लांस नायक अल्बर्ट एक्का रांची के निवासी थे। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र प्रदान किया गया। वे एकमात्र झारखंडी सैनिक है, जिन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया है।
यह छोटा नागपुर में 1913-14 मे ताना भगत आंदोलन के मुख्य सूत्रधार थे।
1831-33 में वीरभूम और सिंहभूम के क्षेत्रों में जो भूमिज विद्रोह हुआ था। उसका नेतृत्व गंगा नारायण ने किया था।
खेरवार आंदोलन का नेतृत्व भागीरथ मांझी ने किया था।
संथाल विद्रोह का नेतृत्व सिद्धू और कान्हू ने किया था। चांद और भैरव नामक दो भाइयों ने भी इस विद्रोह में सक्रिय भूमिका निभाई थी। संथाल विद्रोह से प्रभावित क्षेत्र दामिनी ई-कोह और अग्निडीह था।
बिहार सरकार का मानना है कि बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1874 को उलीहातू गांव में हुआ था, परंतु जन्मस्थान के बारे में मतभेद है। परंतु डॉक्टर पुरुषोत्तम कुमार मानते हैं कि बिरसा मुंडा का जन्म 1866 ख़टंगा में हुआ था। उनके पिता का नाम सुगना मुंडा था। ईसाई धर्म अपनाने के बाद उनका नाम मसीह दास हो गया। मां का नाम कर्मी था। बिरसा मुंडा को लोग भगवान बिरसा कहकर पुकारते थे।
बिरसा मुंडा का नाम झारखंड के क्रांतिकारियों में सबसे ज्यादा आदर के साथ लिया जाता था। गवर्नर जनरल कर्जन के जमाने में 30 वर्ष की उम्र में बिरसा ने दुनिया की सबसे बड़ी ब्रिटिश ताकत से हिम्मत करके मोर्चा लिया, टकराया, यह कोई मामूली घटना नहीं है। मगर गांधी जी से 11 वर्ष पहले ही 30 वर्ष की उम्र में यह 1896-97 में 2 वर्ष हजारीबाग जेल में रहा। 1900 मे बिरसा ने जेल से छूटने के बाद हथियारबंद खूनी क्रांति की अगुवाई की। 7 जनवरी 1990 को 80 वर्ष पुराने खूंटी थाने पर बिरसाइयों ने हमला बोल दिया। इसका बदला अंग्रेजों ने 9 जनवरी, 1990 को तब लिया ,जब 400 मुंडा औरतों-मर्दो को शैल कब पहाड़ी पर जाट फौजियों द्वारा मार गिराया गया था।
सिलागाई गांव में जन्मे रांची के सपूत हैं 1828-32 के लारका विद्रोह में अपने नेतृत्व का परिचय दिया था। यह विद्रोह अंग्रेजी हुकूमत और शोषण अत्याचार के विरुद्ध किया गया पहला स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा था। इस विद्रोह के बाद अंग्रेजों को घुटने टेक देने पड़े ।
आदिवासियों के सभी नेताओं में बुद्धू भगत सबसे श्रेष्ठ एव शीर्षस्थ थे। छोटा नागपुर के प्रथम क्रांतिकारी थे जिन्हें पकड़ने के लिए अंग्रेजों ने ₹1000 पुरस्कार की की घोषणा की थी, परंतु कोई भी इस पुरस्कार के लालच में आकर उन्हें पकड़वाने को तैयार नहीं था।
बुद्धू भगत की शक्ति एवं अंग्रेजों पर आंतक का अनुमान इस बात से लगाया जा सका कि अंग्रेज अधिकारी अपनी सारी क्षेत्रीय शक्ति बुध्दु भगत को जीवित या मृत पकड़ने में लगाए हुए थे, जिसका नेतृत्व कैप्टन इंपे कर रहा था। पूरी छानबीन और ग्रामीणों पर दबाव के बावजूद जब बुद्धू भगत है का पता नहीं चला, तब नरसंहार, आगजनी और चीख पुकार के बीच 4000 ग्रामीणों को बंदी बना लिया। अकस्मात 10 फरवरी 1832 को ऐसा भयंकर तूफान उठा की सैनिक टूटे पत्ते की तरह बिखर गए तथा ऐसी परिस्थितियों और मार्ग से अभ्यस्त ग्रामीणों ने जंगल की राह ली और इन्पे देखता रह गया ।
इस असफलता से झुंझलाते कैप्टन इन्पे कौन जब सिल्ली गांव में बुद्धू भगत के आने की सूचना मिली तो सेना की चार कंपनियां और घुड़सवारों का एक दल लेकर गांव को 13 फरवरी 1832 को चारों ओर से घेर लिया और गांव के लोग अपने नायक बुद्धू भगत को घेरे में लेकर निकल भागने का प्रयास कर रहे थे, परंतु अंतत: ग्रामीणों का गहरा उन्हें बचा न सका और उन्हें वीरगति प्राप्त हुई।
