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यह प्राथमिकी नर जनन अंग होते हैं। यह कोमल अंडाकार के सरचनाएं 5cm*2.5cm*3cm के आकार की होती है।
यह थैली नुमा संरचना में बंद होती है जिन्हें वृषणकोश कहते हैं। वृषण कोश उदर गुहा के बाहर टांगों के बीच स्थित होते हैं।
कार्य
यह लगभग 6 मीटर लंबी आती कुंडलित नलिकाएं होती है जो वृषण के साथ जुड़ी होती है।
कार्य
यह वृषण से शुक्राणु ग्रहण करती है तथा उन्हें स्खलन से पहले अस्थाई रूप से संचित करके रखती है।
प्रत्येक शुक्रवाहिनी एक लम्बी नलिका होती है जिसकी भित्ति मोटी व पेशीय होती है. यह उदर गुहा में एक नाली के माध्यम से प्रवेश करती है जिसे इनगूइनल कैनाल कहते है.
कार्य
ये वृषण से शुक्राणु ग्रहण करती है तथा स्खलन से पहले अस्थायी रुप से संचित करके रखती है.
प्रत्येक नलिका एक छोटी पतली नलिका होती है जो गदूद (प्रोस्टेट ग्रंथि) में से होकर गुजरती है तथा मूत्र मार्ग में खुलती है। मुत्र मार्ग शिश्न में से होकर शिश्न की चोटी पर नर जनन छिद्र के रूप में खुलती है।
कार्य
मूत्र नली स्खलन नलिका से वीर्य को ग्रहण करके बाहर निकालती है। यह मूत्र को भी शरीर से बाहर निकालती है।
यह एक सिलेंडर की आकृति का स्पंजी, पेशी तथा अति रक्त संचित अंग है।
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