- छत्तीसगढ़ प्राचीनकाल में कौशल, महाकौशल, दक्षिण कौशल एवं दंडकारन्य कहलाता था
- साहित्य में छत्तीसगढ़ शब्द का उपयोग पहली बार खैरागढ़ राज्य के राजा लक्ष्मीनिधि राय के काल में चारण कवि दलराम राव ने 1487 में किया था।
- वैदिक काल में यह भूभाग आर्यों और अनार्यों का समन्वय स्थल रहा है। उस काल में आर्यों के शब्दों में यह भू-भाग महाकालअंतर के नाम से जाना जाता था।
- रामायण युग में यह विशिष्ट भूभाग दक्षिण कौशल के नाम से जाना जाता है।
- छठी शताब्दी ई. पूर्व में संपूर्ण भारत में 16 महाजनपदों थे, जिनमें से एक चेदि जनपद था। यह चेदि जनपद वैदिक साहित्य में वर्तमान छत्तीसगढ़ के लिए ही प्रयोग किया गया है।
- यहां विभिन्न वंशों के शासकों का शासन रहा है यथा मौर्य, सातवाहन, वाकाटक, कलचुरी, नागवंशो, ने यहां शासन किया है। क्षेत्र के इन शासकों के राज्यकाल के अभिलेख सिक्के ताम्रपत्र और पुरातात्विक महत्व के साक्ष्य उपलब्ध है।
- छत्तीसगढ़ में सबसे लंबे समय का शासन कलचुरी शासकों का रहा है।
- कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ नामकरण गढ़ों की गणना के आधार पर किया गया है। उस समय 12 ग्रामों का एक बरहा हुआ करता था और सात बराहो का एक गढ़ जब 36 गढ़ों को समाहित कर दिया गया तो वह कहलाया छत्तीसगढ़।
- एक ऐतिहासिक निष्कर्ष यह भी है कि छत्तीसगढ़ नाम चेदीशगढ़ नाम का ही अपभ्रंश है, क्योंकि कलचुरी राजा चेदीयवंशीय थे और उनका राज्य चेदीशगढ़ कहलाता था, जो कालांतर में छत्तीसगढ़ हो गया।
- प्रख्यात पुरातत्वविद जे. डी. वेगलर की मान्यता है कि जरासंघ के राज्य में 36 चर्मकारों के परिवार दक्षिण में जा बसे और उन्होंने अपने पृथक-पृथक 36 घर आस-पास ही बनाए, जो कालांतर में छत्तीसगढ़ कहलाए।
- धनोरा नामक स्थल से उत्खनन से लगभग 500 महापाषाण कालीन स्मारक मिले हैं।
- प्रागैतिहासिक काल में छत्तीसगढ़ से अनेक शैलचित्र उपलब्ध हुए हैं जिनमें प्रमुख है – रायगढ़ जिले के सिंघनपुर तथा कबरापहाड़ में अंकित शैलाश्रय व दुर्ग जिले में चितवा डोंगरी, रायगढ़ में बसजाझर, ओंगना, क्रमागढ व लाफागढ।
- ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार चीनी यात्री हेनसांग ने वर्ष 609 ई. में दक्षिण कौशल राज्य की यात्रा की थी। भगवान बुद्ध ने भी इस राज्य में प्रवास किया था। इस राज्य में प्राचीनकालीन बौद्ध विहार तथा बौद्ध मंदिर स्थित है।
- महमूद खिलजी प्रथम ने वर्ष 1440-41 में सरगुजा पर आक्रमण किया। मुगल बादशाह जहांगीर ने वर्ष 1618-19 में रतनपुर पर आक्रमण किया। इसके कुतुबशाही ने बस्तर पर आक्रमणों की झड़ी-सी लगा दी।
- रघुजी प्रथम का पुत्र बिम्बाजी भोंसला छत्तीसगढ़ में प्रथम मराठा शासक बने और इन्होंने रतनपुर को अपनी राजधानी बनायी
- मराठों की मित्रता अंग्रेज शासकों से बढी, तो उन्होंने छत्तीसगढ़ को अपने नियंत्रण में लेकर इसे कैप्टन एडमंड के अधीन जिला बना दिया। इसके बाद उनके उत्तराधिकारी एग्न्यू अधिनियम छत्तीसगढ़ की राजधानी रतनपुर के स्थान पर रायपुर बना दी। फिर वर्ष 1854 में अंग्रेजों ने छत्तीसगढ़ को अपने अधीन ले लिया।
