प्रकृति में पाए जाने वाले पौधों और जंतु अत्यधिक महत्वपूर्ण है. पौधों और जंतु परस्पर तो उपयोगी है ही बल्कि प्रकृति के अन्य कारकों के लिए भी महत्वपूर्ण है, जैसे पौधे मृदा को समृद्ध बनाते हैं. जंतुओं के द्वारा छोड़ी गई CO2 पर्यावरण के उचित तापमान के लिए आवश्यक है. पौधे जंतुओं का भजन, आश्चर्य वैध प्राण -वायु ( ऑक्सीजन) प्रदान करते हैं, जबकि जंतु पौधों को भोजन बनाने के लिए CO2 प्रदान करते हैं. पौधों और जंतुओं का अस्तित्व बनाए रखने में इनका परस्पर सहयोग महत्वपूर्ण है. इसलिए इनका सरंक्षण करना परम आवश्यक है.
वनों को समाप्त करना ही वनोन्मूलन कहलाता है.
वन क्षेत्र में वर्षा व वन्य बहते जल का प्रवाह पेड़ों के कारण कम हो जाता है, जिसे जल्द भूतल पर काफी समय तक रहता है और भूमि को जल अवशोषित करने का अधिक समय मिल जाता है अर्थात भूमि अधिक जल और शोषित कर भौम जल- सत्र को बढ़ा देती है।
वन क्षेत्र में पेड़ों के पत्ते भूमि पर गलते सड़ते हैं और ह्रामूस में बदल जाते हैं। ह्रामूस भूमि की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाती है, क्योंकि इसमें जो पोषक तत्व पाए जाते हैं उनसे पौधों का पोषण होता है।
वन पौधों और जंतुओं के बीच संतुलन बनाते हैं। पौधों द्वारा छोड़ी गई ऑक्सीजन को जंतु सांस लेने में उपयोग करते हैं और बदले में कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं, जिसे पौधे भोजन बनाने में प्रयुक्त करते हैं। यही नहीं वन वायुमंडल में नमी की मात्रा बढ़ाकर वर्षा लाने में और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में योगदान देते हैं। पौधे गरम वायु के वेग को कम करो भाइयों के तापमान को घटाकर इसे सुहाना बनाते हैं।
ऑक्सीजन एक नवीकरणीय संसाधन है और ऑक्सीजन पौधों से प्राप्त होती है। जब पौधे प्रकाश संश्लेषण क्रिया करते हैं तो आक्सीजन एक उत्पाद के रूप में पैदा होती है और वायुमंडल में मिल जाती है, अत :यदि वनों का संरक्षण होगा तो ऑक्सीजन का सरक्षण स्वत: हो जाएगा। यदि पौधे हैं तो ऑक्सीजन है। पौधे वायु को शुद्ध करके ऑक्सीजन के स्तर वायुमंडल में बढ़ाते हैं।
वनस्पति पेड़ पौधे भूमि का जल संचित करते हैं। यह पौधे कुछ जल को वायुमंडल में वाष्प के रूप में उत्सर्जित कर देते हैं, जबकि कुछ जल अंत: स्त्रवण के द्वारा नीचे भूमि में चला जाता है, जिससे भूमि का जल की मात्रा बढ़ जाती है। परंतु अत्यधिक वनस्पति की कटाई से तथा घास के मैदानों के अति चारण से भूमि बंजर हो जाती है। चुकि भूमि में जल थामने की क्षमता नष्ट हो जाती है, अत: भूमिगत जल मिलना कम हो जाता है।
वनों से औषधियां, बिरोजा, रबड़, कपूर (लारेल वृक्ष से) बीड़ी का आवरण ( तेंदू के पत्ते) रीठा, शिकाकाई, मेहंदी, कॉर्क, रुद्राक्ष, लाख व शहद आदि प्राप्त होते हैं।
