भारतीय उपमहाद्वीप के मध्य में स्थित मध्य प्रदेश देश का हृदय स्थल कहा जाता है। भू वैज्ञानिक दृष्टि से मध्य प्रदेश सर्वाधिक प्राचीनतम गोंडवाना लेंड भूसंहति का भूभाग है इसकी संरचना आद्य: महाकल्प शैल समूह के आसपास हुई मानी जाती है।
होशंगाबाद के बराबर की गुफाएं, भोपाल बरखेड़ा के निकट भीमबेटका की गुफा तथा सागर के निकट पहाड़ियों से प्राप्त शैल चित्र उनकी कलात्मक अभिव्यक्ति के ही प्रमाण है. यह शैलचित्र मंदसौर की शिवना नदी के किनारे की पहाड़ियों नरसिंहगढ़, रायसेन, आजमगढ़, पन्ना और रीवा की गुफाओं में भी पर्याप्त संख्या में मिलते हैं. इन शैल चित्रों में पशु पक्षियों के शिकार नृत्य संगीत तथा परिवारिक जीवन के विविध विषय सम्मिलित है। मध्यप्रदेश में सभ्यता का दूसरा चरण पाषाण और ताम्रकाल के रूप में विकसित हुआ. मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की समकालीन यह सभ्यता नर्मदा की घाटी में ईसा से 2000 वर्ष पूर्व विकसित हुई थी। महेश्वर नावडाटोडी, कायथा, नागदा, बरखेड़ा एरण आदि इस सभ्यता के प्रमुख केंद्र थे।
मध्य प्रदेश के भागों में विशेषकर नर्मदा, चंबल, बेतवा आदि नदियों के किनारे पर सिंधु सभ्यता का विकास हुआ था। इस सभ्यता के चिह्न प्रदेश के जबलपुर और बालाघाट जिला में प्राप्त किए थे. डॉक्टर एचडी सकलिया ने नर्मदा घाटी के महेश्वर, नवडाटोडी, और चोली में इसे खोजा था। महर्षि अगस्त्य के नेतृत्व में युद्ध अथवा यादवों का एक कबीला क्षेत्र में आकर बस गया और यहीं से इस क्षेत्र में आर्यों का आगमन प्रारंभ हुआ. एतेरय ब्राह्मण संचयन स्रोत शत्रु एवं शतपथ ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार विश्वामित्र के 50 सापीत पुत्र भी यहां आकर बस गए तत्पश्चात अत्री पाराशर,भारद्वाज, भार्गव, आदि भी आए।
युद्ध कबीले की हैहय अथवा बीतीहव्य के शासकों के काल में इस क्षेत्र के वैभव में वृद्धि हुई। हैहय राजा यशवंत ने नर्मदा के किनारे माहिष्मति नगरी की स्थापना की थी। क्षेत्र के महा प्रतापी सम्राट कृतवीर्य अर्जुन ने कारकोटवंशी नागौ, अयोध्या के पौरव राज त्रिशंकु और कलेश्वर रावण पराजित किया था। रामायण काल में मध्यप्रदेश में दंडकारण्य, महावन और महाकान्तार के घने वन क्षेत्र थे। यदुवंशी नरेश मधु इस क्षेत्र के शासक थे।
शत्रुघ्न के पुत्र शत्रुघाती ने विदिशा प्रशासन किया. कुशावती इनकी राजधानी थी। महाभारत काल में यादववंशी नरेश नील अनूप के शासक थे. पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय यहां के वनों में बिताया था। कलनंतपुर, महिष्मति, उज्जयिनी, विराट पुरी (सोहागपुर), महाकाव्य काल के प्रसिद्ध नगर थे। ईसा पूर्व छठी शताब्दी के 16 महाजनपदों में क्षेत्र का अवनीत महाजनपद इतना विशाल था कि जिसकी दो राजधानियां थी- महिष्मति और उज्जीयनी विदिशा और इसके अन्य प्रमुख नगर थे। महासेन चंड प्र्घोत यहां का शासक था।
चौथी पांचवी शताब्दी में मध्यप्रदेश के उज्जैन नगरी को गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय की राजधानी होने का गौरव प्राप्त हुआ। राजा भोज की राजधानी धारानगरी थी। इसने भोपाल में 240 वर्ग किलोमीटर के घेरे में एक बहुत बड़ी झील का निर्माण करवाया जो मध्यकाल की समृद्धि योजना का प्रमाण है। जेल के सूखने के बाद या उपजाऊ मैदान शेष रह गया। इसी मैदान में आज भोपाल नगरी स्थित है।
