हरियाणा में अनेक वाद्य यंत्र है जो लोक संगीत की संगत के लिए अनिवार्य है। मुख्य रूप चाहिए तीन वर्गों में आते हैं तंत्री वाद्य, सुषिर वाद्य तथा ताल वाद्य। आज इस आर्टिकल में हम आपको Vadya Yantra- हरियाणा में प्रचलित वाद्य यंत्र के बारे में बताने जा रहे है.
यह सामान्यतः मंदिरों में आरतियाँ और कीर्तनो और अन्य धार्मिक प्रदर्शनों पर बजाई जाती है.
यह लंबे और चपटे लोहे के टुकड़े होते हैं जिन्हें एक तरफ से जोड़ा जाता है, जिन पर छोटी-छोटी घंटियाँ लगी होती है.
मिट्टी का घड़ा सबसे सस्ता वाद्य यंत्र है जो विभिन्न अवसरों पर लय को बनाए रखने के लिए बजाया जाता है.
यह ढोल का छोटा रूप है जिसे ज्यादातर गुड़गांव जिला के अहीरो द्वारा प्रयोग में लाया जाता है.
यदि द्विपक्षियों ढोल है जिसे दो छोटी लकड़ी की डंडियों से बजाया जाता है. यह बेलनाकार लकड़ी का होता है जिसे दोनों तरफ से खाल से मढ़ते हैं. इस वाद्य यंत्र की बहुत सी किस्मे है. यह विवाह उत्सव, कुश्ती प्रतियोगिता और नृत्य प्रदर्शनों आदि के अवसरों पर उपयोग में लाया जाता है.
इस यंत्र को अधिकाँश सपेरे उपयोग में लाते हैं. खोखली तुम्बी में दो छोटी लकड़ी की नालिया लगाई जाती है. एक स्वर को निकालते हुए मूल सवर के पृष्ठनाथ को बनाए रखती है और दूसरी प्रदर्शक द्वारा स्वर उत्पन्न करने के लिए उपयोग में लाई जाती है.
यह तंत्र को विशेष रुप से विवाह के अवसरों पर बजाया जाता है इस वाद्य यंत्र में आधुनिक विशेषज्ञ ने तंत्री वाद्य यंत्र के सम्मान में तरलता ला दी है.
यह प्राचीनतम वाद्य यंत्र है जिसे मुरली जैसे लोकप्रिय नाम से भी पुकारा जाता है. लकड़ी की खोखली डंडी में 7 गोल छिद्र करके बनाया जाता है.
मानव को ज्ञात सबसे प्राचीन वाद्य यंत्र हैं. उपयोग में लाने से पहले शंख के आधार में इस प्रकार सावधानीपूर्वक छेद किया जाता है कि इसका प्राकृतिक छेद न बिगड़े. इस यंत्र को प्राय मंदिरों और तीर्थ स्थानों पर उपयोग में लाया जाता है. यह केवल पृष्ठानाद उत्पन्न करता है. महाभारत युद्ध क्षेत्र में श्री कृष्ण द्वारा उपयोग में लाए गए शंख को पंचजन्य कहा जाता है.
यह डफ की छोटी किस्म है, अंतर केवल यह है कि इसके चारों ओर घुंगरू लगे होते हैं. इसे समान्यत एकल नृत्य प्रदर्शनों में उपयोग में लाया जाता है.
एक एकल-तंत्री यंत्र की उंगलियों से बनाया जाता है. यह 1 मीटर लंबे बांस के टुकड़े का बना होता है जिसके एक सिरे पर बड़ा तुंबा लगा होता है.
यह दो तंत्री यंत्र है और यह इकतारा की तरह उसी प्रयोजन को पूरा करता है.
यह कांसे के दो बड़े गोल टुकड़े होते हैं जो नृत्य या अन्य अवसरों पर धात्वीय ध्वनि उत्पन्न करते हैं.
