G.KStudy Material

बिहार में वास्तुकला

बिहार में वास्तुकला, बिहार में कला एवं संस्कृति, bihar mein kala aur sankriti, bihar mein kala se jude facts, bihar mein kala aur sankriti, bihar mein vastukla

More Important Article

बिहार में कला एवं संस्कृति

चैत्य: बुद्ध की समृद्धि में बने स्मारक और समाधि ओं को बौद्ध ग्रंथों में चेत्य कहा गया है. वास्तु कला की दृष्टि से इसका नाम स्तूप रखा गया है. बिहार का वैशाली चेत्यों का गढ़ माना जाता है. राजगृह में भी चेत्य बनाए गए थे.

विहार: बौद्ध भिक्षुओं के ठहरने का स्थान विहार कहलाता है. इन विहार में रहकर भिक्षु व भिक्षुणीया साधना करते थे. यहां स्थवीर, आचार्य आदि के संरक्षण में रहकर साधना की जाती थी. चीनी यात्री हेनसांग ने नालंदा के विचारों का वर्णन अपने यात्रा वृतांत में किया था.

गुफाएं: पर्वतों के काटकर बनाई गई गुफाएं मौर्य काल की वस्तु वास्तुकला के अद्भुत नमूने हैं. भिक्षुओं के निवास के लिए अशोक और उसके पुत्र दशरथ ने इसका निर्माण करवाया था. या गुफाएं पत्र की चट्टानों को खोखला करके बनाई गई है, जो अध्यवसाय और धैर्य की सूचक मानी जाती है.

प्राचीन कालीन वास्तुकला

कला की प्रगति के संपर्क साक्ष्य बिहार में मौर्य काल (लगभग चौथी शताब्दी ई. पु.) से उपलब्ध होने लगते हैं. इस समय वास्तु कला की विशेष प्रगति हुई.

मौर्यकालीन स्थापत्य के नमूने मुख्यतः पटना, राजगीर और गया के समीप बराबर की पहाड़ियों में देखे जा सकते हैं. पटना के दक्षिण भाग में कुम्हार से एक मौर्यकालीन विशाल कक्ष के अवशेष मिले हैं, जिसमें अस्सी स्तंभ थे. जो किसी सभागार या राजमहल का हिस्सा था. केवल इसके खंभों के अवशेष बचे रह गए हैं.

यह गोलाकार खंभे पत्थर की एक शीला को काटकर बनाए गए हैं और इनमें कोई जोड़ नहीं है. इनकी कलात्मक सुंदरता और चमकीली पॉलिश के कारण और भी बढ़ गई है जिसके द्वारा इन्हें चिकना और चमकीला बनाया गया है. पत्थर पर चमकीली पॉलिश का उपयोग मौर्य वास्तुकला की उत्कृष्ट विशेषता है जिस के नमूने अशोक द्वारा निर्मित स्तंभों और तत्कालीन मूर्तियों पर भी देखे जा सकते हैं.

इन खंभों की बनावट पर इरानी कला का प्रभाव स्पष्ट है. इनको एकाश्म बनावट और इनका गोल आकार इरानी स्तंभों के समान है, किंतु दोनों में अंतर यह है कि ईरानी शैली में खंभों के सिर पर फूल पत्ते, बेल और पक्षियों के माध्यम से सजावट का प्रयास देखा जा सकता है जबकि इन खंभों में इसका अभाव है. मौर्यकालीन यह खंबे टूटी हुई अवस्था में है और इनके पूर्ण रूप का मात्र अनुमान ही किया जा सकता है.

इसी प्रकार के स्तंभ अधिक ऊंचाई के अंतर के साथ, अशोक द्वारा अपने धम्म नीति के प्रचार हेतु बनवाए गए हैं, इसके शीर्ष पर पशुओं का आकार है, जिन के नीचे उल्टे हुए कमल के फूल का समान आसन भी है. ऐसे स्तम्भ बिहार में चार जगहों लोरिया नंदनगढ़, लौरिया अरेराज (पश्चिम चंपारण) रामपुरवा (पूर्वी चंपारण) और बसाढ (वैशाली) में है. इन पर प्रथम छ: स्तंभ लेख सुरक्षित है.

इनके निर्माण में चुनार के दूसरे बालू के पत्थर का उपयोग हुआ है और इन पर भी चमकीली पॉलिश का उपयोग है. बराबर की पहाड़ियों की गुफाएं मौर्यकालीन स्थापत्य का एक अन्य उदाहरण है. इनमें अशोक और उसके पुत्र दशरथ के अभिलेख अंकित है. जिनसे पता चलता है कि इन गुफाओं का निर्माण आजीवक संप्रदाय के अनुयायियों और बौद्ध भिक्षुओं के निवास के लिए कराया गया था.

राजगीर स्थित सोन भंडार की गुफाएं भी इस क्रम की वृद्धि प्रतीत होती है, गुफाओं के भीतरी भाग पर चमकीली पॉलिश का उपयोग इन की विशिष्टता है. स्थापत्य कला के क्षेत्र में पाल शासकों की देन भी महत्वपूर्ण रही है. इसके हिसाब से आनंदपुरी, नालंदा और विक्रमशिला महाविहार है. ओदंतपुरी के अवशेष सुरक्षित नहीं है.

