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धातुकर्म विज्ञान से जुडी जानकारी

धातुकर्म विभिन्न धातुओं को उनके अयस्कों से प्राप्त करने की कला तथा विज्ञान है, जिससे धातुओं को मानव समाज के लिए उपयोगी रूप में परिवर्तित किया जा सके। इंजीनियरिंग में धातुकर्म का क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण तथा व्यापक है। आधुनिक युग की सुविधाएं जैसे कार, रेलगाड़ी, हवाई जहाज आदि का निर्माण धातु विज्ञान की ही देन है। प्राय: सभी वस्तुओं के निर्माण में किसी न किसी धातु का प्रयोग होता है तथा यह आवश्यक है कि वस्तु की उपयोगिता के आधार पर उपरोक्त धातु का प्रयोग किया जाए जैसे कार की बॉडी बनाने में इस्पात चादर तथा हवाई जहाज की बॉडी बनाने में एल्युमीनियम चादर का प्रयोग किया जाता है।

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धातुकर्म क्षेत्र के कार्य

धातुकर्म क्षेत्र में निम्न कार्य सम्मिलित है-

  1. धातु का उसके अयस्क से निष्कर्षण करना
  2. दो या अधिक धातुओं के सम्मिश्रण द्वारा गुणों वाली मिश्रधातुएं बनाना।
  3. धातुओं का विशुद्ध करण करना
  4. धातुओं के यांत्रिक, भौतिक, उष्मीय, रासायनिक गुणों का परीक्षण करना।
  5. धातु तथा मिश्रधातुओं में आवश्यक ऊष्मा उपचार द्वारा वांच्छित गुणों को उत्पन्न करना।
  6. धातुओं की संरचना का अध्ययन करना।
  7. धातुओं के गुणों का निर्धारण करना।
  8. धातुओं तथा मिश्रधातुओं को अधिक उपयोगी तथा सक्षम बनाना
  9. अनुसंधान द्वारा नई धातुओं तथा मिश्रधातुओं की खोज करना।
  10. धातुओं तथा मिश्रधातुओं  के उत्पादन का नियंत्रण करना
  11. धातुओं के उत्पादन लागत तथा उसके मूल्य का नियंत्रण करना
  12. धातुओं के उत्पादन जैसे सोना, चांदी आदि का नियंत्रण करना

पदार्थों का वर्गीकरण

  1. सामान्य वर्गीकरण
  2. औद्योगिक वर्गीकरण
  3. उपयोगी वर्गीकरण
  4. प्रक्रिया वर्गीकरण

औद्योगिक वर्गीकरण

  1. हल्की धातुए, जैसे एल्युमीनियम, मैग्नीशियम, टिटेनियम, जिरकोनियम, बेरिलियम तथा इसकी मिश्रधातुएं।
  2. तांबा तथा उसकी मिश्रधातुएं, जैसे तांबा, पीतल, कांसा तथा अन्य मिश्रधातुएँ
  3. बियरिंग अलॉय तथा उनकी प्रमुख धातुएं, जैसे श्वेत धातु अलाय, तांबा, सीसा अलाय, ब्रौज अलाय आदि तथा उसकी मिश्रधातुएं, जैसे सीसा, जस्ता टिन आदि
  4. मिश्र कारक धातुएं, जैसे निकिल कोबाल्ट, क्रोमियम, मैगनीज, वैनेडियम आदि।
  5. लोहा तथा इस्पात, जैसे लोहा, इस्पात तथा इसकी मिश्रधातुएं।
  6. ताप-सह पदार्थ, जैसे सिलिका, एल्यूमिना, फायर-क्ले, मैग्नेसाइट, डोलामाइट आदि।

उपयोग वर्गीकरण

  1. उच्च सामर्थ्य धातुएँ
  2. निम्न तथा उच्च ताप धातुएं
  3. स्प्रिंग धातुएं
  4. घिसाव रोधी धातुएं
  5. संक्षारण तथा ऑक्सीकरण प्रतिरोधी धातुएँ
  6. विशिष्ट गुणधर्मी, धातुएँ जैसे नाभिक धातुएँ, उष्मीय प्रसार एवं सुचालक धातुएँ, कंपन रोधी आदि।