- छत्तीसगढ़ का प्रथम शहीद सेनानी, वीर नारायण सिंह थे। इस प्रकार छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद होने का गौरव एक आदिवासी नायक से प्राप्त हुआ है।
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छत्तीसगढ़ी स्थानों के प्राचीन नाम
नवीन नाम |
प्राचीन नाम | नवीन नाम | प्राचीन नाम |
बस्तर | भ्रमरकोट, चक्रकेट, दण्डकारन्य |
जांजगीर | जाजल्लनगरी, जाजल्लपुर |
कांकेर | कंक नगरी,काकैर्य | कबीरधाम | कवर्धा |
धमतरी | धर्मतराई | राजीम | पदम क्षेत्र, रामपुर |
सिहावा | मेचका सिहावा | सारंगढ़ | सहरागढ़ |
दुर्ग | दुरुग, शिव दुर्ग | शिवरीनारायण | शौरी नारायण |
रतनपुर | हीरापुर, रत्नावलीपुर हीरापुर | सिरपुर | चित्रांगदपूर श्रीपुर |
खल्लारी | मृतकागढ़, खल्वाटिका | पाटन | भागपुर पाटन |
- छत्तीसगढ़ में हरिजनोंद्धार कार्य का प्रारंभ पंडित सुंदरलाल शर्मा द्वारा 1917 से प्रारंभ कर दिया गया था।
- गांधीजी सर्वप्रथम अपनी ऐतिहासिक हरिजन यात्रा में दुर्ग पहुंचे और वहां घनश्याम सिंह गुप्त के यहां खड़े थे।
- छत्तीसगढ़ में मंदिर प्रमुख स्थापत्य कला के रूप में परिलक्षित होते हैं।
- छत्तीसगढ़ में मंदिर वास्तु का प्रारम्भ 5वीं शती से शरभपुरी शासनकाल से होता है।
- छत्तीसगढ़ का सर्वाधिक प्राचीन मंदिर बिलासपुर के तालाग्राम में स्थित देवरानी जेठानी का मंदिर है।
- पाषाण निर्मित मंदिरों का प्रचलन कलचुरियों के शासनकाल से हुआ इसमें प्रमुख है- पाली, जांजगीर, भोरमदेव, आरंग, व बारसूर के मंदिर।
- भोरमदेव मंदिर का निर्माण कवर्धा के नागवंशियों द्वारा किया गया था।
मूर्तिकला
- ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी से चौदहवीं शताब्दी तक छत्तीसगढ़ के मूर्तिकला में उत्कृष्ट उदाहरण प्राप्त हुए हैं। बिलासपुर के बुढीखार (मल्हार) में देश की प्राचीनतम अभिलिखित चतुर्भुज विष्णु प्रतिमा प्राप्त हुई है। इसे राज्य में सर्वाधिक प्राचीन मूर्ति का गौरव प्राप्त है।।
- बस्तर में नागवंशीय मूर्तिकला के प्रमुख केंद्र दंतेवाड़ा की आराध्यदेवी मां दंतेश्वरी, बारसूर की गणेश प्रतिमा, जोकि अपने विशाल आकार के लिए प्रसिद्ध है, व भैरमगढ़ में हरिहर हिरणगर्भ पितामह की श्रेष्ठ प्रतिमा इस काल की मूर्तियां जगदलपुर संग्रहालय में संरक्षित है।
- पार्श्वनाथ था शीतलनाथ की मूर्तियां, जोकि वर्तमान में दिगंबर जैन मंदिर रायपुर में स्थित है वे अभी आरंग से प्राप्त हुए हैं। 17वीं और 18वीं शताब्दी की गोडकालन मूर्तियां में तीन बंदरों की मूर्तियां उल्लेखनीय है, जोकि रायपुर के महंत घासीदास संग्रहालय में संरक्षित है।
धातु प्रतिमाएं
- छत्तीसगढ़ में सातवीं-आठवीं शताब्दी काल में धातु प्रतिमाओं का निर्माण, प्रारंभ हुआ। शिरपुर (महासमुंद), से लगभग 25 धातु प्रतिमाएं प्राप्त हुई थी। जिसमें से 6 प्रतिमाएं में उपहार स्वरूप बांट दी गई है, जिसमें से तारा की प्रतिमा विशेष उल्लेखनीय है।