जंतु श्वसन द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं जिसे पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में भोजन बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। यदि वन नहीं होंगे तो जंतु के द्वारा छोड़ी गई CO2 की मात्रा वायुमंडल में बढ़ जाएगी और सूर्य के ऊष्मीय विकिरण के अवशोषित होने से वायुमंडल का तापमान बढ़ जाएगा। इस प्रकार वनों की कमी विश्व ऊष्मन या ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा दे रही है।
भूमि कटाव भूमि की बर्बादी का एक बहुत बड़ा वह भयानक कारण है। भूमि कटाव से भूमिका पूजा ऊपर नष्ट हो जाता है, जिस से कम पैदावार मिलती है। भूमि कटाव से भूमि समतल बन जाती है जिसमें कृषि क्रियाएं आसानी से करना संभव नहीं होता। भूमि कटाव से भूमिगत जल नीचे चला जाता है, जिस से भूमि बंजर बन जाती है। वास्तव में किसी देश की समृद्धि का आधार उस देश की मिट्टी होती है। अंत्य भूमि कटाव को रोका जाना चाहिए।
वनों के भाव से मृदा की जल धारण वह जल अत: स्त्रवण क्षमता कम हो जाती है अर्थात मृदा जल को कम सकेगी जिसके कारण बाढ़े आती है। वनोन्मूलन से जलवायु का तापमान बढ़ता है जिसे प्राकृतिक में जल चक्र बिगड़ जाता है। परिणाम स्वरूप वर्षा की दर में कमी से सूखा अर्थात अकाल की स्थिति बन जाती है।
जैव मंडल आरक्षित क्षेत्र उत्तर क्षेत्र की जैव विविधता एवं संस्कृति को बनाए रखने में मदद करता है। जैविक महत्व के क्षेत्रों का संरक्षण करना हमारी राष्ट्रीय परंपरा का एक भाग है, जैसे पंचमढ़ी जैव मंडल आरक्षित क्षेत्र इस क्षेत्र की जैव विविधता संवर्धन हुआ है।
प्रकृति में अनेक जीव पाए जाते हैं। इनमें इन में अनेक प्रकार के पेड़-पौधे और जीव-जंतु पाए जाते हैं। यह एक दूसरे से भिन्न होते हैं। जीवो में भिन्नता ही जैव विविधता कहलाती है। अत जैव विविधता सभी प्राणियों, पौधों का सूक्ष्म जीवों की अनेक रूप था और परिवर्तनशीलता हि है। जैव विविधता जीवो के अनुकूल पर आधारित है।
दक्षिणी हरियाणा में खेजरी व कैर के पौधे विशेष क्षेत्र की वनस्पति जात तथा ऊँट विशेष क्षेत्र प्राणीजात के उदाहरण है।
वन्य प्राणी अभयारण्य- ऐसे क्षेत्र जहां वन्य प्राणी सुरक्षित और संरक्षित रहते हैं, वन्य प्राणी अभयारण्य कहलाते हैं। यहां प्राणियों को मारना, शिकार करना , पकड़ना पूर्ण निषिद्ध होता है। भारत में कुल 490 अभयारण्य है। हरियाणा में भिंडावास ( झज्जर) में 1 वन्य प्राणी अभयारण्य है। पड़ोसी राज्य पंजाब में इनकी संख्या अधिक है।
राष्ट्रीय उद्यान- ऐसे विशाल आरक्षित क्षेत्र जो पर्यावरण के सभी संगठनों का संरक्षण करने में पर्याप्त, राष्ट्रीय उद्यान कहलाते हैं। राष्ट्रीय उद्यान वनस्पतिजात, प्राणी जात, दृश्य भूमि व ऐतिहासिक वस्तुओं का संरक्षण करते हैं। सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान भारत का प्रथम आरक्षित वन है जिसमें सर्वोत्तम किस्म की टीक ( सागौन) मिलती है।
भारतवर्ष में बाघों की संख्या निरंतर घट रही थी। इसी विषय के लिए बाघों की उत्तरजीविता एवं समर्थन किया जाए। भारत सरकार ने प्रथम अप्रैल, 19 73 को प्रोजेक्ट टाइगर आरंभ किया। इस समय इन प्रोजेक्ट की संख्या 27 है। सतपुड़ा बाघ प्रोजेक्ट में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है।
