समंजन
दृष्टि पटल
25 सेंटीमीटर
पक्ष्माभी द्वारा
क्योंकि नेत्र लेंस की फोकस दूरी को 25 सेंटीमीटर से कम नहीं किया जा सकता है। सामान्य दृष्टि में यह नेत्र की समंजन क्षमता से परे है।
जब हम किसी वस्तु की दूरी को बढ़ा देते हैं तो नेत्र में प्रतिबिंब की दूरी अपरिवर्तनीय रहती है, बदलती नहीं है।
तारों के प्रकाश के पर्यावरणीय अपवर्तन के कारण से तारे टिमटिमाते हैं। तारों का प्रकाश जब पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो पृथ्वी तक पहुंचने से पहले उसका लगातार है अपरवर्तन होता है। माध्यम (वायुमंडल) का अपवर्तनांक लगातार बदलता है। तारों का प्रकाश लगातार विचलित होता है और अभी लंब की ओर मुड़ जाता है, क्योंकि प्रकाश विरल माध्यम से सघन माध्यम में हो जाता है। पृथ्वी की सतह के आसपास वायु संघन होती है, ऊपर की परतों की अपेक्षा। इसलिए तारों की वास्तविक स्थिति आभासी शक्ति से थोड़ी सी भिन्न होती है। तारे उनकी वास्तविक स्थिति से कुछ ऊपर दिखाई देते हैं, जब उन्हें हम पृथ्वी की सतह से देखते हैं तो।
तारों की यह आभासी स्थिति स्थिर नहीं होती, बल्कि थोड़ी-बहुत बदलती रहती है, क्योंकि वायुमंडल के भौतिक लक्षण भी बदलते रहते हैं।
तारे हमसे बहुत दूर है। वे प्रकाश के लगभग बिंदु स्रोत है। तारों से आने वाले प्रकाश का पथ थोड़ा-थोड़ा बदलता रहता है। इसलिए तारों की स्थिति भी थोड़ी सी बदलती रहती है। इसी कारण तारे कभी चमकीले तथा कभी धुंधले दिखाई देते हैं। जिसे तारों का टिमटिमाने का प्रभाव उत्पन्न होता है।
ग्रहों का अपना प्रकाश नहीं होता है क्योंकि वह सूर्य के प्रकाश को परावर्तित कर देते हैं जो उन पर पड़ता है। वे पृथ्वी के बहुत समीप है इसलिए प्रकाश के वृहत स्रोत के रूप में दिखाई देते हैं (और बिंदु स्रोत के रूप में नहीं) यदि हम किसी ग्रह को अनेक प्रकाश बिंदु स्रोत माने तो सभी बिंदु स्रोतों से हमारे नेत्र में प्रवेश पाने वाले प्रकाश में होने वाला परिवर्तन औसतन शून्य के आस-पास ही होगा। यह टिमटिमाने वाले प्रभाव को समाप्त कर देता है।
क्षितिज रेखा के आसपास सूर्य का प्रकाश वायु की सघन पर्तों में से गुजरता है। यह हमारी आंखों तक पहुंचने से पहले वायुमंडल में बहुत दूरी तय करता है। क्षितिज के पास धूल कणों के द्वारा तरंग धैर्य तथा नीले प्रकाश का प्रकीर्णन होता है। इसलिए प्रकाश हमारी आंखों तक लंबी तरंगदैर्ध्य के रूप में पहुंचता है। यह सूर्य को रक्ताभ के रूप में प्रदर्शित करता है।
आकाश का नीला रंग वायु कणों द्वारा प्रकाश प्रकीर्णन के कारण से होता है जो वायुमंडल की ऊपरी परत ओं में बहुत न्यून होते हैं। दिन के समय दिखाई देने वाले दूसरे विभिन्न रंग जो हमें दिखाई देते हैं वह भी उसी पर घटना के कारण से है। लेकिन अंतरिक्ष में लेकिन अंतरिक्ष में प्रकाश प्रकरण के लिए वायु जैसा कोई माध्यम नहीं है जो सूर्य के प्रकाश का प्रकीर्णन कर सके। क्योंकि वहां प्रकाश का प्रकीर्णन नहीं होता है, इसलिए अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष को केवल गहरे या काले रंग के रूप में ही देखते हैं।
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