यीस्ट
प्रागकण
आवर्त चक्र (लैगिक चक्र) के अंतिम दिन से पहले 14वें दिन अंडाशय से अंड मोचीत होता है। अंडाशय की भिती निषेचित अंड को ग्रहण करने के लिए स्वयं को तैयार करती है। इसमें प्रचुर रक्त कोशिकाएं विद्यमान है,
लेकिन निषेचन न होने की अवस्था में इस पर्त की आवश्यकता नहीं रहती, इसलिए यह परत धीरे-धीरे टूट कर योनि मार्ग से रुधीर एवं म्यूकस के रूप में निष्कासित होती है। भिती में उपस्थित रक्त कोशिकाएं फट जाती है, इसलिए रक्त स्राव होता है जिसमें रक्त के साथ साथ उत्तक तथा बहुत सारा पानी भी होता है इसे ऋतुस्त्राव कहते हैं। यह 2 से 8 दिन तक जारी रहता है। इसके पश्चात गर्भाशय की विधि निषेचित अंड को ग्रहण करने के लिए तैयारी करने लगती है।
एक कोशिक जीवो में जनन सम्मानयत: अलैगिक जनन द्वारा होता है। इसकी विभिन्न विधियां निम्नलिखित प्रकार से- द्विविखंडन, बहु खंडन, मुकुलन, समसूत्री विभाजन, असम सूत्री विभाजन। यह एकल पैतृक होता है।
नोट- इन एक-कोशिक के जीवो में अधिकतर में लैंगिक जनन भी होता है।
बहु कोशिका जीवो में अधिकतर में लैंगिक जनन होता है। यह द्वि-पैतृक होता है तथा इसमें युग्मक बनने तथा उनके संयोग करने की आवश्यकता भी पड़ती है। उनमें युग्मको के बनने के लिए गौनेड, युग्मकजननी की आवश्यकता होती है।
नोट- बहु कोशिक जीवो में पौधों, निम्न प्रकार के अकशेरुकियों में अलैंगिक जनन में भी होता है।
किसी स्पीशीज के अकेले जीव जीवित नहीं रह सकते हैं, यदि जीव (लैगिक) जनन नहीं करेंगे, तो विभिन्नताएँ उत्पन्न नहीं होगी। लक्षणों में भी विभिनताए होने के कारण सभी स्पीशीज़ की स्मषिट के स्थायित्व में सहायता मिलती है, क्योंकि इन जीवो की आवश्यकताएं विभिन्न हो जाती है। विभिन्नताओ के कारण बदलते पर्यावरण में अनुकूलता भी बढ़ जाती है।
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