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बिहार में गरीबी की समस्या और उसके उन्मूलन के उपाय

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बिहार में गरीबी की समस्या और उसके उन्मूलन के उपाय

राज्य में रोजगार का निम्न स्तर एवं मजदूरी की निम्न दर है. इसका प्रमुख कारण राज्य में कृषि का परंपरागत स्वरूप है. सिंचाई, परिवहन, भंडार तथा विपणन व्यवस्था की रचनात्मक त्रुटियों के कारण राज्य के अधिकार भू-भाग में एक या दो फसल ही हो पाती है. पशुधन तथा कृषि आधारित उद्योग के विकास के न होने से मूल्य, विशेषकर खाद्यानो के मूल्य में, निरंतर वृद्धि तथा उनकी उपलब्धि में कमी के कारण खाद्यान में वृद्धि के बावजूद भी गरीब वर्ग द्वारा उसके उपयोग में ह्रास हुआ है.

खाद्यान उपभोग में गिरावट से कैलोरी उपभोग में गिरावट आई है, जिससे गरीबी रेखा से नीचे के लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है. गरीबी रेखा की अवधारणा छठी पंचवर्षीय योजना काल में योजना द्वारा निर्धारित लक्ष्य कार्यक्रम बनाने हेतु की गई है. इसके अंतर्गत ऐसे लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी एवं शहरी क्षेत्रों में 2100 किलौरी से कम उपभोग करते हैं, को गरीबी रेखा से नीचे (BPL) माना जाता है.

1993 ई. में योजना आयोग ने प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रोफेसर डीटी लकड़वाला की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जिसका उद्देश्य गरीबी आकलन की पद्धति को ठोस आधार प्रदान करना था. 1996 में भारत सरकार ने इस विशेष समिति की सिफारिशों को मान्यता प्रदान की है.

बिहार में गरीबी का स्वरूप अन्य विकसित राज्यों की अपेक्षाकृत भिन्न है. यहां अधिकतर एक गरीब व्यक्ति अकुशल मजदूर हैं जो कृषि कार्य पर रोजगार के लिए आश्रित है. इनके अतिरिक्त व्यापक ग्रामीण ऋणग्रस्तता, सीमांत कृषकों की बदहाली, सामंतवादी शक्तियों का एकजुट होना, सरकार द्वारा भूमि सुधार उपायों का कारगर ढंग से लागू नहीं करना जहां गरीब के प्रमुख कारण हैं.

गरीबी उन्मूलन एवं ग्रामीण विकास कार्यक्रम

राज्य में ग्रामीण विकास एवं रोजगार कार्यक्रमों को तीन श्रेणी में बांटा जा सकता है-

  1. एसी परियोजना जो पूर्णता राज्य योजना द्वारा वित्त पोषित है, जैसे- सामुदायिक विकास (मुख्यमंत्री सड़क योजना, मुख्यमंत्री क्षेत्र योजना, मुख्य पंचायती राज विषय क्षेत्रीय योजना तथा न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम आदि)
  2. ऐसी परियोजना  जो 50 : 50 के अनुपात में केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित है जैसे- समेकित ग्रामीण विकास योजना तथा सूखा पीड़ित क्षेत्र योजना.
  3. ऐसी परियोजनाएं, जिनका अधिकतर वितरण केंद्र द्वारा होता है, जैसे- प्रधानमंत्री रोजगार योजना, सर्व शिक्षा अभियान, इंदिरा आवास योजना आदि.

राज्य में ग्रामीण विकास तथा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, उन्हें हम संरचना के आधार पर तीन वर्गों में बांट सकते हैं:

आय संवर्ध्दन एवं कल्याण योजनाएं

इन कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य गरीबी रेखा के नीचे जनमानस को आय संवर्ध्दन का अवसर प्रदान करना है. ऐसे कार्यक्रमों, जैसे- समेकित ग्राम विकास योजना (IRDP), ग्रामीण स्वरोजगार योजना, ग्रामीण महिला एवं शिशु विकास कार्यक्रम के दौरान किए गए गरीब परिवारों को आय संवर्ध्दन के साधन उपलब्ध पाए जाते हैं अथवा प्रशिक्षण दिए जाते हैं तथा इनमें साधनों के वितरण तथा वित्त पोषण में सब्सिडी की व्यवस्था की जाती है.

