9,393 वर्ग किलोमीटर
पलामू
डाल्टनगंज, हुसैनाबाद, लातेहार, छतरपुर।
मेदनी नगर
पलामू में 20 प्रखंड है, विश्रामपुर, चैनपुर, छतरपुर, डाल्टनगंज, हैदर नगर, हरिहरगंज, हुसैनाबाद, लेस्लीगंज, मनातू, मोहम्मद गंज, नोडीहा, बाजार, नावा बाजार, पंडवा, पांडू, पाकी, पाटन, पिपरा, सतबरवा, तरहसी, उंटारी रोड।
19,39,869
10,06,302
9,33,567
26.17 प्रतिशत
1000:928
442
63.63 प्रतिशत
74.30 प्रतिशत
52.09 प्रतिशत
5,36,382
2,70,119
2,59,263
92,577
88,631
मनिका, लतेहर, पनकी, डाल्टनगंज, विश्रामपुर, चतरपुर, हुसैनाबाद।
लेटराइट मिट्टी।
मक्का, धान, गन्ना
भाईसापुर नदी, कोयल नदी, ततहा नदी, औरंगा नदी, सोन नदी
बेतला राष्ट्रीय उद्यान, पलामू आश्रनिय, महुआ टाई अभयारण्य
बॉक्साइट, फायर क्ले, डोलोमाइट, शीशा, टिन, चांदी, चूना पत्थर, ग्रेफाइट, सोना, कोयला।
98, 75
उराव, खरवार, कोरबा, चेरो, परहईया, किसान, बेगा, असुर, गोंड, हो।
कास्टिक सोडा एवं केमिकल उद्योग, तसर रेशम उद्योग, जपला सीमेंट कारखाना (निजी क्षेत्र)।
लोध जलप्रपात, गारु जलप्रपात, मिरचैया जलप्रपात,
ततहा (गर्म पानी)
पलामू का पुराना किला।
राष्ट्रीय तिलहन शोध एवं विकास संस्थान (डाल्टनगंज)।
छोटी हवाई पट्टी (डाल्टनगंज)।
जिला केंद्रीय पुस्तकालय
पलामू के जंगलों में 1932 में की गई थी।
यहाँ पर राष्ट्रीय ख्याति का राष्ट्रीय अभयारण्य स्थित है। यह अभयारण्य लगभग 794.3 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह 1973 में बाघ परियोजना के अंतर्गत गठित प्रथम लोग बाघ आरक्षों में से एक है। इस अभयारण्य को झारखंड का सबसे बड़ा अभयारण्य का दर्जा प्राप्त है। पलामू के राष्ट्रीय अभयारण्य के मुख्य आकर्षणों में बाघ, हाथी, तेंदुआ, गौर, सांभर और चीतल आदि का।
झारखंड के पलामू में स्थित बेताल एक राष्ट्रीय पार्क है। बेताल नेशनल पार्क में हिरणों का समूह देखा जा सकता है। यह राष्ट्रीय पार्क 231.67 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस पार्क की स्थापना सितंबर 1986 में की गई थी। यहां विश्व में पहली शेर गणना में 1932 में की गई थी। वर्तमान में 1973 ईसवी से यहां बाघ परियोजना चल रही है। इस नेशनल पार्क में शेर, हाथी, तेंदुआ, जंगली, सूअर, चिता, बंदर, मोर, भालू आदि जीवो को देखा जा सकता है।
गढ़वा से 16 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में विश्रामपुर स्थित है यहां पलामू के राजा जय किशन राय के भाई नरपत राय द्वारा संस्कार से 1750 ईसवी में निर्मित एक गढ़ है। वर्तमान में यह गढ़ काफी जिरण हालत है।
डाल्टेनगंज शहर से ठीक सामने शाहपुर स्थित है। 18वीं शताब्दी में पलामू के राजा गोपाल राय ने इस स्थल पर एक किले का निर्माण कार्य प्रारंभ किया, परंतु यह किला अधूरा है।
महुआ डांड प्रखंड मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में औरसापाट के निकट झारखंड का सबसे ऊंचा जलप्रपात माना जाता है जिसमें तीन ओर से पानी गिरता है। इसकी ऊंचाई 465 फुट है। यह बहुत ही सुखदाई एवं आकर्षक स्थल है।
