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स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार के साहित्यकारों का योगदान

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स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार के साहित्यकारों का योगदान

बिहार में ऐसे साहित्यकारों की लंबी परंपरा है, जिनके साहित्य ने स्वतंत्रता संग्राम में जूझनेवाले की पर्याप्त प्रेरणा दी है. इनके प्रमुख नाम है रामवृक्ष बेनीपुरी, शिवपूजन सहाय, पंडित जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी, मुकुट धारी सिंह, युगल किशोर सिंह, केशव राम भट, जीवानंद शर्मा, मोहनलाल मेहता, रामधारी सिंह दिनकर आदि.

पंडित जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी के भारत की वर्तमान दशा तथा स्वदेशी आंदोलन जैसी पुस्तकों से भारतीय स्वतंत्रा संग्राम के सेनानियों को स्वस्थ एवं उत्साह प्राप्त हुआ. डॉ राजेंद्र प्रसाद की लिखी चंपारण में महात्मा गांधी और खादी का अर्थशास्त्र जैसी कृतियों ने स्वतंत्रता सेनानियों के मन में संग्राम की अग्निशिखा को प्रज्वलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

1915 में रायबहादुर राव रणविजय सिंह की महत्वपूर्ण कृति यूरोपीय महायुद्ध और भारत का कर्तव्य प्रकाशित हुई है. भवानी दयाल सन्यासी की लिखी कारावास की कहानी तथा प्रवासी की कहानी आदि कृतियां अत्यंत महत्वपूर्ण धरोहर है. पंडित चंपारण के बेतिया नगर निवासी श्री पीर मोहम्मद मूनिस की अमुद्रित कृति चंपारण के राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरक सामग्री था.

आचार्य शिवपूजन सहाय ने पत्रकारिता और साहित्य रचना दोनों की ही माध्यमों में स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण प्रेरक की भूमिका का निर्वाह किया है. विभूति नामक उनकी सामनामधन्य कहानी संग्रह में संकलित राष्ट्रीय संदर्भ की मुंडमाल कहानी का स्वतंत्रता सेनानियों की प्रेरणा की दृष्टि से अत्यंत महत्व है. इन के द्वारा लिखी क्रांति का अमर संदेश पूरा का पूरा स्वतंत्रता आंदोलन से ही संदर्भित है. इसके अतिरिक्त स्वतंत्रता होने से पहले तथा देश का ध्यान शीर्षक उनके लेखों ने स्वतंत्रता सेनानियों के लिए उनकी पत्रता और उनके कर्तव्य का निवेदन किया है जो आज भी प्रासंगिक है.

हिंदी के महान साहित्यकार श्री रामवृक्ष बेनीपुरी की रचनाएं स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के लिए प्रेरित हुई है. रामवृक्ष बेनीपुरी के उपन्यासों के देश में और कैदी की पत्नी तथा चीत्र लालतारा में वामपंथी राष्ट्रीयता का प्रकाश है.  हिंदी के गद्य लेखक राजा राधिका रमन प्रसाद सिंह की स्वतंत्रता से संदभ्रित रचनाओं का बहुत महत्व है. राजा साहब की सन 1938 ईसवी में प्रकाशित कथाकृति गांधी टोपी का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है.

साहित्यकारों के भी 2 वर्ग रहे हैं, एक और उन लोगों का है, जिन लोगों ने केवल लेखनी के माध्यम से इस संघर्ष में योग दिया. जैसे- केशव राम भट, मोहनलाल महतो वियोगी, रामधारी सिंह दिनकर आदि. दूसरी ओर, कुछ ऐसे साहित्यकार भी हुए हैं, जिन्होंने अपनी लेखनी और सेनानी धर्म दोनों से इस सग्राम की शिखा को उदित किया. ऐसे साहित्यकारों में रामवृक्ष बेनीपुरी, राहुल सांकृत्यायन, मनोहर प्रसाद सिन्हा, रामदयाल पांडे, रघुवीर नारायण आदि प्रमुख थे.

अंग्रेजी के पत्रकार महेश नारायण ने बिहार (बाद में बिहार टाइम्स) के माध्यम से स्वतंत्र बिहार की स्थापना का आंदोलन चलाया. सारण जिले के जगन्नाथ पुर निवासी गोपाल शास्त्री एक अल्पज्ञात सुकवि थे. इन्होंने भी स्वाधीनता का भाव जगाने वाली कविताएं लिखी है. इन की प्रसिद्ध पुस्तकें हैं- राष्ट्रभाषा भूषण, राष्ट्रधर्मप्रदेशीका, हरिजन समृद्धि आदि.

इस कल के दूसरे समर्थ कवि थे मुकुट लाल मिश्र रंग. ऐसे तो यह श्रृंगारी कवि थे लेकिन यह युगचेतना संपन्न भी थे. इन्होंने दुर्गा सप्तशती का दुर्गा विजय के नाम से पद अनुवाद किया है.

बाबू रघुवीर नारायण ने खड़ी बोली और भोजपुरी दोनों में काव्य रचना की है, जिसमें देश भक्ति की उदास भावना भी है. इन की सबसे प्रसिद्ध कविता बटोहिया है, जिसमें प्राकृतिक सौंदर्य से स्वदेशभक्ति को परिपुष्ट किया गया है. भोजपुरी में उनकी दूसरी देश भक्तिपरक गीत है, भारत- भवानी जो प्राय राष्ट्रीय सभाओं में वंदे मातरम की भांति गाया जाता है.

देशरत्न राजेंद्र प्रसाद के निर्देशन में निकलने वाले देश का बिहार के पत्र जगत में वही स्थान है, जो उत्तर प्रदेश में गणेश शंकर विद्यार्थी के प्रताप का है. इन पत्रों ने दमन की परवाह न कर देशवासियों में राष्ट्रीय भाव जगाया.

1928 से 1942 तक दिनकर जी की अनेक क्रांतिकारी व राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत कविताएं निकली, जिन्होंने भारत वासियों को प्रेरित करने के साथ कवि को भी असाधारण साहस प्रदान किया. इनमें प्राणभंग, हिमालय, दिल, हाहाकार तथा आग की भीख आदि उल्लेखनीय है. इस युग में देवव्रत शास्त्री और जगन्नाथ मिश्र दो ऐसे कलाकार थे, सीधी तरह जुड़े थे और अपने लेखों से राष्ट्रीय चेतना को बल प्रदान कर रहे थे.

राहुल सांकृत्यायन की अनेक कहानियां भी प्राचीनता की पीड़ा के अंकन की दृष्टि से स्मरणीय है.  कवियों में मोहनलाल महतो वियोगी ने आर्यवर्त महाकाव्य के द्वारा भारतीय इतिहास की एक अत्यंत शौर्यपूर्ण घटना के चित्र के साथ नारी के कर्तव्य का निर्धारण किया है. गोपाल सिंह नेपाली ने भी देश भक्ति पर अनेक कविताएं लिखी है.

 

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