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पृथ्वी तल का लगभग 70.4% भाग महासागरों द्वारा घिरा है. महासागर सौर ऊर्जा के विशाल संग्राहक है. यह ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत के रूप में उपलब्ध हो सकती है. महासागर का अथाह जल न केवल सौर ऊर्जा का विशाल संग्राहक है अपितु इसमें अथाह भंडार क्षमता भी है. महासागर में उर्जा अनेक रूपों में उपलब्ध है-
महासागरों के तट के अनुदिश जलस्तर का प्रतिदिन चढ़ना उतरना जवार भाटा कहलाता है. प्रत्येक पूर्णमासी व अमावस्या को उच्च ज्वार आता है जिससे जलस्तर कुछ मीटर तक उठ सकता है. ज्वार भाटे में पानी के चढ़ने में गिरने से अर्जित ऊर्जा को ज्वारीय ऊर्जा कहा जाता है. इस ऊर्जा का उपयोग विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है.
महासागरों की सतह पर बहती हुई पवन जल तरंगों में परिवर्तित हो जाती है. जल तरंगों के अनुदिश गति करती हुई जल की विशाल मात्रा में उच्च परिणाम में गतिज ऊर्जा निहित होती है. यह महासागरीय ऊर्जा का एक रूप है जिसमें उर्जा स्वयं को प्रकट करती है. तरंग उत्पन्न विकास किया गया है.
महासागर की सतह के जल तथा गहराई में स्थित जल के ताप में सदैव कुछ अंतर होता है. कई स्थानों पर यह अंतर 20 डिग्री सेल्सियस तक भी हो सकता है. इस रूप में उपलब्ध उर्जा को सागर तापीय उर्जा कहते हैं. सागरीय तापीय ऊर्जा को विद्युत जैसे उपयोगी रूप में परिवर्तित किया जा सकता है.
दो भिन्न समुद्रों का पानी जहां पर पर मिलता है, वहाँ लवण की सांद्रता भिन्न हो जाती है. लवण सांद्रता को इस भिन्नता को लवणीय प्रवणता कहते हैं. इस प्रकृति का भी ऊर्जा प्राप्त करने में उपयोग किया जाता है.
सागरीय वनस्पतियां अथवा जैव द्रव्यमान ऊर्जा का एक अन्य प्रमुख स्रोत है. विशाल मात्रा में उपलब्ध समुद्री शैवाल भविष्य में कभी समाप्त में होने वाला मेथेन इंधन उपलब्ध करा सकते हैं. सागर ड्यूटीरियम के नाभिक संलयन करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इन प्रयासों में सफलता मिल जाने पर सागर उर्जा के एक ऐसे स्रोत में परिवर्तित हो जाएगी जो करोड़ो वर्षो तक के वर्तमान मांग के अनुसार ऊर्जा उपलब्ध करते रहेंगे।
OTEC प्रणाली में सागरीय तापीय उर्जा का उपयोग होता है।
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