मजदूरी रोजगार कार्यक्रम

इन कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य कृषि कार्यों में पहचान किए हुए गरीब रेखा से नीचे आने वाला परिवारों को मजदूरी रोजगार प्रदान करती है तथा अनेक कार्यक्रमों के अंतर्गत काम के बदले अनाज भी दिया जाता. इन कार्यक्रमों में सुनिश्चित रोजगार योजना (EAS) उल्लेखनीय है.

क्षत्रीय विकास उपागम

इन कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य क्षेत्र विशेष का विकास एवं आर्थिक संवर्ध्दन होता है. इन कार्यक्रमों में प्रत्यक्ष रोजगार के अतिरिक्त के ऊपरी पूंजी एवं संरचना विकास पर अधिक बल दिया जाता है, जैसे- सामुदायिक विकास कार्यक्रम, न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम.

प्रोत्साहन परिषद

बिहार में विकास की गति को बढ़ाने के लिए विकास एवं निवेश प्रोत्साहन परिषद का गठन किया गया है. इस परिषद का अध्यक्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बनाया गया है और इसके उपाध्यक्ष एन के सिंह है.

विकास एवं निवेश प्रोत्साहन परिषद में सदस्य हैं और यह देश के शीर्ष उद्योगपतियों, वैज्ञानिकों, और विचारों सहभागिता वाली संस्था सरकार थिंक टैंक के रूप में कार्य करेगी.

11वीं पंचवर्षीय योजना व बिहार

वर्ष 2007-12 के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना में बिहार के लिए कुल 58,000 हजार करोड रुपए की मंजूरी दी गई है. इस योजना के प्रथम चरण यानी 2007-08 के लिए 10,200 करोड रुपए निर्धारित किए गए हैं. इसमें परिवहन व संचार के लिए 2,399 करोड़, शिक्षा के लिए 816 करोड, ग्रामीण विकास के लिए 965 करोड तथा ऊर्जा क्षेत्र के लिए ₹851 का प्रावधान किया गया है.

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम

यह कार्यक्रम बैंक ऋण देकर रोजगार के अवसर प्रदान करने वाली केंद्र प्रायोजित योजना है. इस ऋण-संपकित योजना का आरंभ 2008 में पूर्ववर्ती ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम और प्रधानमंत्री रोजगार योजना को मिलाकर किया गया था. योजना का क्रियान्वयन खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग राज्य स्तरीय खादी एवं ग्रामोद्योग और जिला उद्योग केंद्र द्वारा किया जाता है.

बिहार में महिला सशक्तिकरण

बिहार पंचायती राज अधिनियम 2006 में महिलाओं के लिए संपूर्ण सीटों में से 50% सीट की आरक्षण का प्रावधान महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक सशक्त कदम है.

महिला विकास निगम

महिला विकास निगम (बिहार) समाज कल्याण विभाग के अधीन बिहार सरकार का एक उपक्रम है. इसका गठन राज्य स्तर पर महिलाओं के सर्वागीण विकास हेतु राज्य मंत्रिमंडल की दिनांक 21 जून, 1990 को हुई बैठक में लिए गए निर्णय के आलोक में हुआ है. यह निगम सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 21 के अंतर्गत 28-11-1991 निबंधित हुआ है.

आर्थिक सशक्तीकरण

राज्य सरकार ने महिलाओं को प्राथमिक विद्यालयों की रिक्तियों में 50% आरक्षण दिया है. वर्ष 2015 में जीविका के तहत 45.23 लाख परिवारों को शामिल कर के 3.76 लाख महिला स्वयं सहायतासमूह का गठन किया गया है. अन्य लाभों के अलावा, स्वयं सहायता समूह छोटी बचतों को बढ़ावा देते हैं. अभी 15,224 ग्राम संगठन और 261 संकुल स्तरीय संघ कार्यशील है. संस्था निर्माण, क्षमता निर्माण और वित्तीय समावेश के क्षेत्रों में भी काफी प्रगति दर्ज की गई है.

जीविका की पहलकदमियों के जरिए 2007-08 से 2014-15 के बीच 1.6 लाख स्वयं संहिता समूह को बैंक को से जोड़ा गया है. वित्तीय समावेश की प्रगति में स्वयं सहायता समूहों को 586.33 करोड रुपए का संस्थागत ऋण भी शामिल है. महिलाओं की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक अग्रगति के लिए बिहार राज्य महिला सशक्तीकरण नीति, 2015 क्रियान्वयन किया जा रहा है.