नालंदा में विभिन्न युगों में मंदिर बने, स्तूप और विहार देखे जा सकते हैं. भिक्षुओं के रहने की आवास एक निश्चित योजना के आधार पर बने हैं जिसमें खुले आंगन के चारों और बरामदे हैं, जिनके पीछे कमरे हैं. इमारतें दो मंजिला थी और इनमें सीढियों की व्यवस्था थी.

अंतिचक से प्राप्त विक्रमशिला महाविहार के अवशेष पालयुगीन स्थापत्य की विशेषता को और भी स्पष्ट करते हैं. यहां एक मंदिर और स्तूप के अवशेष मिले. दोनों ही ईट के बने हैं. इनमें पत्थर और मिट्टी की बनी गौतम बुद्ध की विशाल मूर्तियां हैं. दीवारों के बाहरी हिस्से पर मिट्टी की तख्तियों से सजावट का काम लिया गया है. इन पर बौद्ध धर्म एवं वैष्णो मत दोनों का ही प्रभाव है तथा इसमें सामान्य जीवन के दृश्य भी दृष्टव्य है.

मध्यकालीन वास्तुकला

12वीं शताब्दी के अंत में बिहार पर तुर्कों का अधिकार हो गया. स्थापत्य कला के क्षेत्र मे तुर्क, अफगान और मुगल शासकों की विशिष्ट देन रही है. तुर्क काल की सबसे महत्वपूर्ण इमारत बिहार शरीफ स्थित मलिक इब्राहिम या मलिक बया का मकबरा है, इसका निर्माण 1353 में हुआ इस पर दिल्ली की समकालीन तुगलक शैली का प्रभाव है. इसकी सिद्धि प्रेरणा गयासुद्दीन तुगलक के मकबरे से ली गई है. जिसका प्रमाण ढलानी दीवारों और लंबोतरे गुंबद में देखा जा सकता है,

अफगान शैली का प्रतिनिधित्व सहसराम (सासाराम) स्थित तीन मकबरों, हसन खा, शेरशाह और इस्लाम शाह के हैं, से होता है. शेरशाह का मकबरा बिहार में ही नहीं बल्कि समस्त भारत में अफगान स्थापत्य का सर्वश्रेष्ठ नमूना है. इसका निर्माण 1535-1545 में पूरा हुआ. झील के मध्य में स्थित अष्टकोण आकार का यह मकबरा चौकोर चबूतरे पर बना है जिसके चारों ओर सीढ़ियां हैं. इसकी एक भव्य गुंबद के रूप में है. अपनी सादगी, संतुलित रूप और गंभीरता के लिए यह मकबरा प्रसिद्ध है.

शेरशाह के पुत्र का उत्तराधिकारी इस्लाम शाह का मकबरा भी इसे ढाचे का था, परंतु अपनी विशालता के कारण वह अधूरा रह गया है. शेरशाह की तरह बख्तियार खां का मकबरा भी शाह सूरी मकबरा चैनपुर में बनाया गया था.

मुगलकालीन वास्तुकला

स्थापत्य कला की मुगल शैली का बिहार में सबसे सुंदर उदाहरण 1617 में बनाया शाह दौलत का मनेर स्थित मकबरा है. इसे जहांगीर के शासनकाल में बिहार के प्रार्थी इब्राहिम खा काकर ने बनवाया था. इसका निर्माण लाल पत्थर से हुआ है और इस पर अकबर के अधीन विकसित संश्लेषित शैली का प्रभाव है. इसकी सुंदर जालियां, ऊंचा चबूतरा और भव्य गुंबदे इसके मुख्य आकर्षण हैं. मकबरे की मुख्य इमारते मुगलकालीन मकबरों के चार बाग शैली के अनुरूप है.

इस काल में बिहार में जो थोड़े से हिंदू मंदिर निर्मित हुए थे उनमें पटना से 18 मील की दूरी पर अवस्थित है. बैंकटपुर का शिव मंदिर, जिसके लिए राजा मानसिंह ने आर्थिक सहायता की व्यवस्था की थी, प्रसिद्ध है. रोहतास गढ़ में निर्मित हरीश चंद्र मंदिर के निर्माण का श्रेय भी राजा मानसिंह को ही प्राप्त है.

आधुनिक वास्तुकला

यूरोपीय व्यापारियों के आगमन से यूरोपीय स्थापत्य की शैली का प्रभाव मे भी बिहार में पड़ा है. पटना कलेक्टरी (समाहरणालय) और पटना कॉलेज के भवन होलैंड की शैली से प्रभावित है.पटना सिटी स्थित पादरी की हवेली और बांकीपुर चर्च की इमारतें, गौथिक शैली का प्रतिनिधित्व करती है.

पटना स्थित राजभवन, मुख्य सचिवालय और उच्च न्यायालय की इमारतों पर यूरोपीय पुनर्जागरण काल की शैली का प्रभाव है, जबकि हिंदी-इस्लामी शैली के परवर्ती उदाहरण पटना संग्रहालय के सुल्तान पैलेस की इमारतों में देखे जा सकते हैं.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close