अमर स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता बाबू राम नारायण सिंह का जन्म चतरा जिले के हंटरगंज प्रखंड के अंतर्गत तेतरिया ग्राम में 19 दिसंबर 1884 को हुआ था। 1920 में राष्ट्रपति महात्मा गांधी ने अहिसात्म्क असहयोग आंदोलन का आह्वान किया था, जिसमें विशेष रूप से वकीलों और विद्यार्थियों से सक्रिय सहयोग की अपील की गई थी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आसान पर आपने वकालत छोड़कर देश सेवा का व्रत लिया और आजीवन अर्थात जून 1964 तक लगातार मातृभूमि की सेवा में अपना सर्वश्रेष्ठ न्योछावर कर दिया।
1931 से 1941 तक 8 बार अंग्रेजों द्वारा दी गई जेल यात्रा सहनी पड़ी। जेल में इन्हें बेड़ी की सजा भी दी गई थी। अंग्रेजों ने उनके साथ बड़ी बहरामी और सख्ती का बर्ताव किया। इसका अनुमान लगाया जा सकता है कि 1934 में भूकंप के समय देशरतन डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से लेकर सभी अन्य स्वयंसेवक तथा राजनीतिक बंदियों को छोड़ दिया गया था, किंतु बाबू रामनारायण को जेल में रखा गया था।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय हजारीबाग केंद्रीय कारागार में भेज दिए गए थे, जहाँ दीपावली की रात में नवंबर 1942 को अन्य क्रांतिकारियों के साथ वह भी भागने में सफल रहे। राजा बहादुर कामाख्या नारायण सिंह के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी के सदस्य के रूप में चतरा लोकसभा क्षेत्र के निर्वाचित हुए और एक निर्वाचित सदस्य के रूप में अपने प्रशंसनीय कार्य किए। आपने स्वराज्य लूट गया नामक पुस्तक की रचना की जो आपकी निर्भरता एवं जागरूकता की साक्ष्य है।
रांची से 170 किलोमीटर दूर गुमला जिले के हाटिंग गांव में रहने वाले डॉ गार्बियल हेमरोम जड़ी बूटी विशेषज्ञ हैं और अपने पूर्वजों से विद्या और प्रेरणा लेकर इसकी महता को पहचानते हुए विभिन्न बीमारियों का सफलतापूर्वक इलाज कर रहे हैं, जिसमें कैंसर महत्वपूर्ण है। डॉ हेमरोम के पास देश के कोने-कोने से कैंसर के पीड़ित मरीज तो आते ही हैं साथ ही विदेशों से भी लोग इलाज कराने आते हैं और जड़ी बूटी से निर्मित दवा का उपयोग करते हैं। कइयों ने इस बीमारी से निजात भी पाया।
रांची में जन्मे हॉकी के प्रसिद्ध खिलाड़ी में आदिवासी नेता मरड़ गोमके के नाम से विख्यात डॉ जयपाल सिंह को 1928 में एम्सटर्डम (होलैंड) में आयोजित ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम का कप्तान नियुक्त किया गया था, जिसमें भारत में स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। 1936 में वे राजनीतिक में आए और बाद में झारखंड पार्टी का गठन किया। 1952 में प्रथम लोकसभा के सदस्य बने और आजीवन अपने क्षेत्र से लोकसभा के सदस्य रहे हैं।
देवघर जिले के कैरों ग्राम में जन्मे इस साहित्यकार ने क्रांति साहित्य साधना करके क्रांति इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया। उनकी पुस्तक है देशेरकथा को अंग्रेज सरकार ने प्रतिबंधित किया। फिर भी वह 5 बार प्रकाशित हुई। यही कीर्तिमान उनकी एक अन्य पुस्तक है तिलकेर मुकदमा ने भी स्थापित किया। उन्होंने लगभग 25 पुस्तकें 1000 से अधिक निबंध लेखन के साथ ही दैनिक हितवाद का भी संपादन किया।
दुमका निवासी श्री राय एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति के विशिष्ट चित्रकार है। उनका मुख्य चिंत्राकन आदिवासी जीवन पर आधारित है। वर्ष 1989 में उन्हें कला श्री से सम्मानित किया गया है।
रांची के इन विख्यात चित्रकार ने छोटा नागपुर से शैली विशिष्टता प्रदान करते हुए उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्रदान करवाई। उन्हें कोलकाता की ऑल इंडिया फाइन आर्टस अकादमी, विश्व भारती कोलकाता का इंफॉर्मेशन सेंटर प्रवासी बंगाल क्लब, कनाडा तथा न्यूयांर्क की कला संस्थाओं ने सम्मानित किया। ‘