प्रक्रिया वर्गीकरण

  1. ढ़लाई योग्य धातुएँ
  2. फोर्जन योग्य धातुएँ
  3. शीत प्रक्रिया योग्य धातुएँ
  4. उष्मा प्रक्रिया योग्य धातुएँ
  5. मशीनन योग्य धातुएँ
  6. सहज संधि योग्य धातुएँ
  7. चूर्ण धातुकर्म धातुएँ

धातुओं के गुण

यांत्रिक गुण

  1. सामर्थ्य
  2. प्रत्यास्थता
  3. प्लास्टिकता
  4. नम्यता
  5. तन्यता
  6. भंगुरता
  7. कठोरता
  8. कड़ापन

तकनीकी गुण

  1. कुटट्सयता
  2. मशीनन-योग्यता
  3. वेल्डन-योग्यता

उष्मीय गुण

  1. विशिष्ट ऊष्मा
  2. उष्मीय क्षमता
  3. उष्मीय प्रसार
  4. उष्मीय चालकता
  5. उष्मीय प्रतिबल
  6. उष्मीय थकान
  7. उष्मीय झटके

रासायनिक

  1. संक्षारण प्रतिरोध
  2. परमाणु भार
  3. अणु भार
  4. परमाणु क्रमांक
  5. अमल्ता तथा क्षारकता
  6. रासायनिक संघटन

भौतिक गुण

  1. आकार
  2. माप
  3. परिष्करण
  4. रंग
  5. विशिष्ट गुरुत्व
  6. घनत्व
  7. सरचना
  8. स्रन्धरता

अयस्कों के प्रकार

  1. सल्फाइड अयस्क
  2. प्राकृत अयस्क
  3. ऑक्साइड अयस्क

अयस्कों से धातुओं का निष्कर्षण

  1. अयस्कों का उपचार
  2. अयस्कों के प्रारंभिक उपचार के दो मुख्य कारण है
  3. लीवर का प्रयोग
  4. प्रगलन अर्थ दशा को सुधारना उपचार में निम्न कार्य होते हैं
  5. संदलन
  6. स्क्रीनिंग
  7. साइजिंग
  8. माध्यकालन
  9. सांद्रण

धातुओं के निष्कर्षण की विधियां

ताप धातुकर्म

ताप धातुकर्म में बढ़े हुए तापमान का प्रयोग और अयस्क के सारे पिंड की रासायनिक संरचना में परिवर्तन सम्मिलित होता है।

जल धातुकर्म

जल धातुकर्म में खनिज अयस्को अम्लों या क्षारों को जलीय घोल में घोलना तथा इसका अवक्षेपण सम्मिलित है।

प्रगलन

प्रगलन में अयस्क को इसके पिघलाने वाले तापमान तक गर्म किया जाता है तब गलित पदार्थ आपने आपको दो या दो से अधिक सम्मिश्रणीय द्र्वो में अनेक विशिष्ट घनत्व के अनुसार पृथक कर लेते हैं। इसे निम्नलिखित विधियों से प्राप्त किया जा सकता है।

अपचयन, ऑक्सीकरण, द्रवीकरण

भर्जन

भर्जन में इसका तापमान प्रयोग किया जाता है जिससे धातु संगलित न हो, इसका उद्देश्य धातु को अगले उपचार के लिए तैयार करना है।

सिनटीयररिंग

इसके द्वारा धातु को संपीडीत किया जाता है।

आसवन

यह वह भी विधि जिसके द्वारा धातु या इसके रासायनिक यौगिक चार्ज के अवाष्पशील यौगिकों से वाष्पीकृत होते हैं।

