आज इस आर्टिकल में हम आपको पाल वंश का इतिहास के बारे में बताने जा रहे है.
गोपाल पालवंश का संस्थापक माना जाता है. वह एक योग्य और कुशल शासक था. उसने पाल वंश का अधिकार बिहार के क्षेत्र में फैलाया. गोपाल ने 750 से 770 ई. तक अर्थात 20 वर्षों तक शासन किया. उसने उदंतपुरी अर्थात वर्तमान बिहारशरीफ में एक मठ तथा विश्वविद्यालय का निर्माण करवाया.
गोपाल के पश्चात उसका पुत्र धर्मपाल 770 ईसवी में सिहासन पर आसीन हुआ. वह पाल वंश का पहला ऐसा शासक था जो कन्नौज के लिए त्रिदलीय संघर्ष में उलझा . धर्मपाल बौद्ध मतावलंबी था. उसने अनेक मठ और बौद्ध विहार बनवाएं.
धर्मपाल ने भागलपुर जिले में स्थित विक्रमशिला में महाविहार व विश्वविद्यालय का निर्माण करवाया तथा नालंदा विश्वविद्यालय के रखरखाव हेतु 200 गांव दान में दिया था. प्रतिहार नरेश नागभट्ट द्वितीय एवं राष्ट्रकूट राजा धुर्व ने धर्मपाल को पराजित किया.
धर्मपाल के बाद उसका पुत्र देव पाल गद्दी पर बैठा. उसने मुंगेर को अपनी राजधानी बनाया. देव पाल ने भी कन्नौज के संघर्ष में भाग लिया. देव पाल बौद्ध धर्म में आश्रयदाता के रूप में प्रसिद्ध हुआ. जावा के शासक बालपुत्रदेव के आग्रह पर देवपाल ने नालदा में एक विहार की देखरेख हेतु 5 गांव अनुदान में दिए. उसने 40 वर्षों तक शासन किया. देवपाल की मृत्यु के पश्चात पालवंश की अवनति आरंभ हो गई.
देव पाल के बाद विग्रहपाल (850- 854 ई.), नारायण पाल (854- 915 ई.), राज्यपाल (915- 940 ई.), गोपाल द्वितीय (960 ई.) और विग्रह पाल द्वितीय (960- 988 ई.) शासक बने. तत्पश्चात महिपाल प्रथम के समय (988 ई. से 1038 ई.) में पालवंश का दुबारा अभ्युदय हुआ.
महिपाल प्रथम को पालवंश का द्वितीय संस्थापक माना जाता है. रामपाल (1097- 1098 ई. )इस वर्ष का अंतिम शासक था.
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