बांसुरी में जब सीधी फूँक मारी जाती है तो बाँसूरी का वायु स्तंभ कंपित होकर सूस्वर ध्वनि उत्पन्न करता है।
झिल्ली वाले वाद्य यंत्र- ढोल, तबला, ढोलक।
डोरी वाले वाद्य यंत्र में खींची हुई डोरिया या तार होते हैं जिन्हें कर्षण , हत्या धनुर्वाधन (गज से बजा कर) द्वारा कंपित कराया जाता है, जैसे सितार, विणा,संतूर, और वायलिन इत्यादि।
वाहनों के होरन, साइकिल की घंटी, लाउडस्पीकर की ध्वनि, फेरी वालों की ध्वनि।
इसे नारियल का खोखला खोल या मिट्टी के बर्तन को तानित झिल्ली के द्वारा तैयार किया जा सकता है। इसमें एक ही धातु की तार उपयोग में लाई जाती है। इसलिए इसे एकतारा कहते हैं।
इसकी तार को उंगली के द्वारा कर्षित कर छोड़ देते हैं जिससे इस में कंपन पैदा होता है। इसी कंपन के द्वारा सुस्वर अर्थात संगीत निकलता है।
जब हम बोलते हैं तो कंठ नली की मांसपेशियों वाक्- तंतु कस देती है। फेफड़ों के माध्यम से वायु कसे हुए तंतुओं में से गुजरती है और इस कारण वाक्- तंतु में कंपन होता है। वाक्- तंतुओं में उत्पन्न कंपन द्वारा आवाज की ध्वनि उत्पन्न होती है।
कुछ जंतु जैसे कुत्ते, बिलिया, गाय आदि वाक यंत्रों द्वारा ध्वनि उत्पन्न करते हैं परंतु सभी जंतुओं में वाक तन्तु नहीं होते, जैसे चिड़िया अपनी श्वास नली में उपस्थित थे उपास्थि छल्लो ,जिन्हें शब्दिनी कहते हैं। की सहायता से ध्वनि उत्पन्न करती है। मक्खियां अपने पंखों को तेजी से कंपित करके मर्मर ध्वनि उत्पन्न करती है।
ध्वनि का पतला या मोटा होना ध्वनि के तारत्व पर निर्भर करता है। स्त्रियों की आवाज का तारत्व, पुरुषों की आवाज पुरुषों की आवाज से पतली होती है।
बच्चे की वाक-ध्वनि व्यस्क पुरुष की वाक-ध्वनि की अपेक्षा तीक्ष्ण होती है क्योंकि बच्चे की वाक-ध्वनि की आवर्ती पुरुष की वाक- ध्वनि की अपेक्षा अधिक होती है।
चंद्रमा पर वायुमंडल नहीं है। चूंकि ध्वनि के संचार के लिए किसी भौतिक माध्यम का होना बहुत जरूरी, इसलिए तो निरमा पर एस्ट्रोनाट्स एक दूसरे की आवाज नहीं सुन सकते हैं। वे एक दूसरे के साथ रेडियो तरंगों के द्वारा संपर्क करते हैं।
हम जानते हैं कि सामान्य तापमान पर लोहे में ध्वनि का वेग लगभग 5000 मीटर प्रति सेकंड होता है जो कि वायु में ध्वनि के वेग से बहुत अधिक है। इसलिए हम रेलवे लाइन जो की लोहे की गार्डरो की बनी होती है, से कान लगा कर बहुत दूर से आती हुई गाड़ी की आवाज सुन सकते हैं जो कि अभी दिखाई नहीं दे रही होती है।
ध्वनि की प्रबलता- ध्वनि की उत्तेजना के दर्जे को ध्वनि की प्रबलता कहते हैं। यह उत्तेजना का दर्जा स्रोत के तेज या हल्के कंपनों पर निर्भर करता है। जब कंपन अधिक तेज होते हैं तब ध्वनि प्रबलता अधिक तथा जब कंपन हल्की होती है तो ध्वनि प्रबलता भी कम होती है।