15 वीं शताब्दी में होशंगशाह ने मांडू में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। गोंडवंश के अंतिम राजा तथा नूर सिंह राजा का पुत्र मालवा के होशंगशाह के विरुद्ध युद्ध करता हुआ सन 1433 ईसवी में मारा गया तथा इसके साथ ही गोंडवंश के शासन का अंत हो गया। होशंगशाह के बाद मोहम्मद शाह ने राज्य की बागडोर अपने हाथ में ली। उसने चित्तौड़ के राणा को हराया और इस विजय के उपलक्ष्य में एक विजय स्तंभ बनवाया। विंध्य प्रदेश संभवत पृथ्वी पर प्रकृति की प्राचीनतम भेंट है। प्रागैतिहासिक चित्रकला तथा औजार यहां पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। कुछ आधुनिक विद्वानों के मत में मैकल समभूमि ही रामायण की लंका है। अन्यों के मत में प्राचीनतम ऋषियों का निवास यह स्थान ही राम के वनवास का स्थान था। सम्राट हर्षवर्धन की बहन राज्यश्री ने इन्हीं वनों में आश्रय लिया था।
उत्तर वैदिक काल में विंध्य प्रदेश का आर्यीकरण हुआ। इससे आर्यों को दक्षिण की संस्कृति की विजय के लिए आधार प्राप्त हो गया। अशोक के समय यहां बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ। मौर्योत्तर काल में भारत में निर्मित विशाल स्वरूप बौद्ध धर्म परंपरा की स्थापना का साक्षी है।
भोपाल को प्राचीन काल के उस महाकतर (उत्तर से दक्षिण भारत को अलग करने वाली घने जंगलों तथा पर्वतों की दीवार जिसके किनारे पर नर्मदा नदी बहती है) का भाग माना जाता है। इसे ही महर्षि अगस्तय ने अपने दक्षिण यात्रा के मध्य पार किया। प्राचीन काल में यह अपने प्रकार का प्रथम प्रयास था।
1526 में पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर बाबर ने मुगल साम्राज्य की नींव डाली। मालवा के सुल्तानों ने मांडू में अनेक प्रख्यात इमारतों का निर्माण करवाया जिनमें जहाज महल, हिंडोला महल, रूपमती महल, जामा मस्जिद और शाह का मकबरा विशेष उल्लेखनीय है। 1370 के लगभग फारुकी वंश की स्थापना मालिक राजा ने की. यह फिरोजशाह तुगलक का सेवक था इसका शासन निमाड़ जिले से ताप्ती घाटी तक था। इस वंश का अंत सन 1599 ई में हुआ। 1737 ईसवी में भोपाल के युद्ध में पेशवा बाजीराव ने हैदराबाद के निजाम को पराजित किया.
स्थल | अवशेष | स्थल | अवशेष प्राप्त |
निन्नौर गांव (सीहोर) | खुदाई में गुप्त कालीन वास्तुकला उत्कृष्ट नगर व्यवस्था के अवशेष | त्योंथर (रीवा) | खुदाई में बौद्ध कालीन अवशेषों के साथ-साथ ईशापुर वती श्री तथा चौथी सदी में नगरीय सभ्यता के प्रमाण मिले। |
पीतनगर (खरगौन) | लगभग ढाई हजार वर्ष पुराने बौद्ध कालीन अवशेष। | ||
रूल घाट (धार) | सांभर समकालीन सभ्यता के अवशेष | तादौल (उज्जैन) | खुदाई में भूमिका शैली का 2000 वर्ष पुराना मंदिर। |
खालघाट (धार) | भगवान बुध के अनुयायियों से संबंधित 2000 वर्ष पुरानी वस्तुएं। | खेड़ी नामा | खुदाई में साढे 3000 वर्ष पुराने ताम्र युगीन सभ्यता के प्रमाण। |
जटकरा (खजुराहो) | भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की खुदाई में विशाल मंदिर प्राप्त होने के प्रमाण | कलसपा (उज्जैन) | खुदाई में लगभग 3000 वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेष |
जूना एरवास (उज्जैन) | खुदाई में 2000 वर्ष पुराने अवशेष प्राप्त। | भीमबेटका डीह | पांडव काल की गुफाएं |
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