लोहा

ठोस अवस्था में शुद्ध लोहा सफेद, कठोर तथा आघातवर्ध्य होता है।

लोहे के अयस्क

  • मैग्नेटाइट (Fe3O4)इसमें 40-70% लोहा होता है।
  • हेमेटाइट (Fe3O3) इसमें 45-65% लोहा होता है।
  • लिमोटाइट (Fe2O3H2O) इसमें 25-50% लोहा होता है।
  • सिडेराइट (Fe2S2) इसमें 48% लोहा होता है ।

लोहा तथा इस्पात के सूक्ष्म घटक

  1. फेराइट
  2. सीमेंटाइट
  3. पियरलाइट
  4. मार्टसाइड
  5. ट्रस्टटाइट
  6. सोरबाइट

लोहे के अपरूपी स्वरूप

  1. एल्फा आयरन
  2. बीटा आयरन
  3. गामा आयरन
  4. डेल्टा आयरन

लोहे के प्रकार

कच्चा लोहा

सभी लौह उत्पादों के लिए मुख्य कच्चा माल लोहा होता है। कच्चा लोहा, लौह-अयस्क को वात्या भट्टी में कोक तथा चुने के साथ प्रगलन करके प्राप्त किया जाता है।

ढलवा लोहा

यह लौह कार्बन, सिलिकॉन तथा थोड़ी मात्रा में कुछ अन्य तत्वों का मिश्रण होता है। ढलवा लोहा, कच्चे लोहे के क्यूपोला में पुन: में गलाकर बनाया जाता है। ढलवा लोहे में उपस्थित तत्व है- कार्बन, सिलिकॉन, मैगनीज, फास्फोरस तथा सल्फर इसमें कार्बन की मात्रा 2.5 से 3.75 तक रहती है।

पिटवा लोहा

यह अधिकतम शुद्धता वाला लोहा होता है। कच्चे लोहे का शुद्धीकरण करके पिटवां लोहा बनाया जाता है। यह आघातवर्धनीय एक तनय होता है। यह झटकों को बिना किसी स्थायी परिवर्तन के सहन कर सकता है। इसमें 0.05% से 0.15% कार्बन, 0.5% सिलिका, 0.12 से 0.16% फास्फोरस, 0.02 से 0.30% सल्फर, 0.30 से 0.17% मैगनीज तथा 0.20% तक स्लैग अगर्य होते हैं।

कास्ट आयरन के प्रकार

श्वेत कास्ट आयरन

श्वेत लोहा में कार्बन, कार्बाइड के रूप में रहता है, अत: यह बहुत कठोर तथा भुंगर होता है, तथा इस पर केवल अपघर्षण क्रिया ही की जा सकती है। पृथक रूप में श्वेत लोहे का प्रयोग बहुत कम है किंतु ढलाइयों में चिलिंग विधि में ब्राह्म सतह श्वेत लोहे की परत की रचना का उपयोग उन्हें अधिक घिसाव विरोधी बनाने के लिए किया जाता है, जैसे रोलरो में।

नोड्यूलर अथवा ग्रंथि लोहा- यह Speroidal Graphite Cast Iron के नाम से जाना जाता है। कास्ट आयरन की द्रव स्थिति में मैग्नीशियम की अलग मात्रा का मिश्रण करने से ग्रंथि रूप में ग्रेफाइट के दोनों की रचना होती है।

ग्रे कास्ट आयरन

इसमें उच्च संपीडन सामर्थ्य होती है, लेकिन तन्यता नहीं होती है। कास्ट आयरन में घटकों की प्रतिशतता है-  कार्बन 3 से 5%, फस्स्फोरस 0.15 से 1%, सिलिकॉन 1 से 2.75%, सल्फर 0.02% से 0.15%, मैग्नीज 0.15% से 1% ।

मिश्र कास्ट आयरन

मिश्रकारक धातुएं ढलवा लोहे में मिलाने पर कार्बन की अवस्था तथा वितरण को प्रभावित कर उसे विभिन्न उपयोग की यांत्रिक गुण प्रदान कर देती है। मिश्र कारक धातुओं के इस्पात के समान ही ढलवा लोहे पर भी प्रभाव पड़ते हैं। निखिल तथा सिलिकॉन ग्रेफाइट की रचना करने वाली धातुएं हैं तथा क्रोमियम, मैग्नीज मालीब्डेनम तथा वैनेडियम कार्बाइड की रचना करते हैं।

