आज इस आर्टिकल में हम आपको बिहार में यूरोपीय व्यापारियों का आगमन के बारे में बताने जा रहे है.

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बिहार में यूरोपीय व्यापारियों का आगमन

मध्यकालीन बिहार अंतरराष्ट्रीय व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है और इस क्षेत्र में यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों 17वीं शताब्दी से ही सक्रिय रहे. बिहार के क्षेत्र में सर्व प्रथम पुर्तगाली आए. उनका व्यापारिक केंद्र बंगाल में हुगली का, जहां से वे नाव द्वारा पटना तक आते थे. वे अपने साथ मसाले, चीनी मिट्टी के बर्तन आदि लाते थे और वापसी में सूती व अन्य वस्त्र ले जाते थे.

अंग्रेज 1620 में ही पटना में आलमगंज में अपना व्यापारिक केंद्र स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील हुए मगर उन्हें, वास्तविक सफलता 1651 में मिली. पटना (बिहार) में डच फैक्ट्री की स्थापना 1632 में हुई. डचों की अभिरुचि सूती वस्त्र, अनाज और शोरे की प्राप्ति में थी. बाद में अंग्रेजों ने नील की प्राप्ति भी क्षेत्र से की.

डच फैक्ट्री वर्तमान पटना कॉलेज की उतरी इमारत है तथा अंग्रेजों की फैक्ट्री अब गुलजार बाग स्थित गवर्नमेंट प्रिंटिंग प्रेस है. एक अन्य फैक्ट्री डेन लोगों की थी जो वर्तमान पटना सिटी में स्थिति नेपाली कोठी के समीप थी. इसकी स्थापना 1774 में हुई थी.

यूरोपीय व्यापारियों के माध्यम से बिहार का व्यापार मध्य एशिया, पश्चिम एशिया, अफ्रीका के तटवर्ती क्षेत्रों और यूरोपीय देशों के साथ उन्नत रूप से होता रहा. विभिन्न यूरोपिय यात्रियों ने इस काल में बिहार के व्यापारिक महत्व की चर्चा की है.

लगभग इसी काल में बिहार आए एक अन्य यात्री मैनरीक ने पटना की जनसंख्या 2 लाख बताया था. अंग्रेज यात्री जॉन मार्शल और पीटर मुंडी ने भी इस काल में पटना की समृद्धि और यहां के अमीर वर्ग के ऐश्वर्या पूर्ण जीवन की चर्चा की है. बिहार का राजनीतिक महत्व भी इसे व्यापार के संदर्भ में बहुत अधिक था.

18वीं शताब्दी में बिहार के अंग्रेज फैक्टर (व्यापारिक अधिकारी) को दिल्ली की राजनीतिक परिस्थितियों की जानकारी लेने और उसे बंगाल के अधिकारियों को अवगत कराने का दायित्व भी पूरा करना पड़ता था.

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