तारत्व- यह ध्वनि की विशेषता है जिससे हम मोटी या पतली आवाज को पहचानते हैं। यह विशेषता ध्वनी स्रोत की आवृत्ति ( प्रति सेकंड कंपन संख्या) पर निर्भर करती है। जब ध्वनि स्रोतों की आवृत्ति अधिक होती है तब तारत्व भी अधिक होता है।
ध्वनि प्रबलता- ध्वनि की प्रबलता कंपित वस्तु के आयाम पर निर्भर करती है। कंपन का आयाम जितना अधिक होगा ध्वनि की प्रबलता उतनी ही अधिक होगी।
ध्वनि तारत्व- ध्वनि की यह विशेषता है जो कि ध्वनि तरंगों के कंपन की आवर्ती द्वारा निर्धारित होती है। उच तारत्व ध्वनि की तुलना में क्रक्स होती है। उच्च तारत्व ध्वनि में उच्च आवृत्ति होती है।
तारत्वध्वनि की विशेषता है जो ध्वनि तरंगों के कंपन की आवृत्ति द्वारा निर्धारित होती है। उच्च तारत्व ध्वनि निम्न तारत्व ध्वनि की तुलना में करकस होती है अर्थात उच्च तारत्व ध्वनि मे उच्च आवृत्ति होती है।
मच्छर द्वारा उत्पन्न भनभनाहट की ध्वनि की आवर्ती उच्च होती है जबकि शेर द्वारा दहाड़ने की ध्वनि की आवृत्ति अपेक्षाकृत कम होती है। इसके कारण मच्छर की आवाज शेर की आवाज से तीखी होती है।
ध्वनि की प्रबलता कंपित वस्तु के आयाम पर निर्भर करती है। आयाम अधिक होने पर ध्वनि की प्रबलता भी अधिक होती है जब आयाम छोटा हो तो उत्पन्न ध्वनि मंद होती है।
ध्वनि की तीक्ष्णता तारत्व को कंपन की आवर्ती निर्धारित करती है। यदि कंपन की आवर्ती अधिक हो तो हम कहते हैं कि ध्वनि तीखी है। यदि कंपन की आवृत्ति कम हो तो ध्वनि का तारत्व भी कम होता है। इसका सहज अनुमान ड्रम व सीटी की ध्वनि से लगाया जा सकता है। ड्रम मंद आवर्ती से कंपित होता है। अत: ड्रम कम तारत्व की ध्वनि उत्पन्न करता है जबकि सीटी की आवृत्ति अधिक होने से अधिक तारत्व की ध्वनि उत्पन्न होती है।
पक्षी उच्च तारत्व की ध्वनि उत्पन्न करता है जबकि शेर की दहाड़ का तारत्व मंद होता है। तथापि शेर की दहाड़ अत्यधिक प्रबल है जबकि पक्षी की ध्वनि दुर्बल होती है। इसी प्रकार एक महिला की आवाज किसी पुरुष की अपेक्षा अधिक आवृत्ति अपेक्षा अधिक तीखी होने का भी यही कारण है।
उच्च तीव्रता वाली ध्वनी या अवांछनीय शोर जो सुनने में तीखा लगता है और शरीर के लिए हानिकारक है ध्वनि प्रदूषण कहलाता है। अंतर ध्वनि का जो रूप मानव गतिविधियों को बाधित करें, कार्य क्षमता को नकारे सुनने पर तनाव हो, ध्वनि प्रदूषण कहलाता है।
मात्रक- ध्वनि का मात्रक का डेसीबल है। डेसीबल मीटर से मापा जाता है। 20- 40 डेसीबल सामान्य ध्वनि, 40 से 85 डेसीबल वहन करने योग्य और 250 डेसीबल से ऊपर की ध्वनि नुकसानदायक है।
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