मनुष्य में नर युग्मक शुक्राणु में मादा युग्मक अंडाणु सलयन कर आंतरिक निषेचन करते हैं। परिणाम स्वरुप युग्मनज का निर्माण होता है। युग्मनज विकसित होकर भ्रूण में परिवर्तित होता है। युग्मनज कोशिकाओं का एक गोला होता है जिसमें कोशिकाएं समूह बनाकर उत्तक व अंगों में बदलने लगती है। इस प्रकार युग्मनज से विकसित हुई संरचना भ्रूण कहलाती है। भ्रूण गर्भाशय की दीवार में रोपित होकर पोषण ग्रहण करने लगता है। परिणाम स्वरुप शरीर के भिन्न-भिन्न बनने लगते हैं। यह अवस्था गर्भाशय कहलाती है। गर्भ मातृ शरीर से अपरा के द्वार पोषण,शवसन तथा उत्सर्जन की पूर्ति करता है। गर्भधारण करने से परसों तक लगभग 280 दिन का समय गर्भवती कहलाता है। इस प्रकार पूर्ण विकसित ( शरीर के सभी विकसित अंगों के साथ) नवजात शिशु जन्म लेता है।
जनन तंत्र उन अंगों का समय होता है जो सत्तानोत्पति में सहायता करता है । नर जनन अंग– वृषण, शुक्राणु नलिका, शिशन। इनमें से वृषण नर के मुख्य जनन अंग है तथा शेष सभी सहायक जनन अंग है।
मांदा जनन अंगो के समूह को मादा का जनन तंत्र कहते हैं।-
अंडाशय, अंडर वाहिनी नली, गर्भाशय।
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