श्री सिंह का जन्म झारखंड के पलामू जिले में 13 जुलाई 1993 को हुआ था। आप बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के स्नातक है। छात्र जीवन में आपने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में यूथ कांग्रेस का गठन किया और 1953-54 में उसके सह संयोजक बने। श्री सिंह ने पलामू जिले में ग्राम पंचायत और ग्राम परिषदों का गठन किया। आप 1967 से 1976 तक बिहार विधानसभा के सदस्य रहे। बाद में राज्य के शिक्षा राज्यमंत्री (1971), खान मंत्री (1972-73) खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री (1973-74) रहे। 1976 में आप राज्यसभा के लिए चुने गए। 1982 में पुनः राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए।
1970 में आप कांग्रेस पार्लियामेंट्री पार्टी के उपर सचेतक बने। 1980 में आप संसदीय मामलों के राज्यमंत्री बने और आपको 1980 से 1983 तक संचार, श्रम और गृह निर्माण विभाग का भी अतिरिक्त प्रभार मिला। आप जनवरी-फरवरी 1982 में नागरिक आपूर्ति राज्यमंत्री भी रहे। आप 15 वर्षों तक बिहार प्रदेश कांग्रेश समिति और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य रहे हैं। 1967 में BISCOMAUNके डायरेक्टर रहे। 1974 और 75 में बिहार राज्य को काँपरेटिव गृहनिर्माण वितपरिषद के चेयरमैन रहे हैं। आप मेघालय और तमिलनाडु के राज्यपाल रहे हैं।
आपका जन्म 4 नवंबर 1935 को रांची में हुआ। आप 1956 से 1958 तक पटना विश्वविद्यालय में लेक्चरर रहे। 1958 में आप विदेश सेवा में सम्मिलित हो गये और आप विभिन्न पदों पर रहकर देश सेवा करते रहे। 1978 में अपने विदेश सेवा से इस्तीफा दे दिया। 1980 से 1985 तक जनता पार्टी में महामंत्री रहे। 1979 से 1984 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। वर्तमान में आप अखिल भारतीय मुस्लिम मजलिस मुशावरता के कार्यकारी अध्यक्ष हैं तथा सुप्रीम कोर्ट के वकील और मुस्लिम इंडिया मासिक पत्रिका के संपादक हैं।
इनका जन्म 20 अप्रैल, 1936 को झारखंड के रांची जिले के अनिगार नामक स्थान पर हुआ है। आप पहले से ही जनसंघ से संबंधित थे। आप 1971-72 में बिहार इकाई के संयुक्तमंत्री रहे। 1977 से 1979 तक तथा 13वीं लोकसभा के सदस्य रहे हैं। आप भारत सरकार के इस्पात एवं खान राज्यमंत्री व कोयला में (कैबिनेट मंत्री) भी रहे हैं।
राज्य के वरिष्ठ भाजपा नेता श्री मरांडी ने दुमका सुरक्षित संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित होकर अपनी पार्टी को अत्यधिक शक्तिशाली होने में उल्लेखनीय योगदान किया है। श्री मरांडी झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री चुने गए। इससे पहले वे केंद्रीय मंत्री परिषद (वाजपेयी मंत्रिमंडल) में पर्यावरण और वन राज्यमंत्री के रूप में कार्यरत थे।
राज्य के हजारीबाग के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से पुन: निर्वाचित श्री सिन्हा भाजपा के एक ऐसे प्रतिभा संपन्न राजनेता है, जिन्होंने बारहवीं तथा 13वीं लोकसभा के गठन के बाद बनी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने में अभूतपूर्व योगदान दिया है। अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल (केंद्रीय मंत्रिमंडल) में वित्त मंत्री व विदेश मंत्री रहे हैं।
बेडों रांची के 60 वर्षीय सीमोन उरांव 51 गांव के पड़हा राजा है। इन्होंने अनपढ़ होते हुए भी गांव में आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई शुरू करने में सफलता पाई। 5000 फीट नहर काटकर 42 फीट ऊंचा बांध बनाकर ने सिर्फ 50 एकड़ में सिंचाई की सुविधा प्रदान की जिसे तीन फसलें उपजाकर प्रखंड के अनेक गांव अपना पेट ही नहीं भर रहे हैं, बल्कि बची उपजाकर बेचकर कमाई भी कर रहे हैं। साथ ही इन्होंने जंगलों की सुरक्षा का बाहर भी अपने कंधों पर लिया, जिसमें ग्रामवासियों का पूरा सहयोग था। इनसे प्रभावित होकर छोटा नागपुर के 45 गांव इसका अनुसरण कर रहे हैं। सारा कार्य बिना सरकारी मदद के हुआ है। कैंब्रिज विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने इनके कार्य और लगन से प्रभावित होकर हाउ टू प्रैक्टिकली कंजर्व फॉरेस्ट इन झारखंड शीर्षक पर शोध कर डांक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की।
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