इस्पात

स्टील में 0.05 से 1.5% तक कार्बन होता है। स्टील को दो भागों में बांटा जा सकता है।

  • साधारण कार्बन
  • एलाय स्टील

साधारण कार्बन स्टील

यह तीन प्रकार की होती है

  • निम्न कारण स्टील या माइल्ड स्टील
  • मीडियम कार्बन स्टील
  • हाई कार्बन स्टील

निम्न कार्बन स्टील

इसमें 0.1% से 0.35% तक कार्बन होता है। यह गेलवेनाइज्ड सीट, टिन लेपित चादर, बॉयलर प्लेट, कैंम गियर पहिए आदि बनाने में प्रयोग होता है।

मीडियम कार्बन स्टील

इससे 0.35% से 0.55% तक कार्बन होता है। यह रेज, संयोजक, दंड एक्सल टरबाइन डिस्क, राइफल बैरल आदि बनाने में प्रयोग होता है।

हाई कार्बन स्टील

इसमें 0.55 से 1.55% कार्बन होता है। इसमें डाई  ब्लॉक, गियर मेंड्रिल, थोड़े सामान्य औजार आदि बनाए जाते हैं।

एलाय स्टील

कार्बन इस्पात में कुछ मिश्रित पदार्थ मिलाने से अलॉय स्टील प्राप्त होते हैं। यह निम्न प्रकार के होते हैं-

निकिल स्टील

20% निखिल मिला स्टीम बॉयलर प्लेट, रिविट, पाइप, गियर आदि बनाने में उपयोग होता है।

2-5% निकिल स्टील आरमड प्लेट, सॉफ्ट संयोजक दंड आदि बनाने में उपयोग होते हैं। 25%  निकिल मीला स्टील स्टेनलेस तथा नॉन मैग्नेट बन जाता है। इस स्टील का उपयोग के वाल्व, टरबाइन ब्लेड आदि बनाने में होता है। 36% निकिल मिले स्टील से अधिकतर मापक यंत्र बनाए जाते हैं। इस स्टील को इनवार स्टील भी कहते हैं।

क्रोमियम स्टील

8% क्रोमियम स्टील स्थाई चुंबक बनाने में प्रयुक्त है। 13% प्रतिशत क्रोमियम से स्टेनलेस बन जाता है। 15% क्रोमियम मिला स्टील स्प्रिंग बोल तथा रोलर बेयरिंग आदि बनाने के काम आता है।

निकिल क्रोम स्टील

इस स्टील में 3 से 4% निकिल, 0.25 से 1.25 क्रोमियम, 0.20  से 0.35 कार्बन, 0.25 से 0.05% मैगनीज होता है। इसका उपयोग एक्सल, क्रेक सॉफ्ट, संयोजक दंड  गियर आदि बनाने में होता है।

वैनेडियम स्टील

इसमें 0.15 से 0.305% वैनेडियम, 0.05  से 1.50% क्रोमियम, 0.15 से 1.1% कार्बन होता है। इसका उपयोग औजार, सॉफ्ट, स्प्रिंग, गियर आदि बनाने में होता है।

मैगनीज इस्पात

1 से 1.5% मैग्नी स्टील को मजबूत व कठोर बनाता है। इसका उपयोग पत्थर तोड़ने चुर्णित करने के प्लांट बनाने में होता है।

टगस्टन स्टील

6% स्टील वाले स्टील में उच्च चुंबकीय गुण होते हैं। टंगस्टन स्टील का उपयोग गतिकर्तन औजार तथा स्थाई बनाने में होता है।

