एवं बीमा, तथा व्यापार, और होटल एवं जलपानगृह है. सकल राज्य घरेलू उत्पाद में लोक प्रशासन और अन्य सेवाओं के हिस्सों में गिरावट देखी गई है.

बिहार के जिलों के बीच भी प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारी अंतर है. वर्ष 2011-12 में पटना (63063 रु) मुंगेर (22051रु) और बेगूसराय (17587 रुपए) बिहार के सर्वाधिक उन्तिशिल होते हैं.वहीं आंकड़ों के अनुसार सबसे गरीब जिले  मधेपुरा , सुपौल, और सीवहर है. आंकड़ों के अनुसार सबसे गरीब 3 जिले मधेपुर (8609 रुपए) सुपौल (8492 रूपय) और शिवहरे (7092 रुपए) है. अगर हम पटना जिले को भी छोड़ भी दें, धारा जी की राजधानी स्थित है, तो दूसरी सर्वाधिक उन्नतिशील जिले मुंगेर की प्रतिव्यक्ति आय सबसे गरीब जिला शिवहर से 3 गुनी से अधिक है.

कृषि श्रमिकों और ग्रामीण श्रमिकों के मामले में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में वृद्धि पूरे भारत के मुकाबले कुछ धीमी रही है. औद्योगिक श्रमिकों के मामले में मूल्यवृद्धि पूरे देश की अपेक्षा विहार की अधिक है. नंबर 2015 में, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आंकड़े कृषि श्रमिकों के लिए बिहार 746 और भारत 853, ग्रामीण श्रमिकों के लिए बिहार 752 और भारत 857 तथा औद्योगिक श्रमिकों के लिए बिहार 287 और भारत 270 थे.

राजकीय व्यवस्था

बिहार का राज्य अधिवेश- 2013-14 बढ़कर ₹41 हो गया था जो 2014-15 पुन: घटकर ₹5848 करोड रुपए रह गया हैहालांकि पूंजीगत निवेश ओं में प्रचुर वृद्धि (8954 करोड रुपए है) के कारण राजकोषीय घाटा 2010-11 के तीन 99 शतक और रुपए से बढ़ कर 2014-15 में 11178 करोड रुपए तक पहुंच गया है. इसके बावजूद सकल राजकोषीय घाटा एफआरबीएम  अधिनियम द्वारा भी 3% की सीमा के पर्याप्त नहीं है.

वर्ष 2014-15 . में राजस्व प्राप्ति में 14% की वृद्धि देखी जो इसके पहले 3 वर्षों में दिखी लगभग 16 वृद्धि से कम है. वर्ष 2014-15 में राजस्व प्राप्ति में हुई वृद्धि मुख्यतः केंद्रीय अनुदान में 52% वृद्धि के कारण थी जो 2014 और 15 में ₹12584 से बढ़कर ₹19146 करोड़ हो गया है. वित्त वर्ष में जो 14वें वित्त आयोग की अनुशासओं का पहला वर्ष है, केंद्रीय अनुदान घटकर वस्तुतः 18,171 करोड रुपए ही रह जाएगा.

वर्ष 2010-11 से 2014-15 के बीच विकासमुल्क राजस्व दूने से भी अधिक बढ़कर 22,926 करोड़ से 46,158 करोड रुपए हो गया है. वहीं विकास क्षेत्र राज्य सभा इस अवधि में थोड़ी कम गति से बढा और 15,287 करोड रुपए से 26,408 करोड रुपए तक पहुंचा जिसका बड़ा हिस्सा पेंशन और बयानों के कारण था.

वर्ष 2014-15 के कुछ पूंजी के 18150 करोड रुपए मैसेज 14728 करोड रुपए का आर्थिक सेवाओं पर किया गया जिसका लगभग 28% हिस्सा सड़कों एवं फूलों की अधिसूचना के निर्माण पर खर्च हुआ. सामाजिक सेवाओं पर पूंजीगत परिव्यय 1674 करोड रुपए का. इसमें से 19% हिस्सा (315 करोड रुपए) राज्य में स्वास्थ्य योजनाओं के निर्माण और उनमें सुधार पर 53% है (885 करोड रुपए) शैणिक अधिसरंचना के निर्माण पर खर्च हुआ. जल एवं स्वच्छता में सुधार पर और 16% (263 करोड रुपए) शैणिक अधिसरंचना के निर्माण पर खर्च हुआ.

योजना व्यय और योजनेतर व्यय के बीच फासला 2007-08 से घटने लगा था. वर्ष 2014-15 में योजनेतर योजना का सिर्फ 1.2 गुना था जो उसकी पिछले साल 1.4 गुना था. औरत 2014-15 में कुल योजना 42,939 करोड रुपए और कुल योजनेतर व्यय 50,759 करोड रुपए था.

राज्य सरकार पर बकाया ऋण 2010-11 में 47,285 करोड रुपए था जो सकल राज्य घरेलू उत्पाद के 23.2% के बराबर था. वर्ष 2014 और 2015 में बकाया ऋण बढ़कर 74,075 करोड रुपए पहुंच गया, लेकिन और सकल राज्य घरेलू उत्पाद के बीच का अनुपात काफी गिर कर 18.5% रह गया जो बाहर वा वित्त आयोग द्वारा 28% की निर्धारित सीमा से काफी नीचे है. राजस्व प्राप्ति के साथ ब्याज भुगतान का अनुपात भी 2014-15 में घटकर 7.8% रह गया. यह भी बाहरवें वित्त आयोग द्वारा निर्धारित 15% की उच्च  सीमा से काफी नीचे है. यह स्पष्ट दर्शाता है कि ऋण समस्या राज्य सरकार के बिल्कुल नियंत्रण में है.