राज्य सरकार आजीविका कौशल एवं महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना के तहत उद्यम शुरू करने के लिए गरीब महिलाओं द्वारा ऋण लेने पर ब्याज दर में 3% अतिरिक्त छूट को स्वीकृत की गई है. महिलाओं के नाम पर निबंधित और उनके द्वारा संचालित तिपहियों, टैक्सी, और मैक्सी कैब पर वाहन कर शत प्रतिशत छूट स्वीकृत की गई है.

राज्य सरकार ने बिहार शस्त्र बल में नई महिला बटालियन तैयार करने और राज्य के सभी जिलों में महिला थाना स्थापित करने का निर्णय लिया है. पुलिस बल में सिपाही के पदों पर सीधी महिला और कनिय निरीक्षक नियुक्त करने के मामले में महिलाओं को 35% आरक्षण दिया गया है.

सामाजिक सशक्तिकरण

राज्य सरकार ने महिलाओं के विरुद्ध हिंसा से संबंधित कानूनी मुद्दों पर क्षमता निर्माण और नारी सशक्तिकरण से संबंधित मुद्दों के कुपोषण के लिए जेंडर संस्थान  केंद्र स्थापित किया है.

हिंसा और मानव व्यापार से बची महिलाओं के पुनर्वास के विचार से सभी महिलाओं में सामाजिक पुनर्वास कोष योजना चल रही है. मानव विकास से बचने वाली महिला को ₹3,000 का तत्काल भुगतान किया जाता है. मानव व्यापार की उत्तरजीवियों को रहने की सुविधा और दीर्घकालिक राहत देने के लिए एवं पुनर्वास केंद्र पटना में कार्यशील है.

मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना 2007-08 से चल रही है. योजना के तहत 18 वर्ष की हो जाने के बाद लड़की की शादी करने पर गरीब परिवार को उस में वित्तीय सहायता दी जाती है. इस योजना के एकाधिक उद्देश्य है- विवाह के निर्बंधन को प्रोत्साहन,  बाल विवाह पर रोक, और बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन. साल 2007-08 से 2014-15 के बीच 78,385 लड़कियां लाभवंती हुई है. इस योजना पर 444.13 करोड रुपए व्यय किया गया है. मानसिक विकलांग महिलाओं और लड़कियों के लिए पटना में 50 शय्याओं वाले एक विशेष आवास गृह आसरा ने काम करना शुरू कर दिया है.

हेल्पलाइन योजना:  घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को मनोवैज्ञानिक और कानूनी सहायता उपलब्ध कराने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री नारी शक्ति योजना के तहत राज्य के सभी 38 जिलों में हेल्पलाइन स्थापित कर चालू कर दिया गया है. महिला हेल्पलाइन चलाने के लिए वर्ष 2014-15 में 44.45 लाख रुपए खर्च किए गए हैं.

महिलाओं का सांस्कृतिक सशक्तिकरण

महिलाओं के सर्वागीण विकास के लिए कला एवं संस्कृति एवं महत्वपूर्ण पहलू है. संस्कृति के सशक्तिकरण महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ाने में काफी सहायक सिद्ध हो सकती है. इस दृष्टिकोण से नीमन योजनाएं कार्य करने का प्रस्ताव है जैसे- महिला सांस्कृतिक मेला का, स्वयं सहायता समूह तथा महिलाओं को नवाचारी कार्यों के लिए पुरस्कार की योजना.

नवाचारी योजना- महिला सशक्तिकरण की दिशा में नवाचारी प्रयोग को प्रोत्साहित करने के दृष्टिकोण से स्वयं सहायता समूह है, सहकारिता आधारित संघ एवं ने मनजीत गैर सरकारी संगठनों को नवाचारी योजना की प्रस्तुति करने के लिए विभिन्न प्रकार से सहायता देने का प्रस्ताव है.

महिलाओं के लिए बजट में प्रावधान

साल 2008-09 में शुरू हुए जेंडर बजट में जहां 10 विभागों को शामिल किया गया था वहीं वर्ष 2009-10 में दो अन्य विभागों को जोड़ा गया और वर्ष 2010-11 में एक और विभाग को शामिल किया गया है. वर्ष 2015 जेंडर बजट में कुल 18 विभाग शामिल थे.

