धातुकर्म विभिन्न धातुओं को उनके अयस्कों से प्राप्त करने की कला तथा विज्ञान है, जिससे धातुओं को मानव समाज के लिए उपयोगी रूप में परिवर्तित किया जा सके। इंजीनियरिंग में धातुकर्म का क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण तथा व्यापक है। आधुनिक युग की सुविधाएं जैसे कार, रेलगाड़ी, हवाई जहाज आदि का निर्माण धातु विज्ञान की ही देन है। प्राय: सभी वस्तुओं के निर्माण में किसी न किसी धातु का प्रयोग होता है तथा यह आवश्यक है कि वस्तु की उपयोगिता के आधार पर उपरोक्त धातु का प्रयोग किया जाए जैसे कार की बॉडी बनाने में इस्पात चादर तथा हवाई जहाज की बॉडी बनाने में एल्युमीनियम चादर का प्रयोग किया जाता है।
धातुकर्म क्षेत्र में निम्न कार्य सम्मिलित है-
ताप धातुकर्म में बढ़े हुए तापमान का प्रयोग और अयस्क के सारे पिंड की रासायनिक संरचना में परिवर्तन सम्मिलित होता है।
जल धातुकर्म में खनिज अयस्को अम्लों या क्षारों को जलीय घोल में घोलना तथा इसका अवक्षेपण सम्मिलित है।
प्रगलन में अयस्क को इसके पिघलाने वाले तापमान तक गर्म किया जाता है तब गलित पदार्थ आपने आपको दो या दो से अधिक सम्मिश्रणीय द्र्वो में अनेक विशिष्ट घनत्व के अनुसार पृथक कर लेते हैं। इसे निम्नलिखित विधियों से प्राप्त किया जा सकता है।
अपचयन, ऑक्सीकरण, द्रवीकरण
भर्जन में इसका तापमान प्रयोग किया जाता है जिससे धातु संगलित न हो, इसका उद्देश्य धातु को अगले उपचार के लिए तैयार करना है।
इसके द्वारा धातु को संपीडीत किया जाता है।
यह वह भी विधि जिसके द्वारा धातु या इसके रासायनिक यौगिक चार्ज के अवाष्पशील यौगिकों से वाष्पीकृत होते हैं।
ठोस अवस्था में शुद्ध लोहा सफेद, कठोर तथा आघातवर्ध्य होता है।
सभी लौह उत्पादों के लिए मुख्य कच्चा माल लोहा होता है। कच्चा लोहा, लौह-अयस्क को वात्या भट्टी में कोक तथा चुने के साथ प्रगलन करके प्राप्त किया जाता है।
यह लौह कार्बन, सिलिकॉन तथा थोड़ी मात्रा में कुछ अन्य तत्वों का मिश्रण होता है। ढलवा लोहा, कच्चे लोहे के क्यूपोला में पुन: में गलाकर बनाया जाता है। ढलवा लोहे में उपस्थित तत्व है- कार्बन, सिलिकॉन, मैगनीज, फास्फोरस तथा सल्फर इसमें कार्बन की मात्रा 2.5 से 3.75 तक रहती है।
यह अधिकतम शुद्धता वाला लोहा होता है। कच्चे लोहे का शुद्धीकरण करके पिटवां लोहा बनाया जाता है। यह आघातवर्धनीय एक तनय होता है। यह झटकों को बिना किसी स्थायी परिवर्तन के सहन कर सकता है। इसमें 0.05% से 0.15% कार्बन, 0.5% सिलिका, 0.12 से 0.16% फास्फोरस, 0.02 से 0.30% सल्फर, 0.30 से 0.17% मैगनीज तथा 0.20% तक स्लैग अगर्य होते हैं।
श्वेत लोहा में कार्बन, कार्बाइड के रूप में रहता है, अत: यह बहुत कठोर तथा भुंगर होता है, तथा इस पर केवल अपघर्षण क्रिया ही की जा सकती है। पृथक रूप में श्वेत लोहे का प्रयोग बहुत कम है किंतु ढलाइयों में चिलिंग विधि में ब्राह्म सतह श्वेत लोहे की परत की रचना का उपयोग उन्हें अधिक घिसाव विरोधी बनाने के लिए किया जाता है, जैसे रोलरो में।