IUCN ने भारत की 72 प्रजातियों का संकटापन्न वर्ग और 140 प्रजातियों को सुभेध वर्ग में रखा है।
संकट या खतरे में- यह प्राणी लुप्त होने के कगार पर है, इसलिए इन्हे बचाए रखने के लिए अधिक सुरक्षा की आवश्यकता है, जैसे कस्तूरी हिरण, नीली व्हेल। ‘
समाप्त होने की सीमा पर- इन प्राणियों की संख्या खतरे की सीमा से थोड़ी ऊपर है। यदि इनकी संख्या और घटती है, तो यह भी खतरे की स्थिति में आ जाएंगे, जैसे चिंम्पैजी,, सील, परेरी, जंगली कुत्ता आदि।
दुर्लभ जातियां- यह इसे प्राणी है जिनकी संख्या अत्यधिक कम है, और कुछ विशेष स्थानों पर ही सीमित मात्रा में उपलब्ध है। सुरक्षा के अभाव में यह संकट में या समाप्त होने की स्थिति में भी आ सकते हैं।
कई बार हम सांप, मेंढक, छिपकली, चमगादड़ उल्लू आदि को मार डालते हैं, परंतु यह जंतु पारितंत्र के महत्वपूर्ण भाग होते हैं। जिस आहार शृंखला के ये जंतु भाग होते हैं, इनके मारने से वह आहार श्रृंखला प्रभावित होती है। जिसके कारण प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाता है। इस प्रकार हम इन जंतुओं को मार कर स्वयं को हानि पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं। अनेक ऐसे छोटे जंतु तो विलुप्त होने के कगार पर जा पहुंचे हैं।
हमारे देश में शीत ऋतु का तापमान भी अन्य एशियाई देशों से अधिक होता है, अत : पक्षी इन देशों से भयंकर सर्दी से बचने व भोजन की तलाश में यहां आते हैं। कुछ पक्षी यहां अंडे देने के लिए भी आते हैं, क्योंकि उनके मूल आवास में शीत अधिक होने के कारण जीवन यापन करना सुगम नहीं होता। इसलिए यह पक्षी उड़ कर सुदूर क्षेत्रों से लंबी यात्रा कर हमारे देश में पहुंचते हैं।
कागज की बचत करने से जहां हम उन वृक्षों को काटने से बचाते हैं जिनका कागज बनाया जाता है, वही कागज बनाने में प्रयुक्त होने वाला जल, उर्जा व रसायनों की भी बचत होती है। यह बचत राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बना सकती है।
यदि हम वृक्षों को लगा कर नष्ट करते रहे, तो हमारे सामने अनेक संकट उत्पन्न हो सकते हैं जैसे-
अंतः हम कह सकते हैं कि यदि हम कहीं पर भी वृक्ष को काटे तो उसके स्थान पर दूसरी जगह दूसरा वृक्ष लगाना चाहिए।
आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएँगे की अपने डॉक्यूमेंट किससे Attest करवाए - List…
निर्देश : (प्र. 1-3) नीचे दिए गये प्रश्नों में, दो कथन S1 व S2 तथा…
1. रतनपुर के कलचुरिशासक पृथ्वी देव प्रथम के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन सा…
आज इस आर्टिकल में हम आपको Haryana Group D Important Question Hindi के बारे में…
अगर आपका selection HSSC group D में हुआ है और आपको कौन सा पद और…
आज इस आर्टिकल में हम आपको HSSC Group D Syllabus & Exam Pattern - Haryana…