गारू प्रखंड जलप्रपात मुख्यालय से करीब 3 किलोमीटर दूर स्थित मिरचइया जलप्रपात का अपना अलग आकर्षण है। यह 100 फुट ऊंचे से गिरता है। इसका पानी डिस्टिल्ड वाटर की तरह साफ सुथरा और निर्मल रहता है। ईसाइयों के पर्व बड़ा दिन के अवसर पर पलामू वासी यहां पिकनिक मनाने आते हैं।
लातेहार से पूर्व की ओर लगभग 23 किलोमीटर दूर झारिया घाटी में प्रकृति प्रकृति की गोद में छुपा कांति जलप्रपात आज भी कितने ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। पर्यटक भी पक्की सड़क छोड़कर 2 किलोमीटर दूर इस दिल को देखने के लिए खड़े होकर यहां पहुंच जाते हैं।
लातेहार से 15 किलोमीटर पश्चिमोत्तर में जंगल और पहाड़ियों से घिरी ततहा नदी, एक अद्भुत दर्शनीय स्थल है। यहां तक की यात्रा पैदल ही संभव है क्योंकि रास्ता ऐसा नहीं है कि जिस पर कोई वाहन चल सके। इसका सौन्दर्य आज तक वैसा ही है जैसा पहले था। राजस्थान में रहने पर भी इस नदी तक पैदल ही पर्यटक इसलिए खींचे चले आते हैं क्योंकि इस नदी का पानी बारहमासी गरम रहता है, कहा जाता है कि इस नदी में गंधक है। इसी कारण इसका पानी गर्म है।
औरंगा और कोयल नदी के संगम स्थल केचकी पर स्थित है। इसका शिलान्यास राजा मानसिंह ने विस्तार राजा भगवंत राय ने और किले का मरम्मत राजा मेदिनी राय ने करवाई थी।
जिले के हुसैनाबाद प्रखंड के घाघरा गांव के निकट कुंड नदी पर कुंड जलप्रपात है जो 39 फूट (12 मीटर) की ऊंचाई से गिरता है। इस पर 5 मेगावाट का पन बिजलीघर ताकत करने की योजना बनी है।
डाल्टेनगंज शहर से 15 किलोमीटर दूरी पर राजहरा कोयला खान के निकट सदावह नदी के पूर्वी तट पर प्रवाह गांव में 1943 में बंगाल कोल कंपनी द्वारा एक आर्टिजन वेल (सदाबहार कुआं) खोदा गया था। उसी समय दर्शाए गए पांच घेरे वाले एक नलकूप के माध्यम से पूरे वेग के साथ पानी आज तक स्वत बहता चला आ रहा है। गांव के लोग इसी नलकूप का पानी पीते हैं और भूमि सिंचित करते हैं। शेष बचा पानी सदावह नदी में जा गिरता है।
पलामू जिले के नगर कस्बे में वंशीधर का सुप्रसिद्ध मंदिर है। वंशीधर की मूर्ति अष्टधातु की है जिसमें सोने की मात्रा अधिक है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इस मूर्ति का संबंध मराठों से बताया है।
पलामू व्याघ्र आरक्षित वन झारखंड के छोटा नागपुर पठार के लातेहार जिले में स्थित है। पलामू व्याघ्र आरक्षित वन 1026 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसमें पलामू वन्यजीव अभयारण्य का क्षेत्रफल 980 वर्ग किलोमीटर है। अभयारण्य के कोर क्षेत्र 226 वर्ग किलोमीटर को बेतला राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचित किया गया है।
धर्म | कुल जनसंख्या | प्रतिशत |
हिंदू | 1683169 | 86.77 |
मुस्लिम | 238295 | 12.28 |
ईसाई | 6164 | 0.32 |
सिख | 734 | 0.04 |
बौद्ध | 188 | 0.01 |
जैन | 284 | 0.001 |
अन्य | 5681 | 0.29 |
अवर्गीकृत | 5354 | 0.28 |
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