वनों की अधिकता के कारण ही यह क्षेत्र वनांचल की संज्ञा अभिहित किया जाता रहा है। एक समय क्षेत्र में 80% भूमि वनाच्छादित थी। परंतु लगातार वनों के विनाश से यह प्रतिशत घटकर 29.61 रह गया है, यहां एशिया के सबसे बड़े सारंडा जैसे वन भी हैं, जो वन दोहन प्रक्रिया के शिकार होने लगे हैं।
छोटा नागपुर की उच्च भूमि तथा संथाल परगना में विस्तृत राजमहल की पहाड़ियों के क्षेत्र से अधिक वर्षा, ऊंचाई और गर्मी में तेज तापमान आर्द्र वनों के विकास के लिए सहायक है, अत: राज्य पलामू और हजारीबाग में इस प्रकार के वणच्छादित क्षेत्र है। इस प्रदेश में आम, जामुन, पियार और कटहल जैसे चीरहरित वन, साल जैसे आर्द्र पर्णपाती वृक्ष पाए जाते हैं। छोटा नागपुर क्षेत्र में महुआ, जामुन, कुसुम, गुलड़, आसन, पियार, खैर, अमलतास, केन, अंजन, करज, बरगद, पीपल ओर सेमल के वृक्षों की बहुतायत है।
साल के वन झारखंड के पहाड़ी ढालो व छोटा नागपुर के पठारी भागों में पाए जाते हैं। यह भूरे रंग की कठोर और टिकाऊ लकड़ी होती है, इसका प्रयोग रेल के डिब्बे, लकड़ी की पेटीया, तंबू, पुल, खंबे, खिड़कियां आदि को बनाने में होता है।
झारखंड में शीशम के वन पाए जाते हैं, इसकी लकड़ी भूरे रंग की होती है और कठोर होती है। इसका उपयोग मकान, फर्श और फर्नीचर बनाने और रेल के डिब्बे बनाने में होता है।
महुआ के वन छोटा नागपुर के पठार में विस्तृत है। यह लकड़ी बहुत कठोर होती है इसलिए इसके काटने में बहुत कठिनाई होती है। इसका कच्चा फल खाने और तेल निकालने में प्रयुक्त होता है। पके फल से देसी शराब बनाई जाती है।
सेमल के वन छोटा नागपुर के पठार ई भागों में पाए जाते हैं। इसकी लकड़ी सफेद होती है। इसका उपयोग तखते और खिलौने बनाने में होता है।
कुसुम के झारखंड के हजारीबाग, रांची, संथाल परगना व सिंहभूम जिलों में अधिक पाए जाते हैं। इसकी लकड़ी कठोर, भारी और मजबूत होती है। इस वृक्ष पर लाख के कड़े पाले जाते हैं।
छोटा नागपुर के पठारी भाग में पलास या ढाक के वृक्ष बहुतायत से उगते हैं। इस वृक्ष की पत्तियों पर लाख के कीड़े पाले जाते हैं।
यह वृक्ष झारखंड राज्य में पहाड़ी ढालों पर पाए जाते हैं। इसकी लकड़ी मजबूत होती है। इसका प्रयोग करने का घरेलू सामान, चाय की पेटियों, खिलौने आदि बनाने में किया जाता है।
झारखंड में छोटा नागपुर क्षेत्र में अंजन के वृक्ष मिलते हैं, इसकी लकड़ी बहुत कठोर, भारी और मजबूत होती है, इसका प्रयोग गाड़ियों के पहिए, हल और मकानों के फर्श बनाने में होता है।
झारखंड राज्य देश में सर्वाधिक लाभ उत्पादित करता है। लाख के कीड़े लैसिफर लक्का या लैक-बैग जाति के होते हैं। ये कीड़े कुसुम, पलास, गूलर, बरगद, खैर, रीठा, पीपल, बबूल, पेड़ों की नर्म डालों के रस को चूस कर लाख बनाते हैं। यह चिपचिपा होता है। लाख पैदा करने के लिए उपयुक्त पेड़ों में छोटी-छोटी टहनिया बांध दी जाती है। इन टहनियों में लाख के कीड़ों के बीज रहते हैं। यह कीड़े धीरे धीरे पुरे पेड़ पर फैल जाते हैं।
नई वृक्ष पर लाख का कीड़ा जून, जुलाई, अक्टूबर तथा नवंबर में फैलाया जाता है। लाख तैयार होने पर एकत्र कर ली जाती है और उस को पीसकर छलनियों में छाना जाता है। उसको कई बार धोकर शुद्ध लाख, दाना लाख तथा बटन लाख तैयार की जाती है।
झारखंड में हजारीबाग, रांची, पलामू, सिंहभूम, तथा संथाल परगना जिले में बड़ी मात्रा में लाख प्राप्त की जाती है।
उपरोक्त के अतिरिक्त वनों में शायद, बांस, आंवला, आम, जामुन, चिरौंजी, बैंत व गोंद तेंदू पत्ता तथा अन्य पदार्थ प्राप्त होते हैं।
जिला | भौगोलिक क्षेत्रफल | अति सघन वन | आंशिक सघन वन | खुला वन | कुल | कुल भौगोलिक- क्षेत्रफल का प्रतिशत | परिवर्तन |
बोकारो | 1929 | 61 | 231 | 273 | 565 | 29.29 | 0 |
चतरा | 3632 | 250 | 869 | 662 | 1781 | 47 .72 | 1 |
देवघर | 2479 | 0 | 14 | 190 | 204 | 8.23 | 1 |
धनबाद | 2996 | 0 | 44 | 158 | 202 | 6.74 | 0 |
दुमका | 6212 | 0 | 277 | 383 | 660 | 10.62 | -3 |
गढ़वा | 4092 | 124 | 409 | 859 | 1392 | 34,02 | 2 |
गिरिडीह | 4963 | 76 | 337 | 465 | 878 | 17.69 | -7 |
गोड्डा | 2110 | 14 | 269 | 129 | 412 | 19.53 | 4 |
गुमला | 9077 | 323 | 921 | 1417 | 2661 | 29.32 | 3 |
हजारीबाग | 5998 | 271 | 632 | 1190 | 2093 | 34.89 | 5 |
कोडरमा | 1435 | 68 | 321 | 209 | 598 | 41.67 | 0 |
लोहरदगा | 1491 | 173 | 217 | 109 | 499 | 433.47 | 0 |
पाकुड़ | 1571 | 3 | 173 | 111 | 287 | 18.27 | -1 |
पलामू | 8657 | 533 | 1824 | 1237 | 3594 | 41.52 | 8 |
पश्चिमी सिंहभूम | 9907 | 483 | 1558 | 1871 | 3912 | 39.49 | -2 |
पूर्वी सिंहभूम | 3533 | 52 | 589 | 429 | 1070 | 30.29 | 1 |
रांची | 7698 | 138 | 712 | 1226 | 2076 | 26.97 | -8 |
साहिबगंज | 1834 | 19 | 266 | 309 | 594 | 32 .39 | 1 |
कुल | 79714 | 2588 | 9663 | 11227 | 3600 | 29.45 | 5 |
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