- महंत घासीदास जोकि आजकल अमेरिका के लॉस एंजिल्स में है। 11 प्रतिमाएं रायपुर स्थित संग्रहालय में सुरक्षित है। सिरपुर के अलावा, रायपुर के मुसेरा व बिलासपुर के सलखन ग्राम से धातु प्रतिमाएँ प्राप्त हुई है।
पुरातत्व राज्य संरक्षित- स्मारक
भारत की प्राचीनतम नाट्यशाला | ( सीता गुफा व जोगीमारा गुफा) राम गड़ पर्वत ( सरगुजा) तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व |
स्वास्तिक विहार | शिरपुर (महासमुंद), आठवीं शताब्दी |
आनंद प्रभु कुटी विहार | शिरपुर ( महासमुंद) 8 वीं शताब्दी का बौद्धि विहार |
ताला की विलक्षण शिव प्रतिमा | ताला ग्राम (अमेरि कापा) बिलासपुर |
कुलेश्वर महादेव मंदिर | राजीम ( रायपुर), 9वीं शताब्दी। |
सिद्धेश्वर मंदिर | पलारी ( रायपुर) 8-9 वी शताब्दी |
शिव मंदिर | चंद्रपुरी ( रायपुर) 9-10 वीं शताब्दी का |
कपिलेश्वर मंदिर | बालोद (दुर्ग) 13- 16 वि शताब्दी का |
भोरमदेव मंदिर | कबीरधाम 11 वीं सदी का |
मडवा महल बैंक शेयर की महल | सभी 13-14 वी सदी का |
शिव मंदिर | घटियारी ( कटंगी), ए राजनंदगांव,10-11 वी सदी का। |
गुढ़ियारी मंदिर | केसर पाल ( बस्तर) 12-13 वीं सदी का |
लक्ष्मणेश्वर मंदिर | खरौद ( बिलासपुर) 8 वीं सदी का |
महामाया मंदिर | रतनपुर ( बिलासपुर), 14वीं सदी का |
देवरानी जेठानी मंदिर | ताला गांव ( बिलासपुर), 5-6 वीं सती का |
देव मंदिर | किरारी गोड़ी ( बिलासपुर), 11-12 वी शताब्दी का |
सोमनाथ मंदिर | सरगांव ( बिलासपुर) 13-14 रेस शताब्दी का |
कबीरपंथी मजारे | कुदरुमाल (बिलासपुर) 17-18 वी शताब्दी का। |
डीडीन दाई मंदिर | मललार ( बिलासपुर) 12-13 सदी का |
चित्रकला शैलाश्रय | सिंघनपुर ( रायगढ़) प्रागैतिहासिक काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक के चित्र सैलाश्रय |
मुद्राएं
- रायपुर के तारपूर, आरग, उड़ेला प्राक मौर्यकालीन आहत मुंद्राएँ प्राप्त हुई है। जिसका वजन 12 सती। इसमें चार हाथी बिंदुओं के घेरे से युक्त नेत्र, बेल तथा हल सहित दो बैलों का चित्र अंकित है।
- मौर्य काल के सिक्के अकलतरा, बारिया बिलासपुर से प्राप्त हुए हैं।
- सात वाहनों की मुद्रा मल्हार से प्राप्त हुई है।
- रोम की मुद्रा में कुषाणो की मुद्राएं बिलासपुर के चक्कर बेड़ा से तथा गुप्त राजाओं की मुद्रा दुर्ग में बांनाबादर से प्राप्त हुई है।
- स्थानीय राजवंशी यथा सरभपुरीय, नल, पांडव वंशीयों, कलचुरियों की मुद्राएं भी उत्खनन में मिलती है।
- मुद्रांक व मोह रे मल्हार वजीरपुर में इनके अवशेष मिले हैं। बालपुर में भी बाल केसरी की एक पत्थर मुद्रा प्राप्त हुई है।
अभिलेख
- सर्वाधिक महत्वपूर्ण व प्राचीन अभिलेख सरगुजा जिले के रामगढ़ पर्वत के जोगीमारा गुफा में तीसरी शताब्दी ई पू के मिले हैं।
