455Khz
मोडूलेटर कहलाता है.
ऑडियो स्टेज
सिलिकॉन का
वूफ़र
7404
OR गैट्स
10M
FM रेडियो अभीग्रहित
एक दूसरे के विपरीत श्रेणी संयोजित दो जिनर डायोड से
UHF तथा माइक्रोवेव आवृत्ति परास
वामावर्त
20 HHz से 20 khz
गाइड ट्रैक
1024 बाइट्स के
20 माइक्रोन
– 2.6 इंच (6.60 सेमी)
VCR
FM
ओस संवेदी युक्ति
800 डिग्री C
उसके उर्ध्व प्रवर्धक से
1uv
दो इलेक्ट्रॉन गन
5Kv से 6kv
प्रतिरूप जनित्र
5.5 MHz
90 डिग्री
7, 9, 3
22 से 25 किलो वोल्ट
उर्ध्व समरूपता नियंत्रक
ऐंटेना द्वारा अधिग्रहित चैनल्स में वंचित चैनल छाटना।
300 ओम
क्षेतिज ध्रुवण
उसके कर्ण से
फास्फेट योगिक से
दो
कॉपियर
संग्रहित तरंग धैर्य
एक अभिग्रहित तथा एक फिता अभीलेखित
रेडियो या टेप-रिकॉर्डर छाँटना
4.75 सेंटीमीटर\से
455 KHZ
आई एफ
आईएफ को उसके आवश्यक मान पर ट्यून करना
कई आवृत्ति गुणक सोपान
FM प्रेषित में
30KHz
उच्च आवृत्ति ऐसी वोल्टता का प्रयोग करना
अधिक संख्या में वर्धक जोड़ कर
PAL
120 किलोमीटर
120 कोण से
इसका निवेशी अपघात तथा शोर निम्न होते हैं।
150V
पॉलीकार्बोनेट
ALNICO
20 Hz से 20,000 Hz
50 hz
70:30
धारा
10 mA से 50 mA
PNNP
एमीटर क्षेत्र से बड़ा
CE या CB या CC शैली में
मुक्त इलेक्ट्रॉन
N2VP
होरिजेंटल डिफेकेशन सर्किट में
कोई रिसिस्टेंस नहीं होता है
EHT (एक्स्ट्रा हाई टेंशन) हाईटेंशन ट्रांसफर के रूप में टेलीविजन
मोडुलेटर
5.5 mHz
वूफर
वर्टिकल डिफ्लेकेशन सर्किट में
AGC सेक्शन में
ऑडियो
ऑपरेशनल एंपलीफायर
0.3 V
टाइप
एक
जिनर डायोड
AM
455 KHz
पॉवर सप्लाई में
3
AGC स्टेज में
एमिटर में इलेक्ट्रॉन करंट
मुक्त इलेक्ट्रॉन की बहुलता वाला
120 किलोमीटर
120 कोण से रखा जाता है
रेडियो तरंगों का अर्थ 20 kHz से 3 x 10-6 MHz आवृति के बीच की विद्युत- चुंबकीय तरंगों के द्वारा संचार स्थापित करना रेडियो संचार कहलाता है। इस प्रणाली के मुख्य घटक है- ट्रांसमीटर तथा रिसीवर
यह एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जिसका कार्य है- रेडियो तरंग पैदा करना, उन पर संकेत तरंग को आरूढ़ करना और उन्हें विद्युत- चुंबकीय तरंगों के रूप में अंतरिक्ष में फैलाना।
यह भी एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जिसका कार्य है- अंतरिक्ष से रेडियो तरंगों को प्राप्त करना, वांछित आवृत्ति की तरंग छांटना, उसमें से संकेत तरंग को पृथक करना और उसे श्रव्य\ दृश्य रूप से पुनरत्पादित करना।
रेडियो ट्रांसमीटर मे मुख्यतः निम्न लिखित इकाई क्या होती है
श्रव्य संकेत तरंग पैदा करने के लिए माइक्रोफोन रिकॉर्ड प्लेयर टेप रिकॉर्डर या डिस्क प्लेयर प्रयोग किया जाता है। दृश्य संकेत तरंग पैदा करने के लिए वीडियो कैमरा प्रयोग किया जाता है।
यह एक इलेक्ट्रॉनिक परिपथ होता है। यह 20 khz से 3 x 10-6 MHZ आवर्ती के बीच आवश्यक वाहक तरंगे पैदा करता है। ट्रांसमीटर में LC ओसीलेटर या किस्टल ओसीलेटर प्रयोग किया जाता है।
यह एक आर एफ एमप्लीफायर परिपथ है जिसमें संकेत तरंग पर आरूढ़ प्रयोग किया जाता है। यह क्रिया मॉडयूलेशन कहलाती है। मॉडयूलेशन मुख्यतः निम्न तीन प्रकार का होता है-