नोड्यूलर अथवा ग्रंथि लोहा- यह Speroidal Graphite Cast Iron के नाम से जाना जाता है। कास्ट आयरन की द्रव स्थिति में मैग्नीशियम की अलग मात्रा का मिश्रण करने से ग्रंथि रूप में ग्रेफाइट के दोनों की रचना होती है।
इसमें उच्च संपीडन सामर्थ्य होती है, लेकिन तन्यता नहीं होती है। कास्ट आयरन में घटकों की प्रतिशतता है- कार्बन 3 से 5%, फस्स्फोरस 0.15 से 1%, सिलिकॉन 1 से 2.75%, सल्फर 0.02% से 0.15%, मैग्नीज 0.15% से 1% ।
मिश्रकारक धातुएं ढलवा लोहे में मिलाने पर कार्बन की अवस्था तथा वितरण को प्रभावित कर उसे विभिन्न उपयोग की यांत्रिक गुण प्रदान कर देती है। मिश्र कारक धातुओं के इस्पात के समान ही ढलवा लोहे पर भी प्रभाव पड़ते हैं। निखिल तथा सिलिकॉन ग्रेफाइट की रचना करने वाली धातुएं हैं तथा क्रोमियम, मैग्नीज मालीब्डेनम तथा वैनेडियम कार्बाइड की रचना करते हैं।
स्टील में 0.05 से 1.5% तक कार्बन होता है। स्टील को दो भागों में बांटा जा सकता है।
यह तीन प्रकार की होती है
इसमें 0.1% से 0.35% तक कार्बन होता है। यह गेलवेनाइज्ड सीट, टिन लेपित चादर, बॉयलर प्लेट, कैंम गियर पहिए आदि बनाने में प्रयोग होता है।
इससे 0.35% से 0.55% तक कार्बन होता है। यह रेज, संयोजक, दंड एक्सल टरबाइन डिस्क, राइफल बैरल आदि बनाने में प्रयोग होता है।
इसमें 0.55 से 1.55% कार्बन होता है। इसमें डाई ब्लॉक, गियर मेंड्रिल, थोड़े सामान्य औजार आदि बनाए जाते हैं।
कार्बन इस्पात में कुछ मिश्रित पदार्थ मिलाने से अलॉय स्टील प्राप्त होते हैं। यह निम्न प्रकार के होते हैं-
20% निखिल मिला स्टीम बॉयलर प्लेट, रिविट, पाइप, गियर आदि बनाने में उपयोग होता है।
2-5% निकिल स्टील आरमड प्लेट, सॉफ्ट संयोजक दंड आदि बनाने में उपयोग होते हैं। 25% निकिल मीला स्टील स्टेनलेस तथा नॉन मैग्नेट बन जाता है। इस स्टील का उपयोग के वाल्व, टरबाइन ब्लेड आदि बनाने में होता है। 36% निकिल मिले स्टील से अधिकतर मापक यंत्र बनाए जाते हैं। इस स्टील को इनवार स्टील भी कहते हैं।
8% क्रोमियम स्टील स्थाई चुंबक बनाने में प्रयुक्त है। 13% प्रतिशत क्रोमियम से स्टेनलेस बन जाता है। 15% क्रोमियम मिला स्टील स्प्रिंग बोल तथा रोलर बेयरिंग आदि बनाने के काम आता है।
इस स्टील में 3 से 4% निकिल, 0.25 से 1.25 क्रोमियम, 0.20 से 0.35 कार्बन, 0.25 से 0.05% मैगनीज होता है। इसका उपयोग एक्सल, क्रेक सॉफ्ट, संयोजक दंड गियर आदि बनाने में होता है।
इसमें 0.15 से 0.305% वैनेडियम, 0.05 से 1.50% क्रोमियम, 0.15 से 1.1% कार्बन होता है। इसका उपयोग औजार, सॉफ्ट, स्प्रिंग, गियर आदि बनाने में होता है।