वर्ष 2007-08 में राज्य सरकार की अपनी कर और करेतर राजस्व प्राप्तियां मिलकर उस के कुल राजस्व व्यय को मुश्किल से 24% हिस्सा ही पूरा कर पाती थी. उसके बाद से इस बात में सुधार हुआ है और 2014-15 में यह लगभग 31% के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया है.

वर्ष 2010-11 से 2014-15 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ी, जबकि राजस्व व्यय 17% की अपेक्षाकृत उधर से बढा. अंतिम 5 वर्षों में राज्य सभा अधिशेष मौजूद रहा, किंतु अधिशेष में साल दर साल कमी आती गई. 5 वर्ष की अवधि में कुल राजस्व प्राप्ति 2010 और 2011 के 44,532 करोड रुपए से 1 दिसंबर चंद्र गुना बढ़ाकर 2014-15 में 78,418 करोड रुपए हो गई. साथ ही इस अवधि में राज्य का अपना राज्य सभा जिसमें कर और करेत्तर, दोनों प्रकार के राजस्व शामिल है, 20% की अपेक्षाकृत तेज दर से बढ़ा है. यह 2010-11 के 10,855 करोड रुपए, से बढ़कर 2014-15 में 22,309 करोड रुपए हो गया है.

राज्य सरकार की कर प्राप्तियों के विश्लेषण से पता चलता है कि उसके प्रमुख स्रोत बिक्री कर, स्टांप एवं निबंधन शुल्क, माल एवं यात्री कर तथा वाहन कर है. राज्य सरकार की कुल कर संप्राप्ति में इन पांचों करो का संयुक्त हिस्सा 93% है.

वर्ष 2010-11 से 2014-15 के दौरान सामाजिक सेवाओं के मामले में प्रति व्यक्ति वह लगभग दुनी वृद्धि हुई जो 1479 रुपए से बढ़ कर 2849 रुपए और आर्थिक सेवाओं पर प्रति व्यक्ति व 1.7 गुना बढ़ाकर ₹768 से ₹298 हो गया. वहीं प्रति व्यक्ति पूंजीगत परिव्यय 108 गुना बढ़ाकर ₹900 से ₹1631 हो गया है.

राज्य सरकार की आय के मुख्य स्रोत

राज्य का वार्षिक योजना एवं रखरखाव के लिए संवैधानिक व्यवस्था के अनुकूल केंद्र सरकार से करो में हिस्सा, ऋण तथा अनुदान की प्राप्ति है.

केंद्र द्वारा वसूली गई आयकर, संपत्ति कर एवं उत्पाद कर में वित्त आयोग की सिफारिशें पर राज्य का अंश निर्धारित होता है.

राज्य सरकार को संविधान की धारा 275 के अंतर्गत सहायता अनुदान  प्राप्त होता है. इसके अतिरिक्त राज्य को केंद्र से ऋण की भी प्राप्ति होती है.

आंतरिक आय-स्रोत

कर राजस्व

राज्य के आयोजकों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-  

प्रत्यक्ष कर- जो आय एवं संपत्ति पर लगते हैं.

अप्रत्यक्ष कर जो वस्तुओं एवं सेवाओं पर लगाए जाते हैं.

पहली श्रेणी में मुख्य रूप से भू-राजस्व आता है जो प्राचीन काल से ही राज्य की आय का मुख्य स्रोत रहा है. 1950-51 में यह कर राज्य राज्य की आय का प्रधान स्त्रोत था अब इसके महत्व में बहुत ह्रास हुआ है. 1994-95 में भू-राजस्व से 12.73 करोड रुपए की प्राप्ति हुई. 1995-96 में यह 32.85 करोड रुपए थी.

राज्य उत्पाद शुल्क शराब, नशीली वस्तुओं तथा प्रसाधन सामग्रियों पर लगाया जाता है. इसका कुल संग्रह राज्य स्वयं व्यय करता है.

राज्य में अप्रत्यक्ष कर के अंतर्गत आय का सबसे बड़ा स्रोत बिक्री कर है.

बिक्री कर लगाने का अधिकार राज्यों को 1935 के भारत सरकार अधिनियम के अंतर्गत प्राप्त हुआ तथा द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान राजस्व के स्रोतों के रूप में इसका प्रयोग शुरु हुआ.

राज्य में यही एक कर कुछ हद तक लोचदार कर है. अतः इस की दर एवं वसूली में निरंतर वृद्धि होती रही है.

आज राज्य की कुल कर आय में बिक्री कर का योगदान 70% से अधिक है.

कर आय के अतिरिक्त राज्य को ब्याज की वसूली, लाभांश, तथा सामान्य सेवाओं जैसे- लोक निर्माण,  प्रशासनिक सेवाएं,जेल सामाजिक सेवाएं- जैसे- शिक्षा, लोक स्वास्थ्य, शहरी विकास, जलापूर्ति आदि तथा आर्थिक सेवाओं जैसे- कृषि, उद्योग सहकारिता, वानिकी आदि से भी आए की प्राप्ति होती है.

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