मॉडयूलेशन कि वह विधि जिसमें वाहक तरंग का आयाम, संकेत तरंग के आयामों के अनुरूप परिवर्तित किया जाता है आयाम आरूढ़न कहलाता है। इसका उपयोग श्रव्य संकेत प्रसारण में किया जाता है। टेलीकास्टिंग में दृश्य संकेतों के प्रसार भी AM प्रणाली के द्वारा किया जाता है।
मॉडयूलेशन कि वह विधि जिसमें वाहक तरंग की आवृत्ति संकेत तरंग के आयामों के अनुरूप परिवर्तित की जाती है आवृत्ति आरूढ़न कहलाती है। उसका उपयोग ब्रॉडकास्टिंग तथा टेलीकास्टिंग में श्रव्य संकेत प्रसारण हेतु किया जाता है।
मॉडयूलेशन कि वह विधि जिसमें साइन वेव आकृति के स्थान पर वर्गाकार पल्सेज, वाहक तरंग के रूप में प्रयोग की जाती है। प्लस मॉडयूलेशन कहलाता है। इसका उपयोग है रिमोट कंट्रोल आदि में किया जाता है।
ट्रांसमीटर का मुख्य घटक है एंटीना। यह मोडयूलेटड तरंगों को विद्युत-चुंबकीय तरंगों के रूप में अंतरिक्ष में फैला देता है।
रेडियो रिसीवर, निम्न में से चार मूल सिद्धांतों पर आधारित होता है
भू तल पर वायु मंडल (अंतरिक्ष) में स्थापित प्रत्येक चालक में, ट्रांसमीटर द्वारा प्रसारित विद्युत चुंबकीय तरंगें, आरएफ विद्युत वाहक बल उत्पन्न करती है। यह आरएफ विद्युत वाहक बल ही रिसीवर के लिए आर एफ इनपुट का कार्य करता है। यह क्रिया संग्रहण कहलाती है और इसके लिए एरियल प्रयोग किया जाता है।
विश्व में कार्यरत अनगिनत ट्रांसमीटर्स के द्वारा अंतरिक्ष में प्रसारित है. अनगिनत रेडियो तरंगों में से वाछींत आवर्ती की रेडियो छांटना आवश्यक है तभी उसमें से श्रव्य\दृश्य तरंग का पुनरुत्पादन किया जा सकता है। यह क्रिया चयन कहलाती है और इसके लिए श्रेणी अनुवाद परिपथ प्रयोग किया जाता है।
चयनित आवृत्ति की रेडियो तरंग में से संकेत तरंग को पृथक करना डिटेक्शन कहलाता है। इस कार्य के लिए PN जंक्शन डायोड प्रयोग किया जाता है।
संकेत तरंग को श्रव्य तरंगों अथवा दृश्य में परिवर्तित करना पुनरुत्पादन कहलाता है। इस कार्य के लिए क्रमश: हेडफोन या लाउडस्पीकर एवं पिक्चर ट्यूब प्रयोग की जाती है।
टीआरएफ रिसीवर रेडियो तरंगों के संग्रहण के मूल सिद्धांत पर आधारित विश्व का सर्वप्रथम रिसीवर क्रिस्टल रिसीवर कहलाता है। इसमें, संग्रहण के लिए 25 से 30 फीट लंबा चालक तार 20 फीट ऊंचाई पर स्थित किया जाता है जो एरियल का कार्य करता है। आवृत्ति चयन के लिए लगभग 300 लपेट वाली लंबी कुंडली और 30 से 300 पिको फ्रीडमैन का परिवर्तित संधारित्र प्रयोग किया जाता है। डिटेक्शन के लिए PN संगम डायोड तथा पुनरुत्पादन के लिए उच्च अपघात वाला हेडफोन प्रयोग किया जाता है।
क्रिस्टल रिसीवर की कार्य सीमा 50 से 80 किलोमीटर होती है इसमें अधिक दूरी पर संग्रहण के लिए रिसीवर में आर एफ़ तथा ए एफ प्रवर्धक प्रयोग किए जाते हैं। प्रवर्धक परिपथों के उपयोग पर आधारित रिसीवर ट्यूंड रेडियो फ्रीक्वेंन्सी रिसीवर या टी आर एवं रिसीवर कहलाता है। इस चयन तथा डिटेक्शन खंडों के बीच 2 से 3 आर एफ प्रवर्धक इकाइयां प्रयोग की जाती है। इस प्रकार संकेत तरंग इतनी शक्तिशाली हो जाती है कि वह लाउडस्पीकर को चला सकती है और अनेक व्यक्ति एक साथ कार्यक्रम सुन सकते हैं।