सिलिकॉन स्टील

इसका उपयोग स्प्रिंग बनाने अंतर्दहन इंजन के भाग आदि बनाने में होता है।

स्टेनलेस स्टील

स्टेनलेस स्टील में 4.5 से 18% तक क्रोमियम 8% निखिल तथा 0.1 से 0.4% कार्बन होता है। इसका उपयोग घरेलू बर्तन, सर्जिकल औजार, मशीन पॉट बनाने में किया जाता है।\

हाई स्पीड स्टील

इसमें 18% टंगस्टन, 4% क्रोमियम, 1% वैनेडियम और 0.70% कार्बन होता है। इसका उपयोग रिमर मिलिंग कटर, मरोड़बर्मा, पेपर डाई तथा अन्य औजार बनाने में होता है।

क्रिस्टल

परमाणु या परमाणु के समूह के नियमित पुनरावृत्ति वाले प्रतिरूप के विन्यास को क्रिस्टल कहते हैं।

क्रिस्टल सरचना

क्रिस्टल की रचना परमाणुओं के क्रम में संयोजन से निश्चित आकार व सहयोग की ज्यामिति आकृतियों में होती है। इन ज्यामित्तीय आकृतियों में परमाणुओं के विन्यास को क्रिस्टल संरचना या अधिक जालक या क्रिस्टल जालक कहते हैं।

क्रिस्टल संरचना के प्रकार

  • फल केंद्रित यंत्र संरचना
  • अत: केंद्रित घन संरचना
  • समष्टभूजी संघन संतुलित सरंचना

धातुओं का विरूपण

किसी धातु पिंड पर लगने वाले बाहरी बलों या भारों के प्रभाव परिवर्तनों को विरूपण कहते हैं। यह निम्न प्रकार के होते हैं-

  • प्रत्यास्थ विरूपण
  • प्लास्टिक विरूपण

ऊष्मा उपचार

धातु तथा मिश्रधातुओं को अनियंत्रित परिस्थितियों के अंतर्गत ठोस अवस्था में गर्म तथा ठंडा करने से उनमें वंचित करने की क्रिया को उष्मा उपचार कहते हैं।

ऊष्मा उपचार के उद्देश्य

  • इस्पात को अपघर्षण रोधी तथा घिसाव रोधी बनाने के लिए उसकी सतह को कठोर बनाना।
  • धातु को मृदु बनाकर उसकी मशीनन योग्यता गुण में सुधार करना।
  • तत्प या शीत रूपण अथवा अन्य रूपण क्रियाओं के फलस्वरुप उत्पन्न आंतरिक के प्रतिबलों को दूर करना।
  • धातु की क्रिस्टल संरचना में सुधार करना।
  • धातु के कणों को शुद्ध करना।
  • धातु के यांत्रिक गुणों,जैसे तनाव, सामर्थ्य, कठोरता, तन्यता, सूघट्यता, झटकारोधी आदि में सुधार करना।
  • धातु के चुंबकीय तथा विद्युतीय गुणों में सुधार करना
  • धातु की भ्ंगुरता कम करना
  • कठोरता को कम करना

ऊष्मा उपचार से क्रियाएं

कठोरता

यह ऊष्मा उपचार का वह प्रक्रम है, जिसके अंतर्गत इस्पात को उसके क्रांतिक परिसर तक या उससे अधिक गर्म किया जाता है तथा इस्पात खंड को अंदर एक समान रूप से गर्म करने के उद्देश्य से किसी तापमान पर पर्याप्त समय तक रोक करें द्रुत शीतलन द्वारा ठंडा किया जाता है।

उद्देश्य

  • इस्पात को कठोर करके क्षयरोधी बनाना
  • इइस्पात को अन्य धातुओं को काटने योग्य बनाना
  • इस्पात खंडों के जीवन काल तथा कार्य क्षमता में वृद्धि करना

पायनीकरण

यह कठोरित इस्पात की कठोरता तथा भंगुरता को कम करने की क्रिया है जिसके अंतर्गत कठोरीत इस्पात को उसके क्रांतिक परिसर से नीचे तक गर्म करके उपयुक्त साधनों द्वारा मंद शीतलन विधि से ठंडा किया जाता है।