1 से 1.5% मैग्नी स्टील को मजबूत व कठोर बनाता है। इसका उपयोग पत्थर तोड़ने चुर्णित करने के प्लांट बनाने में होता है।
6% स्टील वाले स्टील में उच्च चुंबकीय गुण होते हैं। टंगस्टन स्टील का उपयोग गतिकर्तन औजार तथा स्थाई बनाने में होता है।
इसका उपयोग स्प्रिंग बनाने अंतर्दहन इंजन के भाग आदि बनाने में होता है।
स्टेनलेस स्टील में 4.5 से 18% तक क्रोमियम 8% निखिल तथा 0.1 से 0.4% कार्बन होता है। इसका उपयोग घरेलू बर्तन, सर्जिकल औजार, मशीन पॉट बनाने में किया जाता है।\
इसमें 18% टंगस्टन, 4% क्रोमियम, 1% वैनेडियम और 0.70% कार्बन होता है। इसका उपयोग रिमर मिलिंग कटर, मरोड़बर्मा, पेपर डाई तथा अन्य औजार बनाने में होता है।
परमाणु या परमाणु के समूह के नियमित पुनरावृत्ति वाले प्रतिरूप के विन्यास को क्रिस्टल कहते हैं।
क्रिस्टल की रचना परमाणुओं के क्रम में संयोजन से निश्चित आकार व सहयोग की ज्यामिति आकृतियों में होती है। इन ज्यामित्तीय आकृतियों में परमाणुओं के विन्यास को क्रिस्टल संरचना या अधिक जालक या क्रिस्टल जालक कहते हैं।
किसी धातु पिंड पर लगने वाले बाहरी बलों या भारों के प्रभाव परिवर्तनों को विरूपण कहते हैं। यह निम्न प्रकार के होते हैं-
धातु तथा मिश्रधातुओं को अनियंत्रित परिस्थितियों के अंतर्गत ठोस अवस्था में गर्म तथा ठंडा करने से उनमें वंचित करने की क्रिया को उष्मा उपचार कहते हैं।
यह ऊष्मा उपचार का वह प्रक्रम है, जिसके अंतर्गत इस्पात को उसके क्रांतिक परिसर तक या उससे अधिक गर्म किया जाता है तथा इस्पात खंड को अंदर एक समान रूप से गर्म करने के उद्देश्य से किसी तापमान पर पर्याप्त समय तक रोक करें द्रुत शीतलन द्वारा ठंडा किया जाता है।
यह कठोरित इस्पात की कठोरता तथा भंगुरता को कम करने की क्रिया है जिसके अंतर्गत कठोरीत इस्पात को उसके क्रांतिक परिसर से नीचे तक गर्म करके उपयुक्त साधनों द्वारा मंद शीतलन विधि से ठंडा किया जाता है।
यह इस्पात को मृदु बनाने का उसका उपचार प्रक्रम है जिसके अंतर्गत इस्पात खंडों को उसके क्रांतिक बिंदु या उससे नीचे तक गर्म करके तथा कुछ समय तक उसी तापमान पर रोककर धीरे धीरे भट्टी में ही ठंडा किया जाता है।
यह ऊष्मा उपचार का प्रक्रम है जिसके अंतर्गत इस्पात को उसके ऊपर क्रांतिक परिसर से 40 से 50 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म करके तथा तापमान पर निर्धारित समय के लिए रोककर कमरे के तापमान पर वायु में ठंडा किया जाता है।
यह इस्पात की सतह को कठोर बनाने की क्रिया है जिसके अंतर्गत इस्पात की सतह पर कुछ तत्वों (कार्बन हाइड्रोजन) का विसरण उच्च तापमान करके उसे संतृप्त किया जाता है तत्पश्चात कठोरता तथा वनीकरण क्रियाओं द्वारा सत्तह को आवश्यक कठोरता प्रदान की जाती है। इस क्रिया को रासायनिक उपचार भी करते हैं।
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