जेंडर बजट के अनुसार वर्ष 2015-16 में समाज कल्याण विभाग में श्रेणी के लिए 1628.8 करोड रुपए और श्रेणी 1 के लिए 296.5 करोड रु, स्वास्थ्य विभाग में श्रेणी 2 के लिए 0.0 करोड रुपए और श्रेणी 1 के लिए 85.1 करोड रुपए, शिक्षा विभाग में श्रेणी 2 के लिए 4319.7 करोड रुपए.वैतरणी एक के लिए 517.1 करोड रुपए, पंचायती राज विभाग में श्रेणी 2 के लिए 112.3 करोड रुपए, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में श्रेणी 2 के लिए 48.3 करोड रुपए और श्रेणी 1 के लिए 2 करोड रुपए का प्रावधान किया गया है.

महिला सशक्तिकरण  के लिए लगातार प्रयास कर रही बिहार सरकार ने जेंडर बजट का दायरा बढ़ा दिया गया है. सभी सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 35% आरक्षण का प्रावधान किया गया है. साल 2015-16 में महिलाओं के लिए कुछ परिव्यय 11,359.01 करोड रुपए था जो पिछले वर्ष से (12,578.32 करोड रुपए) की तुलना में कम है.

सकल राज्य घरेलू उत्पाद में महिला हेतु परिव्ययों का हिस्सा वर्ष 2014-15 में (3.1% ) की तुलना में 2015-16 में 2.4% रह गया है. वर्ष 2015-16 में समाज कल्याण, SC-ST कल्याण, PHED, अल्पसंख्यक कल्याण, शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, नगर विकास एवं आवास, पंचायती राज, श्रम संसाधन, योजना एवं विकास है, पिछड़ा अति पिछड़ा वर्ग कल्याण, राजस्व एवं भूमि सुधार, कला, संस्कृत, एवं युवा कार्य, उद्योग, कृषि, सूचना एवं प्रौद्योगिकी और भवन निर्माण विभाग में महिला कल्याण पर विशेष रूप से खर्च होगा.

महिला पुरुष के तुलात्मक विकास

संकेतक पुरुषों महिला
जनसंख्या (करोड़ों में) 5.42 4.98
जीवन प्रत्यशा 65.50 66.20
लिंग अनुपात 1000.00 918.00
लिंग अनुपात (0-6 वर्ष) 1000.00 935.00
साक्षरता (प्रतिशत) 71.20 51.80

बिहार में महिला सशक्तिकरण के बढ़ते  कदम

  • श्रीमती मंजू झा बिहार पुलिस सेवा की पहली डी. एस. पी बनी (1983 ईस्वी में).
  • सुप्रसिद्ध कथक नृत्यगाना नीलम चौधरी ने बिहार प्रशासनिक सेवा की संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया (1989 बैच में)
  • राज्य महिला विकास निगम का निबंधन हुआ (28-11-1991)
  • श्रीमती राबड़ी देवी बिहार की पहली मुख्यमंत्री बनी (25 जुलाई, 1997)
  • राज्य में 23 वर्ष बाद पंचायती राज चुनाव कराए गए (11 से 30 अप्रैल, 2001). इस चुनाव परिणाम के आधार पर बड़ी संख्या में महिलाओं के चुने जाने के बाद महिलाओं की सामाजिक सक्रियता एवं भूमिका में उल्लेखनीय वृद्धि हुई.
  • राज्य महिला आयोग का गठन हुआ (8 अगस्त 2001) तथा मंजू प्रकाशित की पहली अध्यक्ष बनी.
  • जयपुर (राजस्थान) के बाद देश के दूसरे महिला नियोजनालय की स्थापना पटना (बिहार) में हुई (18-08-2001)
  • राज्य में 18 वर्ष के बाद नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायतों का चुनाव आयोजित हुआ (28 अप्रैल, 2002) इस चुनाव परिणाम ने भी राज्य में महिलाओं को सामाजिक व राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने में योगदान दिया.
  • स्वराज्य महिला खेल महोत्सव का आयोजन हुआ मुंगेर में (20-30 सितंबर 2004).
  • पंचायती राज में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण प्रदान करने वाला देश का पहला राज्य बना (बिहार) 2006 ई.

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