उद्देश्य

  • इस्पात की कठोरता, भंगुर का तथा तनाव सामर्थ्य कम करना
  • तन्यता तथा चिमड़पन में वृद्धि
  • शीतलन प्रतिबलों से मुक्ति

अनिलीकरण

यह इस्पात को मृदु बनाने का उसका उपचार प्रक्रम है जिसके अंतर्गत इस्पात खंडों को उसके क्रांतिक बिंदु या उससे नीचे तक गर्म करके तथा कुछ समय तक उसी तापमान पर रोककर धीरे धीरे भट्टी में ही ठंडा किया जाता है।

उद्देश्य

  • धातु को मृदु बनाना
  • धातु की मशीनन योग्यता में सुधार करना
  • धातु के यांत्रिक गुणों में सुधार करना, जैसे तन्यता तथा चीमड़पन में वृद्धि

अनिलन के प्रकार

  • प्रक्रम अनिलन
  • पूर्ण अनिलन
  • गोलाकृति अनीलन

नारलाईजिंग

यह ऊष्मा उपचार का प्रक्रम है जिसके अंतर्गत इस्पात को उसके ऊपर क्रांतिक परिसर से 40 से 50 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म करके तथा तापमान पर निर्धारित समय के लिए रोककर कमरे के तापमान पर वायु में ठंडा किया जाता है।

उद्देश्य

  • रेशों के साइज में सुधार
  • निम्न कार्बन इस्पात की मशीनन योग्यता

सतह कठोरता या पृष्ठ कठोरता

यह इस्पात की सतह को कठोर बनाने की क्रिया है जिसके अंतर्गत इस्पात की सतह पर कुछ तत्वों (कार्बन हाइड्रोजन) का विसरण उच्च तापमान करके उसे संतृप्त किया जाता है तत्पश्चात कठोरता तथा वनीकरण क्रियाओं द्वारा सत्तह को आवश्यक कठोरता प्रदान की जाती है। इस क्रिया को रासायनिक उपचार भी करते हैं।

उद्देश्य

  • इस्पात कठोर बनती है परंतु भीतरी भाग नर्म रहता है।
  • इस्पात की सतह क्षतिरोधक बनती है।
  • आंतरिक प्रतिबल कम होते हैं

पृष्ठ कठोरता के प्रकार

  • कार्बुराइजिंग – कार्बन का विसरण
  • नाइट्राइडिंग – नाइट्रोजन का विसरण
  • साइनाइडिंग – कार्बन नाइट्रोजन का विसरण

कार्बुराइजिंग के प्रकार

  • पैक कार्बुराइजिंग
  • द्रव कार्बुराइजिंग
  • गैस कार्बुराइजिंग

कुछ अन्य ऊष्मा उपचार प्रक्रम

  • औस्टेपरिंग या समतापी शीतलन
  • मारटैंपरिंग या पगशीतलन
  • काल कठोरीकरण या आवश्यक कठोरीकरण
  • प्रेरण कठोरीकरण
  • सल्फाइडडीकरण

धातु संरूपण प्रक्रमो का वर्गीकरण

पदार्थ का विरूपण क्षमता या सुटयता के आधार पर

  • फोर्जन
  • बेलना
  • कर्षण
  • बहींवर्धन
  • निसपीडन
  • बेधन
  • स्वेजन
  • बंकन
  • अपरुपण
  • तार खींचना
  • चक्रण

पदार्थ की विभाजनियता के आधार पर

  • खरादन
  • शैंपिंग
  • समतलन
  • बरमाई
  • प्र्वेधन
  • चीरना
  • ब्रोचन
  • मिलिंग
  • अपघर्षण
  • हाबन
  • परिछिद्रिकरण

पदार्थ की गलनियत्ता के आधार पर

  • ढलाई
  • वेल्ड
  • टॉर्च कर्तन
  • सोल्डर्स
  • ब्रेजन

पदार्थ के भौतिक

  • ऊष्मा उपचार
  • तप्त रूपण
  • शीत रूपण

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