थ्रमीऑनिक वाल्व अथवा ट्रांजिस्टर आधारित ऐसा परिपथ जो उसे प्रदान किए गए संकेत की वोल्टता अथवा शक्ति के मान को बढ़ा दे प्रवर्धक परिपथ या प्रवर्धक कहलाता है।
इस परिपथ में ट्रांजिस्टर के बेस पर आरोपित डीसी बॉयस (पूर्व प्रदत डीसी वोल्टता) के साथ-साथ आर एफ, ए एफ संकेत वोल्टता भी प्रदान की जाती है। यह एक ही संकेत वोल्टता, बायस वोल्टता में जुड़ती\ घटती है। जिसके फलस्वरूप कलेक्टर धारा प्रवर्तित होने लगती है। कलेक्टर परिपथ में संयोजित लोड प्रतिरोधक के सिरों पर प्रवर्तित वोल्टता अर्थात संकेत प्राप्त हो जाता है जो इनपुट संकेत की तुलना कई गुना (या कई 100 गुना) अधिक होता है यही प्रवर्धन है।
प्रवर्धकॉ का वर्गीकरण: प्रवर्धक का वर्गीकरण निमन्वत है।
रिसीवर्स तथा ट्रांसमीटर्स आउटपुट खंड में संकेत की शक्ति को बढ़ाने के लिए विशेष प्रकार के दो ट्रांजिस्टर\वाल्वस युक्त परिपथ प्रयोग किए जाते हैं जो पुश-पुल प्रवर्धक कहलाते हैं। यह परिपथ निम्नलिखित प्रकार के होते हैं।
किसी प्रवर्तक परिपथ में आउटपुट शक्ति का कुछ अंश इनपुट में देना फीडबैक कहलाता है। ‘यह धनात्मक तथा ऋणात्मक प्रकार का होता है। धनात्मक फीडबैक का प्रयोग ओसिलेटस में किया जाता है जबकि ऋणात्मक फीडबैक का उपयोग ए एफ़ प्रबंधकों में विकृति दोष को दूर करने के लिए किया जाता है। फीडबैक परिपथ दो प्रकार के होते हैं।
टी आर एफ़ रिसीवर में एरियल से ट्यून की गई रेडियो आवृत्ति पर ही डिटेक्शन क्रिया संपन्न की जाती है। इस रिसीवर की सुग्रीहता निम्न स्तरीय होती है। इसका कारण है-आर एफ़ प्रबंधन इकाई का पूर्ण आर एफ़ रेंज पर एक समान प्रवर्धन न कर पाना। इस समस्या के निराकरण के लिए विशेष प्रकार का रिसीवर तैयार किया गया जो सुपरहेटरोडाइन रिसीवर कहलाया।
सुपरहेटरोडाइन रिसीवर में एरियल से ट्यून की गई किसी रेडियो आवृत्ति को स्थानीय ओसीलेटर द्वारा पैदा की गई अवधि के साथ मिक्सर नामक इकाई में एक-दूसरे से प्रतिक्रिया करा कर एक निम्न आवर्ती में प्रवेश कर लिया जाता है। यह निम्न आवर्ती तथा स्थानीय ओसीलेटर से पैदा की गई आवृति के मान का परिवर्तन एक गैंग संधारित्र की सहायता से एक साथ किया जाता है। इसके फलस्वरुप, हेटरोडाइन प्रक्रिया से प्राप्त आई एफ़ का मान निश्चित होता है जैसे- 455 KHz
एक निश्चित अवधि पर आर एफ परिपथ 500 से 5000 गुना तक प्रवर्धन कर सकता है और परिणामस्वरुप रेडियो रिसीवर की सुग्राहिता बहुत बढ़ जाती है। AM रिसीवर के अतिरिक्त FM रिसीवर तथा TV रिसीवर में भी यही तकनीक अपनाई जाती है।
यांत्रिक विधि के द्वारा 2-4 khz से अधिक आवृति की धारा पैदा अव्यवहारिक है। अत उच्च आवृति धारा पैदा करने के लिए इलेक्ट्रोनिक परिथम प्रयोग किया जाता है जो ओसीलेटर कहलाता है। वास्तव में यह एक प्रवर्धक परिपथ होता है जिसमें धनात्मक फीडबैक आरोपित करके उसे ओसीलेटर परिपथ में परिवर्तित किया जाता है। ओसीलेटर परिपथ के आवश्यक घटक है।
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