- दूसरा महतवपूर्ण अभिलेख बिलासपुर के किरारी नामक स्थान में मिले हैं जो काष्ठ स्तंभ लेख है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में पिपरदुल्ला , कुरुद, रवान, मल्हार, आरंग, नहना, आम गुड़ा, शिरपुर, सारंगढ़, अकलतरा, शिवरीनारायण, पुजारी, पाली, बारसूर, कुसुम पाल, नारायण पाल, कांकेर, कोटगढ़, पाली, ताला, आमोद व अन्य अनेक स्थलों पर विभिन्न स्थानों से राजस्व के अभिलेख प्राप्त हुए हैं।
- राजनंदगांव से तीन बंदर प्रतिमाह प्राप्त हुई है जो प्राचीन काल की है। मुरैना में की मूर्तियां, खिलौने व अन्य सामाजिक जीवन पर प्रकाश डालने वाली सामग्रियां की प्राप्ति छत्तीसगढ़ में होती रही है।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख उत्खनन कार्य
- 1953-56 – शिरपुर
- 1956 -57 – गनौर
- 1975-78 – मल्हार
- 1991 – करकामार
साहित्यकार
- पंडित सुंदरलाल शर्मा ने सर्वप्रथम छत्तीसगढ़ी में एक प्रबंध काव्य के लिखने की परंपरा विकसित की।
- छत्तीसगढ़ लेखन की परंपरा का शुभारंभ पंडित लोचन प्रसाद पांडे ने किया।
- प्रथम छत्तीसगढ़ी उपन्यास हीरो के कहानी कथा मोगरा को मानी जाती है। इसके रचयिता क्रम से बस इधर पांडे तथा शिव शंकर शुक्ल है।
- प्रथम छत्तीसगढ़ी व्याकरण 1880 को उपाध्याय हीरालाल ने सृजनित की थी ।
- छत्तीसगढ़ में नाटक की शुरुआत पंडित लोचन प्रसाद पांडेय के कलि काल में मानी जाती है।
- छत्तीसगढ़ की प्रथम समीक्षात्मक रचना डॉ विनय कुमार पाठक की छत्तीसगढ़ी साहित्य और साहित्यार है।
- रतनपुर के गोपाल मिश्र हिंदी काव्य परंपरा की दृष्टि से छत्तीसगढ़ के बाल्मीकि है।
साहित्यकार | प्रमुख कृति |
गोपाल मिश्रा | खूब तमाशा, सुदामा चरित्र, भक्ति चिंतामणि, राम प्रताप |
माखन मिश्री | चांद विलास नामक पिंगल ग्रंथ है। |
रेवाराम बाबू | रामायण दीपिका, ब्राह्मण स्रोत, गीता माधव महाकाव्य, गंगा लहरी, विक्रम विलास, रतन परीक्षा, माता के भजन, रत्नापुर का इतिहास |
प्रह्लाद दुबे | जय चंद्रिका |
लक्ष्मण कवि | भोंसला वंश प्रशस्ति |
दयाशंकर शुक्ल | छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य का अध्ययन |
पंडित शिवदत्त शास्त्री | इतिहास समूचे |
लोचन प्रसाद पांडे | मेरे दुख मोचन, कौशल प्रशस्ति रत्नावली |
पंडित सुंदरलाल शर्मा | छत्तीसगढ़ी दानलीला |
माधवराव सप्रे | रामचरित्र एकनाथ चरित्र |
बलदेव प्रसाद मिश्र | छत्तीसगढ़ी परिचय |
पंडित केदार नाथ ठाकुर | बस्तर भूषण |
पदुमलाल पुन्ना लाल बख्शी | झलमला |
हरि ठाकुर | नये सवर |
गुलशेर अहमद खान शानी | काला जल, एक लड़की की डायरी, सांप और चिड़िया, फूल तोड़ना मना है, सब एक जगह, एक शहर में सपने बिकते हैं, |
अब्दुल लतीफ घोघी | तिकोने चेहरे, उड़ते उल्लू के पंख, तीसरे बंदर की कथा, संकट काल |
डॉ धनंजय वर्मा | अंधेर नगरी, अस्वाद के धरातल निराला काव्य और व्यक्तित्व |
श्यामलाल चतुर्वेदी | राम वनवास ( छत्तीसगढ़ी कृति) |
विनोद कुमार शुक्ल | मुक्तिबोध, राजा अवार्ड, नौकर की कमीज, लगभग जय हिंदी, वह आदमी चला गया। |
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