यह बहुत छोटा ढोल होता है और इसकी आकृति रेतघड़ी जैसी होती है. यह भगवान शिव का प्रतीक है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे उन्होंने तांडव नृत्य के दौरान बजाया था. यह धार्मिक और अनुष्ठानिक लोक संगीत में विशेष रुप में गुगा नृत्य में उपयोग में लाया जाता है यह जादूगर द्वारा जादू का खेल दिखाने के समय भी उपयोग में लाया जाता है.
घुंघरू यह नर्तकी द्वारा अपने टखनो पर बांधे जाते हैं ताकि नृत्य को शक्ति प्रदान कर और प्रभारी बना सके. यह लय उत्पन्न करने में सहायक होते हैं.
डमरु का बड़ा रूप है लेकिन यह भी वही प्रयोजन पूरा करता है.
यह एक एकपक्षीय मिट्टी का यंत्र होता है जिसे दो छोटी डांडियों से बजाया जाता है इसे विशेष अवसरों पर और कभी-कभी नृत्य प्रदर्शन के अवसर पर भी बजाया जाता है.
यह एक एक पक्षीय ढोल है लेकिन यह बड़ा और भारी होता है और बजाते समय इसे जमीन पर रखा जाता है. यह सामंती काल का अवशेष है, जब राज्य घोषणाए नगाड़ा बजा कर की जाती थी.
इस एक तंत्री यंत्र को उस गज के साथ बजाया जाता है जो पशु के बालों की लट को कमान रूपी लकड़ी पर चिपका कर बनाया जाता है. मुख्य गायक के साथ यह यंत्र का होना अति महत्वपूर्ण है यह 60 सेंटी मीटर लंबे लकड़ी के टुकड़े को खोखला कर बनाया जाता है. समस्वरण के लिए 4 खूंटे लगाए जाते हैं ताकि 12 अर्ध-स्वरको के तारतत्व के अनुसार तारों को लगाया जा सके. यह घुमक्कड़ जोगियों तथा स्वांग प्रदर्शन के दौरान उपयोग में लाया जाता है.
यह लकड़ी के दो छोटे टुकड़ों पर लगे छोटे घुंघरू होते हैं और अन्य वाद यंत्रों की ताल के अनुसार लय को बनाए रखने के लिए उन्हें एक दूसरे पर मारते हैं.
यह नगाड़ा का छोटा रूप है और इसे छोटी डंडियों से बजाया जाता है. यह हमेशा ही नगाड़े के बाई ओर रखा जाता है. वास्तव में यह नगाड़े का एक भाग है जो तबले की तरह है.
यह एक पक्षीय ढोल होता है और नृत्य के साथ विशेष रुप से धमाल नृत्य के साथ लगाया जाता है और यह महेंदरगढ़ जिले में लोकप्रिय है. यह बनावट ने बड़ा सरल होता है और इसमें केवल एक खुला गोल फ्रेम होता है. जो केवल एक तरफ से खाल से मढ़ा होता है. यह हाथ से या छोटी डंडियों से बनाया जा सकता है. यह उत्सव संबंधी अवसरों पर भी बताया जाता है
यह धात्विक झाँझो का एक जोड़ा होता है जिसे लय उत्पन्न करने के लिए प्रयोग किया जाता है. नाथ परंपरा के जोगियों द्वारा अपनी प्रार्थना के दौरान इसका उपयोग किया जाता है.
मूल रूप से हारमोनियम भारत से संबंधित नहीं है, फिर भी हारमोनियम पर सांस्कृतिक प्रदर्शनों में दिखाई देता है. हरियाणा में यह सांगियों और भजनियों द्वारा संगत यंत्र के रूप में उपयोग किया जाता है.
आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएँगे की अपने डॉक्यूमेंट किससे Attest करवाए - List…
निर्देश : (प्र. 1-3) नीचे दिए गये प्रश्नों में, दो कथन S1 व S2 तथा…
1. रतनपुर के कलचुरिशासक पृथ्वी देव प्रथम के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन सा…
आज इस आर्टिकल में हम आपको Haryana Group D Important Question Hindi के बारे में…
अगर आपका selection HSSC group D में हुआ है और आपको कौन सा पद और…
आज इस आर्टिकल में हम आपको HSSC Group D Syllabus & Exam Pattern - Haryana…